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Friday, July 4, 2014

विवाह का झांसा देकर यौन सम्बन्ध बनाने वाले को बलात्कारी घोषित करने वाला कानून कितना जायज?


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’  
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अप्रेल 2014 के तीसरे सप्ताह में नयी दिल्ली की अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज निवेदिता अनिल शर्मा ने एक न्यायसंगत और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसकी आवाज दब गयी। लेकिन यदि यही फैसला किसी पुरुष जज द्वारा सुनाया गया होता तो नारीवादी संगठन और नारीवादी लेखक-लेखिका सम्पूर्ण पुरुष समाज को कटघरे में खड़ा कर देते और पुरजोर मांग की जाती कि महिलाओं के मामलों में महिला जजों द्वारा सुनवाई की जाकर निर्णय सुनाये जाने चाहिये। देशभर में महिला शक्तिकरण की मांग गूंज उठती और पुरुषों को पक्षपाती तथा न जाने क्या-क्या कहकर कोसा जाता! इस विषय को आगे बढाने से पहले इस प्रकरण के तथ्यों पर बिन्दुवार प्रकाश डालना उचित होगा :-  

1. एक विवाहित महिला (जिसका सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार नाम उजागर नहीं किया जा सकता) जो एक बेटे की मॉं भी है, जिसने अपने पति से तलाक लिये बिना, एक विवाहिता पत्नी और मॉं होते हुए उसने अपने एक मित्र के साथ इश्क लड़ाना शुरू कर दिया।

2. दोनों का इश्क आगे बढता गया और दोनों के मध्य यौन सम्बन्ध बन गये। जिन्हें अंग्रेजी में एक्ट्रा मैरीटल अफेयर का नाम दिया गया है।

3. यह महिला कहती है कि उसने अपने प्रेमी के साथ इस कारण से विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाये, क्योंकि उसके प्रेमी ने उसको विवाह करने का वायदा किया था।

4. विवाहेत्तर सम्बन्धों के कारण उक्त विवाहित स्त्री कथित रूप से गर्भवती हो गयी, लेकिन उसके अनुसार उसके प्रेमी द्वारा गर्भपात करवा दिया गया। इस प्रकार दोनों के आपसी सम्बन्धों में खटास पैदा हो गयी।

5. इसके बाद इस स्त्री ने अपने प्रेमी के विरुद्ध केस दायर किया कि उसके प्रेमी ने उसे शादी का झांसा देकर बलात्कार किया और बाद में उसका गर्भपात करवा दिया।

6. प्रेमी के विरुद्ध बलात्कार का मुकदमा दर्ज हो गया और उसके विरुद्ध अतिरिक्त जिला अदालत में बलात्कार का मुकदमा चलाया गया।

7. दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद निर्णय सुनाते हुए अतिरिक्त सेशन एवं जिला जज निवेदिता अनिल शर्मा ने अपने फैसले में कहा है कि आजकल विवाहेत्तर सम्बन्धों को बलात्कार के केस में बदलने की प्रवृत्ति चल निकली है। इस कारण आये दिन ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।

8. अतिरिक्त जिला जज ने इस मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए आरोपी को बलात्कार और धोखाधड़ी के आरोप से बरी करते हुए कहा कि रेकॉर्ड पर पेश साक्ष्यों से ऐसा कहीं भी साबित नहीं होता कि आरोपी ने 26 वर्षीय महिला से शादी का झूठा वादा कर उसके साथ जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाए थे। अत: बलात्कार के आरोपी प्रेमी को निर्दोष मानते हुए दोषमुक्त कर दिया।  उपरोक्त फैसले की खबर समाचार-पत्रों में छपकर दब गयी, लेकिन अन्तरजाल पर इस खबर को कुछ न्यूज पोर्टल्स ने प्रमुखता से प्रकाशित किया, जिस पर अनेक पुरुष पाठकों ने टिप्पणी की।

 जिनमें से कुछ पाठकों की टिप्पणियॉं यहॉं प्रकाशित की जा रही हैं :-  प्रदीप शर्मा, दिल्ली का कहना है : लड़कियों के लिए जितने मजबूत कानून बनाओ वो उसका नाजायज फायदा उठाने की कोशिश करती हैं। और लड़कों को फसांती हैं।  नीरज रावत, नयी दिल्ली का कहना है : सही फैसला। जब तक अफैयर सही चला कुछ नहीं.....और बिगड़ गयी तो केस? हद है।  देव दिल्ली का कहना है : एक्सट्रा मैरिटल अफेयर को रेप केस में बदलने का ट्रेंड चल पड़ा है।   अनाम पाठक का कहना है : अदालत ने कहा कि शादीशुदा होने के बावजूद महिला ने अफेयर किया और बाद में उसने बड़ी आसानी से अपने प्रेमी पर रेप का आरोप लगा दिया। महिला का एक बेटा भी है। महिला ने अपनी शिकायत में दावा किया कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए। महिला ने आरोप लगाया कि बाद में वह अपने वादे से मुकर गया और उसका अबॉर्शन भी करवा दिया। इस मुकदमों को कोर्ट तक पहुँचाने से पहले किसी को कुछ भी समझ में क्यों नहीं आया।

मनीष भट्ट, नयी दिल्ली, का कहना है : सही फैसला। जब तक अफैयर सही चला कुछ नही और आपस में बिगड़ गयी तो केस? कानून का मजाक बना दिया है।  अर्काय, आगरा का कहना है : जब अफेयेर है तो रेप कैसा, सही फैसला?  वेंकट सिंह, दिल्ली का कहना है : प्री/एक्सट्रा मैरिटल अफेयर को रेप केस में बदलने का ट्रेंड चल पड़ा है...जब तक लड़की को ठीक ल रहा है, तब तक सब सही और बात बिगड़ जाये तो रेप का केस कर दो....बहुत अच्छा!!! क्या यही कानून है?  अनजान बनर्जी, सहारनपुर का कहना है : फैसला सही है, अपने निजी स्वार्थ के चलते और पैसे के लालच में और ब्लैकमेल के ट्रेंड के चलते ये झूंठे केस अब सामने आने लगे हैं। यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है रेप और धरा 498ए का इस्तेमाल सिर्फ बदला लेने, पुरुषों को मारने एवं उनकी जायदाद लूटने के लिये किया जाता है बचो मर्दो.. इन औरत वाले ख़ूनी पंजों से।  ललित भारद्वाज, दिल्ली का कहना है : आजकल अदालत का काम जरा मुश्किल हो गया है, ऐसे झूठे आरोपों के कारण!  प्रतीक शर्मा, कानपुर का कहना है : मैं एक ऐसी घटना का साक्षी हूँ, जिसमें एक लड़की और एक लड़के के बिना विवाह के ही शारीरिक सम्बन्ध स्थापित हो गये। दोनों ने कई वर्ष तक एक साथ ख़ूब मौज-मस्ती की।

एक दिन उस लड़के ने लड़की को किसी दूसरे लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उसने उस लड़की से किनारा कर लिया। जिस पर उस लड़की ने लड़के के खिलाफ विवाह का झांसा देकर जबरन बलात्कार करने का मुकदमा दायर कर दिया। लड़के को पता चला तो उसे इतना गहरा आघात लगा कि उसने रेल के नीचे कटकर आत्महत्या कर ली। लड़की का कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन मॉं-बाप का इकलौत पुत्र असमय बिछुड़ गया। ऐसे एक नहीं अनेक मामले हर शहर में मिल जायेंगे।   इस प्रकरण में सर्वाधिक विचारणीय प्रश्न यह है कि आरोप लगाने वाली औरत यदि विवाहिता नहीं होती तो बलात्कार के आरोपी का सजा से बचना लगभग असम्भव था। इस प्रकार के प्रकरणों के आये दिन सामने आने से अब यह जरूरी हो गया है कि कम से कम बालिग औरतों के मामले में तो इस प्रकार का कानून तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया जाना चाहिये।

क्योंकि किसी बालिग अर्थात् समझदार औरत को किसी पुरुष द्वारा यौन-सम्बन्ध स्थापित करने के लिये झांसा दिया जाने का अपराध अपने आप में हास्यास्पद है।  यद्यपि यहॉं ये बात सही है कि अनेक पुरुष शादी का वायदा करके, बाद में किन्हीं विशेष या सामान्य कारणों से, किसी दुर्भावना से या बिना किसी दुर्भाव के विवाह करने से इनकार कर देते हैं और तब ऐसी लड़कियों की ओर से यही आरोप लगाया जाता है कि विवाह का झांसा देकर के उसके साथ यौन-सम्बन्ध बनाये और बाद में विवाह करने से इनकार कर दिया। इस स्थिति को बलात्कार के अपराध में आसानी से बदल दिया जाता है। जबकि इसके ठीक विपरीत भी स्थितियॉं निर्मित होती ही हैं। लड़का-लड़की दोनों में प्रेम हो जाता है। दोनों साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं और सारी सीमाओं को लांघते हुए अपनी यौन-पिपासा को शान्त करते रहते हैं। बाद में घरवालों के दबाव में या अन्य किसी से सम्बन्ध बन जाने पर लड़कियॉं किसी दूसरे लड़के के साथ विवाह रचा लेती हैं।

इन हालातें में दूसरे लड़के से विवाह करने वाली लड़कियों की ओर से ऐसे पूर्व प्रेमी लड़कों के विरुद्ध विवाह का झांसा देकर यौन शोषण करने या बलात्कार करने का कोई मुकदमा दर्ज नहीं करवाये जाते हैं, लेकिन ऐसे हालातों में पीड़ित लड़के या पुरुष के पास कोई कानूनी उपाय क्यों नहीं होना चाहिये? जबकि स्त्री के पास विवाह का झांसा देकर बलात्कार करने का आरोप लगाने का कानूनी अधिकार है। क्या ये स्थिति लैंगिक विभेद को जन्म नहीं देती है और इस कारण से अनेकानेक लड़कों/पुरुषों का जीवन बर्बाद नहीं हो रहा है? इसलिये इस कानून को तत्काल बदलने पर विचार किये जाने की जरूरत है।

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