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Friday, December 28, 2012
Thursday, December 27, 2012
PRESS NOT अड़ीबाज बिल्डर अशोक गोयल की अग्रिम जमानत खारिज
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की अग्रिम जमानत खारिज
27/12/2012
भोपाल. अड़़ीबाज और फिरौती मांगने के मामले में शहर में प्रख्यात गोयल बिल्डर के संचालक अशोक गोयल ने आज 27 दिसंबर को जिला न्यायालय में अपनी अग्रिम जमानत आवेदन प्रस्तुत किया। जिस पर न्ययायालय ने थाना एम.पी. नगर से केस डायरी तलब की इस दौरान प्रकरण के फरियादी विनय डेविड ने अधिवक्ता यावर खान के माध्यम से लिखित आपत्ति प्रस्तुत की। तभी आरोपी अशोक गोयल के अधिवक्ता पी.सी. बेदी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए जमानत याचिका को नोट पे्रस करते हुए कोर्ट से आग्रह किया। जिस पर कोर्ट ने अशोक गोयल की जमानत याचिका खारिज कर दी।
अशोक गोयल |
आज के बाद आप इनसे ही निपट लेना। उसके बाद रात्रि 6:56 पर मेरे मोबाईल पर शाहिद खान के मोबाईल नं. 7879971666 से फोन आया कि हम तीनों तुम्हारे आफिस आ रहे है फिर 7 बजकर 10 मिनिट पर शाहिद खान, अशोक गोयल व इनके साथ एक व्यक्ति और विनय डेविड के आफिस में आये, आफिस की दोनों कुर्सी पर उसका एक साथी बैठ गया अपनी जेब मे से रिवाल्वर निकालकर विनय डेविड को आधे घण्टे तक डराया धमकाया व मुझसे 5 लाख रूपये की मांग करते करते फिर बोलने लगे कि 50 हजार रूपये 27/12/2012 तक दे देना तथा खाली करके चले जाओ नहीं तो तुम्हें जान से खत्म कर डालेगे ऐसा बोलकर मुझे मां बहन की अश£ील गालियां दी। जान से मारने की धमकी, फ़्लेट खाली करवाने, तोड़ फोड़ कर गाली गुप्तार की गई। यह तीनों जान से खत्म करने की धमकी देकर चले गये आफिस में वीडियो केमरा लगा था जिसकी रिकार्डिग भी की गई है।
घटना की शिकायत एम.पी.नगर थाने में की गई थी जिस पर अपराधियों के विरूद्ध अपराध क्रमांक 1013/12 दिनांक 23/12/2012 धारा 387, 452, 294, 506, 120 बी भा.द.वि तहत मामला दर्ज किया गया है। सभी आरोपी फरार चल हंै।
अड़ीबाज बिल्डर अशोक गोयल की अग्रिम जमानत खारिज
अशोक गोयल |
अड़ीबाज बिल्डर अशोक गोयल
की अग्रिम जमानत खारिज
27/12/2012
भोपाल. अड़़ीबाज और फिरौती मांगने के मामले में शहर में प्रख्यात गोयल बिल्डर के संचालक अशोक गोयल ने आज 27 दिसंबर को जिला न्यायालय में अपनी अग्रिम जमानत आवेदन प्रस्तुत किया। जिस पर न्ययायालय ने थाना एम.पी. नगर से केस डायरी तलब की इस दौरान प्रकरण के फरियादी विनय डेविड ने अधिवक्ता यावर खान के माध्यम से लिखित आपत्ति प्रस्तुत की। तभी आरोपी अशोक गोयल के अधिवक्ता पी.सी. बेदी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए जमानत याचिका को नोट पे्रस करते हुए कोर्ट से आग्रह किया। जिस पर कोर्ट ने अशोक गोयल की जमानत याचिका खारिज कर दी।
अशोक गोयल द्वारा तय गुंडे शाहिद खान एवं उसका एक साथी रिवाल्वर निकालकर अड़ी डालते हुए |
ज्ञात हो कि विनय डेविड को अशोक गोयल मेसर्स गोयल बिल्डर, शाहिद खान एवं अन्य एक गुंडे द्वारा धमकी दी जा रही है। कल दिनांक 22 दिसंबर 2012 को अशोक गोयल द्वारा उनके मोबाइल क्रमांक 9826053535 से मेरे मोबाईल पर फोन कर कहा गया कि आप शाहिद खान से निपट ले मैंने इनको फ्लेट बेच दिया है ये आपसे खाली करवा लेंगा। ये बहुत बड़े बदमाश है आप इनसे नहीं लड़ पाओगे।
आज के बाद आप इनसे ही निपट लेना। उसके बाद रात्रि 6:56 पर मेरे मोबाईल पर शाहिद खान के मोबाईल नं. 7879971666 से फोन आया कि हम तीनों तुम्हारे आफिस आ रहे है फिर 7 बजकर 10 मिनिट पर शाहिद खान, अशोक गोयल व इनके साथ एक व्यक्ति और विनय डेविड के आफिस में आये, आफिस की दोनों कुर्सी पर उसका एक साथी बैठ गया अपनी जेब मे से रिवाल्वर निकालकर विनय डेविड को आधे घण्टे तक डराया धमकाया व मुझसे 5 लाख रूपये की मांग करते करते फिर बोलने लगे कि 50 हजार रूपये 27/12/2012 तक दे देना तथा खाली करके चले जाओ नहीं तो तुम्हें जान से खत्म कर डालेगे ऐसा बोलकर मुझे मां बहन की अश£ील गालियां दी। जान से मारने की धमकी, फ़्लेट खाली करवाने, तोड़ फोड़ कर गाली गुप्तार की गई। यह तीनों जान से खत्म करने की धमकी देकर चले गये आफिस में वीडियो केमरा लगा था जिसकी रिकार्डिग भी की गई है।
घटना की शिकायत एम.पी.नगर थाने में की गई थी जिस पर अपराधियों के विरूद्ध अपराध क्रमांक 1013/12 दिनांक 23/12/2012 धारा 387, 452, 294, 506, 120 बी भा.द.वि तहत मामला दर्ज किया गया है। सभी आरोपी फरार चल हंै।
Saturday, December 22, 2012
प्रजातंत्र, हिटलरशाही या सामंतशाही!
प्रजातंत्र, हिटलरशाही या सामंतशाही!
(लिमटी खरे)
एक समय था जब भारत देश (भारत गणराज्य नही) में सामंतशाही हावी थी। आदि अनादिकाल से न्यायप्रिय और मनमानी करने वाले शासकों की कहानियां सभी ने (नब्बे के दशक तक अध्ययन करने वालों ने) पढ़ी होंगी। उचित अनुचित, नीति अनीति आदि का भय सभी को होता था। आज के समय में आखों की शर्म या पानी पूरी तरह मर चुका है। देश अंदर ही अंदर अलगाववाद, आतंकवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, अमीरी गरीबी, ताकतवर, निरीह जैसे मामलों में बुरी तरह सुलग रहा है। देश की राजनैतिक राजधानी में पेरामेडीकल की छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार इसलिए भी टीस दे रहा है क्योंकि अभी ज्यादा दिन हीं हुए जब देश का गौरव बनीं प्रथम महामहिम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज हैं, कांग्रेस की कमान श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों है तो दिल्ली की कमान श्रीमति शीला दीक्षित के हाथों। सभी का आवास दिल्ली ही है इन परिस्थितियों में अगर दिल्ली में किसी बाला के साथ सामूहिक बलात्कार हो जाए तो यह नेशनल शेम की ही बात मानी जाएगी।
दिल्ली में चलती बस में सामूहिक बलात्कार ने वाकई अनेक प्रश्न खड़े कर दिए हैं। समय के साथ लोगों का गुस्सा तो शांत हो जाएगा पर कांग्रेसनीत केंद्रीय संप्रग सरकार और दिल्ली की श्रीमति शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के माथे पर लगा यह कलंक शायद ही धुल पाए। आज कम ही लोग गीता और संजय चौपड़ा के कांड को याद करते होंगे। सरकार भी 26 जनवरी को संजय गीता चौपड़ा के नाम से आरंभ किए गए वीरता पुरूस्कार को प्रदाय करते समय ही इन दोनों की कहानी को याद कर पाते होंगे।
दिल्ली में सबकी नाक के नीचे जो कुछ हुआ वह वाकई अफसोसजनक है, इसकी महज निंदा करने से काम नहीं चलने वाला है। मीडिया का रोल इस मामले में ठीक कहा जा सकता है किन्तु संतोषजनक कतई नहीं। सोशल मीडिया चीख चीख कर मीडिया के उपर हावी होता दिख रहा है। यह देश के बिके हुए मीडिया की कारस्तानी का ही परिणाम है कि आज मीडिया के चीखने के बाद भी उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती ही साबित हो रही है।
क्या मीडिया में इतना साहस है कि वह लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित, पूर्व महामहिम प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के मुंह पर माईक लगाकर लाईव प्रश्न कर देश को सुना सके। अगर ये कथित महान और वरिष्ठ नेता अगर मीडिया से खुली चर्चा से इंकार करते हैं तो क्या मीडिया इनका बहिष्कार करने का साहस जुटा पाएगा?
कांग्रेस और भाजपा के चतुर सुजान वाक पटु प्रवक्ताओं को ढाल बनाकर आखिर कब तक ये नेता अपनी जवाबदेहियों से बचते रहेंगे। केंद्र और दिल्ली में कांग्रेस सत्ता में है बावजूद इसके अपराधों के लिए नया कानून अभी बन रहा है का राग कब तक सुनाते रहेंगे शासक! कब तक किसी मजलूम को अपनी इज्जत से हाथ धोना पड़ेगा? मीडिया को तो चंद विज्ञापन और अन्य सुविधाओं के बल पर खरीद लिया है शासकों ने पर क्या सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स की चीत्कार इन निजामों के महलों की दीवारों से टकराकर लौट रही है?
बलात्कार का मामला उठते ही निजामों की फौज ने आनन फानन 'कठोर कार्यवाही' का आश्वासन दे मारा। दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद होने का दावा और आपके लिए सदा आपके पास होने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस के क्या हाल हैं यह किसी से छिपा नहीं है। देर रात वाहन चालकों से वसूली के अलावा और कोई काम नहीं रह गया है दिल्ली पुलिस का।
हाल ही में कुछ पत्रकारों के साथ केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने डीटीसी की एक बस में उसी रूट पर निकले जिस पर गेंग रेप की घटना को अंजाम दिया गया था। साउथ मोतीबाग से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने 640 नंबर की बस पकड़कर छतरपुर मेट्रो स्टेशन तक का जायजा लिया। बस में मंत्री महोदय को कोई पहचानता नहीं था सो वे आम आदमी की तरह सब कुछ देखते सुनते रहे।
जब बस छतरपुर पहुंची तब मंत्री जी को आभास हुआ कि इस मार्ग पर तो एक भी पुलिस का बेरीकेट और पुलिस मोबाईल तक नहीं मिली। उल्टे छतरपुर में बस रूकने के साथ ही उन्होंने पाया कि कुछ बसें तो मयखाना बनी हुईं थीं। चालक परिचालक, परिसहाय आदि बैठकर जाम टकरा रहे थे। एक पत्रकार ने पूछा कि भई पुलिस का खौफ नहीं है यहां? इस पर बस चालक ने छूटते ही कहा कुछ देर रूको काक्के, पुलिस भी इसी मयखाने का हिस्सा बन जाएगी।
बलात्कार के मामले में अब केंद्र सरकार पूरी तरह बंटी ही नजर आ रही है। केंद्र सरकार में गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे जहां कड़ी कार्यवाही का आलाप गा रही है तो वहीं दूसरी ओर केंद्रीय गृह सचिव आर.के.सिंह द्वारा दिल्ली पुलिस के आयुक्त नीरज कुमार को बचाया जा रहा है। सिंह ने दिल्ली पुलिस की सेवाओं को आउट स्टेंडिंग का तगमा दे दिया है। इस मामले में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का गुस्से का निशाना भी शिंदे बन रहे हैं। सोनिया गांधी के सलाहकारों ने उन्हें मशिवरा दिया है कि वे इस मामले में सख्ती का आवरण ओढ़ें पर सरकार में समन्वय ना होने वे भी मजबूर और बेबस ही नजर आ रही हैं।
जब इस मामले में जनाक्रोश चरम पर आया और रायसीना हिल्स की ओर भीड़ बढ़ी तब लाठी चार्ज कर रेपिड एक्शन फोर्स को बुला लिया जाता है। इसकी सफाई में गृह राज्य मंत्री महोदय कहते हैं कि वह लाठी चार्ज भीड़ पर नियंत्रण के लिए किया गया था। क्या गृह राज्य मंत्री के पास इसका कोई जवाब है कि भीड़ पर नियंत्रण के लिए तो लाठी चार्ज का सहारा ले रहे हैं पर पुलिस और अपराध पर नियंत्रण के लिए किसका साथ लिया जाएगा?
एक ब्लागर मित्र बी.एस.पाबला ने एक अपडेट लगाकर लोगों का ध्यान खीचा है। एक अखबार की कटिंग में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में एक पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या करने के मामले में निचली अदालत से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत तक ने उसे मौत की सजा सुनाई थी। इस मामले में आरोपी ने दया याचिका को रायसीना हिल्स भेजा जहां तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उस दया याचिका में मौत की सजा को उम्रकेद में बदल दिया था।
क्या अब कांग्रेस के आला नेता, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, सुशील कुमार शिंदे, राहुल गांधी, श्रीमति शीला दीक्षित आदि के द्वारा बलात्कार पीडिता के पक्ष में किए जाने वाले रूदन को घडियाली आंसू की संज्ञा नहीं दी जानी चाहिए। क्या इन नेताओं में इतनी भी नैतिकता नहीं बची है कि ये अपने ही पार्टी के लोगों द्वारा किए गए कामों के बारे में दिखावा करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं? क्या ये अपने दिमाग के बजाए सलाहकरों के दिमाग से चलने वाले चाभी वाले वे खिलौने हैं जिसकी चाबी खत्म होने पर वह रूक जाता है?
पूरा देश नहीं कमाबेश विश्व के हर देश में इस बारे में माहिती है कि सालों साल से दिल्ली में महिलाएं महफूज नहीं हैं। दिल्ली परिवहन की रीढ़ बन चुकी मेट्रो में महिलाओं के लिए पहली बोगी आरक्षित है तो रेल्वे ने भी डीएमयू (लोकल रेल) में भी महिला स्पेशल को चलाया है। हर कदम पर दिल्ली में पीसीआर वेन खड़ी है। मोटर साईकल पर चौकसी अलग से हो रही है। दिल्ली कमोबेश 365 दिन ही हाई अलर्ट पर रहती है। देश के व्हीव्हीव्हीआईपी नीति निर्धारक यहां बसते हैं। शीर्ष पदों पर महिलाओं का कब्जा है, फिर क्या कारण है कि बार बार बलात्कार की चीत्कार ना तो पुलिस सुन पाती है और ना ही उंचे पदों पर बैठे निजाम!
एक समय था जब देश में सामंतशाही थी। हाकिमों का राज था, जो वे कहते और चाहते वही सही माना जाता। विरोध करने वालों का सर कलम कर दिया जाता। अराजकता पूरी तरह हावी होने की संभावनाएं रहतीं। एक हिटलर का राज था जिसे हिटलरशाही कहा जाता है। हिटलर के बारे में सभी बखूबी जानते हैं। तीसरा देश का लोकतंत्र या प्रजातंत्र है, जो जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए है। विडम्बना है कि जब प्रजातंत्र देश में बचता नहीं दिख रहा है। यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है कि देश में प्रजातंत्र है, सामंतशाही है उपनिवेशवाद है या हिटलरशाही! (साई फीचर्स)
सीएम को भी ठेंगा दिखाता है जनसंपर्क
सीएम को भी ठेंगा दिखाता है जनसंपर्क
(विस्फोट डॉट काम)
भोपाल (साई)। मध्यप्रदेश में जनसंपर्क संचालनालय में जमकर घमासान मचा हुआ है। जबसे सारी शक्तियां अतिरिक्त संचालक लाजपत आहूजा के इर्दगिर्द आकर समटी हैं, तबसे जनसंपर्क संचालनालय में मनहूसियत छाने लगी है। वरिष्ठ अधिकारियों के बीच अब वर्चस्व की अघोषित जंग तेज हो गई है। इसका सीधा असर भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सिंह सरकार पर पड़ता दिख रहा है।
पिछले दिनों न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस पर मध्य प्रदेश को सम्मानित किया गया। इसकी खबर जनसंपर्क संचालनालय द्वारा जारी ही नहीं की गई जबकि यह मध्य प्रदेश विशेषकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए बहुत गौरव की बात थी। चर्चाओं को सही मानें तो सरकार की छवि चमकाने के लिए पाबंद एमपी पब्लिसिटी डिपार्टमेंट की कमान सत्ता के बजाए संगठन के हाथों में चली गई है जिसके चलते अब विभाग का ध्यान सत्ता के बजाए संगठन की छवि चमकाने में लग गया है। आरोपित है कि इसके पहले दिल्ली स्थित विभाग के कार्यालय द्वारा भी इसी तरह की कवायद की गई थी।
उधर न्यूयार्क में शिवराज सिंह चौहान प्रदेश का डंका पीट रहे थे तो इधर जनसंपर्क गाफिल हो अपने में ही मस्त दिखाई दे रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के प्रभाव से प्रदेश के जनसंपर्क की कमान थामने आये लाजपत आहूजा सीएम से ज्यादा प्रभात झा से अपना रिश्ता ठीक रखना चाहते हैं क्योंकि वे यह जानते हैं कि अगर प्रभात झा का हाथ उनके सिर पर रहेगा तो सीएम भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते। वैसे भी भोपाल के राजनीतिक गलियारों में अक्सर अफवाहें तो उड़ती ही रहती हैं कि अगले चुनाव में सीएम पद पर दावेदारी करने के लिए प्रभात झा अभी से गोटियां बिछा रहे हैं और पहला कब्जा उन्होंने मध्य प्रदेश जनसंपर्क पर किया है ताकि अपनो को उपकृत करने के साथ ही अपनी छवि को चमका सकें। ऐसे में जनसंपर्क अगर सीएम को भी ठेंगा दिखा देता है तो इसमें हर्ज क्या है?
Friday, December 21, 2012
आहूजा के आने से अखाड़ा बन गया मध्य प्रदेश जनसंपर्क
Present by : toc news internet channal
भोपाल (साई)। बाणगंगा की बैतरणी में लाजपत आहूजा क्या उतरे ऐसा समुद्र मंथन शुरू हो गया है कि कभी कुछ निकलकर बाहर आ रहा है तो कभी कुछ। बाणगंगा की बैतरणी का मतलब मध्य प्रदेश शासन का सूचना एवं जनसंपर्क विभाग का मुख्यालय। हर राज्य में एक ऐसा विभाग होता है, इस राज्य में भी है। लेकिन इस राज्य के विभाग की कहानी न्यारी है। प्रदेश के पत्रकारों तारने मारने का काम इस जनसंपर्क संचालनालय से ही किया जाता है इसलिए यहां बाबूगीरी कम नेतागीरी ज्यादा होती है। इसी नेतागीरी की महिमा है कि लाजपत आहूजा को इलेक्शन इयर में बाणगंगा की बैतरणी में उतार दिया गया लेकिन पहले कथित तौर पर कांग्रेस ने विरोध किया अब भाजपा नामधारी एक व्यक्ति ने सीधे गणकरी को चिट्ठी लिखकर लाजपत को लजाने पर मजूबर कर दिया है।
नितिन गडकरी को किसी एलएन वर्मा ने पत्र लिखा है और दावा किया है कि वे राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़े लोगों की कोई मदद नहीं कर रहे हैं उलटे अपनी गैंग बनाकर आपरेट करने की कोशिश कर रहे हैं। जरा पंक्तियों पर ध्यान दीजिए। राष्ट्रवादी विचारधारा के कट्टर समर्थक कहनेवाले कथित वर्मा चिट्ठी में लिखते हैं-ष् राष्ट्रीय विचारधारा से जुड़े पत्रकारों, संपादकों, साहित्यकारों, लेखकों को इन्हीं आहूजा साहब के चलते विभाग में अपमानित होने के चलते आपको सीधे पत्र लिख रहा हूं। एल. एन. वर्मा के नाम से की गई उक्त शिकायत की स्केन की गई प्रति मीडिया के चुनिंदा लोगों को भी ईमेल के माध्मय से भेजी गई है।
इस शिकायत में सच्चाई कितनी है यह बात या तो आहूजा जानते होंगे या फिर शिकायतकर्ता वर्मा, पर अतिरिक्त संचालक लाजपत आहूजा को सर्वशक्तिमान बनाने से अनेक मीडिया कर्मियों ने जनसंपर्क संचालनालय की ओर रूख करना छोड़ दिया है। माना जा रहा है कि अब संचालनालय में जी हजूरी करने वालों की पौ बारह हो चुकी है। आहूजा के बारे में लिखा गया है कि वे जनसंपर्क को रंडियों का कोठा बना देंगे। इस संबंध में आहूजा का पक्ष जानने का प्रयास किया गया किन्तु वे फोन पर उपलब्ध नहीं हो सके।
पत्र में उल्लेख किया गया है कि शराब और शबाब की शौक के लिए चर्चित राजेश बैन, समरजीत चौहान, संदीप कपूर आदि को फिर से विज्ञापन शाखा में पदस्थ किया गया है। इसमें उल्लेख किया गया है कि विश्व संवाद केंद्र से जुड़े होने के नाते इस संबंध में जब वर्मा द्वारा सारी हकीकत के बारे में भाजपाध्यक्ष प्रभात झा को आवगत कराया गया तो वे भी हतप्रभ रह गए थे। वैसे खबर तो यह भी चलाई जा रही है कि प्रभात झा के इशारे पर ही आहूजा की नियुक्ति यहां की गई है। अगर यह खबर सही है तो वे हतप्रभ क्यों रह गये यह अपने आप में हतप्रभ करनेवाली बात है।
इस संबंध में जब जनसंपर्क में पदस्थ अतिरिक्त संचालक लाजपत आहूजा का पक्ष जानने उनसे उनके कार्यालयीन दूरभाष 0755 - 4096502 पर सोमवार 11 जून को दोपहर साढ़े ग्यारह बजे संपर्क करने का प्रयत्न किया गया तो वहां उपस्थित भृत्य ने बताया कि अभी आहूजा साहब के कार्यालय में ना तो उनके कोई बाबू ही आए हैं और ना ही साहब!
कारण कुछ भी हों लेकिन आहूजा के आने से इतना तो हो गया है कि मध्य प्रदेश जनसंपर्क जंग का पूरा अखाड़ा बन चुका है। जीतेगा कौन यह बाद में देखेंगे अभी लड़ाई में नये नये दांव पेंच इस्तेमाल किये जा रहे हैं और बाजी मारने की पुरजोर कोशिश हो रही है। पहले कांग्रेस के लोगों ने नाराजगी जताई अब भाजपाई भी उनसे खुश नजर नहीं आ रहे हैं।
(विस्फोट डॉट काम)