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Saturday, February 16, 2019

पुलवामा हमले पर विवादित टिप्पणी के बाद NDTV ने डिप्टी न्यूज एडिटर निधि सेठी को किया निलंबित



TOC NEWS @ www.tocnews.org

न्यूज चैनल NDTV से एक बड़ी खबर आ रही है। NDTV में डिप्टी न्यूज एडिटर के पद पर कार्यरत निधि सेठी को चैनल ने दो हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया है। बता दें कि पुलवामा आतंकवादी हमले को लेकर निधि ने अपने व्यक्तिगत फेसबुक अकाउंट पर एक विवादास्पद टिप्पणी की थी।

 
चैनल प्रबंधन ने फिलहाल निधि को दो हफ्ते के लिए सस्पेंड किया है और आगे की जांच के लिए मामले को चैनल के अनुशासन समिति को सौंप दी गई है। एनडीटीवी के आफिसियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर उपरोक्त जानकारी दी गई है।
एनडीटीवी ने बयान जारी कर कहा कि उनकी कंपनी अपने वेबसाईट की डिप्टी एडीटर द्वारा दुखद पुलवामा आतंकी हमले को लेकर व्यक्तिगत फेसबुक अकाउंट पर की गई इस तरह की टिप्पणी की पुरजोर निंदा करती है। उन्हें दो हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया गया है। कंपनी की अनुशासन समिति आगे की कार्रवाई के संबंध में फैसला लेगी।

Wednesday, February 13, 2019

जावद मे आरटीओ बरखा गौड द्वारा पत्रकारों से अभद्रता पर आक्रोशित हुए जावद प्रेस क्लब, दिया ज्ञापन



TOC NEWS @ www.tocnews.org
जावद : जिले में मीडिया को हाशिए पर रखने वाले अधिकारी बहुत हैं। उन्हें पता है कि उनके राजनैतिक लोग उनका बचाव कर लेंगे। ऐसे ही विवादास्पद आरटीओ अधिकारी सुश्री बरखा गौड़ ने पत्रकारों के सवालों से बौखलाई में आकर उनका अपमान कर दिया।
हमेशा की तरह अपने कारनामों की वजह से सुर्खियां बटोरने वाली आरटीओ अधिकारी सुश्री बरखा गौड़ जिले के पत्रकारों से न सिर्फ अभद्रता कर दी, बल्कि उन्हें अपने कार्यालय से बहार निकालने तक कह डाला। इस घटना से आक्रोशित पत्रकारो ने एक तरह का रोष देखा जा रहा है।  बुधवार को जिला परिवहन अधिकारी बरखा गौड द्धारा अभद्रता करने पर पुरे नीमच जिला मे चौथा स्तंभ से जुडे पत्रकारो मे रोष व्याप्त है इसके लिए शुक्रवार दोपहर में जावद प्रेस क्लब के सदस्यो ने जावद प्रेस क्लब के अध्यक्ष जगदीश चंद्र न्याति की उपस्थिति मे नीमच रोड स्थित तहसील कार्यालय पर जाकर मुख्यमंत्री के नाम जावद एसडीएम के. के. मालवीय को ज्ञापन सौफा गया।
ज्ञापन मे बताया गया है की 6 फरवरी 2019 वार बुधवार को पत्रकार साथियों द्धारा बाईट लेने व टेक्स चोरी व ओवरलोड द्वारा टेक्स चोरी करने के विषय पर अवगत कराने पर अभद्रता कर अभद्र व्यवहार कर कार्यालय के बाहर जाने व गोपनीय शब्द का प्रयोग करते हुए पत्रकार साथियो के गलत बर्ताव किया है। जावद प्रेस क्लब ने आरटीओ द्वारा जिले के पत्रकारों के प्रति असंयत व्यवहार की तीव्र निंदा करते हुए कहा है कि आरटीओ अधिकारी के पद पर बैठे अधिकारी को पत्रकारों सहित सभी से संवेदनशील व्यवहार की अपेक्षा की जाती है लेकिन यह अत्यंत खेद का विषय है कि जिले की आरटीओ अधिकारी ने अपने पद की गरिमा के विपरीत आचरण करते हुए पत्रकारों के प्रति असंवेदनशील व्यवहार का प्रदर्शन किया है।
ज्ञापन द्वारा आरटीओ अधिकारी सुश्री बरखा गौड़ के खिलाफ कार्रवाई व उनके स्थानान्तरण की मांग की गई है। प्रवक्ता नारायण सोमानी ने कहा की देश सरकार में मीडिया को हाशिए पर रख कर अधिकारी काम कर रहे हैं। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को किसी भी घटना अथवा योजना के क्रियाकलापों के सत्यापन या फिर किसी भी समाचार की पुष्टि के समय अधिकारी दरकिनार कर मनमर्जी से कार्य कर रहे हैं। प्रदेश सरकार पत्रकारों के अधिकारों व उनके हितों के बारे में बड़े-बड़े दावे करती है, मगर उसके अधिकारी ही सरकार की मंशा को पलीता लगाने के साथ साथ भष्ट्राचार को बढ़ावा देने में लगे हुए है।
जावद प्रेस क्लब ने इस घटना की निंदा करते हुए आग्रह किया है कि भविष्य में यदि पत्रकारों के प्रति किसी भी स्तर पर दुव्यर्वहार सामने आया तो हर स्तर पर तीव्र विरोध किया जायेगा। इस मामले को प्रदेश मुख्यमंत्री कमलनाथ के संज्ञान में लाकर यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया जायेगा कि जल्द से जल्द पत्रकार सुरक्षा कानून अस्तित्व में लाया जाये और हर स्तर पर पत्रकारों की प्रतिष्ठा पर आघात करने वालों, उनका अपमान करने वालों पर समानता के सिद्वांत के तहत कार्रवाई की जाय।
इस अवसर पर वरिष्ठ सदस्य विजय जोशी, नीमच जिला प्रेस क्लब के पुर्व सहसचिव दिलीप सखलेचा, पुर्व कार्यकारणी सदस्य दिपेश जोशी पिन्टु एवं जावद प्रेस क्लब अध्यक्ष जगदीश चंद्र न्याति, सचिव अशोक पाटनी, उपाध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा, प्रवक्ता नारायण सोमानी, सुनील धाकड, नोशाद अली, शिवचन्द्र डोरिया आदि उपस्थित थे। ज्ञापन का वाचन जावद प्रेस क्लब के सचिव अशोक पाटनी ने किया।

Friday, February 1, 2019

पत्रकार को धमकाने वाले अवैध शराब कारोबारी पर कार्यवाही के लिए एसपी को सौंपा ज्ञापन

TOC NEWS @ www.tocnews.org

खंडवा। जिले के ग्राम जावर में अवैध रूप से शराब बेचने वालों के हौसले बुलंद हो गए है। यहां पर शराब बेचने के साथ आहाता भी संचालित हो रहा है। छोटे ग्राम में इस तरह से बड़ी मात्रा में अवैध शराब का कारोबार करने वाले के समाचार छापना एक पत्र को महंगा पड़ गया। अवैध शराब का कारोबारी पत्रकार के घर धमकाने पहुंच गया।

जिसके बाद पत्रकार अनवर मंसूरी ने जावर थाने में शराब कारोबारी की शिकायत दर्ज कराई गई। पुलिस ने 151 में प्रकरण दर्ज कर गिफ्तार भी कर लिया गया। आरोपी जमानत पर छुटने के बाद फिर से अवैध गतिविधियों में लग  गया एवं उसने अवैध आहाता संचालित करने लगा। ज्ञातव्य हो कि पत्रकार अनवर मंसूरी जावर ने अवैध शराब बेचने वालों के खिलाफ खबर प्रकाशित की थी। 

अवैध शराब कारोबारी रमेश राव लगातार पत्रकार को जान से मारने, झूठे केस में फसाने धमकी दी जाती रही थी। पत्रकार अनवर मंसूरी ने बुधवार को पत्रकार संघ के सदस्यों के एसपी कार्यालय पहुंचकर एक ज्ञापन सौंपा। 

ज्ञापन में  पुलिस अधीक्षक को बताया कि मैं रोज कवरेज के लिए घर से बाहर रहता हूं। मेरे कार्यक्षेत्र में मेरे साथ कोई भी घटना घटित हो सकती है या मेरे परिवारजन पर भी हमला हो सकता है। इसलिए आने वाले दिनों में कोई घटना न हो और मेरे परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए तथा उक्त व्यक्ति पर कठोर कार्रवाई की जाए। 


ताकि मैं और मेरा परिवार नि:संकोच जीवन यापन कर सके। इस बारे में पुलिस अधीक्षक ने सभी पत्रकारों से कहा कि आपके द्वारा मेरे संज्ञान में यह मामला लाया गया है मैं आश्वस्त करता हूं इस मामले में जो भी उचित कार्रवाई होगी की जाएगी।

इस घटना की निंदा करते हुए जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (जय) पत्रकार संगठन के मध्य प्रदेश के अध्यक्ष विनय जी डेविड ने शीघ्र ही अवैध शराब कारोबारी के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध कर कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है



Saturday, January 26, 2019

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने निजी टीवी चैनलों के लिए विज्ञापन दरें बढ़ाईं

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नई दिल्ली, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने लोक संपर्क और संचार ब्यूरो (बीओसी) द्वारा निजी टीवी चैनलों को पेशकश की जाने वाली विज्ञापन दरों को संशोधित करने का निर्णय लिया है।  
संशोधित दरों की घोषणा इस मंत्रालय द्वारा गठित एक समीक्षा समिति की रिपोर्ट के आधार पर की गई है जिसने 1 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट पेश कर दी थी।
इस संशोधन से ज्‍यादातर निजी टीवी चैनलों के संबंध में वर्ष 2017 की दरों के मुकाबले विज्ञापन दरों में लगभग 11 प्रतिशत की वृद्धि होगी, जबकि यह वृद्धि कुछ अन्य चैनलों के लिए उनकी पहुंच और टीवी रेटिंग के अनुसार अपेक्षाकृत अधिक हो सकती है।
समाचार और गैर-समाचार चैनलों के लिए अलग-अलग दरों की पेशकश की जाएगी जो देश में उनकी समग्र पहुंच पर निर्भर करेंगी। इस निर्णय से टीवी चैनलों के लिए बीओसी के पैनल में शामिल होना भी आसान हो जाएगा और ऐसे में वे ऊंची दरों का लाभ उठा सकेंगे।

Sunday, January 20, 2019

सहज संवाद : जनता के पैसे पर वाहवाही लूटने की सियासत

Dr. Ravindra Arjariya sahaj samvad toc news
सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
TOC NEWS @ www.tocnews.org
सत्य को स्वीकारने के स्थान पर उसे मौथला करने वालों की भीड तेजी से बढ रही है। राष्ट्रीय परिवेश से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक शक्ति के आगे विकल्पों का नितांत अभाव होता जा रहा है। राजनैतिक मापदण्डों पर आदर्शों की निरंतर धज्जियां उडाई जा रहीं हैं।
देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणामों की कसौटी पर स्वयं की पीठ थपथपाने वालों से लेकर चिन्तन करने वालों तक की लम्बी-लम्बी कतारें लगने लगीं है। वास्तविकता को दरकिनार करते हुए स्वयं की भागीदारी को रेखांकित किया जाने लगा है। एक ओर परिवार की पीढियों में सिमिटकर रह जाने वाले नेतृत्व की आत्मा तो दूसरी ओर राष्ट्रवादी प्रकृति वालों का सिद्धान्तों को पिण्डदान करनाएक ओर जाति विशेष का बोलवाला तो दूसरी ओर विभिन्न जातियों को मिलाकर एक वर्ग की ठेकेदारी करने का दंभएक दल सीमित दायरे में कैद हितों का संरक्षण कर रहा है तो दूसरा व्यक्तिगत स्वार्थ की बुनियाद पर खडा समूह।
इस तरह की अनेक धारायें राजनैतिक समुद्र में मिल रहीं हैं। आम आवाम विकल्पविहीन बनकर अपने शोषण का प्रतिशत कम करने की प्रत्यासा में मतदान की औपचारिकतायें निभाने के लिए बाध्य है। आक्रोशित मतदाता व्दारा सत्ता के विरोध में किया गया प्रयास वास्तव में विकल्पविहीनता का परिचायक है। ऐसा ही प्रयास देश की राजधानीवासियों ने किया था परन्तु तब उनके सामने आम आदमी पार्टी का सशक्त विकल्प एक आईएएस अधिकारी के अनुभवपूर्ण नेतृत्व के रूप में मुखरित था किन्तु कालांतर में परिणाम ढाक के तीन पातों से आगे नहीं बढ सका।
वर्ग विशेष का मत प्राप्त करने की ललक से बनाये गये कानून ने जहां अन्य जातियों को एक जुट होने के लिए विवस कर दिया वहीं गरीबों को अकर्मण्य बनाने वाली योजनाओं पर खर्च होने वाली धनराशि का बोझ मध्यम वर्गीय परिवारों के व्दारा दिये जाने वाले टैक्स पर थोप दिया गया। ऐसी ही स्थिति अब किसानों की आड में नई सरकारों व्दारा पैदा की जा रहीं है। कर्जा माफी के फरमान के पीछे मध्यम वर्गीय परिवारों पर लादा जाने वाला अतिरिक्त दबाव ही है। उच्च वर्गीय लोगों के साथ कानूनों के लचीलेपन का फायदा उठाने वाले जानकारों की फौज होती हैजो टैक्स के वास्तविक स्वरूप को अपने दावपेचों से चकमा देते हैं। वहीं निम्न वर्गीय परिवारों को पहले ही टैक्स मुक्त किया जा चुका है।
ऐसे में नियमों को महात्व देने वाले लोगों में केवल और केवल मध्यम वर्गीय परिवार ही बचते हैं। जो कानून को मानते हैं, उन्हें इस स्वीकारोक्ति का खामियाजा भी भुगतना है। इस सब के पीछे उनकी शक्तिहीनता ही है जिसे वर्तमान समय में धनशक्तिपदशक्ति जैसे शब्दों की परिभाषाओं के रूप में प्रकाशित किया जा सकता है। चिन्तन कुछ ज्यादा ही गहराता जा रहा था कि तभी फोन की घंटी ने व्यवधान उत्पन्न कर दिया। हमारे पूर्व परिचित हशमत उल्ला खान की आवाज वर्षों बाद सुनाई पडी। मन गदगद हो गया। खान साहब का नाम समाजसेवा के क्षेत्र में बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है।
उन्होंने स्वयं के प्रयासों से जरूरतमंदों तक हमेशा मदद पहुंचाई और वह भी बिना किसी हो-हल्ला के। प्रचार से दूर, काम में विश्वास रखने वाले व्यक्तित्व का फोन हमारे लिए बिलकुल अत्याशित था। उन्होंने एक घंटे के अन्दर हमारे घर पहुंच कर मुलाकात की इच्छा जाहिर की। हमारा भी वीकली आफ था। सो आफिस जाने की बाध्यता भी नहीं थी। निर्धारित समय पर वे घर आ गये। हम लोग अतीत को स्मृतियों ताजा करने लगे। बीते पलों के मधुर स्पन्दन में गोते लगाते वक्त ही हमने उनसे कुछ समय पहले चल रहे चिन्तन पर चर्चा शुरू कर दी। विषय ने उनके मुस्कुराते चेहरे को गम्भीरता का आवरण दे दिया।
वर्तमान राजनीति से वास्तविक सिद्धान्तों का पटाक्षेप हो जाने की स्थिति को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले ही जब उसे विभाजन के मुहाने पर खडा कर दें, तो फिर उसका संगठनात्मक स्वरूप विकृत होने की दिशा में गतिशील होगा ही। राष्ट्र से अधिक पार्टी का हित साधने वाले खद्दरधारी स्वयं भू कर्णधार बनकर प्रगट हो जाते हैं। धनबल पर पार्टी खडी करते हैं, और जुट जाते हैं व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए। प्रारम्भिक काल में दलों के सिद्धान्त, आदर्श और मान्यतायें लोकलुभावन नारों की तरह गूंजतीं हैं।
मासूम आवाम को ललचाया जाता है। सब्जबाग दिखा कर ठगा जाता है। मृगमारीचिका के पीछे दौडाया जाता है और जब तक हकीकत सामने आती है तब तक खद्दरधारी का स्वार्थ सफलता से भी कोसों आगे पहुंच चुका होता है। विकल्पों की भ्रूण हत्या का सिलसिला देश में स्वाधीनता संग्राम के दौर से ही चला आ रहा है। थोपे गये लोगों के हाथों में ही सत्ता होती है। हमने बीच में ही टोकते हुए उन्हें विषय पर केन्द्रित रहने के लिए कहा। राष्ट्रीय परिवेश का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि जनता के पैसे पर वाहवाही लूटने की सियासत हो रही है।
सैद्धान्तिक विभेद का परिचायक है मध्यमवर्ग का शोषण। इस तरह के कार्यों से विकास के मापदण्ड स्थापित नहीं हो सकते। जब तक समाज के आखिरी छोर पर बैठे व्यक्ति को सुविधा सम्पन्न नहीं किया जायेगा तब तक प्रगति की दुहाई देना बेमानी ही है। चर्चा चल ही रही थी कि तभी नौकर ने कमरे में प्रवेश करके स्वल्पाहार लाने की अनुमति मांगी। चर्चा में व्यवधान उत्पन्न हुआ किन्तु तब तक हमें अपने चिन्तन को नई दिशा देने के लिए सामग्री मिल चकी थी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज। 

पत्रकारों की सुरक्षा और सम्मान सरकार की पहली प्राथमिकता : पीसी शर्मा

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TOC NEWS @ www.tocnews.org
भोपाल। मध्य प्रदेश की विधि विधाई एवं जनसंपर्क मंत्री श्री पी सी शर्मा ने कहा है कि मध्यप्रदेश के पत्रकारों की सुरक्षा और सम्मान की चिंता सरकार की प्राथमिकता रहेगी ।आप ने पत्रकारों की आवासीय समस्या का समाधान निर्माण एजेंसियों के माध्यम से करने की घोषणा की। साथ ही पत्रकार प्रोटेक्शन एक्ट को जल्द से जल्द लागू करवाने की घोषणा पर अमल करने की बात भी कही। विज्ञापनों को लेकर स्पष्ट नीति बनाने और श्रमजीवी पत्रकार के उन्नयन के लिए चलने वाले सभी कामों की निरंतरता जारी रखने पर सहमति दी। 
जर्नलिट्स यूनियन ऑफ मध्य प्रदेश "जंप" की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक भोपाल के मसाला रेस्टोरेंट स्थित सभागार में संपन्न हुई मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा उपस्थित रहे जंप के महासचिव डॉ. नवीन जोशी ने मंत्री जी को कुछ सुझाव एवं मांगे प्रेषित की जो निम्नानुसार हैं पत्रकारों के परिवार में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं के उच्च शिक्षा अध्ययन के लिए ऋण पर अनुदान में 10% की छूट दी जाए... न्यूजप्रिंट की आपूर्ति के लिए शासन की ओर से सकारात्मक पहल हो क्योंकि छोटे और मझोले समाचार पत्रों को प्रकाशन में दिक्कतें आ रही हैं । न्यूजप्रिंट की उपलब्धता कम होने से प्रकाशक और मुद्रक आपूर्ति कर पाने में असमर्थ हैं, जिससे श्रमजीवी पत्रकारों के रोज़गार पर असर हो रहा है । पार्टी के वचन पत्र में उल्लेखित है कि पत्रकारों की श्रद्धा निधि ₹10000 न्यूनतम प्रति माह की जाएगी उस अनुसार आगामी वित्तीय वर्ष प्रारंभ होने तक यह वचन पूर्ण करने की तथा शासन के सभी जिलों जिला मुख्यालय पर स्थित विश्राम गृह एवं सर्किट हाउस में अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए आवास सुविधा उपलब्ध करवाने की मांग रखी।
श्रमजीवी पत्रकारों के लिए शासन द्वारा हर 3 माह में एक बार प्रशिक्षण कार्यशाला एवं शासन की योजनाओं पर सेमिनार आयोजित किए जाने का सुझाव जिसमें पत्रकार यूनियन के सदस्य और पदाधिकारियों से कराई जाए। पत्रकारों के उन्नयन हेतु संचालित होने वाली विभिन्न समितियां जैसे पत्रकार अधिमान्यता समिति पत्रकार आर्थिक सहायता समिति विधानसभा पत्रकार दीर्घा सलाहकार समिति आदि के मनोनयन में यूनियन के पदाधिकारियों को प्राथमिकता दी जाए। प्रत्येक समिति में न्यूनतम 2 सदस्य jump की ओर से राज्य में और संभाग में रखे जाएं।शासन की गृह निर्माण संस्थाए हाउसिंग बोर्ड ,विकास प्राधिकरण में पत्रकारों के लिए आरक्षण एवं लॉटरी सिस्टम को प्राथमिकता के साथ लागू किया जाए। कैमरामैन फोटोग्राफर एवं श्रमजीवी पत्रकार जिनके पास स्वयं के शासन का कोई आवश्यक नहीं है उनके लिए गृह निर्माण समिति के माध्यम से आवासीय समस्या का समाधान करने हेतु पहल की जाए ।
मध्य प्रदेश शासन में सूचीबद्ध समाचार पत्रों जिनकी वार्षिक विज्ञापन राशि रुपए 20 लाख से अधिक है उनसे श्रमजीवी पत्रकारों की सूची बुलवाकर वहां कार्यरत श्रमजीवी पत्रकारों के वेतनमान पर शपथ पत्र प्राप्त किए जाएं सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार वेज बोर्ड का पालन यदि बड़े समाचार पत्र एवं न्यूज़ चैनल्स नहीं कर रहे हैं तो उनके विज्ञापन पर रोक लगाई जाए ।
श्री शर्मा का स्वागत जर्नलिस्ट्स यूनियन ऑफ मध्य प्रदेश के प्रदेश महासचिव डॉ नवीन आनंद जोशी ने किया और उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया । प्रदेश अध्यक्ष श्री खिलावन चंद्राकर उपाध्यक्ष अजय सिंह कुशवाह सुदर्शन सोनी और कोषाध्यक्ष महेंद्र शर्मा, अनुराधा त्रिवेदी इस अवसर पर उपस्थित थे ।

Friday, January 11, 2019

ऑल इंडिया स्मॉल न्यूज पेपर एसोसिएशन जिला नरसिंहपुर ने दिया मुख्यमंत्री के नाम अनुविभागीय अधिकारी गाडरवारा ज्ञापन

ऑल इंडिया स्मॉल न्यूज पेपर एसोसिएशन जिला नरसिंहपुर ने दिया मुख्यमंत्री के नाम अनुविभागीय अधिकारी गाडरवारा ज्ञापन

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जिला ब्यूरो चीफजिला नरसिंहपुर // अरुण श्रीवास्तव : 91316 56179
नरसिंहपुर /ऑल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर एसोसिएशन जिला नरसिंहपुर द्वारा अनुविभागीय अधिकारी गाडरवारा को दिया ज्ञापन संगठन के पदाधिकारियों एबं सदस्यों ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि भाजपा शासनकाल में पत्रकारों के ऊपर जो फर्जी मामले बनाए गए हैं
उनको वापस लेने के लिए उनकी  उचित जांच कर झूठे मुकदमों को वापस लेने के संबंध में  ज्ञापन दिया गया है
ज्ञापन देते समय उपस्थित ''ऑल इंडिया स्माल न्यूज पेपर एसोसिएशन'' के जिलाध्यक्ष मंजीत छावड़ा एवं प्रदेश सचिव प्रहलाद सिंह कौरव जिला उपाध्यक्ष कैलाश रजक जिला महासचिव आशूकांत जैन नगर अध्यक्ष शैलेंद्र कुमार जैन (शिल्पी)  वरिष्ठ पत्रकार अरुण श्रीवास्तव तहसील प्रमुख ब्रजेश रजक धर्मेंद्र विश्वकर्मा रमजान एबं आनंद दुवे अमित पाठक  आदि पत्रकार उपस्थित रहे

Friday, January 4, 2019

जिस महिला पत्रकार ने लिया मोदी का महा-इंटरव्यू, आखिर वो है कौन?

स्मिता प्रकाश है जो एएनआई की एडिटर के लिए इमेज परिणाम
TOC NEWS @ www.tocnews.org
नए साल 2019 के पहले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू दिया जिसपर पूरे देश की नजर रही. उनके एक एक शब्द सुनने के लिए विरोधी पार्टियों से लेकर देश टकटकी लगाए बैठा रहा. हालांकि इस इंटरव्यू से मोदी के साथ ही देश में चर्चा में आई महिला पत्रकार जिन्होंने प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लिया. आइए जानें कौन है वो पत्रकार जिनको मोदी का इंटरव्यू लेने का मौका मिला.
एएनआई की एडिटर हैं महिला पत्रकार
मोदी का साक्षात्कार एएनआई न्यूज एजेंसी यानि एशिया न्यूज इंटरनेशनल ने लिया था. जिस महिला पत्रकार ने उनका इंटरव्यू लिया उनका नाम स्मिता प्रकाश है जो एएनआई की एडिटर हैं. वो पिछले 20 सालों से भी लंबे समय से पत्रकारिता जगत में सक्रिय हैं.
विदेशी एजेंसियों के लिए की है रिपोर्टिंग
स्मिता ने भारत में बड़े-बड़े मुद्दे कवर किए हैं. उन्होंने अमेरिका, जापान से लेकर सिंगापुर तक की विदेशी प्रसारकों के लिए रिपोर्टिंग की है. स्मिता प्रकाश ने यहां के चुनाव, राजनीतिक घटनाक्रम, विपदाओं, अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम और बहुत सारी ब्रेकिंग न्यूज़ रिपोर्ट की हैं. जिसमें दुनिया के कई सबसे खतरनाक संघर्ष और विनाशकारी घटनाएं भी शामिल हैं.
दो प्रोग्राम रहे थे काफी चर्चित
स्मिता प्रकाश न्यूज एंकर भी रही हैं. वो पहले जी न्यूज के साथ घूमता आईना शो करती थी जो काफी मशहूर था. इसके अलावा दूरदर्शन के लिए वो न्यूजमेकर्स कार्यक्रम करती थीं. दक्षिण अफ्रीका में एक शो आता था दिस वीक इन इंडिया, वो शो भी वहां बहुत प्रसिद्ध था.

Saturday, December 22, 2018

जनसम्पर्क संचालनालय : अधिमान्यता कार्ड नवीनीकरण के लिए ऑनलाइन करना होगा आवेदन


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भोपाल । मध्यप्रदेश और दिल्ली के अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों के अधिमान्यता कार्ड के नवीनीकरण की ऑनलाईन प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। अधिमान्य पत्रकार को कार्ड नवीनीकरण के लिए अपनी यूजर आईडी और पासवर्ड से अपना आवेदन खोलकर उसे भरना होगा। पासवर्ड भूलने पर अपने एक्जिस्टिंग यूजर लॉग-इन में जाकर अपना फार्गेट पासवर्ड निर्मित कर सकते हैं।
दैनिक समाचार पत्र से अधिमान्यता नवीनीकरण के लिए संपादक की अनुशंसा, प्रसार संख्या, अधिमान्यता कार्ड की प्रति अपलोड करनी होगी। साप्ताहिक समाचार पत्र से अधिमान्यता नवीनीकरण के लिए संपादक की अनुशंसा, प्रसार संख्या, नियमितता प्रमाण पत्र, अधिमान्यता कार्ड की प्रति अपलोड करनी होगी। इसी प्रकार वेबसाइट से अधिमान्यता नवीनीकरण के लिए संपादक की अनुशंसा, एक माह में तीस हजार हिट्स का गूगल एनेलेटिक्स प्रमाण पत्र और अधिमान्यता कार्ड की प्रति अपलोड करनी होगी।
इसी प्रकार स्वतंत्र पत्रकार को अधिमान्यता नवीनीकरण के लिए एक माह में दो लेख कुल 24 लेखों की पीडीएफ फाइल तथा अधिमान्यता कार्ड की प्रति आवेदन भरते समय अपलोड करनी होगी। फीचर एजेन्सी से अधिमान्यता नवीनीकरण के लिए संपादक की अनुशंसा, फीचर एजेंसी के ग्राहकों की सूची एवं अधिमान्यता कार्ड की प्रति अपलोड करनी होगी। अधिमान्यता नवीनीकरण के लिए जिला जनसम्पर्क अधिकारी की नवीनतम अनुशंसा भी अपलोड करनी होगी।
अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार अपने नवीन कार्ड में पता या किसी अन्य जानकारी में संशोधन भी करवा सकते हैं। नवीनीकरण फार्म भरने में किसी भी प्रकार की कठिनाई होने पर श्री ललित कुमार उपाध्याय, अधिमान्यता शाखा जनसम्पर्क संचालनालय भोपाल के मोबाईल नम्बर-9993374395 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

Saturday, December 8, 2018

2 माह पूर्व पत्रकार दिनेश मारू की संदिग्ध अवस्था में नदी के अंदर डूबी हुई लाश मिली थी का खुलासा


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सरदारपुर धार, राजोद व धार पुलिस को मिली बड़ी सफलता विगत 2 माह पूर्व  पत्रकार दिनेश मारू की संदिग्ध अवस्था में नदी के अंदर डूबी हुई लाश मिली थी जिसका खुलासा काफी समय से नहीं हो पा रहा था की मौत डूब के मरने से हुई या जान से मारने के इरादे से हुई
2 माह पूर्व  पत्रकार दिनेश मारू की संदिग्ध अवस्था में नदी के अंदर डूबी हुई लाश मिली थी जिसका खुलासा करने पर पुलिस अधीक्षक व उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई
पुलिस द्वारा आज पत्रकार दिनेश मारू के हत्याकांड की गुत्थी को सुलझा लिया, पुलिस द्वारा कृष्णा राठौड़ आरोपी नाम के युवक को  गिरफ्तार किया गया, इस बात का खुलासा राजोद व धार पुलिस अधीक्षक वीरेंद्र सिंह बघेल के मार्गदर्शन में सरदारपुर एसडीओपी कंसोटिया जी के निर्देशन में क्राइम ब्रांच के संतोष पांडे व राजोद थाना प्रभारी मीना कर्णावत द्वारा किया गया।
पत्रकार की हत्या के मामले का खुलासा करने पर पुलिस अधीक्षक व उनकी टीम को जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया  प्रदेश के अध्यक्ष विनय जी डेविड ने बधाई दी है।

Sunday, November 11, 2018

के. रामाराव, जो मानते थे कि पत्रकारों को हमेशा सरकार के विरोध में रहना चाहिए

के. रामाराव,

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BY ♦ कृष्ण प्रताप सिंह
1896 को आंध्र प्रदेश के चीराला में जन्मे और 09 मार्च, 1961 को बिहार की राजधानी पटना में अंतिम सांस लेने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उस ‘जुझारू संपादक’ की अब किसी को भी याद नहीं आती, उसकी जयंतियों और पुण्यतिथियों पर भी नहीं!
इस तथ्य के बावजूद कि उसने दो दर्जन से ज़्यादा लब्धप्रतिष्ठ दैनिकों और साढ़े चार दशक में फैले अपने लंबे पत्रकारीय जीवन में जैसे उच्च नैतिक मानदंडों की स्थापना की, उनकी स्मृतियां साख़ के गंभीर संकट के सामने खड़ी भारतीय पत्रकारिता को नई दिशा दे सकती हैं.
जी हां, पत्रकारीय आग्रहों, सिद्धांतों व नैतिकताओं को बचाए रखने के लिए इस्तीफा जेब में लिए घूमने वाले इस मनीषी संपादक का नाम था- के. रामाराव.
उन्होंने 1919 में मद्रास विश्वविद्यालय की लेक्चरर की नौकरी छोड़कर पत्रकारिता का वरण किया और कराची के दैनिक ‘सिंध आॅब्ज़र्वर’ में सह-संपादक बनते ही उसकी कीमत चुकानी शुरू कर दी.
इस दैनिक के अंग्रेज़ों के हिमायती व्यवस्थापकों के साथ वैचारिक संघर्ष में मोटी तनख़्वाह का लालच भी रामाराव को झुका नहीं पाया. सो भी जब उनके बड़े भाई के. पुन्नैया उसके संपादक थे.
मालिकों ने शिकायत की कि प्रिंस आॅफ वेल्स के भारत दौरे का जो वृत्तांत रामाराव ने लिखा है, वह बेहद शुष्क है तो रामाराव का उत्तर था- ‘हां, है… क्योंकि शाही रक्त देखकर मैं प्रफुल्लित होकर काव्य रचना नहीं कर सकता!’ इस उत्तर के बाद तो उन्हें नौकरी से जाना ही था.
प्रख्यात संपादक सीवाई चिंतामणि के निमंत्रण पर रामाराव इलाहाबाद के दैनिक ‘लीडर’ में आए तो भी चिंतामणि का ‘बौद्धिक-आधिपत्य’ स्वीकार नहीं कर सके. तब ‘पायोनियर’ में यूरोपीय संपादक एफडब्ल्यू विल्सन से ही कैसे निभा पाते? मुंबई के ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ में गए तो उसकी रीति-नीति से भी तालमेल नहीं बैठा पाए.
अंग्रेज़ संपादक को इस्तीफ़ा देते समय उसने कारण पूछा तो उत्तर प्रश्न में दिया, ‘क्या कोई भारतीय कभी टाइम्स आॅफ इंडिया का संपादक हो सकता है?’
फिर तो बारी-बारी से ‘एडवोकेट आॅफ इंडिया’, ‘बाॅम्बे क्रॉनिकल’ और ‘इंडियन डेली मेल’ दैनिकों में काम करने और कहीं भी टिक न पाने के बाद वे मुंबई में ही ‘फ्री प्रेस जर्नल’ के संपादक नियुक्त हुए. आगे चलकर उन्होंने कुछ दिनों तक कलकत्ता से निकलने वाले दैनिक ‘फ्री इंडिया’ का संपादन किया.
वहीं के ‘ईस्टर्न एक्सप्रेस’ में कुछ और दिन गुज़ारने के बाद वे दिल्ली लौट आए और 1937 में ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में समाचार संपादक बने.
मद्रास, कराची, बंबई और दिल्ली की इस भागमभाग में बंबई के ‘डाॅन’ और मद्रास के ‘स्वराज्य’ से भी उनका जुड़ाव हुआ. लेकिन उनके संपादकीय जीवन में सबसे बड़ा मोड़ 1938 में आया, जब वे पंडित जवाहरलाल नेहरू के कहने पर उत्तर प्रदेश आए और लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रवादियों के प्रमुख पत्र ‘नेशनल हेराल्ड’ के संस्थापक-संपादक का पदभार संभाला.
यही वह पत्र था, जिसमें वे सबसे लंबी अवधि तक, कुल मिलाकर आठ वर्ष रहे. इस दौरान उन्होंने ‘नेशनल हेराल्ड’ को न सिर्फ अंग्रेज़ गवर्नर सर मॉरिस हैलेट बल्कि समूची ब्रिटिश सत्ता का सिरदर्द बनाए रखा.
लखनऊ में बंद व्यक्तिगत सत्याग्रहियों पर अत्याचारों के विरुद्ध ऐतिहासिक संपादकीय ‘जेल या जंगल’ लिखा तो अंग्रेज़ जेलर सीएम लेडली की कथित मानहानि करने के आरोप में अगस्त, 1942 में उन्हें छह महीने की सज़ा हुई.
15 अगस्त, 1942 को ‘वंदे मातरम्’ शीर्षक से उन्होंने हेराल्ड का अपना आख़िरी संपादकीय लिखा तो अग्रेज़ों को वह भी सहन नहीं हुआ. गवर्नर हैलेट ने हेराल्ड पर छह हज़ार रुपयों का जुर्माना ठोककर रामाराव को जेल में डाल दिया.
महात्मा गांधी ने इस कार्रवाई को ‘ट्रैजेडी फॉर नेशनल मूवमेंट’ कहा और के. रामाराव को ‘जुझारू संपादक’. उत्तर प्रदेश की जनता अपने इस प्यारे संपादक के समर्थन में उमड़ पड़ी. वह उसको जेल जाने से तो नहीं रोक पाई, लेकिन हेराल्ड के लिए इतना धन इकट्ठा कर दिया कि उसके जुर्माने को आठ बार चुकाया जा सके.
हेराल्ड बंद होने के बाद ‘पायोनियर’ के अंग्रेज़ संपादक ने उनसे पूछा कि अब उनकी पत्नी और आठ बच्चों का गुज़र-बसर कैसे होगा? ख़ासकर इसलिए कि उनके पास न कोई बड़ी जायदाद है, न बैंक बैलेंस?
अंदाज सहानुभूति जताने से ज़्यादा खिल्ली उड़ाने वाला था.
रामाराव ने उत्तर दिया, ‘मैं सैनिक हूं और संघर्ष करना जानता हूं. आपको मेरी चिंता में दुबले होने की ज़रूरत नहीं है.’
जेल से छूटकर रामाराव गांधी जी के पास चले गए और सेवाग्राम में रहकर कुछ दैनिकों के लिए स्पेशल रिपोर्टिंग करते रहे. 1945 में हेराल्ड फिर शुरू हुआ तो उसके पहले पृष्ठ पर बॉक्स था, ‘गुड मार्निंग सर मॉरिस हैलेट’ इसका अर्थ था- हम फिर आपको चुनौती देने आ पहुंचे हैं, गवर्नर साहब!
लेकिन बाद में एक ऐसी चुनौती आ खड़ी हुई, जिसने रामाराव को खिन्न करके रख दिया.
सर स्ट्रेफोर्ड क्रिप्स के भारत आने और ‘बातें बनाने’ के मुद्दे पर एक आक्रामक संपादकीय को लेकर हेराल्ड प्रकाशन समूह के अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू से उनके मतभेद इतने गहरे हो गए कि उन्होंने अपने शिष्य एम. चेलपतिराव को पदभार सौंपकर त्यागपत्र दे दिया!
दरअसल, पंडित नेहरू क्रिप्स मिशन के प्रति नरम रुख़ के पक्षधर थे और चाहते थे कि रामाराव भी उनका अनुकरण करें लेकिन रामाराव के लिए ऐसा करना संभव नहीं था.
आज़ादी के बाद भी उनका स्पष्ट मत था कि पत्रकारों को हमेशा सरकारों के विरोध में रहना चाहिए. हां, सरकार विदेशी है तो विरोध शत्रुवत और स्वदेशी है तो मित्रवत होना चाहिए.
मद्रास का ‘इंडियन रिपब्लिक’ हो या पटना का ‘सर्चलाइट’, उनकी संपादकीय नीति इसी सिद्धांत की अनुगामिनी रही.
नेपाल के 1949 के जनवादी आंदोलन के समर्थन के सवाल पर ‘सर्चलाइट’ के राणाओं के समर्थक मालिकों से भी उनका टकराव हुआ. लेकिन दुनिया में कहीं भी लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए लड़ रहीं ताकतों के समर्थन की अपनी प्रतिबद्धता से उन्होंने यहां भी समझौता नहीं किया.
रामनाथ गोयनका, विश्वबंधु गुप्त और आचार्य जेबी कृपलानी के आमंत्रण पर वे दिल्ली जाकर ‘इंडियन न्यूज़ क्रॉनिकल’ के संपादक बने, पर राजनीतिक मतभेदों ने उनको वहां भी टिकने नहीं दिया.
श्रमजीवी पत्रकारों के हितों की सुरक्षा के लिए उन्होंने इंडियन फेडरेशन आॅफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तो 1954 के विश्व पत्रकार सम्मेलन में भाग लेने ब्राजील गए.
1952 में वे मद्रास से राज्यसभा के सदस्य चुने गये तो कांग्रेस के होने के बावजूद सरकार की पूंजीवादी नीतियों की आलोचना का कोई मौका छोड़ते नहीं थे.
एक बार इससे नाराज़ होकर एक मंत्री ने तंज़ किया कि आप जाकर विपक्ष के साथ क्यों नहीं बैठते? रामाराव का उत्तर था, ‘मैं यहां इसलिए हूं कि आप जैसे लोग कांग्रेस जैसी पुनीत संस्था को बदनाम कर पूंजीवादियों के हाथ की कठपुतली न बना दें!’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

Sunday, November 4, 2018

अवधेश भार्गव के खिलाफ ब्लैक मेलिंग करने की शिकायत साइबर सेल में दर्ज



कथित ब्लैकमेलर अवधेश भार्गव के खिलाफ ब्लैक मेलिंग करने की शिकायत साइबर सेल में दर्ज

*पीपुल्स समाचार के स्टेट हेड मनीष दीक्षित ने अवधेश भार्गव के खिलाफ ब्लैक मेलिंग करने की शिकायत दर्ज कराई*

भोपाल। दैनिक पीपुल्स समाचार समूह के स्टेट हेड वरिष्ठ पत्रकार मनीष दीक्षित ने कथित ब्लैकमेलर अवधेश भार्गव के खिलाफ ब्लैक मेलिंग करने की शिकायत थाना प्रभारी थाना एमपी नगर और स्टेट साइबर पुलिस भोपाल को 31 अक्टूबर 2018 को दर्ज कराई है। वहीं पूर्व में दर्जनों ब्लैक मेलिंग की शिकायत पर शीघ्र प्रकरण पंजीबद्ध करने के लिए भी निवेदन किया गया।

मध्य प्रदेश के सभी पत्रकार इस कथित ब्लैकमेलर फर्जी पत्रकार अवधेश भार्गव को विगत 4 दशकों से जानते हैं अच्छे से इनके कुकर्म और कुकृत्य से परिचित हैं कि वह पत्रकारों के खिलाफ इसी तरह की फर्जी तरीके से षड्यंत्र करने की मुहिम चलाकर ब्लैक मेलिंग करता है एवं इसी की आड़ में वह लाखों रुपए कमा रहा है, पत्रकारों को बदनाम करना उनके कार्य में व्यवधान करना उनकी नौकरी खा जाना और उनके खिलाफ फर्जी मुकदमे दर्ज कराना इस कथित ब्लैकमेलर अवधेश भार्गव का कार्य रहा है इसकी सूची बड़ी लंबी हो गई है कई फर्जी मुकदमें न्यायालय में भी इसने पत्रकारों के खिलाफ षड्यंत्र कर तैयार करवाकर लगवा रखे हैं।

पिछले माह में ऐसा ही मुकदमा एक गांधीनगर थाने में भी झूठी जानकारी देकर के एक सम्मानित पत्रकार के ऊपर फर्जी एफ आई आर दर्ज करवा दी थी। वहीं फर्जी शिकायतों और दस्तावेजों के आधार पर न्यायालय में भी कई प्रकरण लगा चुका है इसकी तुच्छ कार्यप्रणाली एवं इसके कुकृत्य नीति से बचने के लिए ईमानदार पत्रकारों ने कभी इसके खिलाफ गंभीरता से शिकायत नहीं की, जिसका फायदा उठाकर अवधेश भार्गव ने अपने को करो को कर्मों को अंजाम देता रहा और उसके हौसले बुलंद होते गए, परंतु अब इसके पाप का घड़ा भर गया है और छलकने लगा है।

इसी सिलसिले में अब राजधानी के करीब एक दर्जन पत्रकारों के छवि धूमिल करने और उनके खिलाफ फर्जी तथ्यों पर आधारित खबरों को प्रकाशित कर उनको ब्लैक मेलिंग करने का भी मामला सामने आ गया । पीपुल्स समाचार के स्टेट हेड मनीष दीक्षित ने अवधेश भार्गव के खिलाफ ब्लैक मेलिंग करने की शिकायत थाना एमपी नगर और थाना साइबर सेल में दर्ज कराई है। एवं स्पष्ट रूप से एक कथित पत्रकार ब्लैकमेलर अवधेश भार्गव ब्लैकमेल कर रहा है आरोप है वहीं पूर्व में कई जालसाजी की शिकायतें भी लंबित होने का हवाला देते हुए उन पर प्रकरण प्राथमिकता से पंजीबद्ध करने के लिए कहा है।

Thursday, October 4, 2018

सम्पादक पर जानलेवा हमले के विरोध में मंदसौर जिले के पत्रकारगण हुए लामबद्ध


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*रैली निकाल सीएसपी को सौंपा ज्ञापन*

मंदसौर में बुधवार रात्रि में मध्यम एवं लघु समाचार पत्र सम्पादक संघ के जिलाध्यक्ष औंकार सिंह (सार्जेण्ट) एवं सम्पादक रमेश माली (मंदसौर की क्रांति) पर हुए जानलेवा हमले के विरोध में आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर गुरूवार को गांधी चौराहा मंदसौर से रैली निकालकर पुलिस कन्ट्रोल रूम पहुंची। जहां मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के नाम ज्ञापन नगर पुलिस अधीक्षक राकेश मोहन शुक्ल को सौंपा गया ।

ज्ञापन में मांग की गई कि पत्रकारों पर आये दिन हो रहे हमलों से समूचा पत्रकार जगत आहत है। घटना की प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया सहित समाजसेवी संगठनों एवं जनप्रतिनिधियों ने घोर निंदा की।
जानकारी देते हुए सम्पादक संघ कोषाध्यक्ष धर्मेन्द्रसिंह रानेरा ने बताया कि 3 अक्टूबर की  रात्रि को चार अज्ञात हमलावरों ने बालागंज क्षेत्र स्थित शिक्षा विभाग कार्यालय के सामने ओंकारसिंह एवं रमेश माली पर जानलेवा हमला किया जिससे उन्हें गम्भीर चोंटे आई।

घटना के विरोध स्वरूप 4 अक्टूबर गुरूवार को मीडिया जगत के साथ मिलकर सामाजिक संगठनों एवं जनप्रतिनिधियों ने गांधी चैराहा से रैली निकालकर पुलिस कंट्रोल रूम पर सीएसपी राकेश मोहन शुक्ल को ज्ञापन सौंपा। रैली के दौरान पत्रकारों और शहर के गणमान्य नागरिकों ने अपराधियों के विरूद्ध जमकर नारेबाजी करते हुए अपराधियों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की।

ज्ञापन में मांग की गई कि पत्रकारों के उपर लगातार हो रहे हमलों और उनकी कार्यो को बाधित करने के प्रयासों पर प्रशासन ठोस कार्यवाही करें एंव भविष्य में इस प्रकार के कृत्य की पुनरावृति न हो । हमलावरों को चिन्हित कर एंव हमले के षड़यंत्रकारियों को भी प्रकरण में शामिल किया जाए । इस पूरे घटनाक्रम में आसपास लगे  हुए सभी सीसीटीवी कैमरों की भी सूक्ष्मता से जांच करते हुए समाज में फैले भूमाफिया और उनके गुर्गो पर अंकुश लगाया जाए । आम नागरिक एंव पत्रकारों में जो भय का माहौल निर्मित किया जा रहा है उसे दूर किया जाए। ज्ञापन में इस कायराना हरकत के लिए समस्त पत्रकार जगत जिसमें प्रिन्ट एंव इलेक्ट्राॅनिक मीडिया, वेब मीडिया सहित जिलेभर से आए समाजसेवी, राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने कड़ी भृत्सना की है । इसके साथ ही ग्रामीण एंव तहसील स्तर के पत्रकारों की समुचित सुरक्षा व्यवस्था की मांग की ।

रैली के दौरान पत्रकारगण सर्वश्री नेमीचंद राठौर, आशुतोश नवाल, आलोक शर्मा, ओमप्रकाश बटवाल, पुष्पराज सिंह राणा, संजय लोढ़ा, गायत्री प्रसाद शर्मा, युवराजसिंह चैहान, डाॅ प्रीतिपालसिंह राणा, आकाश चैहान, महावीर जैन, मनीष पुरोहित, अजय बड़ोलिया, आशीष नवाल, राहुल सोनी, शैलेन्द्र सिसोदिया, भारतसिंह तोमर, अनिल सोनी, संजय भाटी, सुरेश भाटी, अनिल जोशी, उमेश नेक्स, ललित पटेल, योगेश पोरवाल, एहसान अजमेरी, संजय सोनी, चरण राजपाल, निलेश भारद्वाज, देवेन्द्र यादव, निखिल चरेड़, आबिद मिर्जा बेग, अल्लानूर मंसूरी, मोहसीन कुरैशी, जफर कुरैशी, जितेन्द्र सिंह सौलंकी, विपीन चैहान, सचिन जैन, प्रहलाद शर्मा, शैलेन्द्र सिंह राठौर, अभिषेक अरोरा, राजनारायण लाढ़, पंकज परमार, जफर कुरैशी, प्रांजल शर्मा, गुलाब गोयल, रमेश चैहान, दशरथ गरासिया, रवि शर्मा, शेलेन्द्रसिंह राठौर, विजेन्द्र फांफरिया, राजेश मालू, सलमान कुरैशी, शाहीद, सोनू गुप्ता, राजेश परमार, बबलू सूर्यवंशी, भेरूलाल खजूरिया, मम्मा शाह, शाहरूख मिर्जा, गौरव मुजावदिया, नितिन गेहलोत, रामप्रसाद वर्मा, जगदीश वसुनिया, कमलेश गड़िया, राकेश भाटी, गौरव त्रिपाठी, सूरजमल राठौर, अरविन्द जोशी, इब्राहिम अजमेरी, प्रतापसिंह देवड़ा, दशरथ चैहान, दिलीप सेठिया, प्रकाश बंसल, जगदीश पण्डित, हरीश गुप्ता, नरेन्द्र ब्रिजवानी, राकेश सेन, जितेश जैन, गौरव जोशी,स्वपनिल ओझा सहित

*सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र से* सर्वश्री राजेन्द्र सिंह गौतम, विनय दुबेला, सरपंच विपिन जैन, परशुराम सिसौदिया, विनोद मेहता, अजीजुल्लाह खान, गोपालसिंह राजावत, भरत जोशी, अशांशु संचेती, सोनू जोशी, जितेन्द्र व्यास, चेतन जोशी, गजराज सिंह, बालाराम गुर्जर, हेमन्त बुलचन्दानी, कुणाल श्रीवास्तव, शैलेन्द्र बघेरवाल, नवीन खोखर, मनीष जैन, जावेद अंसारी सहित अनेक गणमान्य नागरिकगण उपस्थित थे । ज्ञापन का वाचन एवं आभार प्रदर्शन राजेश पाठक ने किया।

शामगढ़ में भी आज थाना प्रभारी को स्थानीय मिडीयाकर्मीयों द्वारा मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौपा गया व मंदसौर पहुंचकर कोतवाली थाने में चर्चा की व औंकारसिंह से भेंट कर कुशलक्षेम पुछी ।

Monday, October 1, 2018

आइसना की सर्वसमत्ती से केंद्र व सभी 27 प्रदेशो की विधिवत चुनी हुई समितियों को अग्रिम आदेश तक यथावत कार्य करने का प्रस्ताव पारित

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आइसना की सर्वसमत्ती से केंद्र व सभी 27 प्रदेशो की विधिवत चुनी हुई समितियों को अग्रिम आदेश तक यथावत कार्य करने का प्रस्ताव पारित
ANI NEWS INDIA @ http://aninewsindia.com
आबू रोड (राजस्थान)। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, शांति वन, आबू रोड राजस्थान में दिनांक 21 से 25 सितंबर 18 तक आयोजित हुई मीडिया कॉन्फ्रेंस में भारत सहित विश्व के 27 देशों के मीडिया प्रतिनिधियो ने भाग लिया। 

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उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि श्री शिव शंकर त्रिपाठी, राष्ट्रीय अध्यक्ष ऑल इंडिया स्मॉल न्यूज पेपर्स एसोसिएशन (आइसना) ने कहा " देश मे अविश्वास का वातावरण पैदा हो रहा है, विषमताएं बढ़ती जा रही हैं। इन विषमताओं को दूर करने के लिए  जनता हम कलमकारों की तरफ निहार रही है। जिस प्रकार हमारे ही कलमकार साथियों ने गुलामी के दिनों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत वंशियों को एकजुट कर सूचना का आदान प्रदान करके हमको आजादी दिलाई, उसी प्रकार हम सबको भी सच्चाई और पारदर्शिता बरतकर ही कलम को चलाना होगा।

हमारी कलम किसी दूसरे की स्याही की मोहताज नहीं। हमारी कलम ससक्त और पारदर्शी होकर लिखेगी तो निश्चित ही देश की समस्याओं का निराकरण होगा। जिस प्रकार हनुमान जी को उनकी शक्ति याद दिलानी पड़ती थी उसी प्रकार मैं यहां आए सभी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथियों का आवाहन करता हूं कि समय आ गया है अपनी ताकत को पहचानिए और देश के लोगों को एकबार फिर से मीडिया पर हो रहे अविश्वास से निजात दिलाइये।"  

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इस मीडिया कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र का भारत सहित विश्व के 27 देशों के प्रतिनिधियों ने सजीव प्रसारण किया।
दिनाक 23 सितंबर 18 को शांतिवन के दादी मीटिंग हाल में आइसना की कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई जिसके उद्घाटन आइसना राष्ट्रीय उपाध्यक्ष करुणा भाई ने राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री त्रिपाठी की अध्यक्षता में किया।

कॉन्फ्रेंस के मुख्य वक्ता 
विनय जी. डेविड संरक्षक मध्य प्रदेश 
विनोद कुमार मिश्र अध्यक्ष मध्य प्रदेश
नवल किशोर शर्मा प्रदेश अध्यक्ष राजस्थान
परवीन कोमल प्रदेश अध्यक्ष पंजाब
अरुण कुमार त्रिपाठी महामंत्री उत्तर प्रदेश
राकेश मित्तल प्रदेश अध्यक्ष हरियाणा 
अमित कुमार श्रीवास्तव इलाहाबाद अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश
गुप्तेश्वर सिंह बिहार
रजनीकांत ठक्कर अध्यक्ष बनासकांठा गुजरात 
अनिल खत्री संयोजक हरियाणा 
मंगल भाई बी. सोलंकी रा. सचिव नॉर्थ गुजरात
अटल बिहारी सिंह संयोजक बिहार , झारखंड, राजस्थान, गुजरात 
ओ.पी. शर्मा संयोजक चंडीगढ़
संदीप कुमार श्रीवास्तव संयोजक ओडिसा 
राजेश गुप्ता उत्तरांचल
राजपाल सिंह सचिव दिल्ली 
सोहन सिंह गुज्जर महामंत्री हरियाणा 
सविता तनेजा उपाध्यक्ष हरियाणा

ने देश के लघु मध्यम समाचार पत्रों की समस्याओं के संबंध में विचार विमर्श किया साथ ही कांफ्रेंस में मौजूद सभी की सर्वसमत्ती से केंद्र व सभी 27 प्रदेशो की विधिवत चुनी हुई समितियों को अग्रिम आदेश तक यथावत कार्य करने का प्रस्ताव पारित किया गया व सदस्यता अभियान को तेजी से जारी रखने का संकल्प लिया गया। ब्रह्मा कुमारीज़ के मीडिया कोऑर्डिनेटर श्री शानतनु भाई के साथ उपरोक्त सभी वक्ताओं को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।

Monday, September 17, 2018

गाडरवारा: ग्राम टेकापार में लोधी समाज का सम्मेलन संपन्न





गाडरवारा: ग्राम टेकापार में लोधी समाज का सम्मेलन संपन्न
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ब्यूरो चीफ गाडरवाराजिला नरसिंहपुर // अरुण श्रीवास्तव : 91316 56179
गाडरवारा/ विगत दिवस ग्राम टेकापार में मध्य प्रदेश राजस्थान के राज्य मंत्री जालम सिंह पटेल के मुख्य आतिथ्य में अमर शहीद वीरांगना रानी अवंतीबाई के तैल चित्र पर तिलक लगाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया
कार्यक्रम में मध्य प्रदेश शासन के राज्य मंत्री जालम सिंह पटेल के द्वारा उत्कृष्ट छात्र-छात्राओं को प्रशस्ति पत्र एवं ट्रॉफी देकर सम्मानित किया जालम सिंह पटेल के द्वारा साले चौका नई दुनिया के पत्रकार एवं समाजसेवी राजेश लोधी को  पत्रकारिता की सराहना करते हुए प्रशस्ति पत्र और शील्ड से सम्मानित किया गया इस सम्मेलन में ग्राम टेकापार के पूर्व सरपंच कमलेश लोधी चुन्नी लाल वर्मा रामपाल सिह लोधी हककू दुकानदार के अलावा समाज के सभी लोग उपस्थित रहे

Friday, August 17, 2018

अटल जी का साक्षात्कार तो नहीं मिला,पर जो मिला वो अनमोल था...


कुमार पंकज @ वरिष्‍ठ पत्रकार 
 
अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे। यह खबर न चौंकाने वाली है और न ही हतप्रभ करने वाली। क्‍योंकि जो जीवन का सच है वो तो होना ही है। वह आज हो या कल हो या परसों। लेकिन अटल जी अटल हैं। उनके साथ बहुत यादें जुड़ी हुई हैं। जिनमें कुछ आज भी याद हैं। बात 1998-99 की है।
 
तब मैं दिल्‍ली में स्‍वतंत्र पत्रकार के तौर पर विभिन्‍न समाचार पत्रों में लिखा करता था। युवा और उत्‍साही मन उस दौर में चाहता था कि सबसे बात करूं, संवाद करूं और उनके अनुभवों के बारे में जानूं। एक अखबार की ओर से मुझसे कहा गया कि क्‍या अटल बिहारी वाजपेयी का साक्षात्‍कार कर सकते हो। यह वह दौर था जब मकान मालिक का लैंडलाइन नंबर देकर हम इंतजार करते थे कि जो फोन आए तो बता दें।

मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय में फोन लगा दिया और कहा कि मुझे उनका इंटरव्‍यू करना है। अटल जी प्रधानमंत्री थे और उनका इंटरव्‍यू करना आसान काम नहीं था। मेरा नाम और फोन नंबर नोट कर लिया गया। दो-तीन दिन बाद मेरे मकान मालिक के यहां फोन आया। मैं घर पर नहीं था। शाम को आया तो पता चला कि प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया है।
 
मैं पब्लिक बूथ पर तुरंत पहुंचा और दिए गए नंबर पर फोन किया। पता चला कि सुबह आठ बजे बुलाया गया है। मैं खुश भी था और उत्‍साहित भी कि अटल जी से मिलने का मौका मिलेगा। खूब लंबी चौड़ी बात होगी। तय समय से पहले मैं प्रधानमंत्री आवास पर पहुंच गया। वहां जांच पड़ताल के बाद अंदर बुलाया गया। पता चला कि अटल जी यहीं पर सबसे मिलने वाले हैं। मेरे साथ कई अन्‍य लोग भी बैठे थे। वे आए और बड़ी विनम्रता के साथ सबसे हाथ जोड़कर अभिवादन किया। फिर उन्‍होंने एक-एक करके सबसे पूछा कि क्‍या काम है। मुझसे भी वही सवाल किया।
 
मैंने कहा कि आपका इंटरव्‍यू करना है। मैं एक स्‍वतंत्र पत्रकार हूं। थोड़ी देर रुके और फिर बोले कि मैं अभी साक्षात्‍कार तो नहीं दे सकता लेकिन आपसे कुछ और बात कर सकता हूं। मैं निराश हो गया क्‍योंकि मैं तो बड़े उत्‍साह के साथ गया था कि इंटरव्‍यू करना है। उन्‍होंने मेरे चेहरे पर निराशा का भाव पढ़ा और कहा कि निराश क्‍यों हो रहे हो। मैंने कहा कि मैं चाहता था कि आपका इंटरव्‍यू करूं। फिर वे हंसते हुए बोले कि आप हमसे मिलकर खुश नहीं हुए। उनकी मुस्‍कुराहट में मेरी भी मुस्‍कुराहट छिप गई।
 
फिर उन्‍होंने मुझे एक अलग कक्ष में बैठने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद वे आए और मुस्‍कुराते हुए बोले आप चाय नाश्‍ता करो, मैं आता हूं। करीब एक घंटे बाद आए और बोले कि आप युवा हो, उत्‍साही हो, आगे बढ़ो यही मेरी शुभकामना है। अभी मैं साक्षात्‍कार नहीं दे सकता क्‍योंकि इसका एक प्रोटोकाल होता है। फिर भी आपका फोन आया था इसलिए मैंने आपको बुला लिया। यह वह दौर था जब मैंने स्‍वतंत्र पत्रकार के तौर पर कई बड़ी हस्तियों का साक्षात्‍कार किया था। उसके बाद अटल जी से कई मुलाकातें हुईं। लेकिन उस तरह से कोई संवाद नहीं हुआ। 

साल 2006 या 7 की बात रही होगी। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में उत्‍तराखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की पुस्‍तक का विमोचन कार्यक्रम था। अटल जी उस कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि थे। जब कार्यक्रम खत्‍म हुआ तो मैं अटल जी मिलने पहुंचा और अपना परिचय देते हुए कहा कि सर अब तो कोई प्रोटोकाल नहीं है। अब तो साक्षात्‍कार दे दीजिए। अटल जी ने कार्यक्रम की ओर इशारा करते हुए कहा कि यही तो साक्षात्‍कार है जो मैंने अपने अनुभव यहां साझा किए। इसे ही लिख दो। उसके बाद मुझे याद नहीं है कि अटल जी किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में गए हों। सचमुच में अटल जी अटल हैं।

विनम्र श्रदांजलि

Sunday, August 12, 2018

दैनिक स्वदेश के पत्रकार पर जानलेवा हमला, आरोपियों को संरक्षण, राजनैतिक दबाव में कमजोर धारा में बना दिया काउंटर केस

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दैनिक स्वदेश के पत्रकार पर जानलेवा हमला, आरोपियों को संरक्षण, राजनैतिक दबाव में कमजोर धारा में बना दिया काउंटर केस
TOC NEWS @ www.tocnews.com
  • कोतवाली के एस आई राजपूत को बचाने मे लगे अधिकारी
  • आरोपियों के साथ सांठगांठ कर केस को कमजोर और काउंटर केस में तब्दील करने में माहिर SI की वायरल वीडियो भी उपलब्ध है
  • आरोपियों को मिल रहा पुलिस का संरक्षण
बैतूल। कम्पनी गार्डन निवासी स्वदेश अखबार के जिला प्रतिनिधि शेख शब्बीर पर धारदार हथियार से रविवार सुबह जानलेवा हमला किया गया। इस हमले में शब्बीर के सिर पर एक दर्जन टांके आए है। इस मामले में बैतूल कोतवाली पुलिस ने आरोपी पक्ष को फायदा पहुचने की नीयत से 307 की जगह 323, 294,506 जैसी साधारण धारा ने मामला दर्ज किया और काउंटर केस भी बना दिया।
बताया गया कि आरोपियों की राजनैतिक पकड़ और एक दलाल की वजह से पुलिस यह रवैया अपना रही है। पत्रकार हुए इस हमले से बैतूल के पत्रकारों में गुस्सा देखा जा रहा। बताया गया कि आरोपी ईदुशाह का परिवार पत्रकार शब्बीर के घर के पास ही रहता है। आरोपी परिवार ने जमीन पर अतिक्रमण कर रखा था इस मामले को शब्बीर ने उठाया और अतिक्रमण हटवा दिया। जब से यह अतिक्रमण हटवाया तब से ईदुशाह और उसका परिवार शब्बीर से रंजिश रखने लगा।
इसके अलावा ईदुशाह पुलिस लाइन की मजार का खादिम बता कर झाड़ फूक जैसा अंधविश्वास करता है इसका भी विरोध शब्बीर द्वारा किए जाने से ईदुशाह खासा कुपित चल रहा था। इन बातों को लेकर उसके पूरे परिवार ने एक राय होकर शब्बीर हमला कर दिया। बीच बचाव कर रहे शब्बीर की माँ और भाई से भी मारपीट की। जब मामले की रिपोर्ट करने गए तो कोतवाली पुलिस ने काउंटर केस दर्ज कर लिया। सिर में एक दर्जन से ज्यादा टांके आने के बाद भी 307 की जगह साधारण धारा में मामला दर्ज किया गया।
बताया गया कि एक जनप्रतिनिधि के दबाव में कोतवाली पुलिस एस आई राजपूत ने यह सब किया। वही यह भी सामने आया कि कोतवाली का एक स्थाई दलाल भी वहाँ सक्रिय था। इससे साबित होता है कि बैतूल में कानून व्यवस्था की हालत कितनी खराब है। विधायक बैतूल भी पुलिस के सामने लाचार नजर आते है इसलिए बैतूल में हर तरह का अपराध चरम पर है।इस संबंध में पुलिस अधीक्षक डीआर तेनिवार ने कहा कि मामले की जांच करेंगे ।

सहज संवाद / धर्मविहीन होती हैं आतंकवाद की पाठशालायें

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सहज संवाद / धर्मविहीन होती हैं आतंकवाद की पाठशालायें
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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया 

धर्मविहीन होती हैं आतंकवाद की पाठशालायें  देश के राजनैतिक परिदृश्य में चुनावी शंखनाद की अघोषित आवाजें गूंजने लगीं है। दलगत पैतरेबाजी ने सोची-समझी योजनाओं को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया है। शब्दों को तीर बनाकर पार्टियों के कंधों से महाराथियों द्वारा चलाया जा रहा है।

ऐसे में आम आवाम की व्यक्तिगत सोच को केवल और केवल घायल ही किया जा रहा है। कभी आतंकवाद को ज्वलंत मुद्दा बनाकर सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को, चर्चाओं के केन्द्र में लाया गया। तो अब उस आतंकवाद को भी वर्गीकृत करके हिन्दू आतंकवाद की परिभाषा में कैद किया जाने लगे। रंगों, जातियों और सम्प्रदायों में बांटने वाले लोग वर्तमान में विध्वंस को भी मुनाफे का सौदा बनाने में जुट गये हैं।
कभी भगवां आतंकवाद, कभी हिंदू आतंकवाद और कभी संघीय आतंकवाद जैसे नये-नये शब्द व्यवहार में आ रहे हैं, तो कभी समूची अल्पसंख्यक विरादरी को ही कटघरे में खडा कर दिया जाता है। विचारों के प्रवाह की गति, कार की रफ्तार से भी तेज थी। तभी एक चौराहे पर लाल बत्ती होने के कारण गाडी रुकी। ठीक बगल में खडी कार पर नजर पडी। चौंकना लाजमी था। उस गाडी की पिछली सीट पर हमें अपने पुराने मित्र आविद सिद्दीकी नजर आये। शीशा नीचे किया। उन्हें इशारा किया। वे भी हमें पहचाने की कोशिश कर रहे थे।
हमारा संकेत देखकर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट छा गई। हरी बत्ती होते ही हम दौनों ने आगे जाकर सडक के किनारे गाडियां रोकी। उतरते ही उन्होंने हमें गले लगाकर आत्मीयता की स्पन्दन दिया। हमें अतीत याद आ गया। जब न तो वे कांग्रेस के कद्दावर नेता थे और न ही हम पत्रकार। चल-चित्र की तरह गुजरा सजीव हो उठा। तभी उन्होंने कहीं बैठकर चर्चा करने की इच्छा जाहिर की। हम भी यही चाहते थे, परन्तु आफिस का समय भी हो रहा था। सो उन्हें भी आफिस चलने के लिए राजी कर लिया। आफिस में आमद दर्ज करने के बाद हम दौनों विजिटर केबिन में बैठ गया। काफी तथा नाश्ते का आर्डर दे दिया। आपसी कुशलक्षेम जानने-बताने के बाद हमने अपने विचारों के प्रवाह से उन्हें अवगत कराया।
कांग्रेस के खास ओहदेदार के दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्होंने बोलना शुरू किया ही थी कि हमने उन्हें रटे-रटाये जुमले, पार्टी लाइन और राजनैतिक टोपीबाजी से बाहर आकर बात करने की हिदायत दी। एक जोरदार ठहाके के साथ उन्होंने औपचारिक शब्दावली त्यागकर व्यक्तिगत सोच पर ही केन्द्रित रहने की आश्वासन दिया। आतंकवाद को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि जाति, सम्प्रदाय, रंग जैसे कारकों के आधार पर आतंकवाद को वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। मानवीयता के मुंह पर तमाचा है आतंकवाद। इसे जो भी आश्रय देते है, वह गुनाहगार है। जहां भी यह पनप रहा है, उसे अस्तित्वहीन कर देना चाहिये।
यह न तो भगवां हो सकता है और न हरा। यह न तो हिन्दू हो सकता है और न ही मुसलमान। कलुषित मानसिकता का परिणाम है आतंकवाद। धर्मविहीन होतीं है आतंकवाद की पाठशालायें। उनका चेहरा तमतमा उठा। शब्दों में आक्रोश की गर्माहट थी। वर्तमान हालातों पर टिप्पणी करने के आग्रह पर उन्होंने कहा कि कांवडियों के क्रूरतम व्यवहार, गौ तस्करी के नाम पर हत्यायें और व्यक्तिगत जीवन शैली पर अंकुश जैसे अनुभवों को सुखद कदापि नहीं कहा जा सकता। वर्तमान सरकारों का अनियंत्रणकारी स्वरूप सामने आ रहा है, ऐसा पहले कभी नहीं आया।
सरकारों की पकड से प्रशासनिक तंत्र निकल चुका है। तभी तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में महिलाजनित अपराधों को खुले आम हवा मिल रही है। सामाजिक संस्थाओं के नाम पर नारी उत्पीडन, घोटाले और मनमाने आचरणों का बाजार गर्म है। सत्ताधारियों के खुले संरक्षण के तले अपराध फलफूल रहा है। असामाजिकता की फसल लहलहा रही है। विषय से भटकाने के प्रयास में लगे आविद भाई को हमने बीच में ही टोकते हुए आरोपों-प्रत्यारोपों की जंग से बाहर आकर धरातल पर सकारात्मक विचारों से वर्तमान समस्या का समाधान करने की बात कही।
कांग्रेसी विचारधारा के प्रभाव को विषयांतर होने के लिए उत्तरदायी ठहराते हुए उन्होंने कहा कि सोच के हर कोने में गांधीवाद की खुशबू है। नेहरू जी की नीतियां है। इन्दिरा जी का अनुशासन है। राजीव जी की जीवन्तता है और है सोनिया जी का समर्पण। फिर भी हम ध्यान रखेंगे कि आगे की बातचीत में हमारे प्रभावकारी कारक वर्चस्वशाली न बन सकें। हमने वर्तमान परिस्थियों का विश्लेषण और समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव देने की गुजारिश की। आरएसएस को आडे हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि कांवडियों के तांडव से लेकर अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों का विधिवत प्रशिक्षण नागपुर में बैठे आकाओं के इशारे पर दिया ही दिया रहा है।
गौरक्षा के नाम पर तो हत्या करने की खुली छूट ही मिल गई है। हमने उन्हें याद दिलाया कि कश्मीर की छाती पर बैठे अलगाववादी नेताओं की शह पर जहां हिन्दुओं को प्रदेश-निकाला दे दिया, वहीं सेना पर पथराव से लेकर हमलों तक को खुलकर हवा दी जा रही है। उन्होंने एक क्षण रुकने के बाद कहा कि यह सत्य है कि सीमापार से मिल रही शह देश की अखण्डता के लिए खतरा है। गुमराह किये जा रहे युवाओं को मुख्यधारा में वापिस लाना होगा। विश्वास जगाना होगा। उज्जवल भविष्य के अवसर देना होंगे। चर्चा चल ही रही थी कि वेटर ने केबिन की सेंटर टेबिल पर काफी और नाश्ता सजाना शुरू कर दिया।
व्यवधान उत्पन्न हुआ परन्तु तब तक हमें हिन्दू आतंकवाद पर आम कांग्रेसी के व्यक्तिगत विचारों से परिचित होने का पर्याप्त अवसर प्राप्त हो चुका था। उनकी व्यक्तिगत सोच को पार्टीगत विचारधारा से पृथक करने सत्य का साक्षात्कार सकारात्मक दिशा की ओर ही इशारा कर गया। सीमापार से संचालित होने वाले आतंकवाद और चन्द लोगों के अहम की चक्की से निकलने वाले वक्तव्यों से वे कोसों दूर नजर आये।  सो काफी के साथ गर्मागर्म नाश्ते का आनन्द लेने में जुट गये। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए खुदा हाफिज।

Saturday, August 11, 2018

अच्छे कामों के समाचारों को प्राथमिकता के साथ प्रकाशित करें : राज्यपाल

राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने माधवराव सप्रे स्मृति समाचार-पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान में विषयक आधी दुनिया की पत्रकारिता सम्बोधित किया।

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राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने युवा पत्रकारों का आव्हान किया कि वे सनसनीखेज समाचार प्रकाशित करने के साथ-साथ अच्छे कामों के समाचारों को प्रमुखता से समाचार पत्र में जगह दें। समाचार पत्र समाज और देश में किये जा रहे सकारात्मक विकास के कार्यो को दुनिया के सामने पहुंचाने के महत्वपूर्ण माध्यम हैं। राज्यपाल ने यह बात आज माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान की राष्ट्रीय संगोष्ठी का उदघाटन करते हुए कही। राज्यपाल ने इस अवसर पर पुस्तकालय का भ्रमण कर वहां उपलब्ध पत्र-पत्रिकाओं एवं ग्रंथों का अवलोकन भी किया।

राज्यपाल श्रीमती पटेल ने कहा कि प्रतिस्पर्धा के वर्तमान युग में समाचार पत्रों को टीआरपी बढ़ाने पर भी ध्यान देना आवश्यक है, परन्तु इसके चलते वास्तविक और सत्य समाचार छूट न जाएं, इस बात पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि महिलाएँ आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। वे अपने भविष्य को स्वंय सुधारने के लिए भी संयुक्त रूप से कार्यरत हैं। राज्यपाल ने पत्रकारिता की गुणवत्ता में सुधार लाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने ने कहा कि आवश्यकता हो तो राज्यपाल या मुख्यमंत्री के समाचारों को जगह देने की बजाये जन हित की खबरों को प्रमुखता दी जाना चाहिए। श्रीमती पटेल ने कहा कि सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुँचाने का दायित्व भी समाचार पत्रों पर है।

श्रीराम कॉलेज, नई दिल्ली के प्रो. वार्तिका नंदा ने कहा कि भारत में बड़ी संख्या में मीडिया चैनल हैं। उन्होंने कहा कि आज महिलाएँ अनेक क्षेत्रों में आगे बढ़ रहीं हैं, तो पत्रकार क्यों नहीं बन सकतीं। प्रो. वार्तिका नंदा ने कहा कि पिछले दस साल में पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर श्री जगदीप उपासने ने कहा कि हमारे देश में स्त्री को देवी, माता, बहन के रूप में माना जाता है। आज महिला पत्रकार शीर्ष पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।

उन्होंने कहा कि वर्तमन में दो दृष्टिकोण का टकराव पत्रकारिता में देखने को मिल रहा है। वर्धा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि पत्रकारिता में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रतिकार और प्रतिरोध करना पत्रकारिता का दायित्व है। पत्रकारों की सटीक पत्रकारिता के कारण कई सरकारें गिरीं और कई मंत्रीयों को जेल जाना पड़ा। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के दुरूपयोग के कारण व्यर्थ चरित्र हनन की घटनाएं बढ़ रही हैं।

माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के संस्थापक श्री विजयदत्त श्रीधर ने संस्थान की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पंडित माधवराव सप्रे हिन्दी के युग निर्माता संपादक, निबंधकार, समालोचक थे। वे होनहार युवा प्रतिभाओं के संभावनाशील भविष्य के पारखी थे। इस अवसर पर राज्यपाल को महात्मा गाँधी के बरमान घाट (नरसिंहपुर) दौरे का चित्र भेंट किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पत्रकार और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

‘मास्टरस्ट्रोक’ रोकने के पीछे सत्ता का “ब्लैक स्ट्रोक”

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‘मास्टरस्ट्रोक’ रोकने के पीछे सत्ता का “ब्लैक स्ट्रोक” 
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‘मास्टरस्ट्रोक’ रोकने के पीछे सत्ता का “ब्लैक स्ट्रोक”
पुण्य प्रसून वाजपेयी॥
क्या ये संभव है कि आप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम ना लें । आप चाहें तो उनके मंत्रियो का नाम ले लीजिये । सरकार की पॉलिसी में जो भी गड़बड़ी दिखाना चाहते है, दिखा सकते हैं । मंत्रालय के हिसाब के मंत्री का नाम लीजिए पर प्रधानमंभी मोदी का जिक्र कहीं ना कीजिए। लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी खुद ही हर योजना का एलान करते हैं, हर मंत्रालय के कामकाज से खुद को जोड़े हुए हैं और हर मंत्री भी जब प्रधानमंत्री मोदी का ही नाम लेकर योजना या सरकारी पॉलिसी का जिक्र कर रहा है , तो आप कैसे मोदी का नाम ही नहीं लेंगे।
अरे छोड़ दीजिए। कुछ दिनो तक देखते हैं क्या होता है । वैसे आप कर ठीक रहे हैं। पर अभी छोड़ दीजिए।
भारत के आनंद बजार पत्रिका समूह के राष्ट्रीय न्यूज चैनल एबीपी न्यूज के प्रोपराइटर जो एडिटर-इन चीफ भी है, उनके साथ ये संवाद 14 जुलाई को हुआ। यूं इस निर्देश को देने से पहले खासी लंबी बातचीत खबरों को दिखाने, उसके असर और चैनल को लेकर बदलती धारणाओं के साथ हो रहे लाभ पर भी हुआ। एडिटर-इन -चीफ ने माना कि मास्टरस्ट्रोक प्रोगाम ने चैनल की साख बढ़ा दी है। खुद उनके शब्दो में कहें तो , “मास्टरस्ट्रोक में जिस तरह का रिसर्च होता है। जिस तरह खबरों को लेकर ग्रउंड जीरो से रिपोर्टिंग होती है। रिपोर्ट के जरिए सरकार की नीतियों का पूरा खाका रखा जाता है। ग्राफिक्स और स्किप्ट जिस तरह लिखी जाती है, वह चैनल के इतिहास में पहली बार देखा है।”
तो चैनल के बदलते स्वरुप या खबरों को परोसने के अंदाज ने प्रोपराइटर व एडिटर -इन -चीफ को उत्साहित तो किया। पर खबरों को दिखाने-बताने के अंदाज की तारीफ करते हुये भी लगातार वह ये कह भी रहे थे और बता भी रहे थे कि क्या सबकुछ चलता रहे और प्रधानमंत्री मोदी का नाम ना हो तो कैसा रहेगा। खैर एक लंबी चर्चा के बाद सामने निर्देश यही आया कि प्रधानमंत्री मोदी का नाम अब चैनल की स्क्रीन पर लेना ही नहीं है।
तमाम राजनीतिक खबरों के बीच या कहें सरकार की हर योजना के मद्देनजर ये बेहद मुश्किल काम था कि भारत की बेरोजगारी का जिक्र करते हुये कोई रिपोर्ट तैयार की जा रही हो और उसमें सरकार के रोजगार पैदा करने के दावे जो कौशल विकास योजना या मुद्रा योजना से जुड़ी हों, उन योजनाओ की जमीनी हकीकत को बताने के बावजूद ये ना लिख पाये कि प्रधानमंत्री मोदी ने योजनाओं की सफलता को लेकर जो दावा किया वह है क्या। यानी एक तरफ प्रधानमंत्री कहते हैं कि कौशल विकास के जरीये जो स्किल डेवलेंपमेंट शुरु किया गया, उसमें 2022 तक का टारगेट तो 40 करोड युवाओं को ट्रेनिंग देने का रखा गया है पर 2018 में इनकी तादाद दो करोड़ भी छू नहीं पायी है। और ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि जितनी जगहों पर कौशल विकास योजना के तहत सेंटर खोले गये उनमें से हर दस सेंटरों में से 8 सेंटर पर कुछ नहीं होता या कहें 8 सेंटर अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाए। लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट दिखाते हुये कहीं प्रधानमंत्री का नाम आना ही नहीं चाहिए। तो सवाल था मास्टरस्ट्रोक की पूरी टीम की कलम पर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शब्द गायब हो जाना चाहिए।
पर अगला सवाल तो ये भी था कि मामला किसी अखबार का नहीं बल्कि न्यूज चैनल का था । यानी स्क्रिप्ट लिखते वक्त कलम चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ना लिखे। लेकिन जब सरकार का मतलब ही बीते चार बरस में सिर्फ नरेन्द्र मोदी है तो फिर सरकार का जिक्र करते हुये एडिटिंग मशीन ही नहीं बल्कि लाइब्ररी में भी सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के ही वीडियो होंगे। और 26 मई 2014 से लेकर 26 जुलाई 2018 तक किसी भी एडिटिंग मशीन पर मोदी सरकार ही नहीं बल्कि मोदी सरकार की किसी भी योजना को लिखते ही जो वीडियो या तस्वीरो का कच्चा चिट्ठा उभरता, उसमें 80 फीसदी में प्रधानमंत्री मोदी ही थे ।
यानी किसी भी एडिटर के सामने जो तस्वीर स्क्रिप्ट के अनुरुप लगाने की जरुरत होती उसमें बिना मोदी का कोई वीडियो या कोई तस्वीर उभरती ही नहीं । और हर मिनट जब काम एडिटर कर रहा है तो उसके सामने स्क्रिप्ट में लिखे , मौजूदा सरकार शब्द आते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ही तस्वीर उभरती और आन एयर “मास्टरस्ट्रोक” में चाहे कहीं ना भी प्रधानमंत्री मोदी शब्द बोला-सुना ना जा रहा हो पर स्क्रीन पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर आ ही जाती।
तो ‘मास्टरस्ट्रोक ‘ में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर भी नहीं जानी चाहिये, उसका फरमान भी 100 घंटे बीतने से पहले आ जायेगा ये सोचा तो नहीं गया पर सामने आ ही गया। और इस बार एडिटर-इन चीफ के साथ जो चर्चा शुरु हुई वह इस बात से हुई कि क्या वाकई सरकार का मतलब प्रधानमंत्री मोदी ही हैं। यानी हम कैसे प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर दिखाये बिना कोई भी रिपोर्ट दिखा सकते है। उस पर हमारा सवाल था कि मोदी सरकार ने चार बरस के दौर में 106 योजनाओं का एलान किया है। संयोग से हर योजना का एलान खुद प्रधानमंत्री ने ही किया है। हर योजना के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी चाहे अलग अलग मंत्रालय पर हो । अलग अलग मंत्री पर हो । लेकिन जब हर योजना के प्रचार प्रसार में हर तरफ से जिक्र प्रधानमंत्री मोदी का ही हो रहा है तो योजना की सफलता-असफलता पर ग्राउंड रिपोर्ट में भी जिक्र प्रधानमंत्री का चाहे रिपोर्टर – एंकर ना ले लेकिन योजना से प्रभावित लोगों की जुबां पर नाम तो प्रधानमंत्री मोदी का ही होगा और लगातार है भी । चाहे किसान हो या गर्भवती महिला। बेरोजगार हो या व्यापारी । जब उनसे फसल बीमा पर सवाल पूछें या मातृत्व वंदना योजना या जीएसटी पर पूछें या मुद्रा योजना पर पूछें या तो योजनाओं के दायरे में आने वाले हर कोई प्रधानमंत्री मोदी का नाम जरुर लेते । अधिकांश कहते कि कोई लाभ नहीं मिल रहा है तो उनकी बातो को कैसे एडिट किया जाए। तो जवाब यही मिला कि कुछ भी हो पर ‘प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर-वीडियो भी मास्टरस्ट्रोक में दिखायी नहीं देनी चाहिये।” वैसे ये सवाल अब भी अनसुलझा सा था कि आखिर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर या उनका नाम भी जुबां पर ना आये तो उससे होगा क्या ? क्योंकि जब 2014 में सत्ता में आई बीजेपी के लिये सरकार का मतलब नरेन्द्र मोदी है । बीजेपी के स्टार प्रचारक के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ही है । संघ के चेहरे के तौर पर भी प्रचारक रहे नरेन्द्र मोदी हैं। दुनिया भर में भारत के विदेश नीति के ब्रांड एंबेसडर नरेन्द्र मोदी हैं। देश की हर नीति हर पॉलिसी के केन्द्र में नरेन्द्र मोदी हैं तो फिर दर्जन भर हिन्दी राष्ट्रीय न्यूज चैनलों की भीड़ में पांचवे नंबर के ऱाष्ट्रीय न्यूज चैनल एबीपी के प्राइम टाइम में सिर्फ घंटेभर के कार्यक्रम ” मास्टरस्ट्रोक ” को लेकर सरकार के भीतर इतने सवाल क्यों हैं। या कहें वह कौन सी मुश्किल है जिसे लेकर एपीपी न्यूज चैनलों के मालिको पर दवाब बनाया जा रहा है कि वह प्रधानमंत्री मोदी का नाम ना लें या फिर तस्वीर भी ना दिखायें ।
दरअसल मोदी सरकार में चार बरस तक जिस तरह सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी को ही केन्द्र में रखा गया और भारत जैसे देश में टीवी न्यूज चैनलों ने जिस तरह सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी को ही दिखाया और धीरे धीरे प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर, उनका वीडियो और उनका भाषण किसी नशे की तरह न्यूज चैनलों को देखने वाले के भीतर समाते गया, उसका असर ये हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी ही चैनलों की टीआरपी की जरुरत बन गये। और प्रधानमंत्री के चेहरे का साथ सबकुछ अच्छा है या कहें अच्छे दिन की ही दिशा में देश बढ़ रहा है, ये बताया जाने लगा तो चैनलों के लिये भी यह नशा बन गया और ये नशा ना उतरे, इसके लिये बकायदा मोदी सरकार के सूचना मंत्रालय ने 200 लोगों की एक मॉनिटरिंग टीम को लगा दिया । बकायदा पूरा काम सूचना मंत्रालय के एडिशनल डायरेक्टर जनरल के मातहत होने लगा, जो सीधी रिपोर्ट सूचना प्रसारण मंत्री को देते। और जो दो सौ लोग देश के तमाम राष्ट्रीय न्यूज चैनलों की मॉनिटरिंग करते, वह तीन स्तर पर होता है । 150 लोगों की टीम
सिर्फ मॉनिटरिंग करती । 25 मानेटरिंग की गई रिपोर्ट को सरकार अनुकूल एक शक्ल देते। और बाकि 25 फाइनल मॉनिटरिंग के कंटेंट की समीक्षा करते । उनकी इस रिपोर्ट पर सूचना मंत्रालय के तीन डिप्टी सचिव स्तर के अधिकारी रिपोर्ट तैयार करते । और फाइनल रिपोर्ट सूचना मंत्री के पास भेजी जाती। जिनके जरिए पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी सक्रिय होते और न्यूज चैनलों के संपादको को दिशा निर्देश देते रहते कि क्या करना है कैसे करना है।
और कोई संपादक जब सिर्फ खबरों के लिहाज से चैनल को चलाने की बात कहता तो चैनल के प्रोपराइटर से सूचना मंत्रालय या पीएमओ के अधिकारी संवाद बनाते । दवाब बनाने के लिये मॉनिटरिंग की रिपोर्ट को नत्ती कर फाइल भेजते । और फाइल में इसका जिक्र होता कि आखिर कैसे प्रधानमंत्री मोदी की 2014 में किये गये चुनावी वादे से लेकर नोटबंदी या सर्जिकल स्ट्राइक या जीएसटी को लागू करते वक्त दावो भरे बयानो को दुबारा दिखाया जा सकता है। या फिर कैसे मौजूदा दौर की किसी योजना पर होने वाली रिपोर्ट में प्रधानमंत्री के पुराने दावे का जिक्र किया जा सकता है। दरअसल मोदी सत्ता की सफलता का नजरिया ही हर तरीके से रखा जाता रहा जाये इसके लिये खासतौर से सूचना प्रसारण मंत्रालय से लेकर पीएमओ के दर्जन भर अधिकारी पहले स्तर पर काम करते है । और दूसरे स्तर पर सूचना प्रसारण मंत्री का सुझाव होता है ।
जो एक तरह का निर्देश होता है । और तीसरे स्तर पर बीजेपी का लहजा । जो कई स्तर पर काम करता है । मसलन अगर कोई चैनल सिर्फ मोदी सत्ता की सकारात्मकता को नहीं दिखाता है । या कभी कभी नकारात्मक खबर करता है। या फिर तथ्यों के आसरे मोदी सरकार के सच को झूठ करार देता है तो फिर बीजेपी के प्रवक्तताओ को चैनल में भेजने पर पांबदी लग जाती है। यानी न्यूज चैनल पर होने वाली राजनीतिक चर्चाओ में बीजेपी के प्रवक्ता नहीं आते हैं। एवीपी पर ये शुरुआत जून के आखिरी हफ्ते से ही शुरु हो गई। यानी बीजेपी प्रवक्ताओं ने चर्चा में आना बंद किया। दो दिन बाद से बीजेपी नेताओ ने बाइट देना बंद कर दिया। और जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी के मन की बात का सच मास्टरस्ट्रोक में दिखाया गया उसके बाद से बीजेपी के साथ साथ आरएसएस से जुड़े उनके विचारको को भी एवीपी चैनल पर आने से रोक दिया गया ।
तो मन की बात के सच और उसके बाद के घटनाक्रम को समझ उससे पहले ये भी जान लें कि मोदी सत्ता पर कैसे बीजेपी का पेरेंट संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ [ आरएसएस } भी निर्भर हो चला है , उसका सबसे बडा उदाहरण 9 जुलाई 2018 को तब नजर आया जब शाम चार बजे की चर्चा के एक कार्यक्रम के बीच में ही संघ के विचारक के तौर पर बैठे एक प्रोफेसर को मोबाइल पर फोन आया और कहा गया कि तुरंत स्टुडियो से बाहर निकलें। और वह शख्स आन एयर कार्यक्रम के बीच ही उठ कर चल पड़ा। फोन आने के बाद उसके चेहरे का हावभाव ऐसा था, मानो उसके कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया है या कहें बेहद डरे हुये शख्स का जो चेहरा हो सकता है, वह सेकेंड में नजर आ गया। पर बात इससे भी बनी नहीं। क्योंकि इससे पहले जो लगातार खबरे चैनल पर दिखायी जा रही थी, उसका असर देखने वालों पर क्या हो रहा है और बीजेपी के प्रवक्ता चाहे चैनल पर ना आ रहा हो पर खबरों को लेकर चैनल की टीआरपी बढ़ने लगी।
और इस दौर में टीआरपी की जो रिपोर्ट 5 और 12 जुलाई को आई उसमें एबीपी देश के दूसरे नंबर का चैनल बन गया। और खास बात तो ये भी है कि इस दौर में “मास्टरस्ट्रोक” में एक्सक्लूसिव रिपोर्ट झारखंड के गोड्डा में लगने वाले थर्मल पावर प्रोजेक्ट पर की गई। चूकि ये थर्मल पावर तमाम नियम कायदो को ताक पर रखकर ही नहीं बन रहा है बल्कि ये अडानी ग्रुप का है और पहली बार उन किसानों का दर्द इस रिपोर्ट के जरीये उभरा कि अडानी कैसे प्रधानमंत्री मोदी के करीब हैं तो झारखंड सरकार ने नियम बदल दिये और किसानो को धमकी दी जाने लगी कि अगर उन्होंने अपनी जमीन थर्मल पावर के लिये दी तो उनकी हत्या कर दी जाएगी । बकायदा एक किसान ने कैमरे पर कहा, ‘ अडानी ग्रुप के अधिकारी ने धमकी दी है जमीन नहीं दिये तो जमीन में गाड़ देंगे। पुलिस को शिकायत किए तो पुलिस बोली बेकार है शिकायत करना । ये बड़े लोग हैं। प्रधानमंत्री के करीबी हैं “। और फिर खून के आंसू रोते किसान उनकी पत्नी।
और इस दिन के कार्यक्रम की टीआरपी बाकी के औसत मास्टरस्ट्रोक से चार-पांच प्वाइंट ज्यादा थी । यानी एबीपी के प्राइम टाइम [ रात 9-10 बजे ] में चलने वाले मास्ट्रस्ट्रोक की औसत टीआरपी जो 12 थी, उस अडानी वाले कार्यक्रम वाले दिन 17 हो गई । यानी 3 अगस्त को जब संसद में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने मीडिया पर बंदिश और एवीपी चैनल को धमकाने- और पत्रकारो को नौकरी से निकलवाने का जिक्र किया तो सूचना प्रसारण मंत्री ने कह दिया कि , ” चैनल की टीआरपी ही मास्टरस्ट्रोक कार्यक्रम से नहीं आ रही थी और उसे कोई देखना ही नहीं चाहता था तो चैनल ने उसे बंद कर दिया”। तो असल हालात यहीं से निकलते है क्योंकि एबीपी की टीआरपी अगर बढ़ रही थी । उसका कार्यक्रम मास्टरस्ट्रोक धीरे धीरे लोकप्रिय भी हो रहा था और पहले की तुलना में टीआरपी भी अच्छी-खासी शुरुआती चार महीनो में ही देने लगा था [ ‘मास्टरस्ट्रोक’ से पहले ‘जन मन ‘ कार्यक्रम चला करता था,
जिसकी औसत टीआरपी 7 थी। मास्ट्रस्ट्रोक की औसत टीआरपी 12 हो गई। } यानी मास्टर स्ट्रोक की खबरों का मिजाज मोदी सरकार की उन योजनाओं या कहें दावो को ही परखने वाला था, जो देश के अलग अलग क्षेत्रो से निकल कर रिपोर्टरो के जरीये आती थी। और लगातार मास्टरस्ट्रोक के जरीये ये भी साफ हो रहा था कि सरकार के दावों के भीतर कितना खोखलापन है । और इसके लिये बकायदा सरकारी आंकडों के अंतर्विरोध को ही अधार बनाया जाता था। तो सरकार के सामने ये संकट भी उभरा कि जब उनके दावो को परखते हुये उनके खिलाफ हो रही रिपोर्ट को भी जनता पसंद करने लगी है और चैनल की टीआरपी भी बढ़ रही है तो फिर आने वाले वक्त में दूसरे चैनल क्या करेंगे। क्योंकि भारत में न्यूज चैनलो के बिजनेस का सबसे बडा आधार विज्ञापन है। और विज्ञापन को मांपने के लिये संस्था बार्क की टीआरपी रिपोर्ट है।
और अगर टीआरपी ये दिखलाने लगे कि मोदी सरकार की सफलता को खारिज करती रिपोर्ट जनता पंसद कर रही है तो फिर वह न्यूजचैनल जो मोदी सरकार के गुणगान में खोये हुये हैं, उनके सामने साख और बिजनेस यानी विज्ञापन दोनो का संकट होगा। तो बेहद समझदारी के साथ चैनल पर दवाब बढ़ाने के लिये दो कदम सत्ताधारी बीजेपी के तरफ से उठे। पहला देशभर में एबीपी न्यूज चैनल का बायकॉट हुआ । और दूसरा एबीपी का जो भी सालाना कार्यक्रम होता है, जिससे चैनल की साख भी बढ़ती है और विज्ञापन के ज़रिये कमाई भी होती है। मसलन एबीपी न्यूज चैनल के शिखर सम्मेलन कार्यक्रम में सत्ता विपक्ष के नेता मंत्री पहुंचते और जनता के सवालों का जवाब देते तो उस कार्यक्रम से बीजेपी और मोदी सरकार दोनों ने हाथ पीछ कर लिये । यानि कार्यक्रम में कोई मंत्री नहीं जायेगा । जाहिर है जब सत्ता ही नहीं होगी तो सिर्फ विपक्ष के आसरे कोई कार्यक्रम कैसे हो सकता है। यानी हर न्यूज चैनल को साफ मैसेज दे दिया गया कि विरोध करेंगे तो चैनल के बिजनेस पर प्रभाव पड़ेगा। यानी चाहे अनचाहे मोदी सरकार ने साफ संकेत दिये की सत्ता अपने आप में बिजनेस है। और चैनल भी बिना बिजनेस ज्यादा चल नहीं पायेगा। कुछ संपादक कह सकते हैं कि उन पर कहीं कोई दबाव रहता नहीं तो फिर सच ये भी है कि अगर वे पहले से सत्तानकूल हैं या आलोचना करने भर के लिए आलोचना करते दिखते हैं तो सरकार को क्या दिक्कत।
पर पहली बार एबीपी न्यूज चैनल पर असर डालने के लिये या कहें कहीं सारे चैनल मोदी सरकार के गुणगान को छोड कर ग्राउंड जीरो से खबरे दिखाने की दिशा में बढ़ ना जाये, उसके लिये शायद दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र का मित्र बनकर लोकतंत्र का ही गला घोंटने की कार्यवाही सत्ता ने शुरु की। यानी इमरजेन्सी थी तब मीडिया को एहसास था कि संवैधानिक अधिकार समाप्त है । पर यहां तो लोकतंत्र का राग है और 20 जून को प्रधानमंत्री मोदी ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरीये किसान लाभार्थियों से की। उस बातचीत में सबसे आगे छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के कन्हारपुरी गांव में रहने वाली चंद्रमणि कौषी थीं। उनसे जब प्रधानमंत्री ने कमाई के बारे में पूछा तो बेहद सरल तरीके से चद्रमणि ने बताया कि उसकी आय कैसे दुगुनी हो गई। तो आय दुगुनी हो जाने की बात सुन कर प्रधानमंत्री खुश हो गये ।
खिलखिलाने लगे । क्योंकि किसानो की आय दुगुनी होने का टारगेट प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 का रखा है। और लाइव टेलीकास्ट में कोई किसान कहे कि उसकी आय दुगुनी हो गई तो प्रधानमंत्री का खुश होना तो बनता है। पर रिपोर्टर-संपादक के दृष्टिकोण से हमे ये सच पचा नहीं । क्योंकि छत्तीसगढ़ यूं भी देश के सबसे पिछड़े इलाको में से एक है और फिर कांकेर जिला, जिसके बारे में सरकारी रिपोर्ट ही कहती है और जो अब भी काकंरे के बारे में सरकारी बेबसाइट पर दर्ज है कि ये दुनिया के सबसे पिछड़े इलाके यानी अफ्रीका या अफगानिस्तान की तरह है । तो फिर यहां की कोई महिला किसान आय दोगुनी होने की बात कह रही है तो रिपोर्टर को खासकर इसी रिपोर्ट के लिये भेजा। और 14 दिन बाद 6 जुलाई को जब ये रिपोर्ट दिखायी गई कि कैसे महिला को दिल्ली से गये अधिकारियों ने ट्रेनिंग दी कि उसे प्रधानमंत्री के सामने क्या बोलना है।
कैसे बोलना है। धान के बजाय पल्प के धंधे से होने वाली आय की बात को कैसे गड्डमड्ड कर अपनी आय दुगुनी होने की बात कहनी है । तो झटके में रिपोर्ट दिखाये जाने के बाद छत्तीसगढ में ही ये सवाल होने लगे कि कैसे चुनाव जीतने के लिये छत्तीसगढ की महिला को ट्रेनिंग दी गई । [ छत्तीसगढ में 5 महीने बाद विधानसभा चुनाव है ] यानी इस रिपोर्ट ने तीन सवालों को जन्म दे दिया । पहला , क्या अधिकारी प्रधानमंत्री को खुश करने के लिये ये सब करते है । दूसरा , क्या प्रधानमंत्री चाहते हैं कि सिर्फ उनकी वाहवाही हो तो झूठ बोलने की ट्रेनिंग भी दी जाती है । तीसरा, क्या प्रचार प्रसार का तंत्र ही है जो चुनाव जिता सकता है।
हो जो भी पर इस रिपोर्ट से आहत मोदी सरकार ने एबीपी न्यूज चैनल पर सीधा हमला ये कहकर शुरु किया कि जानबूझकर गलत और झूठी रिपोर्ट दिखायी गई। और बाकायदा सूचना प्रसारण मंत्री समेत तीन केन्द्रीय मंत्रियों ने एक सरीखे ट्वीट किये । और चैनल की साख पर ही सवाल उठा दिये। जाहिर है ये दबाव था । सब समझ रहे थे । तो ऐसे में तथ्यो के साथ दुबारा रिपोर्ट फाइल करने के लिये जब रिपोर्टर ज्ञानेन्द्र तिवारी को भेजा गया तो गांव का नजारा ही कुछ अलग हो गया । मसलन गांव में पुलिस पहुंच चुकी थी। राज्य सरकार के बड़े अधिकारी इस भरोसे के साथ भेजे गये थे कि रिपोर्टर दोबारा उस महिला तक पहुंच ना सके । पर रिपोर्टर की सक्रियता और भ्रष्टाचार को छुपाने पहुंचे अधिकारी या पुलिसकर्मियो में इतना नैतिक बल ना था या वह इतने अनुशासन में रहने वाले नहीं थे कि रात तक डटे रहते। दिन के उजाले में खानापूर्ति कर लौट आये । तो शाम ढलने से पहले ही गांव के लोगों ने और दुगुनी आय कहने वाली महिला समेत महिला के साथ काम करने वाली 12 महिलाओ के ग्रुप ने चुप्पी तोड़कर सच बता दिया तो हालत और खस्ता हो गई है ।
और 9 जुलाई को इस रिपोर्ट के ‘ सच ” शीर्षक के प्रसारण के बाद सत्ता – सरकार की खामोशी ने संकेत तो दिये कि वह कुछ करेगी। और उसी रात सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करने वाले न्यू चैनल मॉनिटरिंग की टीम में से एक शख्स ने फोन से जानकारी दी कि आपके मास्टरस्ट्रोक चलने के बाद से सरकार में हडकंप मचा हुआ है । बाकायदा एडीजी को सूचना प्रसारण मंत्री ने हड़काया है कि क्या आपको अंदेशा नहीं था कि एवीपी हमारे ट्वीट के बाद भी रिपोर्ट फाइल कर सकता है । अगर ऐसा हो सकता है तो हम पहले ही नोटिस भेज देते ।
जिससे रिपोर्ट के प्रसारण से पहले उन्हें हमें दिखाना पड़ता। जाहिर है जब ये सारी जानकारी 9 जुलाई को सरकारी मॉनिटरिंग करने वाले सीनियर मॉनिटरिंग के पद को संभाले शख्स ने दी । तो मुझे पूछना पड़ा कि क्या आपको कोई नौकरी का खतरा नहीं है जो आप हमें सारी जानकरी दे रहे हैं । तो उस शख्स ने साफ तौर पर कहा कि दो सौ लोगों की टीम है । जिसकी भर्ती ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कारपोरेशन इंडिया लिं. करती है । छह महीने के कान्ट्रेक्ट पर ऱखती है चाहे आपको कितने भी बरस काम करते हुये हो जाये। छुट्टी की कोई सुविधा है नहीं। मॉनिटिरंग करने वालों को 28635 रुपये मिलते हैं तो सीनियर मानेटरिंग करने वालों को 37,350 रुपये और
कन्टेट पर नजर रखने वालो को 49,500 रुपये। तो इतने वेतन की नौकरी जाये या रहे फर्क क्या पडता है। पर सच तो यही है कि प्राइम टाइम के बुलेटिन पर नजर रखने वालो को यही रिपोर्ट तैयार करनी होती है कितना वक्त आपने प्रधानमंत्री मोदी को दिखाया। जो चैनल मोदी को सबसे ज्यादा दिखाता है उसे सबसे ज्यादा अच्छा माना जाता है । तो हम मास्टरस्ट्रोक में प्रदानमंत्री मोदी को तो खूब देखते हैं। लगभग हंसते हुये उस शख्स ने कहा आपके कंटेन्ट पर एक अलग से रिपोर्ट तैयार होती है। और आज जो आपने दिखाया है उसके बाद तो कुछ भी हो सकता है। बस सचेत रहियेगा।
यह कहकर उसने तो फोन काट दिया। वैसे, मॉनिटरिंग करने वाले की शैक्षिक योग्यता है ग्रेजुएशन और एक अदद डिप्लोमा। पर मैं भी सोचने लगा होगा । इसकी चर्चा चैनल के भीतर हुई भी पर ये किसी ने नहीं
सोचा था कि हमला तीन स्तर पर होगा। और ऐसा हमला होगा कि लोकतंत्र टुकुर टुकुर देखता रह जायेगा । क्योंकि लोकतंत्र के नाम ही लोकतंत्र का गला घोंटा जायेगा। तो अगले ही दिन से जैसे ही रात के नौ बजे एबीपी न्यूज चैनल का सैटेलाइट लिंक अटकने लगता । और फिर रोज नौ बजे से लेकर रात दस बजे तक कुछ इस तरह से सिग्नल की डिस्टरबेंस रहती कि कोई भी मास्टरस्ट्रोक देख ही ना पाये । या देखने वाला चैनल बदल ही ले। और दस बजते ही चैनल फिर ठीक हो जाता। जाहिर है ये चैनल चलाने वालों के लिये किसी झटके से कम नहीं था । तो ऐसे में चैनल के प्रोपराइटर व एडिटर-इन चीफ ने तमाम टैक्नीशियन्स को लगाया । ये क्यों हो रहा है । पर सेकेंड भर के लिये किसी टेलीपोर्ट से एबीपी सैटेलाईट लिंक पर फायर होता और जब तक एबीपी के टेकनिश्न्यन्स एबीपी का टेलीपोर्ट बंद कर पता करते कि कहां से फायर हो रहा है, तब तक उस टेलीपोर्ट
के मूवमेंट होते और वह फिर चंद मिनट में सेकेंड भर के लिये दुबारा टेलीपोर्ट से फायर करता। यानी औसत तीस से चालीस बार एबीपी के सैटेलाइट सिग्नल को ही प्रभावित कर विघ्न पैदा किया जाता । और तीसरे दिन सहमति यही बनी की दर्शको को जानकारी दी जाये। तो 19 जुलाई को सुबह से ही चैनल पर जरुरी सूचना कहकर चलाना शुरु किया गया , ” पिछले कुछ दिनो से आपने हमारे प्राइम टाइम प्रसारण के दौरान सिग्नल को लेकर कुछ रुकावटे देखी होगी । हम अचानक आई इन दिक्कतों का पता लगा रहे है और उन्हे दूर करने की कोशिश में लगे है । तब तक आप एबीपी न्यूज से जुड़े रहें। ” ये सूचना प्रबंधन के मशविरे से आन एयर हुआ । पर इसे आन एयर करने के दो घंटे बाद ही यानी सुबह 11 बजते बजते हटा लिया गया और हटाने का निर्णय भी प्रबंधन का ही रहा। यानी
दवाब सिर्फ ये नहीं कि चैनल डिस्टर्ब होगा । बल्कि इसकी जानकारी भी बाहर जानी नहीं चाहिये। यानी मैनेजमेंट कहीं खड़े ना हो। और इसी के सामानांतर कुछ विज्ञापनदाताओ ने विज्ञापन हटा लिये या कहें रोक लिये। मसलन सबसे बड़ा विज्ञापनदाता जो विदेशी ताकतों से स्वदेशी ब्रांड के नाम पर लड़ता है और अपने सामान को बेचता है, उसका विज्ञापन झटके में चैनल के स्क्रीन से गायब हो गया । फिर अगली जानकारी ये भी आने लगी कि विज्ञापनदाताओ को भी अदृश्य शक्तियां धमका रही हैं कि वह विज्ञापन बंद कर दें। यानी लगातार 15 दिन तक सैटेलाइट लिंक में दखल । और सैटेलाइट लिंक में डिस्टरबेंस का मतलब सिर्फ एबीपी का राष्ट्रीय हिन्दी न्यूज चैनल भर ही नहीं बल्कि चार क्षेत्रीय भाषा के चैनल भी डिस्टर्ब होने लगे। और रात नौ से दस बजे कोई आपका चैनल ना देख पाये तो मतलब है जिस वक्त सबसे ज्यादा लोग देखते हैं, उसी वक्त आपको कोई नही देखेगा। यानी टीआरपी कम होगी ही। यानी मोदी सरकार के गुणगान करने वाले चैनलों के लिये राहत कि अगर वह सत्तानुकूल खबरों में खोये हुये हैं तो उनकी टीआरपी बनी रहेगी । और जनता के लिये सत्ता ये मैसेज दे देगी कि लोग तो मोदी को मोदी के अंदाज में सफल देखना चाहते है । जो सवाल खड़ा करते है उसे जनता देखना ही नहीं चाहती।
यानी सूचना प्रसारण मंत्री को भी पता है कि खेल क्या है तभी तो संसद में जवाब देते वक्त वह टीआरपी का जिक्र करने से चूके । पर स्क्रीन ब्लैक होने से पहले टीआरपी क्यों बढ़ रही थी, इसपर कुछ नहीं बोले । खैर ये पूरी प्रक्रिया है जो चलती रही। और इस दौर में कई बार ये सवाल भी उठे कि एवीपी को ये तमाम मुद्दे उठाने चाहिये। मास्टर स्ट्रोक के वक्त अगर सेटेलाइट लिंक खराब किया जाता है तो कार्यक्रम को सुबह या रात में ही रिपीट टेलिकास्ट करना चाहिये। पर हर रास्ता उसी दिशा में जा रहा था जहां सत्ता से टकराना है या नहीं । और खामोशी हर सवाल का जवाब खुद ब खुद दे रही थी। तो पूरी लंबी प्रक्रिया का अंत भी कम दिलचस्प नहीं है । क्योंकि एडिटर-इन -चीफ यानी प्रोपराइटर या कहें प्रबंधन जब आपके सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाये कि बताइये करें क्या? और इन हालातों में आप खुद क्या कर सकते है छुट्टी पर जा सकते हैं। इस्तीफा दे सकते है ।
और कमाल तो ये है कि इस्तीफा देकर निकले नहीं कि पतंजलि का विज्ञापन लौट आया। मास्टरस्ट्रोक में भी विज्ञापन बढ़ गया। 15 मिनट का विज्ञापन जो घटते घटते तीन मिनट पर आ गया था वह बढ़कर 20 मिनट हो गया। 2 अगस्त को इस्तीफा हुआ और 2 अगस्त की रात सैटेलाइट सिग्नल भी संभल गया । और काम करने के दौर में जिस दिन संसद के सेन्ट्रल हाल में कुछ पत्रकारो के बीच एबीपी चैनल को मजा सिखाने की धमकी देते हुये ‘पुण्य प्रसून खुद को क्या समझता है’ कहा गया । उससे दो दिन पहले का सच और एक दिन बाद का सच ये भी है कि रांची और पटना में बीजेपी का सोशल मीडिया संभालने वालों को बीजेपी अध्यक्ष निर्देश देकर आये थे ….” पुण्य प्रसून को बख्शना नही है ।
सोशल मीडिया से निशाने पर रखें। और यही बात जयपुर में भी सोशल मीडिया संभालने वालो को गई । पर सत्ता की मुश्किल यह है कि धमकी, पैसे और ताकत की बदौलत सत्ता से लोग जुड़ तो जाते है पर सत्ताधारी के इस अंदाज में खुद को ढाल नहीं पाते। तो रांची-पटना-जयपुर से बीजेपी के सोशल मीडियावाले ही जानकारी देते रहे आपके खिलाफ अभी और जोऱ शोर से हमला होगा । तो फिर आखिरी सवाल जब खुले तौर पर सत्ता का खेल हो रहा है तो फिर किस एडिटर गिल्ड को लिखकर दें या किस पत्रकार संगठन से कहें संभल जाओ । सत्तानुकूल होकर मत कहो शिकायत तो करो फिर लडेंगे । जैसे एडिटर गिल्ड नहीं बल्कि सचिवालय है और संभालने वाले पत्रकार नहीं सरकारी बाबू है । तो गुहार यही है लड़ो मत पर दिखायी देते हुये सच को देखते वक्त आंखों पर पट्टी तो ना बांधो।

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