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Saturday, February 16, 2019

एडीजी मिश्रा ने पिता की खबर छापने वालों को 10 करोड़ का नोटिस भेजा




रवीन्द्र जैन, भोपाल 

TOC NEWS @ www.tocnews.org

भोपाल। मप्र के आईपीएस अधिकारी डॉ. राजेन्द्र मिश्रा ने पिता की मौत की खबर छापने वाले कुछ समाचार पत्रों और चैनलों सहित हमीदिया अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर को 10 करोड़ रुपए का नोटिस भेजा है। डॉ. मिश्रा का कहना है कि इन सभी ने मेरे निजी पारिवारिक मामले में दखल दी और मेरे पिता की मौत को लेकर बेहद असंवेदनशील भाषा का प्रयोग किया है।

प्रदेश के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी डॉ. राजेन्द्र मिश्रा के पिता कुलामणि मिश्रा को लेकर पिछले दिनों कुछ समाचार पत्रों (अग्निबाण नहीं) और टीवी चैनलों ने खबर दी थी कि कुलामणि मिश्रा का एक महीने पहले निधन हो चुका है, लेकिन उनके बेटे डॉ. राजेन्द्र मिश्रा उन्हें घर में रखकर झाड़ फूंक के जरिए उन्हें जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर डॉ. मिश्रा का कहना है कि एक माह पहले उन्होंने अपने पिता को उपचार के लिए भोपाल के एक अस्पताल में भर्ती कराया था, लेकिन उन्होंने जवाब दे दिया तो वे घर लेकर आ गए और घर पर ही अभी तक उनका इलाज चल रहा है। डॉ. मिश्रा के पारिवारिक वैद्य राधेश्याम शुक्ला का भी दावा है कि कुलामणि मिश्रा की पल्स अभी चल रही है। इसलिए उन्हें मृत नहीं माना जा सकता।

डॉ.मिश्रा ने अग्निबाण को नोटिस की कापी भेजते हुए कहा है कि हर व्यक्ति अपने पिता की सेवा करना चाहता है। ऐसे मामलों में मीडिया को दखल नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमीदिया अस्पताल के चिकित्सक डॉ. आरएन साहू का बयान भी बेहद असंवेदनशील है। इसलिए इन सभी को कानूनी नोटिस भेजा गया है। डॉ. मिश्रा ने दावा किया कि उनके पिता का उपचार चल रहा है और यदि उनकी मृत्यु हो चुकी होती तो बदबू आती, लेकिन उनके घर में  शव की कोई बदबू नहीं है।

योग्य अफसर हैं मिश्रा

मप्र कैडर के 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी डॉ. राजेन्द्र मिश्रा की छवि बेहद कुशल और कार्य के प्रति समर्पित अधिकारी की है। लंबे समय तक राज्य सरकार ने उन्हें एक साथ तीन विभागों का जिम्मा सौंप रखा था। वे सांख्यिकी विभाग के संचालक, योजना आयोग के सलाहकार और नक्सलवादी गतिविधियों को लेकर भारत सरकार के साथ समन्वय की भूमिका में रहे हैं। प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के साथ विभागीय मतभेदों को लेकर उन्हें वापिस पुलिस मुख्यालय भेजा गया था। डॉ. मिश्रा को आईटी का जानकार माना जाता है। पिछले सात-आठ साल से मप्र का बजट बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है।

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