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Friday, December 17, 2010

पत्रकारिता विषय को नही समझते अधिकारी न्यायालय में गवाही के दौरान अधिवक्ता के कथन

रामकिशोर पंवार रोढावाला // (टाइम्स ऑफ क्राइम)
बैतूल। जिला मजिस्ट्रेट विजय आनन्द कुरील के न्यायालय में राज्य सुरक्षा कानून के तहत चल रहें पत्रकार रामकिशोर पवाँर के बहुचर्चित मामलें में गवाही के दौरान अधिवक्ता भारत सेन ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण विषय को समझते ही नही हैं। अंग्रजी शासन काल की मानसिकता अधिकारी रखते हैं और पत्रकारों पर फर्जी प्रकरण दर्ज करवाकर पत्रकारिता को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं। इससे लोक तंत्र का अहित होता हैं। आरोपी रामकिशोर पवाँर को क्रांतिवीर पत्रकार बताते हुए उनकी पत्रकारिता और माँ ताप्ती अभियान की प्रशंसा की गई। पत्रकारिता के हित में अधिवक्ता भारत सेन के ब्यानों से रासुका के तहत चल रहें मामले की वैधानिकता पर एक बार फिर से विचारणीय गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
राज्य सुरक्षा कानून के तहत चल रहें पत्रकार रामकिशोर पवाँर का मामला कई कारणों से जनचर्चा में बना हुआ हैं। पहला कारण तो यह हैं कि पीयूसीएल जैसे जनसंगठन द्वारा इस कानून को असंवैधानिक, मानवअधिकारों का हनन करने वाला और संविधान में प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन करने वाला ठहराया जा चुका हैं। जिस तरह टाडा और पोटा जैसे कानून गलत हैं वैसे ही रासूका का दुरूपयोग होता हैं। दूसरा कारण तो यह है कि शासन और प्रशासन में बैठे हुए लोगों के इशारें पर इस कानून का दुरूपयोग किया जाता रहा हैं। जिला दण्डाधिकारी न्यायालय के फैसले माननीय उच्च न्यायालय में ठहर नहीं पाते हैं। इससे पता चलता हैं कि कुछ ताकतवर लोगों के इशारे पर कानून का दुरूपयोग करने के लिए जिले के सबसे बड़े अधिकारी किसी भी सीमा तक चले जाते हैं। प्रशासन कानून की आड़ लेकर पत्रकारों को जख्म देता रहता हैं। पत्रकारों के लिए सबसे बड़े दुख की बात यह हैं कि कानून की शक्ति का दुरूपयोग करने वाले अधिकारी के विरूद्ध उनको मालूम ही नही हैं कि करना क्या हैं? सदस्य संख्या और वार्षिक चंदे तक सीमित रहने वाले पत्रकार संघ के अध्यक्ष चाहें तो संगठन के माध्यम से पूरी की पूरी विचारण की प्रक्रिया को माननीय उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती हैं। कानून की शक्ति का दुरूपयोग करने वाले अधिकारीयों की वैधानिक जिम्मेदारी तय करवाई जा सकती हैं।

रासुका के दायरे में जिले के वरिष्ठ पत्रकार रामकिशोर पँवार को कुछ छोटे मामलों के आधार पर उस समय लाया जा रहा हैं जबकि वह विकलांग हैं और भारत के किसी नागरिक के शरीर और संपत्ति को गंभीर नुक्सान पहँुचाने की स्थिति में बिलकुल ही नही हैं। जिला प्रशासन उसे आम आदमी के विरूद्ध गंभीर और घृणित अपराध को अंजाम देने वाला आदतन अपराधी की श्रेणी में बता कर रासुका के तहत कार्यवाही को अंजाम देता चला जा रहा हैं। अपराधी और पत्रकार एक ही सिक्के के दो पहलू नही बताए जा सकते। आखिर अपराध और पत्रकारिता का कैसा नाता? जिला प्रशासन की कार्यवाही अपने आप में पत्रकारिता के पवित्र पेशे पर गंदा कीचड़ उछालने के समान हैं। इससे इमानदार और जीवन को जोखिम में डालकर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की साख पर बट्टा लगता हैं और आम आदमी पत्रकार को किसी दूसरे तरह का अपराधी समझने लगते हैं। आखिर जिला प्रशासन रामकिशोर पवाँर पर मुकदमा चलाकर दूसरे पत्रकारों को भला क्या सबक देना चाहता हैं? जिला प्रशासन की पत्रकारिता को नियंत्रित करने वाली यह कार्यवाही लोकतंत्र के हित में सही नही ठहराई जा सकती? गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के टिकिट पर विधान सभा चुनाव लड़ चुके भारत सेन अधिवक्ता जिला प्रशासन को अपने ब्यानों के माध्यम से ठीक ही नसिहत दे रहें हैं। वाकई प्रशासनिक अधिकारी पत्रकारिता जैसे विषय को समझते ही नही हैं।

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