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Tuesday, November 1, 2011

पत्रकार को समाचार प्रकाशन से रोकना, जान से मार देने की धमकी देना



धमकाने वालों में जिला न्यायालय का अधिवक्ता भी शामिल

बैतूल । देश विदेश में पत्रकारों पर बढ़ रहे हमले विश्व समुदाय और पत्रकारिता जगत के समक्ष पत्रकारों के मानवअधिकारों पर सवाल उठा रहे हैं। पत्रकार पक्षद्रोही वातारवण में काम करनें को मजबूर हैं। राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर पत्रकार संघों के बीच पत्रकारों की सुरक्षा और उनके उत्पीडऩ को लेकर बहस जारी हैं। भारत भी इसका अपवाद नही है। यह भी पत्रकारों की सुरक्षा सवालों से घिरी हुई हैं। आसामाजिक अपराधिक तत्व पत्रकार को समाचार नही छापने, समाचार छपने पर जानसे मार डालने की धमकी और दुराचार के प्रकरण पर झूठा फंसा देने की खुली धमकियां अलग अलग आदमियों के द्वारा गंदी गंदी गालियां देकर पत्रकार को समाचार रोकने के लिए दबाव डाला गया।
एैसा ही एक मामला हाल ही में बैतूल के नवप्रभात समाचार पत्र के पत्रकार नितिन राज माथनकर के साथ हुआ जिसकी रिकाडिऱ्ग की गई हैं। धमकी देने वालों में एक वकील सहाब का नाम भी लिया गया हैं जिन्होने पत्रकार पर मुकदमा चलाने और दुराचार के झूठे मामले में फसाने की धमकी दी हैं। दरअसल मामला इस प्रकार है बैतूल जनपद की ग्राम पंचायत सूरगांव में एक युवक द्वारा आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों में समाज के गरीब कमजोर, मजदूर एवं अशक्त लोगो को गुमराह करके मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से सहायता दिलाने के नाम पर आवैधानिक वसूली की जा रही थी। इस घटना की जानकारी पत्रकार को लगी। समाचार पत्र में समाचार प्रेषित करने से पूर्व सुरेन्द्र घोरसे से फोन पर पत्रकार द्वारा कथन लेने की बात कही तो वह भड़क गया और गंदी-गंदी गालियां देकर मारने पीटने और पत्रकार की बहन को तक उठवा लेने की बात कहते हुये जान से मार देने की तक धमकी दी गई। सुरेन्द्र घोरसे के समर्थन में जिला न्यायालय के अधिवक्ता राजकुमार सातपुते द्वारा समर्थन करते हुये धमकी को दोहराया गया। पत्रकार को ८९६५९३७४५६ एवं ९६९११९३३७० मोबाईल नम्बर से धमकीया दी गई है।
इस पूरे मामले में आरोपी सुरेन्द्र घोरसे पुलिस के बड़े अधिकारियों के साथ वरिष्ठ पत्रकारों से अपने संबध बताता है, और समाचार रोकने दबाव डलवाता है। अब पत्रकार की सुरक्षा सवालों से घिर गई है कि अगर कलम के सिपाही के मानव अधिकार सुरक्षित नही रहेंगे तो वे आम आदमी के पक्ष में मानव अधिकारो की पैरवी कैसे करेंगें? आखिर कलम को कब तक दबाया जाता रहेंगा ? इस प्रकरण से इतना तो स्पष्ट है कि अपराधिक तत्व पत्रकार को एक आसान निशाना समझते है।
राज मालवीया  द्वारा भेजे गए E MAIL .

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