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Wednesday, March 23, 2011

तुम अपने बंगलो में अपने विदेशी कुत्तो को नहलाने से बाज नहीं आये

बैतूल // राम किशोर पंवार (टाइम्स ऑफ क्राइम)
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बैतूल, दरअसल में होली हमारी बरसो की संस्कृति का एक अंग है। होली के दिन दिल मिल जाते है, दुश्मन भी गले मिल जाते है लेकिन लगता है कि अब हमारी संस्कृति पर धीरे - धीरे कुछ विदेशी संस्कृति के नारू रोग के कीड़े अंदर ही अंदर उसे नष्ट करने में लगे हुये है। आज लोगों को पानी का दुरू पयोग का पाठ पढाने वाले 99 प्रतिशत लोगों के घरों में या तो देशी - कुत्ता है या फिर विदेशी ....... इन कुत्तो को नहलाने में साल भर में तो दूर एक दिन में जितना पानी बर्बाद होता है उतना पानी होली के रंग में एक दुसरे पर छिड़काव करने में नहीं लगता।

अपने बंगलो में हरियाली रहे इसके लिए लाखों टन पानी को बर्बाद करने वाले यदि लोगों को पानी के उपयोग का पानी पढ़ाये तो वहीं कहावत साबित होगी कि अंधा व्यक्ति आँख वाले को रास्ता दिखाये। पानी के उपयोग के लम्बे - चौड़े बैनरो एवं पोस्टरो तथा अखबारो में अपनी स्वंय की तस्वीरे छपवाने वाले नारू रोग के कीड़े उस समय कहाँ मर जाते है जब बैतूल जिले की सूर्य पुत्री माँ ताप्ती का पूरा जल बह कर गुजरात चला जाता है। जिस व्यक्ति ताप्ती सरोवर की परिकल्पना करके वह पानी वाला बाबा कहलाया आज उसी व्यक्ति के द्वारा शुरू की गई ताप्ती सरोवरो की योजना तालाब से पोखर बन रही है। आज ताप्ती पर स्टाप डेम बनवाने की बैतूल जिले की पहाड़ी नदियो को एक दुसरे से जोडने का भागीरथी प्रयास करने के बजाय अपने मूल दायित्व से भागने वाले यदि लोगो को इस तरह की बेवाकुफी भरी बातो का ज्ञान बाटे तो इससे बड़ी शर्मनाम बात क्या होगी। आज हम अकेले बैतूल जिले के बात करे तो यह सबसे शर्मसार बात है कि अपने सगे बच्चों को कभी गोदी में लेकर घुमने वाले व्यक्ति विदेशी कुत्तो को अपनी कारो में घुमा कर उसे मंहगे साबुनो से नहला कर क्या पानी का सदुप्रयोग कर रहे है।

गायत्री परिवार के संस्थापक परम पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री राम शर्मा का एक मात्र नारा था कि 'हम सुधरेगें, युग सुधरेगा, 'हम बदलेगें, युग बदलेगा ।आज दुसरो को ज्ञान बाटने वाले ज्ञानचंदो एवं ज्ञानपांडो की कोई कमी नहीं है। जाने - माने शायर डाँ. राहत इन्दौरी कहा करते है कि 'तुझे पता नहीं मेले में घुमने वाले, तेरी दुकान कोई दुसरा चलाता है ......! इन सब बातो को कहने का मतलब आज हमारी संस्कृति पर सीधे - सीधे कुठाराघात का एक उदाहरण है। लोगो ने अपनी दुकान जमाने के लिए लोगों को तरह - तरह के लोभ - लालच एवं प्रलोभन दिये। आज भी गुलाल से तिलक लगा कर सुखी होली मनाने का संदेश देने वाले शायद भूल गये कि जब कोई व्यक्ति की अंतिम यात्रा निकलती है जब भी गुलाल उसके ऊपर डाला जाता है उसका भी तिलक वंदन - चंदन किया जाता है।
जीवित व्यक्ति को रंगा जाता है क्या किसी मुर्दे को रंगते या उसको होली खेलते देखा है। होली हमारी संस्कृति है मथुरा में भगवान श्री कृष्ण के द्वारा खेली गई होली को क्या पानी के अभाव में बंद करवा दी जाये। बैतूल जिले की नदियो एवं ताालाबों तथा पोखरो में अभी इतना पानी है कि हमारी साल में एक दिन आने वाली बरसों की परम्परा का हम जीवित रख सकते है। पानी की बचत का यह कौन सा तरीका है कि सुखी होली खेली जाये और लोग भी पेपरो में फोटो छपवाने के लिए संकल्प ले रहे है शपथ खा रहे है कि हम सौंगध खाते है कि जो कहा है वहीं करेगे। अरे मेरे शपथ तो राम की उन लोगो ने भी खाई थी कि सौंगध राम की खाते है मंदिर वही बनायेगें लेकिन बनवाया क्या.....? यदि इस आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के बैतूल शहर के दस तथाकथित समाज सेवी - धन्नासेठ - मोटर कार मालिक - देशी - विदेशी कुत्तो के स्वामी - समाज सुधारक - ज्ञानपांडे यदि इस बात की सौंगध खाते है कि 'आज के बाद वे अपने घरो में खुदवाये गये निजी या सरकारी नलकुपो एवं सरकारी नल के पानी का उपयोग केवल पीने के लिए ही करेगें तथा इस पानी से वे या उनके परिवार का कोई सदस्य या नौकर उनकी मंहगी चमचमाती कारो एवं देशी - विदेशी - पालतू कुत्तो को धोने के लिए नही करेगें।

यदि ऐसा करते पायेगें गये तो उन्हे बैतूल शहर में सरे राह और मुख्य चौक चौराहो पर जलील किया जाये तथा उनके गले जूते की माला पहनाई जाये ....! जिस दिन भी पानी के सदउपयोग - दुरूप्रयोग - सुखी होली - तिलक होली का संदेश देने वाले लोग यदि इस बात का शपथ पत्र देकर यदि लोगो को कहे कि वह तिलक होली की शुरूआत करे तो मैं पहला व्यक्ति रहूँगा जो कि आज के बाद कभी किसी के चेहरे पर या शरीर कोई रंग डालना तो दूर रंग को हाथ तक नहीं लगाऊंगा। हमारे देश में ज्ञानपांडों की दुसरों की बागुड लाघने वाले सांडों की कमी नहीं है। अपनी पत्नि से उम्मीद रखेगें कि वह सति सावित्री बनी रहे

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