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Monday, October 17, 2011

अपशगुन की भेट चढ़ती अडवाणी की जनचेतना यात्रा


-निर्मल रानी-

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी द्वारा गत् 11 अक्तूबर को समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के जन्म स्थान सिताबदियारा, बिहार से शुरु की गई जनचेतना यात्रा विवादों तथा आलोचनाओं के मध्य अपनी मंजि़लें तय करती हुई आगे बढ़ रही है। यदि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा के भूमि घोटाले में जेल जाने तथा जनचेतना यात्रा को अपेक्षित समर्थन न मिल पाने के कारण यात्रा के कार्यक्रम में कोई परिवर्तन नहीं किया गया तो यह यात्रा लगभग सात हज़ार 6 सौ किलोमीटर का स$फर तय करते हुए 23 राज्यों में पडऩे वाले लगभग 100 जि़लों से गुज़रेगी। अब तक निर्धारित योजना के अनुसार 38 दिवसीय इस यात्रा का समापन 20 नवंबर को नई दिल्ली में होना प्रस्तावित है।

हालांकि अडवाणी ने अपनी यात्रा की शुरुआत जय प्रकाश नारायण के जन्मस्थान से कर तथा जेपी के शिष्य समझे जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार से यात्रा को हरी झंडी लेकर देश को यह संदेश देना चाहा है कि अब वे कट्टरपंथी हिंदुत्ववाद का चेहरा नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष नेता का रूप धारण कर चुके हैं। परंतु देश के तमाम वरिष्ठ समाजवादी सिताब दियारा से अडवाणी की यात्रा शुरु करने तथा नितीश कुमार द्वारा इसे हरी झंडी दिखाने को ही जेपी तथा समाजवादी विचारधारा का न केवल अपमान महसूस कर रहे हैं बल्कि इसे महज़ एक पाखंड की संज्ञा दे रहे हैं। आलोचक यह प्रश्र कर रहे हैं कि क्या जेपी को आज याद करने वाले अडवाणी या भाजपा ने इससे पूर्व अपने किसी राष्ट्रीय अधिवेशन में अथवा अपनी सत्ता के दौरान पहले कभी जेपी को याद करने, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने, उनका जन्मदिन मनाने या अपने किसी बैनर में जेपी की फोटो लगाने की ज़हमत गवारा की? बहरहाल, जनचेतना यात्रा की इस शुरुआत के साथ ही अडवाणी के प्रधानमंत्री बनने के इस मिशन पर शुरु से ही लगता है किसी की नज़र लग गई। मु$गलसराय में रेल विभाग ने अपना मैदान भाजपा को जनसभा करने हेतु देने में आनाकानी की तो कहीं अडवाणी के रथरूपी वाहन का वातानुकूलन यंत्र खराब हो गया। जिसके परिणास्वरूप रथ में बैठे संसद के दोनों सदनों के विपक्ष के नेता सुषमा स्वराज तथा अरूण जेटली दोनों की ही तबीयत खराब हो गई। इस घटना को लेकर एक खबर यह भी है कि रथरूपी इस बस में हुए किसी गैस रिसाव के कारण इन दोनों नेताओं की तबीयत बिगड़ी।

बहरहाल, यात्रा के अगले ही दिन पटना से आरा के मध्य स्थित ब्रिटिशकाल में निर्मित एक पुल में अडवाणी की बस जा फंसी। जबकि उनके काफिले के साथ चल रहे अन्य लगभग दो दर्जन वाहनों तथा सुरक्षाकर्मियों की बसों व सामान्य ट्रैफिक को इस प्रकार की किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। भाजपा नेताओं द्वारा इस विषय पर यह कहा गया कि पुल की ऊंचाई कम होने के कारण बस की छत पुल में जा फंसी। परंतु हकीकत तो यह है कि बस की ऊंचाई 13.9 फुट थी जो कि उस पुल से गुज़रने वाले वाहनों की तथा यातायात नियमों द्वारा निर्धारित वाहन की ऊंचाई संबंधी मानदंडों से अधिक ऊंची थी तभी यह बस 13 फुट ऊंचे उस पुल से आसानी से नहीं निकल सकी। साफ है कि यदि यह अडवाणी की जनचेतना यात्रा का वाहन न होता तथा किसी साधारण व्यक्ति का वाहन होता तो आरटीओ द्वारा इस का चालान कर दिया गया होता। कोई आश्चर्य नहीं कि आरटीओ ऐसे वाहन को ज़ब्त भी कर लेता। बहरहाल, यह यात्रा जब मुग़लसराय से पहले बनारस पहुंची तो वहां अपेक्षित भीड़ इकठी न हो पाना भी भाजपा नेताओं के लिए चिंता का विषय बना रहा। वाराणसी में भारत माता मंदिर परिसर नामक जिस स्थल को अडवाणी की जनसभा के लिए चुना गया था वह स्थान पहले ही छोटी जनसभाओं का सभास्थल है। परंतु उस स्थान का भी पूरी तरह से न भर पाना भाजपा की रथयात्रा के रणनीतिकारों को बहुत नागवार गुज़रा। समाचारों के अनुसार इस सभास्थल पर भाड़े के लोगों को भी लाया गया फिर भी सभास्थल पूरी तरह से न भर सका।

बहरहाल, किसी प्रकार यह जनचेतना यात्रा रीवां की सीमा से भाजपा शासित मध्यप्रदेश मे दाखिल हुई। मध्य प्रदेश में भी अडवाणी की इस यात्रा को लेकर कोई उत्साह देखने को नहीं मिला। इसका मुख्य कारण यही है कि इस यात्रा के पीछे छुपे भाजपा व अडवाणी के गुप्त एजेंडे को जनता भलीभांति समझ रही है तथा वह यह भी समझ चुकी है अडवाणी की इस यात्रा का मकसद सत्तारुढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्ना हज़ारे के साथ खड़े हुए आम लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना है। और जनता यह भी जानती है कि अडवाणी द्वारा इसी यात्रा की आड़ में प्रधानमंत्री बनने का सपना भी देखा जा रहा है। यह वजह है कि आम जनता इस यात्रा के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही। नतीजतन यात्रा में भीड़ जुटाना तथा इसके पक्ष में माहौल बनाना भाजपा के यात्रा रणनीतिकारों के लिए एक बड़ी समस्या के साथ-साथ प्रतिष्ठा का भी प्रश्र बन चुका है।

जबरन भीड़ जुटाने के अपने इसी लक्षय को साधने के लिए भाजपाईयों द्वारा रीवां स्थित पोस्ट-मैट्रिक अनुसूचित जाति बालक छात्रावास के छात्रों से रीवां में यात्रा की पूर्व संध्या पर निकलने वाले मशाल जुलूस में शामिल होने को कहा गया। इस छात्रावास के तमाम छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ कर मशाल जुलूस में शामिल होने के लिए राज़ी नहीं हुए। छात्रों के इन्कार करने से आगबबूला हुए भाजपा कार्यकर्ताओं ने कई छात्रों को तो जबरन घसीटकर अपनी गाडिय़ों में डाल दिया जबकि कई छात्र मशाल जुलूस में शिरकत न करने पर अडिग रहे। ऐसे छात्रों के साथ भाजपाईयों द्वारा काफी मारपीट की गई व उन्हें प्रताडि़त किया गया। जब पीडि़त छात्र भाजपाईयों की इस गुंडागर्दी के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कराने थाने गए तो उन्हें थाने से ही भगा दिया गया। खबर यह भी है कि मध्य प्रदेश में ही कई जगह इसी यात्रा कार्यक्रम में खुलेआम चोरी की बिजली का भी धड़ल्ले से इस्तेमाल किया गया। सवाल यह है कि क्या इसी अंदाज़ से अडवाणी के समर्थक जनचेतना जागृत करने की कोशिश करेंगे?
जनचेतना का सच अभी यहीं खत्म नहीं हुआ। रीवां से लगभग 40किलोमीटर के फासले पर स्थित सतना शहर में भाजपा द्वारा पत्रकार सम्मेलन का आयोजन किया गया। आमतौर पर टेलीविज़न के तमाम चैनल्स पर भाजपा की ओर से प्रेस ब्रीफंग करने वाले पार्टी प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद, अडवाणी की इस यात्रा में भी मीडिया व प्रचार-प्रसार की व्यवस्था का जि़म्मा यात्रा के साथ चलते हुए निभा रहे हैं। सतना में आयोजित पत्रकार सम्मेलन में भाजपा द्वारा पत्रकारों को लिफाफों में रखकर पैसे बांटे गए। यह सब हथकंडे केवल इसीलिए इस्तेमाल किए गए ताकि फ्लॉप शो साबित हो रही इस कथित जनचेतना यात्रा का वास्तविक चेहरा मीडिया के माध्यम से आम लोगों के सामने न आने पाए। परंतु भाजपा के रणनीतिकारों की यह चाल भी सफल नहीं हुई और प्रेस को रिश्वत देने संबंधी उनकी यह पोल भी कुछ टी वी चैनल्स ने खोल दी। यह भी अडवाणी की जनचेतना यात्रा का एक कड़वा सच है। उपरोक्त घटनाएं यह समझ पाने के लिए काफी हैं कि अडवाणी के प्रधानमंत्री बनने के सपने पूरे होने से पहले ही जब पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं का यह आलम है और वह भी भाजपा शासित राज्य मध्य प्रदेश में तो अडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में क्या होगा इस बात का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यह घटनाएं अपने-आप में स्वयं इस बात का प्रमाण भी हैं कि अडवाणी द्वारा की गई सभी 6 रथ यात्राओं में इस बार की उनकी यात्रा पूरी तरह असफल,फ्लॉप व जनता को अपनी ओर आकर्षित न कर पाने वाली यात्रा है।

गौरतलब है कि अडवाणी ने इस बार अपनी 38दिवसीय यात्रा में अयोध्या नगरी को शामिल नहीं किया है। हालांकि उसका कारण भाजपा नेता यही बता रहे हैं कि अयोध्या उनके यात्रा मार्ग में नहीं पड़ रहा है। परंतु यह उत्तर संतोषजनक कतई नहीं है। हकीकत तो यह है कि अडवाणी अपना रथ लेकर स्वयं अयोध्या न जाकर देश के उदारवादी व अल्पसंख्यक मतदाताओं को अपने धर्मनिरपेक्ष होने का प्रमाण देना चाहते हैं। जिसकी शुरुआत उन्होंने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान उस समय की थी जबकि उन्होंने जिन्ना की मज़ार पर जाकर ‘फातेहा’ पढ़ा व जिन्ना को एक धर्मनिरपेक्ष नेता बताया। परंतु अयोध्या की दिशा में उनके द्वारा बढ़ाए गए कदम उन्हें अपने-आप को अयोध्या से पूरी तरह दूर रहने भी नहीं दे रहे हैं। यही वजह है कि भले ही वे स्वयं अयोध्या अपनी कथित जनचेतना यात्रा लेकर न पहुंचें परंतु अपनी यात्रा के वाराणसी पड़ाव के दौरान उन्होंने जहां उत्तर प्रदेश भाजपा नेता कलराज मिश्र द्वारा निकाली गई एक उपयात्रा को वाराणसी से अयोध्या के लिए रवाना किया वहीं उसी दिन भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी मथुरा से अयोध्या के लिए दूसरी रथ यात्रा निकाली। यह दोनों रथ यात्राएं जहां भाजपा के मिशन अयोध्या को बिना अडवाणी की मौजूदगी के आगे बढ़ाएंगी वहीं बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से इसका लाभ अडवाणी तक पहुंचाए जाने की भी योजना बनाई गई है।

यात्रा के समापन का समय आते-आते यात्रा का हश्र क्या होगा इसका अंदाज़ा यात्रा की शुरुआत के पहले सप्ताह के अपशगुनों से ही लगाया जा सकता है जिसमें कि न केवल उपरोक्त नकारात्मक परिस्थितियों से इस यात्रा को गुज़रना पड़ रहा है बल्कि दक्षिण भारत के पहले भाजपा शासित राज्य कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे बी एस येदियुरप्पा के घोर भ्रष्टाचार व घोटाले में उनकी संलिप्तता के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा है। कहा जा सकता है कि अडवाणी की कथित जनचेतना यात्रा किसी बड़े अपशगुन की भेंट चढ़ गई है।

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