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Saturday, March 31, 2012

न्याय से वंचित होने पर क्या करें ?

न्याय से वंचित होने पर क्या करें ?
maniram sharma

भारत में उच्च स्तरीय न्यायाधीशों के लिए स्वयं न्यायपालिका ही नियुक्ति का कार्य देखती है और उस पर किसी बाहरी नियंत्रण का नितांत अभाव है|फलत जनता को अक्सर शिकायत रहती है कि उसे न्याय नहीं मिला और उतरोतर अपीलों का लंबा सफर करने बावजूद आम नागरिक वास्तविक न्याय से वंचित ही रह जाता है| दूसरी ओर सरकारें कहती हैं कि न्यायपालिका स्वतंत्र है अतः वह उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती है| स्वतंत्र होने का अर्थ स्वच्छंद होना नहीं है और लोकतंत्र में जनता द्वारा चुनी गयी सरकारें न्यायपालिका सहित अपने  प्रत्येक अंग के स्वस्थ संचालन के लिए जिम्मेदार हैं | आखिर न्यायाधीश भी लोक सेवक हैं और वे भी अपने कृत्यों के लिए जवाबदेय हैं|


किसी प्रकरण में बहुत सी अपीलें दायर करने के बाद भी पीड़ित पक्ष के दृष्टिकोण से न्याय नहीं मिलता है, उसे प्रक्रिया के गढ्ढों में इस प्रकार डाल दिया जाता है कि पीड़ित व्यक्ति न्याय की आशा ही छोड़ देता है| सम्पति सम्बन्धी विवादों में आपराधिक मुकदमे दर्ज होना इसी की परिणति है| फिर किसी प्रकरण विशेष में यदि न्याय मिल जाये तो यह अपवाद और सौभाग्य ही समझा जा सकता है| महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इतने कानूनी दृष्टान्तों, निर्णयों के बावजूद जनता को संतोषजनक निर्णय नहीं मिल रहे हैं और न्याय से वंचित करने वाले निर्णय दिए जाने की मनोवृति व प्रवृति  पर कोई अंकुश नहीं लगा है| यद्यपि पीड़ित पक्ष के लिए असंतोषप्रद निर्णय के विरुद्ध अपील ही एक मात्र रास्ता है किन्तु इससे अनुचित निर्णय देने वाले न्यायाधीशों के आचरण और कार्यशैली पर कोई प्रभाव नहीं पडता है|


भारत में न्यायालय अवमान अधिनियम के भय से आम व्यक्ति न्यायालय के निर्णयों पर किसी प्रकार की टिपण्णी करने से परहेज करता है| अमेरिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति, व उनके आचरण पर  नियंत्रण के लिए अलग से न्यायिक आयोग/कमेटियां कार्यरत हैं| न्यायालयों के निर्णयों की समीक्षा के लिए वहाँ मंच उपलब्ध है और न्यायिक निर्णयों की समीक्षा के लिए वहाँ एक नियमित पत्रिका निकाली जाती है जिसमें न्यायिक निर्णयों पर जनता के विचार प्रकाशित किये जाते हैं| इसी प्रकार के आयोग इंग्लॅण्ड में भी कार्यरत हैं| इंग्लॅण्ड में न्यायिक समीक्षा आयोग अलग से कार्यरत है जो किसी (विचाराधीन अथवा निर्णित)भी मामले की किसी भी चरण पर समीक्षा कर सकता है और जिस व्यक्ति के साथ अन्याय हुआ हो उसे उचित क्षतिपूर्ति दे सकता है| यह भी उल्लेखनीय है उक्त समीक्षा की व्यवस्था के बावजूद इंग्लॅण्ड की न्यायिक प्रणाली भारतीय न्यायिक निकाय से किसी प्रकार कमजोर प्रतीत नहीं होती है| भारत में तो न्यायपालिका को सर्वोच्च माना जाता है और उसके निर्णयों की किसी अन्य निकाय द्वारा समीक्षा नहीं हो सकती| जनतंत्र में जनता और उसके विचार ही सर्वोपरि हैं व कम्बोडिया के संविधान के अनुसार तो नागरिक ही लोकतंत्र के स्वामी हैं, और न्यायाधीश तो इस लोकतंत्र के सेवक मात्र हैं|



भारत में भी न्यायालय अवमान अधिनियम की धारा 5 में यह प्रावधान है कि किसी निर्णित मामले के गुणावगुण पर उचित टिप्पणियां करना अवमान नहीं माना जायेगा| इसी प्रकार वर्ष 2006 में धारा 13 ख जोड़कर यह प्रावधान किया गया है कि यदि न्यायालय इस बात से संतुष्ट हो कि सत्यता को बचाव अनुमत करना जन हित में है और ऐसे बचाव की प्रार्थना सद्भाविक है तो न्यायालय सत्यता को किसी अवमान कार्यवाही में बचाव के रूप में अनुमत कर सकता है| अतः न्यायालयों के निर्णयों की सद्भाविक और तथ्यों पर आधारित समालोचना भारत में भी अवमान के दायरे में नहीं आती है|



हमारे पवित्र संविधान के अनुच्छेद 51क (एच )में नागरिकों का यह मूल कर्तव्य बताया गया है कि वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानव वाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे| इसी प्रकार अनुच्छेद 51 क (जे ) में कहा गया है कि नागरिक व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले| उक्त प्रावधान हमें प्रेरित करते हैं कि हम न्यायिक क्षेत्र सहित उतरोतर सुधार की ओर अग्रसर हों ताकि राष्ट्र प्रगति करता रहे| लोकतंत्र में जनता को यह भी अधिकार है कि न्यायपालिका में उपयुक्त सुधारों हेतु अपने विचार निर्भय होकर व्यक्त करे और न्यायपालिका से ऐसे विचारों पर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की अपेक्षा है| अब समय आ गया है कि न्यायपलिका की कमियों पर  आम नागरिक को स्वर उठाना होगा| उक्त सम्पूर्ण विवेचन के सन्दर्भ में नागरिकों को चाहिए कि जहां किसी भी न्यायिक या अर्ध न्यायिक अधिकारी  के निर्णय से यह आभास हो कि ऐसा निर्णय वास्तविक न्याय, न्याय के सुस्थापित सिद्धांतों अथवा रिकार्ड पर उपलब्ध सामग्री से विपरीत है और वह पूर्ण न्याय की कसौटी पर खरा नहीं उतरता तो ऐसे निर्णय के सन्दर्भ में निर्णायक न्यायाधीश को एक सार्वजनिक और खुले पत्र द्वारा नम्रतापूर्वक फीडबैक दे सकते हैं कि उनके निर्णय में पत्र के अनुसार कमियां हैं ताकि वे भविष्य में ध्यान रखें| अच्छा रहेगा यदि ऐसे पत्र की एक प्रति मुख्य न्यायाधीश महोदय को भी आवश्यकीय कार्यवाही हेतु भेज दी जाय| मीडिया को भी इस सन्दर्भ में अपनी स्वतंत्रता और निर्भीकता का परिचय देकर अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए|

Friday, March 30, 2012

सरकारी जमीन पर कब्जा करके गुरुद्वारा बनाने की साजिश

सरकारी जमीन पर कब्जा करके गुरुद्वारा बनाने की साजिश
      भोपाल। आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस का निर्माण जैसे जैसे पूरा होने के नजदीक आ रहा है कई षड़यंत्रकारी उसके आसपास की जमीनों पर धर्म की आड़ में अतिक्रमण करने लगे हैं। कुछ सिख ठेकेदारों ने एम्स के पहुंच मार्ग पर तार की फेंसिंग खींचकर गुरुद्वारा बनाना शुरु कर दिया है। प्रशासन के सूत्रों का कहना है कि इन अतिक्रमण कारियों को भारतीय जनता पार्टी के कुछ छुटभैये नेताओं का संरक्षण है जिसके कारण वे इस अवैध कब्जे को हटाने में असहाय महसूस कर रहे हैं।
      नए मास्टर प्लान में ये विवादित स्थान लिंक रोड का हिस्सा है। यहां प्रस्तावित 180 फीट की रोड हबीबगंज से रायसेन रोड को जोड़ेगी। इस मार्ग का उपयोग लगभग पचास से अधिक बड़ी कालोनियों के रहवासी तो करेंगे ही साथ में एम्स आने वाले हजारों मरीजों के लिए भी यह सड़क जीवन रेखा साबित होने वाली है। सड़क से गुजरने वाले हजारों यात्रियों और मरीजों से चंदा उगाही के लिए ही इस धार्मिक स्थल का निर्माण कराया जा रहा है। 

      पिछले दो दिनों से चल रहे इस अवैध निर्माण की शिकायत स्थानीय नागरिकों ने भोपाल संभाग के प्रभारी मंत्री जयंत मलैया को की है। देश के सम्मानीय न्यायालयों के फैसलों का हवाला देते हुए नागरिकों ने अनुरोध किया है कि सार्वजनिक स्थलों पर बनाए जाने वाले अवैध धार्मिक स्थलों को हटाए जाने के स्थायी आदेश के बावजूद ये अवैध निर्माण धड़ल्ले से किया जा रहा है। निर्माण कर्ताओं ने इस अवैध कार्य को करने के लिए तीन दिनों के शासकीय अवकाश की आड़ ली है। स्थानीय नागरिकों ने जिला कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव से संपर्क करने की कोशिश की तो उन्हें बताया गया कि वे 7 अप्रैल तक छुट्टी पर हैं। इसे देखते हुए स्थानीय नागरिकों ने पुलिस थाने में आवेदन दिया है।

       अलकापुरी निवासी सर्व श्री योगेन्द्र पाठक, श्रीमती सालोमन, और श्री विजय तारण, श्री औरंगाबादकर, श्री पी.के.डे, श्री आर.एस.तिवारी ने पुलिस थाने में दिए गए आवेदन में गैरकानूनी तरीके से किए जा रहे इस निर्माण कार्य को अविलंब रुकवाने का निवेदन किया है। नागरिकों का कहना है कि अवैध तरीके से किया जा रहा ये अतिक्रमण तत्काल हटाया जाए। 

       गौरतलब है कि एम्स के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के कारण स्थानीय आबादी पर अतिरिक्त दबाव बढ़ने की संभावना के कारण जिला प्रशासन वैसे भी आसपास के अतिक्रमण हटाता रहा है।नगर निगम ने आबादी के बेहतर प्रबंधन के लिए जोनल प्लान भी बनाया है जिसमें आगे चलकर आसपास की आबादी को पुर्ननियोजित किया जाएगा। भविष्य में अस्पताल आने जाने वाले भारी वाहनों और आसपास की बसाहटों में आने वाली स्कूल बसों, और कार्यालयों की बसों के आवागमन के लिए ये निर्माण बड़ी समस्या बन सकता है। भोपाल में बनने वाले एम्स असप्ताल को गुणवत्ता के लिहाज से उत्कृष्ठ बनाने के लिए जरूरी है कि इस अवैध निर्माण को तत्काल हटाया जाए और इसके लिए दोषी व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।

लोकायुक्त ने 3 माह में 70 करोड़ रुपए की काली कमाई का किया खुलासा

लोकायुक्त ने 3 माह में 70 करोड़ रुपए की काली कमाई का किया खुलासा
भोपाल। लोकायुक्त पुलिस के इतिहास में पहली बार तीन माह की समयावधि में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ की गई छापामार कार्रवाई में 70 करोड़ रुपए की काली कमाई का खुलासा किया गया है। 
पिछले 88 दिन में 17 अधिकारी-कर्मचारियों के यहां छापे और 40 अधिकारी-कर्मचारियों को रिश्वत लेते दबोचा गया है। सबसे बड़ी कार्रवाई उज्जैन पीएचई में पदस्थ रहे एई आरके द्विवेदी यहां हुई। जिनके पास से 8 करोड़ रुपए से अधिक का काला धन उजागर किया गया है। 
छापे के 17 मामले 
लोकायुक्त पुलिस ने एक जनवरी से 28 मार्च की स्थिति में 17 भ्रष्ट शासकीय सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज कर उनके पचास से अधिक ठिकानों पर छापामार कार्रवाई की है। भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा काली कमाई से प्रदेश के बाहर भी बड़ी संख्या में अचल संपत्ति खरीदी गई है। इसमें करीब 70 करोड़ की बेनामी संपत्ति का खुलासा किया गया है। इसके अलावा 40 अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ ट्रेप की कार्रवाई की है। इसमें चार लाख रुपए से अधिक रिश्वत की राशि बरामद की गई है। विशेष पुलिस स्थापना, लोकायुक्त के गठन के बाद तीन माह की समयावधि में लोकायुक्त की यह सबसे बड़ी कार्रवाई है। हैरत की बात तो यह है कि जबलपुर विकास प्राधिकरण के स्टोर कीपर (मुकेश दुबे) जैसे छोटे कर्मचारी के पास ढाई करोड़ रुपए की आय से अधिक संपत्ति मिल रही है, तो पटवारी तीन से पांच करोड़ के आसामी निकले हैं। रिश्वत के मामलों में राजस्व, स्वास्थ्य, नगर निगम, पीडब्ल्यूड़ी, खनिज, सहकारिता और नगरीय निकायों के अधिकारी-कर्मचारी पकड़े जा रहे हैं। 
तोड़ा सालों का रिकार्ड 
लोकायुक्त पुलिस की महज तीन माह की कार्रवाई ने साल भर में होने वाली कार्रवाइयों का रिकार्ड तोड़ दिया है। कभी साल में पांच से दस करोड़ की बेनामी संपत्ति का खुलासा होता था तो अब तीन माह में आंकड़ा 70 करोड़ पार कर गया है। वर्ष 2010 में लोकायुक्त पुलिस ने अनुपातहीन संपत्ति के 25 मामलों में 24 करोड़ 31 लाख रुपए का काला धन उजागर किया था तो इस साल ट्रेप के 65 प्रकरणों में 6.85 लाख रुपए जब्त किए थे। वर्ष 2011 में छापे के 37 प्रकरणों में 70 करोड़ 11 लाख रुपए की काली कमाई उजागर की थी तो ट्रेप के 102 मामलों में 11.57 लाख रुपए बरामद किए थे। जबकि इस साल अब तक 17 छापे और 40 ट्रेप के प्रकरण कायम किए जा चुके हैं।

Wednesday, March 28, 2012

पुजारी जो खौलते दूध से नहाता है

अब ये चमत्कार है, कोई शक्ति, भक्ति, अंधविश्वास, जुनून, पागलपन या शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता. कुछ भी कहें लेकिन इस देश में एक व्यक्ति ऐसा भी है जो खौलते हुए दूध से स्नान करता है. नवरात्रि के दिनों. ये अधेड़ उम्र का व्यक्ति पुजारी है. बनारस के दुर्गा मंदिर में.
देखें वीडियो. लेकिन ध्यान रहे आप ऐसा न करें. किसी को बताएं तो उसे भी ऐसा न करने की सलाह ज़रूर दें. ऐसा करते करते उसके शरीर इस पुजारी के शरीर में ये सब करने, सहने की ताकत आ गयी होगी. लेकिन किसी और के लिए ये जानलेवा भी हो सकता है.
वीडियो देखने के लिए



लुटेरा कौन?

लुटेरा कौन?

डा. शशि तिवारी
भारत सोने की चिडि़या था और अभी भी है जिसे पहले आतताईयों ने लूटा, जिसमें हमारे ही विश्वासघाती एवं देशद्रोहियों ने इनका साथ दे देश की सम्पदा की लूट में भरपूर योगदान भी दिया था। लेकिन यहां हमें मालूम था कि लुटेरा एवं देशद्रोही कौन है? निःसन्देह उन्होंने भी अपने लूट के धन्धे का धर्म निभाया। लेकिन, हमारे वीर सपूतों ने भारत की आजादी का सपना, अपना बलिदान, अपने लोगों की रक्षा एवं अंग्रेज लुटेरों को भगाने के लिए किया था। भारत स्वतंत्र भी हो गया लेकिन देखा जाए तो आज भी केवल चेहरे, मोहरे और शासक ही बदले है। पहले विदेशी लूट रहे थे, अब अपने ही लूट खसूट में लग यहां के पैसों को विदेशों में भेजने का कार्य कर रहे है, कुछ तो स्वार्थ में इतने अन्धे हो गये है कि विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने अथवा अपने करीबी के फायदे में लिप्त हो देश के धन को क्षति पहुंचा न केवल देश को लूट रहे है बल्कि देश के साथ धन के मामले में विश्वासघात भी कर रहे है जो किसी देशद्रोह से कम नहीं है? अब इंतिहा हो गई है जनता पूछ रही है लुटेरा कौन?
नीतियां एवं सिद्धांतों की दुहाई देते न थकने वाले नेताओं को जब भी, कहीं भी मौका मिला भारत को चूना लगाने में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरती फिर बात चाहे 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की हो, कामवेल्थ गेम्स घोटाला, सत्यम घोटाला, बोफोर्स घोटाला, चारा घोटाला, हवाला घोटाला, हर्षद मेहता शेयर घोटाला, केतन पारेख और शेयर घोटाला या घोटालों का महाघोटाला कोयला घोटाला की हैं।
 
हमारे देश के कर्णधार नेताओं एवं नागरिकों का चरित्र, बेशर्मी, बे हया तो देखिए ऐसा कर्म करते हुए ये तनिक भी नहीं सोचते कि हम किसे लूट रहे है। ये गद्दारी किसके साथ कर रहे है? उस जनता के साथ जिसने चुनकर विश्वास व्यक्त किया या देश के साथ जिसने जीने की स्वतंतत्रता दी, जिम्मेदारी एवं बेहतरी करने की अपेक्षा की? या दोनों के साथ?
 
यूं तो लोकतंत्र के नाम पर नेता स्वार्थ सिद्धी के लिए ढेरों पार्टियांें का गठन कर अपनी दुकान सजाने में जुट जाते है। क्या कभी देश के बारे में भी सोचा? इस देश में कई नेता तो ऐसे है जिनका कोई भी व्यवसाय नहीं है फिर भी अरबपति है कैसे? अल्प समय में अरबों की सम्पत्ति इन पर कहां से आई? कौन सा व्यवसाय किया? यह एक जांच का विषय भी हो सकता है लेकिन, इस पर सभी पार्टियां मौन है आखिर क्यों
 
 
 
 
देश की प्राकृतिक संपदा (खनिज, वन एवं जल) को ठेकेदारों, माफियों के साथ मिल संबंध रखने वाले जिम्मेदार जनप्रतिनिधि, मंत्री, अधिकारी लूट में शामिल हो क्या देश के साथ विश्वासघात नहीं कर रहे है? यदि हां तो सजा क्यों नहीं? अभी महाघोटाला अर्थात् काला हीरा अर्थात् ऊर्जा का भण्डार जिसमें कोयला खदानों की बंदरबांट से देश को 10.67 लाख करोड़ की आय की चपत की आशंका है। हकीकत में कैग ने 150 कोयला खदान की नीलामी में 10.67 हजार करोड़ के घोटाले की आशंका व्यक्त की है। 2004 से 2009 के बीच लगभग 100 प्रायवेट एवं कुछ पब्लिक सेक्टर कंपनियों को बिना नीलामी के ही ब्लाक आवंटन कर खनन की अनुमति दे दी गई थी। यदि, यही नीलामी के माध्यम से आवंटन किया जाता तो सरकार को न केवल इतने का ही फायदा होता बल्कि ग्रेड आधारित रेट अधिक होने से और भी अधिक फायदा हो सकता था।
 
 निःसंदेह यहां देश के राजस्व की ही क्षति हुई है, वही कंपनियों की पौ बारह भी हो गई। ये घोटाला भी कुछ-कुछ 2 जी स्पेक्ट्रम जैसा ही प्रतीत होता है। सच जो भी हो सभी का मुंह कही काला न हो सरकार की यहां अब और भी जवाबदेही बनती है कि पारदर्शी तरीके से कार्य एवं जांच कर असली दोषी को शीघ्र चिन्हित करें एवं जनता के प्रति उत्तरदायित्व के धर्म को निभाए। इस मामले में विपक्ष भी अपनी जवाबदेही से किसी भी तरह से बच नहीं सकता कहीं ये इनकी मिली भगत का खेल तो नहीं? हालांकि कैग की अंतिम रिपोर्ट अभी संसद के पटल पर आई ही नहीं है, अभी से सरकार बचाव की मुद्रा में आ गई है। चूंकि अभी अधिकाधिक रिपोर्ट कैग के द्वारा सरकार को प्रस्तुत ही नहीं की गई है। यह तो रिपोर्ट का मात्र लीकेज है। ये तो वक्त ही बताएगा। एक न एक दिन सच जल्दी ही देशवासियों के सामने आ ही जाएगा। अभी ना ही मीडिया और ना ही विपक्षियों को भी ज्यादा उतावले होने की जरूरत हैं। 
 
यहां एक बात तो निर्विवाद रूप से सत्य है कि देश के लुटेरों के लिए माननीयों को देशहित सर्वोपरि रखने के लिए एवं जनता का विश्वास जीतने के लिए समयबद्ध प्रकरणों के निपटारे, आवश्यकता पड़ने पर संविधान में आवश्यक संशोधन देश हित के लिए करना ही होगा ताकि देश के धन एवं प्राकृतिक सम्पदा के लुटेरों पर देश के साथ विश्वासघात का मुकद्मा चलें। देश को लुटने से बचाने में ईमानदार माननीयों को पहल करना ही चाहिए। आखिर देश एवं जनसेवा के लिए आवाम ने जो इन्हें अधिकार सम्पन्न बना भेजा है उसका क्या?

(लेखिका ‘‘सूचना मंत्र’’ पत्रिका की संपादक हैं)
मो. 09425677352
(शशि फीचर)
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Tuesday, March 27, 2012

श्रमजीवी पत्रकार संघ की जिला ईकाई में चुनाव का गड़बड़झाला, पत्रकारों में आक्रोश

ब्यूरो चीफ / कमलेश गौर (रायसेन/ टाइम्स ऑफ क्राइम)
ब्यूरो चीफ से संपर्क:- 9589738405
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श्रमजीवी पत्रकार संघ की जिला ईकाई का चुनाव विवादों के घेरे मे आ गया है। नियम विरूद्ध हुये चुनाव को लेकर जिले के पत्रकारों में बहुत ज्यादा आक्रोश बना हुआ है, और तत्काल प्रभाव से जिला इकाई भंग कर विधिवत चुनाव कराने की मांग की गई है।
 दरअसल जिला इकाई के चुनाव संबंधी कोई आधिकारिक  जानकारी पत्रकारों को नहीं दी गई थी। बिना निर्वाचन संंबंधी अधिसूचना के हुए तथाकथित चुनाव में प्रक्रिया की अनिवार्यता जैसे मतदाता सूची का प्रकाशन आपत्तियॉ, और दावे और विधान की प्रतिलिपि उपलब्ध कराने का स्पष्ट उल्लघंन किया गया। मनमाने तरीके से हो रहे चुनाव के विरोध में अध्यक्ष पद के उम्मीदवार संजय शर्मा सहित बड़ी संख्या में पत्रकारों ने मौके पर ही लिखित सूचना देकर चुनाव का बहिष्कार कर दिया।  
संदिग्ध चुनाव अधिकारी-निर्वाचन अधिकारी सुनील धाकड़ को बनाया गया था और निर्वाचन पर्यवेक्षक हेमंत प्रसाद थे। बिना किसी अधिकृत पत्र के सांची के शिक्षक हेमंत श्रीवास्तव को सह निर्वाचन अधिकारी के रूप में चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराने की जिम्मेदारी दे दी गई। निर्वाचन अधिकारी की अनुपस्थिति में इस तथाकथित सह निर्वाचन की विधिमान्य प्रक्रिया को अनदेखा करते हुए मनमाने तरीके से चुनाव करा दिया गया। इसमें खास बात यह भी है कि सांची के शिक्षक हेमंत श्रीवास्तव ने रायसेन में चुनाव कराने के लिये विभागीय अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी से नियमानुसार अनुमति नहीं ली।
गैर पत्रकारों ने किया मतदान-मतदाता सूची का प्रकाशन न होने से किसी को न तो सदस्यों के बारे में जानकारी थी और ना ही आपत्ति दर्ज कराने का समय दिया गया। सूची देखने से साफ होता है कि ज्यादातर गैर पत्रकारों को आनन-फानन में सदस्य बनाकर चुनाव की रस्म अदा की गई है। जिला जनसंपर्क कार्यालय ने भी इस बात पुष्टि की है कि मतदाता सूची में दर्ज  ज्यादातर नाम जनसंपर्क कार्यालय की सूची मे नहीं है।
करेंगे विरोध- पत्रकारों ने म.प्र. श्रमजीवी संघ को इस बात से स्पष्ट तौर पर अवगत करा दिया है कि पत्रकारों के नाम पर इस तरह हो रहे फर्जीवाड़ा का पुरजोर विरोध करेंगे। अगर जिला ईकाई का निर्वाचन अवैध घोषित कर पुन: विधिवत चुनाव नहीं कराये जाते तो जिले के वास्तविक पत्रकार म.प्र. श्रमजीवी पत्रकार संघ से नाता तोडक़र एक ऐसा संगठन बनाऐंगे जो वास्तव में पत्रकारों का प्रतिनिधि संगठन होगा। जिले के पत्रकारों के एक प्रतिनिधि मंडल ने म.प्र. श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष शलभ भदौरिया से भेंट कर साफ कर दिया है कि अगर निष्पक्ष कार्यवाहीं नहीं हुई तो वे न्यायालय में मामला ले जाने से भी परहेज नहीं करेंगे।