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Wednesday, November 23, 2011

जगह बदल बदल कर होता है लाखों का जुआ

 किसान एवं युवा सूदखोरों के चुगंल में

सिटी चीफ// जगदीशप्रसाद राव (गाडरवारा //टाइम्स ऑफ क्राइम) 
सिटी चीफ से संपर्क:- 9806420411
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गाडरवारा . शहर में समाज सेवा के नाम पर डंका पीटने वाले कुछ तथा कथित लोगों द्वारा पिछले 15 वर्षो से जुआ जैसी अनैतिक गतिविधि को अंजाम दिया जा रहा है। वे लोग नगर के एक प्रमुख वार्ड में डेरा डाले हुये है। जुआ एक ऐसी सामाजिक बुराई है जो निश्चित ही पतन की कगार पर ले जाती है और आज तक इस सामाजिक बुराई से किसी का भी भला नही हुआ है हां अगर किसी का भला होता है तो इन फड़ो को संचालित करने वाले फड़बाजों का जो नाल काटकर अपनी जेबें भरते हैं वहीं जुआ फड़ों में साहूकारी का धंधा चलाकर मनमाने और प्रतिदिन वसूले जाने वाले 10 से 15 प्रतिशत ब्याज से इन साहूकारों की भी चांदी रहती है, साथ ही इन फड़ों के संरक्षकों और जिन पर इस सामाजिक बुराई पे लगाम लगाने की जवाबदारी होती है वे लोग ही मजे मे रहते हैं. इसके बावजूद खुलेआम जुआ फड़ों का संचालन होने से पुलिस कार्यप्रणाली की ओर भी उंगली उठना लाजमी है। नगर ग्रामीण क्षेत्रों मे इन दिनों जहां चाहे खुलेआम जुआ फड़ों का संचालन किया जा रहा है जिस कारण जहां एक तरफ लोग अपने खून पसीने की कमाई को गवां कर बरबादी की कगार पर पहुंच रहे हैं वहीं नौजवान पीढ़ी भी इसमे संलिप्त होकर अपना भविष्य खराब कर रही है तथा चोरी, लूट आदि जुर्म की राह पर अपने कदम भी बढ़ा रही है। देखने मे तो यह तक आ रहा है लोग दिन भर मेहनत मजदूरी करके 2 जून की रोटी के लायक पैसे कमाते हैं और उस पैसे को जुऐ में गवां देते हैं।  

जिस कारण उनके घरों मे चूल्हे भी नही जल पाते हैं जो कि घरों मे कलह का कारण भी बनते हैं वहीं इन लोगो के छोटे-छोटे बच्चे जिनकी की पढऩे लिखने की उम्र होती है वे पढऩा लिखना तो दूर दो वक्त की रोटी को भी मौहताज हो जाते हैं. इसी तरह इस सामाजिक बुराई से धनाढय़ वर्ग भी अछूता नही है और इनकी फड़ों में लाखों रूपयों के दांव लगाये जाते हैं। जुऐ में हारा हुआ इंसान इन जुआ फड़ों मे उपस्थित सूदखोरों से कर्ज लेकर उन्हें भारी ब्याज चुकाता है यहां तक कि अपनी जमीन जायदाद तक इन सूदखोरों के पास गिरवी रख देता है जो कि भारी ब्याज के चलते वो कभी इन्हे वापस नही उठा पाता है। 

कभी कभी तो हालात ऐसे बनते हैं कि सूदखोरों के ब्याज मे दबकर किसानों के बच्चों एवं युवा पीढ़ी को आत्महत्या के लिये बाध्य होना पड़ता है, हैरत की बात तो यह है कि जुआ फड़ों को संचालित करने वाले समाज में नकाबपोशों की तरह अच्छाई का मुखोटा लगाकर घूूम रहे हैं। खुलेआम चल रहे जुआ फड़ों की जानकारी जहां बच्चों बुर्जगों से लेकर आमजनों तक को है, तो आखिर पुलिस प्रशासन को इसकी जानकारी ना हो ऐसा संभव प्रतीत नही होता है. कई बार देखने मे आता है कि छोटे मोटे जुआ फड़ों पर कार्यवाही कर पुलिस अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है जबकि बड़े जुआ फड़ उनके संरक्षकों के कारण सुरक्षित संचालित होते रहते हैं.। लंबे समय से लेकर  आज तक बड़े स्तर पर पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नही की गई है। यदाकदा होने वाली जुआ फड़ो पर छापे की कार्यवाही या तो छोटे जुआ फड़ो पर होती है या पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही को पूरी तरह दर्शाया नही जाता है यह जनचर्चा हर पुलिस छापे के  बाद सुनाई देती है। बहरहाल पुलिस के लिए जुआ फड़ चलाने वालों को पकडऩा एक चुनौती पूर्ण काम है, क्योकि वे रात्रि से लेकर सुबह तक की सर्द हवाओ मे अपनी जेबे भरकर दिन कुंभकरण की नींद लेकर सोते है।

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