Pages

click new

Wednesday, May 25, 2011

नेशनल वेस्ट है यह तोड़ फोड़

जबलपुर // कल्पना श्रीवास्तव
Ptoc news internet chainal
भोपाल में मीनाल माल ढ़हा कर सरकार बेहद खुश है, सरकारी कर्मचारी जो कुछ समय पहले तक ऐसे निर्माण करने की अनुमति देने के लिये बिल्डरों से गठजोड़ करके काला धन बटोर रहे थे, अब ऐसी सम्पत्तियो को चिन्हित न करने के एवज में मोटी रकम बटोर रहे हैं. लोगों की गाढ़ी कमाई, उनकी आजीविका, अनुमति देने वाली एजेंसियो, प्रापर्टी सही है या नही इसकी सचाई की जानकारी के बिना, मोटी फीस वसूल कर वास्तविक कीमत से कम कीमत की रजिस्ट्री करने वाले रजिस्ट्रार कार्यालय के अमले, बिना किसी जिम्मेदारी के सर्च रिपोर्ट बनवाकर फाइनेंस करने वाले बैंको की कार्य प्रणाली, और व्यक्तिगत रंजिश के चलते, राजनैतिक प्रभाव का उपयोग कर आहें बटोरने वाले मंत्रियो पर काफी कुछ लिखा जा रहा है.
सरकार की इस अचानक कार्यवाही के पक्ष विपक्ष में बहुत कुछ लिखा जा रहा है. जिनका व्यक्तिगत कुछ बिगड़ा नही है, वे प्रसन्न है. निरीह आम जनता को उजाडऩे में सरकारी अमले को पैशाचिक सुख की प्राप्ति हो रही है. मंै एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक भारत के रामभरोसे जी रहे आम नागरिक होने के नाते इस समूचे घटनाक्रम को एक दूसरे दृष्टिकोण से देखना चाहती हूं. एक आम आदमी जिसे मकान लेना है उसके पास खरीदी जा रही प्रापर्टी की कानूनी वैद्यता जानने के लिये बिल्डर द्वारा दिखाये जा रहे सरकारी विभागों से पास नक्शे एवं बाजू में किसी अन्य के द्वारा खरीदे गये वैसे ही मकान की रजिस्ट्री, बैंक की सर्च रिपोर्ट तथा बिल्डर के निर्माण की गुणवत्ता के सिवाये और क्या होता है? इस सबके बाद जब वह मकान खरीद कर दसो वर्षों से निश्चिंत वहां रह रहा होता है,
नगर निगम उससे प्रसन्नता पूर्वक सालाना टेक्स वसूल रही होती है, टैक्स जमा करने में किंचित विलंब पर पैनाल्टी भी लगा रही होती है, उसे बिजली, पानी के कनेक्शन आदि जैसी प्राथमिक नागरिक सुविधायें मिल रही होती हैं तब अचानक एक सुबह कोई पटवारी उसके घर को अवैद्य निर्माण चिंहित कर दे, इतना ही नही सरकार अपनी वाहवाही और रुतबा बनाने के लिये उसे वह दुकान या मकान खाळी करने के लिये एक घंटे की मोहलत तक न दे तो इसे क्या कहा जाना चाहिये? क्या इतने पर भी यह मानना चाहिये कि हम लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं? अवैद्य निर्माण को प्रोत्साहित भी सरकारो ने ही किया, कभी राजनैतिक संरक्षण देकर तो कभी पट्टे बांटकर, किसी के साथ कुछ तो कभी किसी और के साथ कुछ अन्य नीति आखिर क्या बताती है? जबलपुर में अतिक्रमण विरोधी कार्यवाही में बालसागर में हजारो गरीबों के झोपड़े उजाड़ दिये गये, इस कार्यवाही में दो लोगो की मौत भी हो गई.
क्या यह सही नही है कि ये अतिक्रमण करवाते समय नेताजी ने, तहसीलदार जी ने और लोकल गुंडो ने इन गरीबों का भरपूर दोहन किया था? जो लोग इस आनन फानन में की गई तोडफ़ोड़ की प्रशंसा कर रहे हैं मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि मेरे घर में एक चिडिय़ा ने एक फोटो फ्रेम के पीछे घोंसला बना लिया था, मैं छोटी था, घोंसले के तिनके चिडिय़ा की आवाजाही से गिरते थे, उस कचरे से बचने के लिये जब मैने वह घोसला हटाना चाहा तो उस घोंसले तक को हटाने के लिये, चिडिय़ा के बच्चो को बड़ा होकर उड़ जाने तक का समय देने की हिदायत मेरे पिताजी ने मुझे दी थी. संवेदनशीलता के इस स्तर पर जी रहे मुझ जैसो को सरकार की इस कार्यवाही की आलोचना का नैतिक आधिकार है ना?
चिडिय़ा के घोसले से फैल रहे कचरे से तो हमारा घर सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा था, पर मेरा प्रश्न है कि मीनाल माल या इस जैसी अन्य तोड़ फोड़ से खाली जमीन का सरकार ने उससे बेहतर क्या उपयोग करके दिखाया है? पर्यावरण की रक्षा में बड़े बड़े कानून बनाने वाले क्या मुझे यह बतायेंगे कि तोड़े गये निर्माण में लगा श्रम, सीमेंट, लोहा , अन्य निर्माण सामग्री नेशनल वेस्ट नही है? उस सीमेंट , कांच व अन्य सामग्री के निर्माण से हुये प्रदूषण के एवज में समाज को क्या मिला? इस क्रिमिनल वेस्ट का जबाबदार आखिर कौन है? इगोइस्ट मंत्री जी ? नाम कमाने की इच्छा से प्रेरित आई ए एस अधिकारी? क्या ऐसी कार्यवाहियो की अनुमति देने के लिये एक डिप्टी कलेक्टर स्तर के अधिकारी के हस्ताक्षर पर्याप्त हैं? यह सब चिंतन और मनन के मुद्दे हैं.
मैं नही कहती कि अवैद्य निर्माण को प्रोत्साहन दिया जावे. सरकार ने यदि उन लोगो पर कड़ी कार्यवाही की होती, जिन्होने ऐसे निर्माणो की अनुमति दी थी तो भी भविष्य में ऐसे निर्माण रुक सकते थे. रजिस्ट्रार कार्यालय बहुत बड़े बड़े विज्ञापन छापता है जिनमें सम्पत्ति के मालिकाना हक के लिये वैद्य रजिस्ट्री होना जरूरी बताया जाता है, रजिस्ट्री से प्राप्त फीस सरकारी राजस्व का बहुत बड़ा अंश होता है, तो क्या इस विभाग को इतना सक्षम बनाना जरूरी नही है कि गलत संपत्तियो की रजिस्ट्री न हो सके, और यदि एक बार रजिस्ट्री हो जावे तो उसे कानूनी वैद्यता हासिल हो. आखिर हम सरकार क्यो चुनते हैं ,सरकार से सुरक्षा पाने के लिये या हमारे ही घरो को तोडऩे के लिये ? मैं न तो कोई कानूनविद् हूं और न ही किसी राजनैतिक पार्टी की प्रतिनिधि . मैं नैसर्गिक न्याय के लिये इनोसेंट नागरिको की ओर से पूरी जबाबदारी से लिखना चाहती हूं कि यदि मीनाल माल एवं उस जैसी अन्य तोडफ़ोड़ की जगह उससे बेहतर कोई प्रोजेक्ट सरकार जनता के सामने नही ला पाती है तो यह तोडफ़ोड़ शर्मनाक है .क्रिमिनल वेस्ट है . मीनाल रेजीडेंसी देश की सर्वोत्तम कालोनियो में से एक है यदि इस तरह की कार्यवाही वहां हो सकती है तो भला कौन इंटरप्रेनर प्रदेश में निवेश करने आयेगा ?
यह कार्यवाही निवेशको को प्रदेश में बुलाने के लुभावने सरकारी वादो के नितांत विपरीत है . आम आदमी से धोखा है, इसका जो खामियाजा सरकार अगले चुनावो में भुगतेगी वह तो बाद की बात है, पर आज कानून क्या कर रहा है? क्या हम इतने नपुंसक समाज के निवासी है कि एक मंत्री अपने व्यक्तिगत वैमनस्य के लिये आम लोगो को घंटे भर में उजाड़ सकता है, और सब मूक दर्शक बने रहेंगे? क्या इन असहाय लोगो के साथ अन्याय होता रहने दिया जावे क्योकि वे संख्या में कम हैं, मजबूर हैं और व्यवस्था न होने के चलते अज्ञानता से वे इन मकानो के मालिक हैं. ऐसे इंनोसेंट लोगो पर कार्यवाही करके सरकार कौन सी मर्दानगी दिखा रही है, और क्या इससे यह प्रमाणित नही होता है कि यह सब दुर्भावना पूर्ण है, जब बिल्डर से सौदा नही बना तो तोडफ़ोड़ शुरू, अधिकारो के ऐसे दुष्प्रयोग जनतांत्रिक देश में असहनीय हैं.
एक ओर आतंकवादियो और नक्सलवादियो तक को क्षमा दी जा रही है तो दूसरी ओर लोगो को बिना वजह बेगर किया जा रहा है, क्योकि बिल्डर की गलती थी. बेहतर हो कि कानूनी कार्यवाही व सजा बिल्डर और निर्माण की अनुमति देने वाले अधिकारियो पर की जावे. बिल्डर पर बड़ा आर्थिक दण्ड लगाकर सरकारी खजाना भरा जावे. दुष्यंत कुमार की पंक्तियां हैं लोग जिंदगी लगा देते हैं एक घर बसाने में, उन्हें पल भर भी नही लगता बस्तियां जलाने में यद्यपि इन पंक्तियो का संदर्भ भिन्न है, पर फिर भी यह ऐसी सरकारी नादिरशाही की दृष्टि से प्रासंगिक ही हैं. सरकार से पुन: प्रार्थना है कि व्यापक लोकहित तथा राष्ट्र हित में उदारता से विचार कर लोगो को बेघर न करें, बिल्डर पर जो भी पेनाल्टी लगानी हो वह लगाकर यदि कोई अच्छा निर्माण कतिपय रूप से अवैधानिक भी है तो उसका नियमतीकरण करने की जरूरत है.
लेखिका को सामाजिक विषयों पर लेखन हेतु अनेक पुरुस्कार मिल चुके हैं

No comments:

Post a Comment