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Thursday, March 17, 2011

मनरेगा बनी काली कमाई का जरीया: करोड़ो की रिक्वरी बाकी

बैतूल // राम किशोर पंवार (टाइम्स ऑफ क्राइम)

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सुप्रीम कोर्ट जांच का निर्देश करे या सीबीआई करे जांच नतीजा सिर्फ यही निकलना हैं कि पूरी मनरेगा ही भ्रष्ट्राचार की गंगा बन चुकी हैं। बैतूल जिले की हर दुसरी ग्राम पंचायत की जांच होने के बाद भ्रष्ट्राचार सिद्ध हो जाने के बाद भी सरपंच से लेकर सचिव तक साफ बच निकल जाते है क्योकि पूरी ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत तक में चेार - चोर मौसेरे भाई बन चुके हैं। बैतूल जिले की हर दुसरी ग्राम पंचायत पर कम से कम 4 लाख और अधिक से अधिक 40 लाख की रिक्वरी होना हैं लेकिन आज तक किसी के भी गिरेबान में किसी ने झांकने या उसे पकड़ कर जेल में डालने की कोशिस तक नहीं हुई है।सबसे आश्चर्य जनक तथ्य तो यह हैं कि जांच के बहाने भोपाल से लेकर दिल्ली तक के अधिकारी कर्मचारी ,एनजीओ बैतूल जिले की ग्राम पंचायत आते हैं लेकिन सुरा और सुन्दरी के चक्कर में क्लीन चीट देकर चले जाते हैं।

जिले में 245 ग्राम पंचायतो के सचिवो को वर्ष 2005 से लेकर 15 मार्च 2011 सस्पैंड करने के बाद बहाल किया जा चुका हैं। सवा सौ से अधिक ऐसे सचिव हैं जिनके पास दो से अधिक ग्राम पंचायतो के प्रभार हैं। स्थिति तो बैतूल जिले की यह हैं कि जिले का पूरा पंचायती राज अटैचमेंट पर चल रहा हैं। इंजीनियर से लेकर मुख्य कार्यपालन अधिकारी और क्लर्क से लेकर चपरासी तक दुसरे विभाग से अटैचमेंट पर आकर गुलाब जामुन खा रहे हैं। जिले की स्थिति यह हैं कि जिले के अधिकांश इंजीनियरों पर गंभीर भ्रष्ट्राचार के मामले तक चल रहे हैं लेकिन पंचायती राज में अंधेर नगरी चौपट राजा का खेल चल रहा हैं। सबसे अधिक मनरेगा की निमार्ण एजेंसी आरइएस भी भ्रष्ट्रचार की अडड बनी हुई हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष से लेकर ग्राम पंचायत तक के सरपंच को अच्छी तरह मालूम हैं कौन कहां पर क्या खेल कर रहा हैं लेकिन सब एक दुसरे को डरा धमका कर माल कमाने में लगे हुए हैं। आइएस के कार्यपालन यंत्री आरएल मेघवाल से लेकर प्रभारी कार्यपानल यंत्री एस के वानिया तक सर से लेकर पांव तक भ्रष्टाचार के गर्त में समा चुके हैं।

बैतूल जिले में पंचायत एवं आरइएस में पोस्टींग के लिए बोली लगती हैं। यही कारण हैं कि जिले में सब इंजीनियर से लेकर एसडीओ एवं कार्यपान यंत्री तक बरसो से बैतूल जिले में अंगद के पंाव की तरह जमे हुए हैं। ताजा मामला काफी चौकान्ने वाला हैं। बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी ब्लाक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सरदार त्रिलोक सिंह के द्वारा की गई शिकायत के अनुसार घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के अंतर्गत वर्ष 2007 में पुनर्वास क्षेत्र चोपना में मनरेगा के तहत चारगांव से खकरा कोयलारी तक 2.5 किमी लंबा ग्रेवल मार्ग 19.54 लाख में और महेंद्रगढ़ से रतनपुर तक 2.5 किमी लंबा ग्रेवल मार्ग 19.72 लाख रूपए में निर्माण एजेंसी आरईएस ने पूर्ण होना बताया। इस मामले में लगातार दो वर्ष तक घोड़ाडोंगरी के त्रिलोक सिंह खनूजा ने जिला स्तर पर सड़कों के नाम पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाते हुए बिंदुवार शिकायत की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने लोकायुक्त भोपाल को पूरे मामले की शिकायत की। जिसमें लोकायुक्त द्वारा कलेक्टर बैतूल से 12 अप्रैल 2010 को पूरे मामले की जांच कर प्रतिवेदन मांगा। इस मामले में कलेक्टर ने डिप्टी कलेक्टर प्रियंका पालीवाल के नेतृत्व में जांच दल बनाया। जिसमें जिला पंचायत के एपीओ शरद जैन, जलसंसाधन विभाग के पीएन गौर और पीडब्ल्यूडी विभाग के कार्यपालन यंत्री को तकनीकी अधिकारी के रूप में शामिल किया गया।
इस दल ने मस्टर रोल, बाउचर और एमबी के आधार पर 19 मई 2010 तथा 20 जुलाई 2010 को मौका स्थल जाकर जांच की। इसके बाद 28 अगस्त को अपनी जांच रिपोर्ट जिला प्रशासन को सौंप दी। इस बहुचर्चित जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा था कि शिकायत पत्र में अंकित सभी बिंदुओं पर शिकायत प्रथम दृष्टया सही पाई गई है। जांच में पाया गया कि करीब 40 लाख रूपए की लागत से निर्मित उक्त मार्ग निर्माण में फर्जी मस्टर रोल एवं एमबी तैयार कर शासन की राशि का गबन किया जाना प्रथम दृष्टया प्रमाणित होता है। इस जांच रिपोर्ट में तत्कालीन आरईएस के कार्यपालन यंत्री पर अंगुलियां उठ रही थीं। जांच के उपरांत दोषी अधिकारियों एवं कर्मचारियों एवं ठेकेदार पर कोई कार्यवाही होती अचानक पूरी जांच की रिर्पोट का मानचित्र ही बदल गया। पूरी जांच रिर्पोट को अचानक दरकिनार कर उसे पूरी तरह खारिज करते हुए एक नई जांच शुरू हो गई। उक्त जांच बैतूल के एडीएम योगेंद्र सिंह के नेतृत्व में कार्य को मूर्त रूप देती उसके पहले ही जांच के लिए गठित जांच दल कुंभकरणी निंद्रा में चला गया। पांच महीने गुजरने के बाद भी जांच दल अपनी कुंभकरणी निंद्रा से नहीं जाग सका हैं। जिसके चलते जांच दल दो कदम आगे तक नही चल सका और उसे लकवा मार गया।
कांग्रेस नेता द्वारा जन प्रकाश में लाया गया उक्त मामला अपने आप में हैरान एवं परेशान कर देने वाला हैं क्योकि जिस तथाकथित अधिकारी की अनुशंसा पर पूर्व में सिद्ध पाई गई जांच रिर्पोट को खारिज किया गया था वह स्वयं कहीं न कहीं इस मामले में जिम्मेदार था। कांग्रेस के नेता श्री त्रिलोक सिंह खनुजा का यह आरोप हैं कि जांच रिपोर्ट बिल्कुल सही थी और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होना चाहिए थी, लेकिन अचानक ही एक नया जांच दल बना दिया और मामला पांच महीने से ठंडे बस्ते में डाल दिया है। बताया जाता हैं कि मार्च 2007 में स्वीकृत इन दोनों मार्गो में 19.54 लाख और 19.72 लाख खर्च किया जाकर अभिलेख में कार्य पूर्ण बताया जा रहा है, लेकिन आज तक सीसी जारी नहीं हुई है जो कि कार्यपालन यंत्री आरईएस की कार्यप्रणाली को संदिग्ध बनाती है। चारगांव से खखरा कोयलारी वाले मार्ग में रेलवे फाटक से खखरा कोयलारी तक 200 मीटर सड़क का काम पूर्व में पंचायत द्वारा कराया गया। जिसमें निर्माण एजेंसी ने बिना काम किए फर्जी देयक व मस्टर रोल के माध्यम से 1.54 लाख का गबन स्पष्टता पाया गया।महेंद्रगढ़ से रतनपुर मार्ग में निर्माण एजेंसी द्वारा तकनीकी स्वीकृति के मापदंडों के विपरित जाकर 400 मीटर मार्ग बनाया गया।
जिसमें तीन लाख रूपए की राशि वसूली योग है।उक्त दोनों मार्गो के निर्माण में मस्टर रोल और जॉब कार्ड गलत रूप से भरे पाए गए। लगभग 25 मजदूर ?से भी अंकित है जिन्होंने ने कभी मजदूरी काम नहीं किया और भुगतान भी नहीं लिया।उक्त दोनों मार्ग के निर्माण में संबंधित एमबी में अंकित माप से संबंधित स्थल पर कोई भी खंती मौका स्थल पर उपलब्ध नहीं है। संपूर्ण एमबी फर्जी तरीके से बिना मौका स्थिति पर कार्य कराए भरी गई है।उक्त दोनों मार्ग निर्माण में मुरम की गहराई औसत दस सेंटीमीटर पाई गई। जबकि निर्घारित मापदंड एवं टीएस के अनुसार 15 सेंटीमीटर गहराई होना चाहिए थी, जो कि बहुत कम है।जंगल सफाई के नाम पर चारगांव सड़क पर 21 हजार 270 रूपए एवं महेंद्रगढ़ मार्ग पर 42 हजार 570 रूपए खर्च एमबी में अंकित किया गया है जो कि अनावश्य है। अत: यह राशि वसूलने योग है।क्त दोनों मार्ग पर ग्राम पंचायत द्वारा भी मार्ग निर्माण कराया गया था। इस प्रकार आरईएस द्वारा मात्र मुरम डालकर बिना पानी के मात्र एक बार रोलर चलाकर मार्ग का निर्माण किया जाना पाया गया। पूरे मामले में तब और भी आश्चर्यचकित होना पड़ जाता हैं जब पूरी निमार्ण एजेंसी और घोड़ाडोंगरी की भाजपा का पूर्व ससंदीय सचिव एवं वर्तमान भाजपा विधायक श्रीमति गीता उइके से निकटता बता कर पूरी जांच को ही प्रभावित करने के लिए बकायदा भोपाल से तथाकथित फोन आता हैं और पूरा जिला प्रशासन हरकत में आकर आनन - फानन में पूरी जांच रिर्पोट को रदद्ी की टोकड़ी में डाल देता हैं जिसे बैतूल जिले की बहुचर्चित एसडीएम सुश्री प्रियंका पालीवार द्वारा बिन्दुवार जांच कर शिकायत की परत - दर परत खोल कर पूरी शिकायत को सही साबित कर दी गई।
इन सबसे हट कर एक मामला जिला पंचायत का भी सामने आता हैं जिसके अनुसार मनरेगा के तहत होने वाले कार्यो में भारी भ्रष्ट्राचार के आरोप कोई विपक्षी दल के नेता न लगा कर जिला पंचायत की एक सत्ताधारी दल की सदस्या ने लगाते हुए अपनी ही सरकार के मनरेगा के कार्यो को लेकर मची धांधली पर सवाल उठा डाले। शाहपुर एवं घोडड़ोंगरी जनपद की कुछ ग्राम पंचायतो के निमार्ण कार्यो पर भी सवालिया निशान उठा कर अधिकारियों की फजीहत को बढ़ा डाला। इधर ग्राम पंचायतो का आडिट करने वाली कम्पनी ने करीब 16 आपत्तियां अपनी आडिट रिपोर्ट में लगाई है। वर्ष 2009-10 के लिए किए गए इस आडिट में यह भी कहा गया है कि इस प्रतिवेदन में उल्लेखित तुलन पत्रक, आय-व्यय पत्रक एवं प्राप्ति तथा भुगतान पत्रक लेखा पुस्तकों से मेल नहीं खाते है। आडिट रिपोर्ट में जो आपित्तयां ली गई है उसमें साफ कहा गया है कि कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र जांचने के लिए पंचायतों में प्रस्तुत नहीं किया। पांच हजार से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीद नहीं लगाई गई है। यहां तक कि मस्टर रोल के प्रपत्र दो और तीन उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए। साथ ही जनपदों ने भी मस्टर रोल में कार्य का नाम और जारी करने की तिथि भी नहीं दशाई गई है।
यह तमाम चीजें नियमों के खिलाफ और बड़े गोलमाल की ओर खुला इशारा कर रही है। स्थिति यह है कि भुगतान देयकों पर सरपंचों के अधिकृत हस्ताक्षर भी नहीं है। रोकड़ अवशेष एवं ग्राम पंचायत द्वारा किए गए कार्यो का भौतिक सत्यापन हमारे द्वारा नहीं किया गया है। अंकेक्षण कार्य हेतू हमारे समक्ष सिर्फ कैश बुक, पास बुक और खर्च से संबंधित प्रमाणक ही उपलब्ध कराए गए। कार्य से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र को जांचने हेतू प्रस्तुत नहीं किया गया।ग्राम पंचायत द्वारा माप पुस्तिका प्रस्तुत न करने के कारण उससे संबंधित मस्टर रोल अन्य खर्च का मिलान संभव नहीं था।अधिकांशत: पांच हजार रूपए से अधिक के नगद भुगतान प्रमाणकों पर रसीदी टिकट नहीं लगाए गए।ग्राम पंचायत द्वारा योजनान्तर्गत फंड से किसी भी प्रकार की निश्चित अवधि जमा नहीं बनवाई गई।बैंक खातों में जमा दर्शाई गई मजदूरी वापसी से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं की गई। पूर्ण जानकारी के अभाव में अंकेक्षण का मूलभूत आधार रोकड़ खाते को माना गया है। पंकज अग्रवाल, अग्रवाल मित्तल एंड कंपनी ने बताया कि यह बता पाना संभव नहीं है कि किसी भी कार्य या सामग्री क्रय हेतु किया गया भुगतान अग्रिम है या नहीं। इसके अतिरिक्त हमारे द्वारा रोकड़ खाता एवं उपलब्ध प्रमाणकों के आधार पर किया गया अग्रिम भुगतान अलग से दर्शाया गया है। ग्राम पंचायत द्वारा अचल सम्पत्ति का रजिस्टर संधारित नहीं किया गया है। पंचायत कार्यालय से प्राप्त रजिस्टरों के अतिरिक्त सामान्यत संधारित रजिस्टर के पृष्ठ पूर्व मशीनीकृत नहीं थे। सामान्यत: सभी मस्टर रोल के प्रपत्र 2 व 3 उपयंत्री द्वारा नहीं भरे गए है।
जनपद पंचायत द्वारा मस्टर रोल में कार्य का नाम व जारी किये जाने की तिथि अंहिकत नहीं की गई है। सामान्यत: ग्राम पंचायत द्वारा निर्माण हेतु सामग्री क्रय करने के दौरान शासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया है। इसी तरह सामग्री क्रय के व अन्य बिल कच्चे के लिये गये है। भुगतान देयकों पर सरपंच द्वारा अधिकृत हस्ताक्षर नहीं किये गये है। ग्राम पंचायत के अंकेक्षण हेतु कुछ प्रमाणक प्रस्तुत नहीं किए गए। सबसे ज्यादा घोटाले बाज भीमपुर जनपद की स्थिति तो काफी भयाववह है। इस जनपद में तो अधिकांश सचिवो की गिनती करोड़पति एवं लखपतियों में होती है। इन सभी दुरस्थ ग्राम पंचायतो के सचिवो ने उक्त माल कमाने के लिए अपनो को ही लाभ पहुंचाया है। रमेश येवले नामक एक सचिव के पास आज करोड़ो की सम्पत्ति जमा हो गई है। रमेश के द्वारा अपने सचिव कार्यकाल में तथा पूरी जनपदो के की ग्राम पंचायतो में सबसे अधिक भुगतान रमेश येवले सचिव के परिवार के सदस्यों के नाम पर किया गया है। रमेश येवले को टे्रक्टर ट्राली एवं ब्लास्टींग के नाम पर भुगतान किया गया है। आज मौजूदा समय में रमेश येवले सहित दो दर्जन से अधिक सचिवो पर कंसा शिकंजा अब ठीला पड़ता जा जा रहा है। अभी हाल ही में भीमपुर ब्लॉक में आयोजित जनपद पंचायत की समीक्षा बैठक में उपस्थित नहीं होने वाले एडीईओ (विकास विस्तार अधिकारी) को जिला पंचायत सीईओ द्वारा निलंबित कर दिया गया है।
इसके अलावा मिटिंग में शामिल नहीं होने वाले सचिवों एवं अन्य कर्मचारियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। यदि वह नोटिस का संतुष्ठ जवाब नहीं देते है तो उनका 15 दिन का वेतन काट लिया जाएगा।

जिला पंचायत सीईओ एसएन चौहान ने बताया कि उन्हे शिकायते मिल रही थी जिसके चलते उक्त कार्यवाही की गई। श्री चौहान के अनुसार बैठक में एडीईओ कृष्णा गुजरे सहित सचिव एवं अन्य कर्मचारी उपस्थित नहीं हुए थे। जिस पर उनके एडीईओ गुजरे को निलंबित कर दिया है। वहीं सचिव सहित अन्य कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। सीईओ चौहान ने बताया कि एडीईओ द्वारा विभिन्न कार्यो के टारगेट को भी समय पर पूर्ण नहीं किया गया था। मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत बन रही ग्रेवल सड़कों को लेकर अभी से सवाल खड़े होना शुरू हो गए है। बताया जा रहा है कि विगत दिनों जो जिला पंचायत अध्यक्ष का गुस्सा योजना मंडल की बैठक में आरईएस पर फूटा था उसकी वजह भी यही सड़कें थीं। सड़कें जिस रफ्तार से बन रही है उसको लेकर संदेह जाहिर किया जा रहा है।लम्बाई कम और दर अधिक बैतूल जनपद अंतर्गत बोरीकास से सालार्जुन तक बन रही 2.80 किलोमीटर लम्बी ग्रेवल सड़क की लागत जहां 51.95 लाख रूपये है। वहीं भरकवाड़ी से खानापुर तक बनने वाली तीन किलोमीटर लम्बी सड़क की लागत महज 33.94 लाख है। लागत में इस अंतर को लेकर पंचायती राज के जनप्रतिनिधी अब सवाल खड़े कर रहे है।एक महीने में 40 प्रतिशतबोथी सियार से मांडवा 1.3 किमी, बोरीकास से सालार्जुन 2.80 किमी, आरूल से खाटापुर 2.2 किमी, भकरवाड़ी से खानापुर तीन किमी और बारवी से डोडरामऊ 3.75 किमी की जब जनपद पंचायत बैतूल अध्यक्ष ने समीक्षा की थी तो दिसम्बर में काम प्रारंभ ही हुआ था और अब निर्माण एजेंसी आरईएस 40 प्रतिशत तक काम हो जाना बता रही है।

मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में पंचायती राज्य में सरपंच सचिवो की मनमर्जी के आगे सरकारी योजनाओं को हश्र हो रहा है वह किसी से छुपा नहीं है। इस समय बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के आधे से ज्यादा के सरपंच सचिवो के नीजी एवं परिजनो के वाहनो को नरेरा के तहत मिलने वाली राशी से भुगतान किया जा रहा हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले की ग्राम पंचायतो से सबसे अधिक भुगतान उन कृषि कार्यो के लिए पंजीकृत टे्रक्टर ट्रालियों को हुआ हैं जो व्यवसायिक कार्यो के लिए प्रतिबंधित हैं। जिले में इसी तरह पानी के टैंकरो , रोड रोलरो , जेसीबी मशीनो , ब्लास्टींग मशीनो आदि को किया गया भुगतान भी नियम विरूद्ध किया गया है। बैतूल जिले की प्राय: सभी ग्राम पंचायतो के सरपंच एवं सचिवो से नियम विरूद्ध कार्य करके अतिरिक्त भुगतान करने पर रिकवरी के आदेश के जारी होने के तीन माह बाद भी एक भी सरपंच एवं सचिव से रिकवरी नहीं हो सकी हैं।

पूरे जिले में साठ करोड़ के लगभग राशी की रिकवरी होना हैं। राजनैतिक संरक्षण एवं अधिकारियों की कथित मिली भगत के चलते आडिट आपत्तियों के चलते की जाने वाली रिकवरी शासन के खाते में नहीं जा सकी है। बीती पंचवर्षिय योजना में बैतूल जिले के प्राय: सभी सरपंच एवं सचिवो की सम्पत्ति में काफी इजाफा हुआ हैं। गांव के विकास के नाम पर जारी हुआ एक रूपैया का नब्बे पैसा सरपंच सचिवों की आलीशान कोठियों , चौपहिया वाहनो एवं बैंक बैलेंसो को बढ़ाने में उपयोगी साबित हुआ हैं। जिले के करोड़पति सचिवों में भीमपुर विकास खण्ड के यादव समाज के सचिवों का नाम सबसे ऊपर हैं। लोकायुक्त एवं राज्य आर्थिक अपराध अनुवेषण के कार्यालय तक भेजी गई सैकड़ो शिकवा , शिकायते आज भी फाइलों में बंद पड़ी हुई हैं। बैतूल जिले के पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी बाबू सिंह जामोद के खिलाफ बीते माह ही आर्थिक अपराध अनुवेषण द्वारा बैतूल जिले में उनके तीन साल में नरेरा , कपिलधारा के कूप निमार्ण कार्यो के अलावा एक दर्जन से अधिक कार्यो में हुए भ्रष्ट्राचार को लेकर प्रकरण दर्ज हुआ हैं लेकिन प्रकरण के संदर्भ में इस भ्रष्ट्राचार की जड़ कहे जाने वाले सरपंच एवं सचिवों के गिरेबान तक किसी के भी हाथ नहीं पहुंच सके हैं।

आय से अधिक सम्पत्ति जमा करने वाले करोड़पति बने रमेश येवले , महेश उर्फ बंडू बाबा , जगदीश शिवहरे, सहित सवा सौ सचिवों को लोकायुक्त से लेकर सीबीआई तक की जांच के दायरे में शामिल करने का प्रयास किया गया है। एक स्वंयसेवी द्वारा भेजी गई शिकायती पुलिंदा में सीबीआई को विशेष से इसकी जांच का निवेदन किया है जिसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि केन्द्र सरकार से भेजे गए अरबो - खरबो के अनुदान से कई सचिवो की माली हालत में जबरदस्त इजाफा हुआ है। जांच में इन बातो का भी उल्लेख किया गया हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में निलम्बित सचिवो को पुन: बहाल कर उसी स्थान पर क्यों पदस्थ किया गया हैं। जांच में इस बात को ध्यान में रखा जाए कि आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा भेजी गई अरबो - खरबो की राशि का नरेरा में उपयोग कितना हुआ है और कितना नहीं हुआ हैं। बैतूल जिले में रोज सामने आ रही मनरेगा के कार्यो की गुणवत्ता एवं भ्रष्ट्राचार की शिकवा शिकायतों की यदि सीबीआई से लेकर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक जांच शुरू करेगी तो उन्हे छै महिने के बदले छै दिनो में ही हाईपरटेंशन की बीमारी हो जाए। सप्ताह में हर मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में आने वाली हर दुसरी - तीसरी शिकायते मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर होती हैं। उक्त शिकायतों पर कार्यवाही क्या होती है या क्या हो चुकी हैं इस बात की किसी को पता नहीं लेकिन शिकायतों के बाद पैसे हल्का होने वाला सरपंच - सचिव जब आप खोकर गांव के लोगो को गंदी - गंदी गालियां देते हुए धमकाने लगते हैं तब शायद गांव वाले ही खबर का असर समझ कर फूले नहीं समाते हैं। मनरेगा को लेकर गांव से जिला मुख्यालय तक शिकायतों की आड़ में होने वाली सौदेबाजी का खेल चलता है। शिकायतों को लेकर गांव वालो के कथित ब्यानो एवं सच का पता लगने वाला मीडिया से लेकर जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी तक गांव तक पहुंचने के बाद मैनेज हो जाता हैं और गांव का गरीब जाबकार्ड धारक बार - बार जेब का पैसा खर्च करके जिला कलैक्टर से यह तक सवाल नहीं कर पाता हैं कि उसकी शिकायतें पर कोई सुनवाई क्यों नहीं हुई। आज यही कारण हैं कि गांव में भी ब्लेकमेलरो की दिन प्रतिदिन संख्या में इजाफा होते जा रहा हैं। गांव में ही सरपंच एवं सचिवो को पहले चरण में कथित शिकायतों को लेकर ब्लेकमेल करने के बाद सौपा न पटने की स्थिति में शिकायत करता स्वंय के रूपए - पैसे खर्च करके गांव वालों की भीड़ मंगलवार की जन सुनवाई में लाने से लेकर मीडिया तक को मैनजे करके मनरेगा के कार्यो को लेकर पेपरबाजी करवाता हैं। जितनी ज्यादा पेपरबाजी होती हैं उसके हिसाब से ब्लेकमेलर एवं सरपंच - सचिव के बीच सौदेबाजी होती हैं। कई बार तो दलाली के काम में जनपद के मुख्यकार्यपालन अधिकारी से लेकर राजनैतिक पार्टी के जनप्रतिनिधि तक अहम भूमिका निभाते हैं। आज का पंचायती राज कुल मिला कर रेवड़ी बन गया है जिसे हर कोई बाट का छीन कर खाना चाहता हैं। एक सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार बैतूल जिले में 6 जनवरी दिन मंगलवार वर्ष 2009 के बाद आज दिनांक तक हर मंगलवार याने दो साल पौने दो माह में लगभग 104 मंगलवार को लगे बैतूल जिले के जनसुनवाई शिविर में कुल तीस हजार पांच चालिस शिकायते दर्ज हुई है जिसमें से सोलह हजार नौ सौ तीस शिकायते बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो के गांवो से मनरेगा के कार्यो एवं भुगतान को लेकर आई है। प्रशासन के पास $खबर लिखे जाने तक इस बात की कोई भी जानकारी नहीं है कि कितनी शिकायतों का निराकरण हो चुका हैं।

मनरेगा के कार्यो की जांच एवं भुगतान को लेकर की गई शिकायतों की न तो जांच रिर्पोट लगी हैं और भुगतान पाने वालों के भुगतान मिलने सबंधी को प्रमाणिक दस्तावेज जिसके चलते कई शिकवा - शिकायते तो लगातार होने के बाद भी मनरेगा का भुगतान न तो हो सका हैं और न इन प्रकरणों की जांच हो सकी हैं। जिला प्रशासन द्वारा सीधे तौर पर मनरेगा के कार्यो की शिकवा शिकायतों की जांच सबंधित विभाग या फिर शाखा को भेज दी जाती हैं। उक्त विभाग या शाखा द्वारा जिला प्रशासन को इस बात की कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं भेजी जाती हैं कि शिकायत यदि सहीं हैं उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई हैं। वैसे देखा जाए तो 2 लाख 48 जाबकार्ड धारक है। जिसमें 1 लाख 78 हजार जाबकार्ड धारक परिवारों के एक सदस्य को एक साल में सौ दिन का रोजगार देने के प्रावधान हैं। जिले में जाबकार्ड धारको को हर बार भुगतान को लेकर प्रशासन की ओर से कई पहल की गई लेकिन हर बार शिकवा - शिकायते सुनने को मिली हैं। इस बार बैतूल जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा चलित मोबाइल बैंक की शुरूआज एच डी एफ सी बैंक के माध्यम से की जाने वली हैं। बैतूल जिले में वर्तमान में कुल 80 बैंक है जिनके माध्यम से जाबकार्ड धारको को भुगतान उनके खातों के माध्यम से किया जाता हैं। बैंक के पास वर्कलोड़ की वज़ह से वह मनरेगा के भुगतान कार्यो के प्रति उतनी दिलचस्पी भी नहीं लेती क्योकि बैंको को कोई विशेष लाभ नहीं मिलता हैं। वैसे भी सरकारी बैंको की ऋण देने एवं ब्याज पाने में ज्यादा रूचि रहती हैं। बैतूल जिले में लगातार ग्राम पंचायत स्तर के भ्रष्ट्राचार में कई बार बैंक भी लपेटे में आ चुकी हैं इसलिए बैंको का इस कार्यो के प्रति नकारात्मक रूख रहा हैं। बैंक से भुगतान पाने के लिए गांव से बैंको तक धक्के खाने वाला ग्रामीण आखिर विवश होकर शिकवा - शिकायते करने लगता हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी अनिल गुप्ता के अनुसार बैतूल जिले में सेन्ट्रल बैंक के साथ मोबाइल बैंक की एक योजना शुरू की थी लेकिन बैंक ही पीछे हट गई। अब प्रदेश में अनूपपुर की तरह एटीएम से भुगतान की जगह नगद भुगतान के लिए एच डी एफ सी बैंक से एक अनुबंधन किया जा रहा हैं। बैंक को मोबाइल बैंको के लिए जिला पंचायत वाहन तक उपलब्ध करवाने के लिए तैयार हैं। जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी भुगतान एवं कार्यो को लेकर होने वाली शिकायतों पर कार्यवाही होने की बाते तो करते है लेकिन उनके पास आकड़े नहीं हैं। श्री गुप्ता का तो यहां तक कहना हैं कि ग्राम पंचायत स्तर तक के कार्यो में भ्रष्ट्राचार के मामले राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) तक को भेजे गए है लेकिन उनके नाम उन्हे नहीं मालूम हैं। बैतूल जिले की 558 ग्राम पंचायतो एवं 10 जनपदो में आज तक कोई भी ऐसर रिकार्ड पंजी उपलब्ध नहीं है जिसमें ग्राम पंचायत सबंधी शिकायतों एवं उनके समाधान का जिक्र हो ऐसी स्थिति में बैतूल जिले का ग्राम पंचायती राज अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत पर खरा उतरता हैं। एक कड़वा सच यह भी हैं कि बैतूल जिले में पदस्थ रहे मुख्यकार्यपालन अधिकारी एवं जिला कलैक्टरों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) में कई प्रकरण चल रहे हैं लेकिन खबर लिखे जाने तक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) द्वारा किसी भी बड़ी मछली को अपने फंदे में नहीं फंसाया जा सका है तब छोटी मछली के फंदे बाहर निकले की संभावना तो बरकरार रहेगी। बैतूल जिले के बारे में कहा जाता हैं कि मध्यप्रदेश का कमाऊपूत जिला हैं जहां पर हर कोई अपना देश है बड़ा विशाल लूटो खाओं है बाप का माल के मूल सिद्धांत पर कार्य कर रहा हैं। बैतूल जिले का पंचायती राज कब सार्थक एवं सफल सिद्ध होगा सयह कह पाना अतित के गर्भ में हैं।

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