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Monday, April 4, 2011

आलोक की मौत के बाद मिले दो लाख के चेक को सुप्रिया ने लौटाया

चैतन्य भट्ट भड़ास4मीडियाचैतन्य भट्ट:
मध्य प्रदेश सरकार की असंवेदनशीलता के बारे में राज एक्सप्रेस में रिपोर्ट प्रकाशित
: जबलपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक राज एक्सप्रेस में इसके संपादक रवीन्द्र जैन की एक बाईलाइन खबर प्रकाशित हुई है. इसमें बताया गया है कि मध्य प्रदेश सरकार ने आलोक तोमर की बीमारी के लिये मुख्यमंत्री सहायता कोष से जो दो लाख रुपये की सहायता मंजूर की थी, वह राशि स्व. आलोक तोमर की पत्नी तक उस वक्त पहुंची जब आलोक इस दुनिया से ही विदा हो चुके थे.

स्व. आलोक तोमर की धर्मपत्नी ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दी जाने वाली इस राशि का चेक सरकार को वापस कर दिया है. एक जांबाज और स्वाभिमानी पत्रकार की पत्नी से इसी तेवर की अपेक्षा थी. निश्चित तौर पर आलोक तोमर किसी मदद के मोहताज नहीं थे यदि उन्हें पैसों की इतनी ही चाहत होती तो वे कब के समझौतावादी रवैया अपना लेते परन्तु उनके भीतर एक ऐसे पत्रकार की आत्मा बसा करती थी जिसने न तो परिस्थितियों से समझौता करना सीखा था और न ही किसी के सामने सर झुकाना. यह बात सही है कि आज की पत्रकारिता में ऐसे लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि जिस तरह की पत्रकारिता आजकल चल रही है उसमें व्यक्ति पत्रकार नही बल्कि एक नौकर की हैसियत से अखबारों में काम कर रहा है. आलोक जब तक जीवित रहे, उन्होंने अपने भीतर के पत्रकार की रूह को कभी मरने नही दिया.

मुझे याद है जब वे जनसत्ता में हुआ करते थे तब मध्य प्रदेश के बड़े बड़े नेता उनके सामने दुम हिलाया करते थे. उन्हें बार बार इस बात दुहाई देते थे कि वे भी उसी मध्य प्रदेश के नेता हैं जिसका प्रतिनिधित्व आलोक तोमर करते हैं. पर आज उनके किसी पद पर न रहने के बाद वे ही नेता अपने उस आलोक को भूल गये थे जिसे वे कभी मध्यप्रदेश का शेर कहा करते थे. वैसे तो आलोक तोमर ने मध्य प्रदेश सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं मांगी थी पर उनके ही कुछ मित्रों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को आलोक के मध्य प्रदेश का होने की जानकारी देकर उनसे मदद की अपील की थी. मुख्यमंत्री ने उन्हें मदद देने के निर्देश भी दिये परन्तु प्रदेश की बेलगाम नौकरशाही ने न तो आलोक की बीमारी की गंभीरता को समझा न ही उन्हें समय पर मदद पहुंचाने के लिये कोई प्रयास ही किये. इसका परिणाम ये निकला कि जब तक रुपयों की मदद पहुंची, तब तक वे ये दुनिया ही छोड़ चुके थे.

नेताओं के इलाज के लिये लाखों रुपये खर्च करने वाली मध्य प्रदेश सरकार की यह संवेदनहीनता धिक्कारने लायक है. सवाल दो लाख रुपयों का नही है. सवाल है अपने आप को बेहद संवेदनशीन बताने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनकी सरकार की संवेदनहीनता का. आलोक तो चले गये. अब ये दो लाख रुपये लेकर उनकी पत्नी करतीं भी तो क्या करतीं. सो, उन्होंने वह चेक वापस कर दिया जो इस बात को साफ करता है कि सुप्रिया रॉय ने अपने पति की शिक्षा को अपने में आत्मसात कर लिया है. ‘‘राज एक्सप्रेस’’ के रवीन्द्र जैन को इस बात के लिए बधाई कि उन्होंने यह खबर प्रकाशित कर प्रदेश की बेलगाम नौकरशाही को आइना दिखाया है.

लेखक चैतन्य भट्ट जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं. कई अखबारों के संपादक रह चुके हैं. भट्टजी से संपर्क 09424959520 या फिर chaitanyajabalpur@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.

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written by praveen khariwal, April 04, 2011
mp mai patrkaro ko tab jakar madad milti hai jab bimar patrkar thik ho jata hai ya duniya sai chala jata hai... yeha k cm to urjawan hai lakin unki nokarshahi sust hai... sahi waqt per thodi madad bhi jiyada kaam karti hai,per ch sahab ko samjai kon?
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written by Ajay Kumar, April 02, 2011
ravindra ji aap badhai ke patra hai..jisne andhe sarkar aur uske naukarsha ko unki andhikhi ka aayan dikhya jisse wo khud kitna sharminda hoag uska ehsaas unhe hoga
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written by yogendra Kumar, April 02, 2011
राज एक्‍सप्रेस के संपादक श्री रवीन्‍द्र जैन को तो बधाई कि उन्‍होने अपने अखबार में अपने नाम से यह खबर प्रकाशित की इसके साथ साथ श्री चैतन्‍य भटट को भी बधाई कि उन्‍होने भडास के माध्‍यम से मध्‍यप्रदेश सरकार की संवेदनहीनता को सारे देश के मीडिया जगत के सामने उजागर कर दिया स्‍व0 आलोक तोमर जैसे व्‍यक्ति केसाथ यदि सरकारें ऐसा कर सकती है तो साधारण पतरकारों के साथ उनका व्‍यवहार कैसा होता होगा इसकी कल्‍पना की जा सकती है आलोक जी के लेख मैने पढे है उनमें एक आग हुआ करती थी एक निर्भीक लिखने वाले पतरकार के नाम से वे सदा ही याद किये जायेगे- शर्म आना चाहिये मध्‍यप्रदेश सरकार और उसके अधिकरियों को जिन्‍होने उनके रोग की गंभीरता को नही समझा मैं स्‍व तोमर की धर्मपत्‍नी आदरणीय भाभीजी को उनके इस साहस भरे कदम के लिये प्रणाम करता हूं कि उन्‍होंने दो लाख की रकम सरकार को वापस कर उसके मुंह पर तमाचा मारा
योगेन्‍द्र कुमार

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