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Sunday, November 13, 2011

मुख्य वन सरक्षक आरबी सिन्हा के विरूद्ध गोंडवाना आन्दोलन की आगाज


14 एवं 15 नवंबर को वन अधिकारी के विरूद्ध उपवास कार्यक्रम धोषित
बैतूल // भारत सेन
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भारतीय जनता पार्टी के मंत्री सरदार सरताज सिंघ, एक वन अधिकारी के कारण महत्वहीन वन मंत्री साबित हो रहे हैं। वन अधिकारी की तानाशाही, प्रशासनिक शक्तियों के दुरूपयोग, भ्रष्टाचर, नियम एवं कानूनों को दरकिनार करने की उनकी विवादस्पद कार्यशैली के कारण सीसीएफ, बैतूल के विरूद्ध वन मुख्यालय में लम्बित शिकायतों के चलते आदिवासियों को संगठित होकर बैतूल जिले में गोंडवाना आन्दोलन शुरू करने मजबूर कर दिया। कभी सुशासन का वादा करने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान, भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज बुलंद कर रहे हैं तो वही पर वन मंत्री,सरदार सरताज सिंघ और उनका वन  मंत्रालय एक वन अधिकारी के सामने नत्मस्तक साबित हो रहा हैं। सीसीएफ के प्रकरणों में वन मंत्री की रहस्मय खामोशी ने गोंडवाना आन्दोलन की पृष्ठ भूमि तैयार कर दी हैं। इधर, आदिवासियों ने संगठित होकर 14 एवं 15 नवंम्बर को कलेक्टर कार्यालय के सामने सामुहिक उपवास कार्यक्रम का मांग पत्र जारी कर प्रदेश सरकार के लिए खतरें की घण्टी बाजा दी है। सीसीएफ पर पद एवं शक्ति के दुरूपयोग, भ्रष्टाचार और उत्पीडऩ का आरोप लगाने वाला कोई और नही बल्कि वन विभाग में कभी नाकेदार के पद पर पदस्थ रहा और तीन बार विधान सभा चुनाव लड़ चुका गोंडवाना नेता, वन विभाग के ताने बाने में नीचे से उपर तक फैले भ्रष्टाचार को गहराई से जानता हैं।

 कभी छत्तीगढ़ राज्य में पदस्त रहे मप्र में बैतूल जिले के मुख्य वन संरक्षक, आरबी सिन्हा और वन मुख्यालय को कानून और न्याय केसवालो की जद में लाने वाला 21 सूत्रीय मांग पत्र गोंडवाना नेता कल्लुसिंह उईके ने जारी कर सामुहिक उपवास का दो दिवसीय अपना कार्यक्रम घोषित कर दिया। गोंडवाना के मांग पत्र में सीसीएफ आरबी सिन्हा के प्रकरणों को गिनवाकर उनको पद एवं शक्ति का दुरूपयोग करने वाला सबसे भ्रष्टतम, वन अधिकारी सबित किया जा रहा हैं जो हमेशा चापलूस और दलालनुमा लोगो से घिरे रहतें हैं और ऐसे लोगो को उपकृत करने के लिए मुखबिरी फंड का दुरूपयोग कर रहे हैं। गोंडवाना के मांग पत्र में वन मुख्यालय का शिकायत एवं सतर्कता शाखा के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक एके जैन पर बैतूल जिले से जुड़ी समस्त शिकयतों पर मुख्य वन संरक्षक से प्रतिवेदन बुलवाकर यंत्रवत् नस्तीबद्ध किये जाने का आरोप लगाया गया हैं।

वनों की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का सीसीएफ आरबी सिन्हा पर आरोप लगते हुए गोंडवाना नेता कल्लुसिंह उइके बताते है कि जंगलों की सुरक्षा के नाम पर नियुक्ति किए गए वन कर्मचारियों से कार्यालयों में कार्य लिया जा रहा हैं तो वनों की सुरक्षा के नाम पर रखे गए चौकीदारों से बैतूल में पदस्थ वन अधिकारी अपने घरों पर निजी कार्य करवा रहे हैं। वतमान में लगभग 80 चौकीदार बैतूल शहर में पदस्थ वन अधिकारियों के घरों पर निजी कार्य कर रहे हैं जिन्हे जंगलों में कार्य करना बताकर शासकीय धन का प्रतिमाह भुगतान किया जा रहा हैं। जिले की सयुक्त वन प्रबंधन समितियों के सचिव नाकेदारों पर दबाव डाला जारक चौकीदार एवं सुरक्षाकर्मियों के नाम पर पैसा निकाला जाकर भोपाल वन मुख्यालय में पदस्थ अधिकारियों के घरों में कार्यरत् निजी मजदूरों की मजदूरी का भुगतान किया जा रहा हैं। मुख्य संरक्षक द्वारा राज्य शासन के कानून, नियम, आदेश सभी को अमान्य कर एक वनरक्षक और चौकीदार को अपने कार्यालय के मुख्य गेट पर बिठाकर आम लोगो के लिए अपने कार्यालय का रास्ता ही बन्द कर दिया। इन दोनो कर्मचारियों को वेतन पत्रक में गेट पर कार्य करना भी नही बताया जा रहा है। वन विभाग के नियमित कर्मचारियों से बिना राज्य शासन की अनुमति के सहकारी संस्थाओं में काम लिया जाकर शासकीय धन का इन कर्मचारियों को भुगतान किया जा रहा हैं। बैतूल जिले के बहुचर्चित बंकर कांड में आरामशीन से चिरी गई लकड़ी खरीदने वालों से भारी राशि लेकर न तो लकड़ी पकड़ी गई और न ही ऐसे खरीददारों पर कोई कार्यवाही मुख्य वन संरक्षक के द्वारा होने दी गई।

भ्रष्टाचार के प्रकरण गिनवाते हुए गोंडवाना नेता बताते है कि भ्रष्टाचार किए जाने के एक मात्र उद्देश्य से मुख्य वन संरक्षक द्वारा राज्य शासन के आदेश या निर्देश के बिना ही रेत, गिट्टी, मुरम, मिट्टी एवं पत्थर की वाणिज्यिक दर का निर्धारण कर दिया। भ्रष्टाचार के माननीय उच्च न्यायालय, जबलपुर के स्पष्ट आदेश के बाद भी मुख्य वन संरक्षक द्वारा वन अपराध के प्रकरणों में लोक सम्पत्ति हानि अधिनियम की धारा लगाए जाने के आदेश जारी कर दिए। पाथाखेड़ा की संरक्षित वन भूमि पर दो ठेकेदारों से लाखों रूपया लेकर सीमेन्ट मिक्स प्लांट लगवा दिए गए और इस भ्रष्टाचार को दबाए नाने हेतु सारनी रेंजर और एसडीओ से वन भूमि के बाहर प्लांट का प्रतिवेदन तैयार करवाया। संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के लाभांश की 50 प्रतिशत राशि सदस्यों में नगद बांटने से रोकी जाकर उससे भोपाल बैरागढ़ की एक दुकान से प्रेशर कुकर, कम्बल, स्वेटर मनमाने दामों पर क्रय कर वितरित करवाया गया और नाकेदार पर दबाव डालकर प्रस्ताव तैयार करवाए गए। भारतीय संविधान और प्रचलित कानूनों एवं भारत सरकार के बाद भी संयुक्त वन प्रबंधन समितियों का प्रबंधन एवं नियंत्रण ग्राम सभाओं को नही सौंपा गया बल्कि नाकेदार के माध्यम से भ्रष्टाचार किया जा रहा है।
वन अधिकार कानून 2006 लागू होने के बाद भी वन ग्रामों को राजस्व ग्राम नही बनाया गया एवं वन ग्रामों को गैर आदिवासी पट्टेधारियों के दांवो को वन विभाग ने पूरी तरह से अमान्य कर दिया। वन अधिकार कानून के तहत निर्वनीकृत भूमियों को राजस्व भूमि मानने के बजाय वन विभाग वन अधिकारियों में समझे गये वन बताकर हजारों काबिजों के दावे अमान्य कर दिये।

अन्याय अत्याचार के प्रकरण का खुलासा करते हुए गोंडवाना नेता बताते हैं कि जनवारी 2008 में बांस को लद्युवनोपज घोषित कर दिए जाने के बाद भी बांस और उससे निर्मित सामग्रियों को जप्त करवाया जाकर मुख्य वन संरक्षक आदिवासियों के साथ अपनी उपस्थिति में वनरक्षकों को मारपीट के निर्देश देकर जुर्माना वसूल करने की कार्यवाही करते आए हैं, कर रहे हैं। फर्नीचर बनाने वाले छोटे छोटे कारीगरों के द्वारा शासकीय डिपो से क्रय की गई लकड़ी को भी अवैद्ध बताकर जप्त करने, उनके प्रकरणों को जानबूझकर लम्बित रखने और ऐसे कारीगरो से अवैध वसूली न होने पाने के कारण उन्हे प्रताडि़त करने की कार्यवाही की जा रही है। निर्माता एवं विनिर्माताओं से वसूली किए जाने के उद्देश्यों से लाइसेन्सों के नवीनीकरण की कार्यवाहियों को लम्बित रखा जाकर कार्य किए जाने, लकड़ी विक्रय किए जाने से रोके जाने की व्यापक स्तर पर कार्यवाहियां की गई।

वन अधिकारी के विरूद्ध गोंडवाना नेता के लगाए गए आरोपों के विधि, न्याय एवं मानवाधिकार के पहलुओं और उनकी भारी संख्या को देखते हुए इतना तो तय हैं कि इन्हे सीरे से खारिज तो नहीं किया जा सकता हैं। वन मंत्री सरदार सरताज सिंघ की जानकारी में होने बावजूद इन प्रकरणों को लेकर उनकी रहस्यमय खामोशी और वन मुख्यालय का नकारापन यह प्रारंभिक तौर पर सवाल तो उठा ही रहा हैं कि एैसी कौन सी राजनीतिक मजबूरी या दबाव हैं जिसनें सीसीएफ आरबी सिन्हा को हर स्तर पर संरक्षण दिलवा रखा हैं?अगर वन मुख्यालय ने समय रहते सक्रियता नही दिखाई तो इससे कानून और न्याय में आस्था रखने वाले आदिवासियों का असंतोष सरकार की रीति और नीति को लेकर और भी भडक़ेगा।

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