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Friday, August 17, 2018

अटल जी का साक्षात्कार तो नहीं मिला,पर जो मिला वो अनमोल था...


कुमार पंकज @ वरिष्‍ठ पत्रकार 
 
अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे। यह खबर न चौंकाने वाली है और न ही हतप्रभ करने वाली। क्‍योंकि जो जीवन का सच है वो तो होना ही है। वह आज हो या कल हो या परसों। लेकिन अटल जी अटल हैं। उनके साथ बहुत यादें जुड़ी हुई हैं। जिनमें कुछ आज भी याद हैं। बात 1998-99 की है।
 
तब मैं दिल्‍ली में स्‍वतंत्र पत्रकार के तौर पर विभिन्‍न समाचार पत्रों में लिखा करता था। युवा और उत्‍साही मन उस दौर में चाहता था कि सबसे बात करूं, संवाद करूं और उनके अनुभवों के बारे में जानूं। एक अखबार की ओर से मुझसे कहा गया कि क्‍या अटल बिहारी वाजपेयी का साक्षात्‍कार कर सकते हो। यह वह दौर था जब मकान मालिक का लैंडलाइन नंबर देकर हम इंतजार करते थे कि जो फोन आए तो बता दें।

मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय में फोन लगा दिया और कहा कि मुझे उनका इंटरव्‍यू करना है। अटल जी प्रधानमंत्री थे और उनका इंटरव्‍यू करना आसान काम नहीं था। मेरा नाम और फोन नंबर नोट कर लिया गया। दो-तीन दिन बाद मेरे मकान मालिक के यहां फोन आया। मैं घर पर नहीं था। शाम को आया तो पता चला कि प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया है।
 
मैं पब्लिक बूथ पर तुरंत पहुंचा और दिए गए नंबर पर फोन किया। पता चला कि सुबह आठ बजे बुलाया गया है। मैं खुश भी था और उत्‍साहित भी कि अटल जी से मिलने का मौका मिलेगा। खूब लंबी चौड़ी बात होगी। तय समय से पहले मैं प्रधानमंत्री आवास पर पहुंच गया। वहां जांच पड़ताल के बाद अंदर बुलाया गया। पता चला कि अटल जी यहीं पर सबसे मिलने वाले हैं। मेरे साथ कई अन्‍य लोग भी बैठे थे। वे आए और बड़ी विनम्रता के साथ सबसे हाथ जोड़कर अभिवादन किया। फिर उन्‍होंने एक-एक करके सबसे पूछा कि क्‍या काम है। मुझसे भी वही सवाल किया।
 
मैंने कहा कि आपका इंटरव्‍यू करना है। मैं एक स्‍वतंत्र पत्रकार हूं। थोड़ी देर रुके और फिर बोले कि मैं अभी साक्षात्‍कार तो नहीं दे सकता लेकिन आपसे कुछ और बात कर सकता हूं। मैं निराश हो गया क्‍योंकि मैं तो बड़े उत्‍साह के साथ गया था कि इंटरव्‍यू करना है। उन्‍होंने मेरे चेहरे पर निराशा का भाव पढ़ा और कहा कि निराश क्‍यों हो रहे हो। मैंने कहा कि मैं चाहता था कि आपका इंटरव्‍यू करूं। फिर वे हंसते हुए बोले कि आप हमसे मिलकर खुश नहीं हुए। उनकी मुस्‍कुराहट में मेरी भी मुस्‍कुराहट छिप गई।
 
फिर उन्‍होंने मुझे एक अलग कक्ष में बैठने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद वे आए और मुस्‍कुराते हुए बोले आप चाय नाश्‍ता करो, मैं आता हूं। करीब एक घंटे बाद आए और बोले कि आप युवा हो, उत्‍साही हो, आगे बढ़ो यही मेरी शुभकामना है। अभी मैं साक्षात्‍कार नहीं दे सकता क्‍योंकि इसका एक प्रोटोकाल होता है। फिर भी आपका फोन आया था इसलिए मैंने आपको बुला लिया। यह वह दौर था जब मैंने स्‍वतंत्र पत्रकार के तौर पर कई बड़ी हस्तियों का साक्षात्‍कार किया था। उसके बाद अटल जी से कई मुलाकातें हुईं। लेकिन उस तरह से कोई संवाद नहीं हुआ। 

साल 2006 या 7 की बात रही होगी। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में उत्‍तराखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की पुस्‍तक का विमोचन कार्यक्रम था। अटल जी उस कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि थे। जब कार्यक्रम खत्‍म हुआ तो मैं अटल जी मिलने पहुंचा और अपना परिचय देते हुए कहा कि सर अब तो कोई प्रोटोकाल नहीं है। अब तो साक्षात्‍कार दे दीजिए। अटल जी ने कार्यक्रम की ओर इशारा करते हुए कहा कि यही तो साक्षात्‍कार है जो मैंने अपने अनुभव यहां साझा किए। इसे ही लिख दो। उसके बाद मुझे याद नहीं है कि अटल जी किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में गए हों। सचमुच में अटल जी अटल हैं।

विनम्र श्रदांजलि

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