महाभारत में जब अपने सामने अपने पूरे रिश्तेदारों को देख कर दुखी हुए अर्जून को श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता का संदेश सुनाते हुए ''हे अर्जून जो इस संसार में आया है , एक न एक दिन जाना पड़ता है......! , इसलिए तुम केवल कर्म करों फल की इच्छा मत करों। '' मध्यप्रदेश की राजनीति के चाणक्य और देश की राजनीति के महापंडित चाणक्य कहलाने वाले अर्जून सिंह ने जब अपने जीवन की अंतिम सांस ली तो उनके कानों में शायद यही शब्द गुंज रहे होगें। आज प्रदेश की राजनीति का एक और सूर्य अस्त हो गया। अपने निधन से मात्र तीन घंटे पहले ही गांधी परिवार के सबसे बड़े वफादार रहे अर्जून सिंह को कांग्रेस की कार्य समिति के स्थायी सदस्य के रूप में नियुक्त किये जाने की घोषणा की गई थी। अर्जून सिंह मध्यप्रदेश के सबसे लोकप्रिय एवं सुर्खियों में छाये राजनेता रहे। अर्जून सिंह को हमेशा कांग्रेस ने अपने लिए एक ऐसे योद्धा के रूप में मैदान में उतारा जब हर कोई पछाड़ खा चुका था। मुझे अच्छी तरह से याद हैं वह घटना जब अर्जून सिंह की मध्यप्रदेश से बिदाई हुई थी। दैनिक भास्कर के पत्रकार के रूप में मैं सारनी -पाथाखेड़ा में कार्य करता था। अर्जून सिंह को पंजाब का राज्यपाल बनाया गया था तब मैंने उसने सारनी में पुछा था कि उनकी क्या प्रतिक्रिया है। अर्जून सिंह जब भी अज्ञातवाश में कहीं जाते थे तो उनमें से एक स्थान बैतूल जिले के सारनी थर्मल पावर स्टेशन का सर्किट हाऊस होता था। अर्जून सिंह अकसर अमरकंटक एवं सारनी के सर्किट हाऊस में ही रूकते थे। उस शाम वे सारनी में थे जब उन्हे पंजाब का राज्यपाल बनाया गया था। मैं दैनिक भास्कर भोपाल से आए फोन पर उनकी प्रतिक्रिया लेने पहुंचा था। रात्री के लगभग 9 बजे जब मैं उनसे मिलने के लिए अपनी साइकिल से ऊपर टेकड़ी पर बने एम पी इ बी सारनी के सर्किट हाऊस पहुंचा था। मुझे अपने सवाल के साथ देख कर वे हस पड़े और मुझसे ही सवाल करने लगे कि ''यह बताओं की मेरे राज्यपाल बनने एवं यहां पर होने की खबर तुम्हे कैसे मिली.....! '' उस दौर में आज सुबह छै बजे मिलने वाला दैनिक शाम को छै बजे मिलता था। ऐसे समय में उनकी प्रतिक्रिया पर ही दैनिक भास्कर समाचार सेवा के संपादक महेश श्रीवास्तव की विशेष संपादकीय छपी थी जिसमें ऊपर दिये गये शीर्षक को पहले पन्ने पर छापा गया था। देर रात्री तक पूरे प्रदेश को इस बात की खबर नहीं थी कि प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से अर्जून सिंह की छुटट्ी हो गई और वे पंजाब के राज्यपाल बनाए गए। अर्जून सिंह ऐसे समय में पंजाब के राज्यपाल बने जब पूरा प्रदेश आतंकवाद की आग में जल रहस था। लोगेंवाल से समझौता और पंजाब में शांती का मार्ग बनाने में अर्जून सिंह की कुटनीति ही काम आई। अर्जून सिंह कांग्रेस के ही नहीं बल्कि गांधी परिवार के सबसे वफादारों में से एक थे। यूपीए की चेयरपरसन श्रीमति सोनिया गांधी कल तक भी अर्जून सिंह की राय लेना नही भूलती थी। स्वास्थ खराब हो जाने के बाद भी उन्हे मंत्रीमंडल तथा बाद में राज्यसभा का सदस्य बनाया गया। वे आखिर समय भी कांग्रेसी की कार्यसमिति के ऐसे स्थायी सदस्य बने कि अब उन्हे कोई नहीं हटा सकेगा। एक दबंग कूटनीति एवं महापंउित चाणक्य के गुणो से भरपूर अर्जून सिंह कांग्रेस में अपनी विरासत के रूप में अपने बेटे अजय सिंह ''राहुल भैया '' को छोड़ कर चले गए। अर्जून सिंह की विद्याचरण एवं श्यामा चरण से भले ही पटरी नहीं बैठी लेकिन अर्जून सिंह ने अपने राजनैतिक गुरू डी पी मिश्रा की सीख पर प्रदेश में कांग्रेस का एक तरफा साम्राज्य स्थापित किया जिसे आखिर के दस साल तक दिग्यविजय सिंह ने संभाला रखा था। मध्यप्रदेश से अर्जून सिंह एवं दिग्यविजय सिंह के जाने के बाद कांग्रेस जो सत्ता से बाहर हुई कि वह पुन: सत्ता संभाल नहीं पा सकी। अर्जून सिंह चाहते थे कि उनके पुत्र की प्रदेश में ताजापोशी हो लेकिन वे आखिर समय तक अपने बेटे को मुख्यमंत्री तो दूर नेता प्रतिपक्ष भी नहीं बनवा सके। आज हमारे बीच अर्जून सिंह नहीं हैं लेकिन मानव संसाधन जैसे गुमनाम मंत्रालय को ख्याति भी अर्जून सिंह ने ही दिलवाई थी। अर्जून सिंह ने पूरे प्रदेश और बाद में पिछड़ा वर्ग का ट्राम कार्ड फेका था जो पहली बार दलित , आदिवासी , अल्पसंख्यक के बाद वेकवर्ड के रूप में उभर कर आया। अर्जून सिंह की ही राजनैतिक देन रही है जिसके चलते कई पिछड़े वर्ग के नेता राजनीति में ऊंचे मुकाम तक पहुंचे। अर्जून सिंह ने कांग्रेस संगठन को सत्ता में भागीदार बनाया। कांग्रेस सेवादल की पुछ - परख भी अर्जून सिंह के संगठन में आने के बाद हुई। अर्जून सिंह इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक के विश्वास पात्रों में से एक रहे। भोपाल गैस कांड एवं बोफर्स मामले में अर्जूून सिंह की भुमिका कांग्रेस के प्रति सच्चे वफादार के रूप में रही। वे आखिर समय तक राजीव गांधी को भोपाल गैस कांड मामले के आरोपी एडरसंन को लेकर उठे विवादो से सेफ करते रहे। अर्जून सिंह को अपनी बेटी को टिकट न मिलने का दुख था लेकिन वे खुल कर पार्टी के खिलाफ नहीं गए। अयोध्या - बाबरी मस्जिद प्रकरण में नरसिंह राव की भुमिका को लेकर अर्जून सिंह ने मंत्रीमंडल से स्तीफा तक दे दिया। वे कांग्रेस से नारायण दत्त तिवारी के साथ अलग होकर तिवारी कांग्रेस तक बना डाले। देश के अल्पसंख्यको और खासकर सिख्खों के बीच अर्जून सिंह की अच्छी पकड़ ही उन्हे दक्षिण दिल्ली से लोकसभा के गलियारे तक पहुंचा सकी। अर्जून सिंह को लेकर आरएसएस और हिन्दुवादी संगठनो ने जमकर प्रहार किए लेकिन अर्जून सिंह अपने गाडिंव को लेकर अपने तरकश से तीर निकाल कर अपने दुश्मनो को चारों खाने चित कर अंत समय तक अपराजीत योद्धा के रूप में सदा - सदा के लिए अजर अमर हो गए। बैतूल जिले से अर्जूनसिंह का दिल का रिश्ता था। अर्जून सिंह ने बैतूल जैसे छोटे आदिवासी बाहुल्य जिले से पिछड़ा वर्ग का एक ऐसा नेता दिया जिसको लेकर आज कांग्रेस का वेकवर्ड वोट बैंक बना हुआ है। स्वर्गीय रामजी महाजन बैतूल जिले से एक मात्र ऐसे नेता थे जो कि अर्जून सिंह की भरोसे की टीम के सदस्य थे। रामजी महाजन पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन के बाद अगलो के आगे पिछड़ो को लाने वाले अर्जून सिंह और रामजी महाजन आज दोनो हमारे बीच नहीं रहे। मैने अपनी शुरूआत की पत्रकार वार्ता में अर्जूनसिंह का सामना किया था। आज जैसे मेरे सवालों को लेकर नेताओं और मंत्रियों की भौंहे तन जाती है वैसी अर्जून सिंह जी की भी तन जाती थी लेकिन मेरी पत्रकारिता के वे कायल भी थे। सारनी में जब भी उनसे मुलाकात हुई वे मुझे देख कर पुरानी यादों को याद कर वे मंद - मंद मुस्कारा पड़तें थे। बैतूल आने के बाद भी अर्जून सिंह से एक बार हल्की सी मुलाकात हुई थी। अर्जून सिंह जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपने विरोधियों को चारो खाने चित किया। दैनिक भास्कर और खासकर महेश श्रीवास्तव से उनकी कभी पटरी नहीं बैठी। यदि आज के श्रद्धाजंलि लेख के समय यह बात कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगीं कि अर्जून ङ्क्षसह ने दैनिक भास्कर को लोकप्रियता और महेश श्रीवास्तव को सफल नामचीन संपादक के रूप में पचहान दी। अर्जून सिंह से पंगा लेने पर दैनिक भास्कर को भी बहुंत कुछ खोना पड़ा लेकिन आज कर दैनिक भास्कर बीते जमाने में केवल अर्जूनसिंह को लेकर ही पढ़ा जाता था। महेश श्रीवास्तव को भाजपा सरकार ने राज्यमंत्री का दर्जा सिर्फ इसलिए दिया था कि महेश जी ने अपने कलम रूपी नेत्रो से कई बार अर्जून सिहं पर ज्वाला बरसा कर उन्हे जलाने का प्रयास किया लेकिन अर्जूनसिंह तो हर बार जलने के बाद लंका के सोने की तरह दमक उठते थे। अर्जून सिंह की राजनीति का हर कोई लोहा मानते थे। लालकृष्ण आड़वानी जैसे नेताओं को अर्जून सिंह ने कई बार राजनैतिक धूल चटाई थी। अर्जूनसिंह संसद से लेकर जनता तक में एक सर्वमान्य लोकप्रिय नेता के रूप में चर्चित रहे है। अर्जून सिंह जी आज सदा - सदा के लिए सो जरूर गए लेकिन उनके वे तरकश हमेशा याद रखे जायेगें जिनसे कई भीष्म पितामह सैया पर लेट गए।
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