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Tuesday, December 6, 2011

भोपाल गैस त्रासदी:आरोपियों का क्यों नहीं हो पाता प्रत्यापन!

भोपाल गैस त्रासदी:आरोपियों का क्यों नहीं हो पाता प्रत्यापन!


ओ.पी. पाल
भोपाल गैस कांड दुनिया का सबसे बड़ा औद्योगिक त्रासदी के दर्द को अदालत द्वारा सुनाई गई आठ आरोपियों की सजा के बाद भी नहीं भुलाया जा सकेगा। इसका कारण भोपाल की यूनियन कार्बाइड इंडिया नामक कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वॉरेन एंडरसन का सजा मिलने के बावजूद फरार हो जाना जिसके प्रत्यर्पण में भारत सरकार पूरी तरह से विफल रही है। ऐसे में भारतीय सरकार सवालों के घेरे में है कि वह भारत में जितनी भी बड़ी घटनाओं में विदेश मूल के आरोपी रहे हैं उनमें से सरकार एक भी आरोपी का प्रत्यर्पण नहीं करा सकी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की विदेश नीति की एक बार फिर से समीक्षा करके उसे सख्त बनाये जाने की जरूरत है ताकि भारत में अपराध करके अपने वतन भागने वाले आरोपी को वही सजा मिल सके जो अन्य अपराधियों को मिल सकती है। भोपाल गैस कांड के आरोपियों को सजा सुनाने में 25 साल से ज्यादा समय लग गया जिसमें आईपीसी के तहत दर्ज मुकदमें में केवल दो साल की मामूली सजा दस हजार से ज्यादा लोगों की मौतों और लाखों लोगों को शारीरिक रूप से विक्षिप्त करने के दोषियों को इस सजा से उनके दर्द को कभी कम नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों का मानना है कि सजा दो साल की और उसे सुनाने में लगे 25 साल, फिर •भी यूनियन कार्बाइड इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वॉरेन एंडरसन का बचकर चले जाना, यही है भारत का कानून और देश की व्यवस्था? ऐसा एक मामला नहीं है जिसमें भारत को दर्द देने वाले विदेशी आरोपी साफ तौर से बच निकलने में कामयाब हुए हैं। बोफोर्स कांड में ओ. क्वात्रोच्चि भी ऐसे अपराधियों का एक हिस्सा रहा है जिसे भारत से ब़ाहर जाने की अनुमति तो दे दी गई लेकिन फिर वह कभी मुकदमे का सामने करने भारत नहीं आया। यही स्थिति मुंबई के 26/11 आतंकी हमले में नजर आ रही है जिसमें पाकिस्तानी मूल के 20 आरोपियों को दोषी ठहराया जा चुका है, लेकिन अमेरिका में डेविड कोलमेन हेडली और पाकिस्तान में ौठे आतंकवादी संगठन के हाफिज सईद, जकीउर्ररहमान लखवी व अबू हमजा जैसो के भारत में प्रत्यर्पण कराने की चुनौती भारत के सामने ताजा रूप में खड़ी हुई है, भले ही डेविड हेडली से भारतीय जांच दल अमेरिका में पूछताछ कर ले। भारत में अपराध करके विदेश चले जाने वाले विदेशी आरोपियों के प्रत्यर्पण में भारत हमेशा कमजोर नजर आया है। भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन का सवाल है उसके ब़ारे में केंद्रीय जांच यूरो के निदेशक अश्विनी कुमार कां कहना है कि उसके प्रत्यर्पण के प्रयास किये गये हैं लेकिन उसमें सफलता नहीं मिल सकी है। उनका कहना है कि सजा पाने के ब़ावजूद जमानत मिलते ही वह भारत से चला गया था और आज तक मुकदमे का सामना करने के लिए वह कभी अदालत के सामने पेश नहीं हुआ। उसके प्रत्यर्पण के लिए 23 सितमर 1993 को विदेश मंत्रालय को एक अनुरोध भेजा गया, जो मामले पर पुनर्विचार के आग्रह के साथ अमेरिका से यह नौ मई 2002 को वापस आ गया। सीबीआई के मुताबिक एंडरसन के खिलाफ नौ जुलाई 2009 को एक नया गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया। उसके मुकदमे को अन्य आरोपियों से अलग किया गया है। एंडरसन के प्रत्यर्पण का मामला अमेरिकी अधिकारियों के सामने उठाया गया है। यह भी गौरतलब है कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से दो दिसम्बर 1984 की रात जहरीली मिथाइल आइसोनेट गैस के रिसाव की दुर्घटना के समय एंडरसन यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन (यूसीसी) का मुख्य कार्यकारी अधिकारी था। इस दुर्घटना में तत्काल 3,500 लोगों की मौत हुई थी और इस त्रासदी के प्रभाव से हजारों लोग बीमार और विकलांग हुए। विधि विशेषज्ञ सुभाष चंद माहेश्वरी का कहना है कि विदेशों में भारत के आरोपियों को लोने के लिए प्रत्यर्पण संधि को मजाबूत ब़नाने की जरूरत है। विशेषज्ञ प्रो. एस.के. शर्मा का कहना है कि भारत की व्यवस्था में विदेश नीति व कानून दोनों में ही इतनी खामियां हैं कि मुख्य आरोपी बच निकलने में कामयब हो जाते हैं और भारत केवल लकीर को पीटता नजर आता है। ऐसा एक नहीं अनेक उदाहरण है जिनमें मुख्य आरोपी बचने में कामयब हो गये हैं जिनमें भोपाल गैस त्रासदी का वारेन एंडरसन भी शामिल है। इसलिए भारत की व्यवस्था और कानून में आमूलचूल परिवर्तन करने की नितांत आवश्यकता है। हाल ही में विदेश मंत्री एसएम कृष्णा एक शिष्टमंडल के साथ अमेरिका गये, जहां हेडली को लेकर तो उन्होंने अमेरिका से भारत की, लेकिन शायद भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन के लंबित प्रत्यर्पण मामले को अमेरिका के समक्ष उठाने में वे चूक कर गये।

शायद ही भर पाएं शारीरिक और मानसिक जख्म!
दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक हादसे यानि भोपाल गैस त्रासदी के 25 साल बाद आरोपियों को दो-दो साल की सजा सुना दी गई, लेकिन इस त्रासदी के पीड़ितों के शारीरिक और मानसिक जख्मों को भरने में शायद सदी ही बीत जाए। यही इस देश की व्यवस्था, जहां पुनर्वास और पीड़ितों को सहारा देने के लिए तरह-तरह की परियोजनाएं बनती हैं लेकिन उन्हें लागू की गारंटी कोई लेने को तैयार नहीं है।भोपाल के यूनियन कार्बाइड इंडिया में 2/3 दिसांर 1984 की वह भयावह रात जिसने एक भयावह और मानस जाति को झक झोरकर रख दिया था के पीड़ित 25 साल बाद भी चीख पुकार करते आ रहे हैं। घटना से आ तक कितने दलों की केंद्र व राज्य में सरकार बदलती देखी गई और कितने ही प्रधानमंत्री और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री आए, जिन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के पीडितों के जख्मों पर मरहम लगाने की ब़ात तो की, लेकिन उनके शारीरिक और मानसिक घावों को भरा नहीं जा सका। जैसी भारत की व्यवस्था है उससे ऐसा लगता है कि न लाने पीड़ितों के शारीरिक और मानसिक आघातों से उारने में उन्हें न जाने अभी कितना और वक्त लगेगा। इस घटना में जो लोग मौत का ग्रास बने उन्हें तो छोड़ दें, जो शारीरिक विकलांगों के रूप में लाखों की संख्या में जीवित हैं उनके जख्म आज भी हरे के हरे हैं। उनकी आने वाली संतानों को भी इस त्रासदी के प्रभाव का सामना करना पड़ रहा है, जो अपने ब़च्चों को अस्पतालों में इलाज कराते नहीं थक पा रहे हैं। एक उदाहरण ले लिजिए उसी से अहसास हो जाएगा कि इस त्रासदी के पीड़ितों के शारीरिक व मानसिक जख्म कितने गहरे हैं। भावना अपने छह साल के ब़च्चे को साथ लेकर रोज अस्पताल जाती है। उसे उम्मीद है कि बछा जरूर ठीक हो जाएगा। हादसे के समय भावना ब़च्ची थी, लेकिन शादी के ब़ाद जा ब़च्चा हुआ तो नीला पड़ गया था। कुछ ऐसा ही हाल गैस त्रासदी की विभिषिका झेल चुके कई अन्य परिवारों का भी है। कुछ जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं तो अनेक बच्चे लम्बे इलाज के ब़ाद भी पूरी तरह ठीक नहीं हो पा रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि सरकारों ने गैस पीड़ितों के लिए कुछ नहीं किया। भोपाल में गैस कल्याण संचालनालय ब़नाया गया, गैस राहत के नाम पर दावा अदालते, अस्पताल और अन्य केंद्र स्थापित किये गये, लेकिन सभी राजनीति के शिकार। सासे बड़ी विडम्बना तो यह है कि सरकार आ स्मारक पर करोड़ों खर्च कर रही है जिसका तर्क दिया जा रहा है कि स्मारक प्रेरणा देगा, लेकिन पीड़ितों के दर्द को सुनने की जहमत नहीं उठाई जा रही है। गैसकांड की विभीषिका झेल चुकने के ब़ाद जन्म लेने वाले कई ब़च्चे विकलांगता का दंश झेल रहे हैं। इन्हें ‘स्पेशल चाइल्ड’ कहा जाने लगा, परन्तु जरा सोचिए कि क्या इन्हें आत्मनिभर ब़नाने के लिए कहीं भी किसी भी प्रकार के कोई स्पेशल इंतजाम किये गए? ये ब़च्चे आ सम्मान, स्वाभिमान और सुरक्षापूर्ण जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। एक बार फिर चिंतन की आवश्यकता है कि क्या यूनियन कार्बाइड को स्मारक ब़नाने के लिए 110 करोड़ रूपये खर्च किये जाना जरूरी है या फिर देश और समाज की पहचान माने जाने वाले नि:शक्त बच्चों को आत्मनिरभर ब़नाने के उपाय किये जाना।
क्या भगोड़े एंडरसन को सजा मिलेगी?
भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी यानि यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन को सजा मिल पाएगी। अदालत द्वारा सात दोषियों को सजा सुनाए जाने के बाद यही सवाल खड़ा हो रहा है? अदालत पहले ही एंडरसन को भगोड़ा घोषित कर चुकी है जो गिरफ्तारी के ब़ाद जमानत के ब़ाद अपने निजी विमान से भारत छोड़कर चला गया था और आज तक अदालत के सामने कभी नहीं आया।भोपाल गैस कांड के बाद सात दिसांर 1984 को मध्य प्रदेश पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी किया, परंतु जमानत पर रिहा कर दिया। इसके बाद एंडरसन भारत छोड़ कर जो •भगा , तो कभी वापस नहीं लौटा। अंतत: एक फरवरी, 1992 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया। गैस त्रासदी के दिन यानी तीन दिसांर 1984 को यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर सी में हुए रिसाव से 40 हजार टन प्राणघातक गैस निकली। गैस रिसाव को रोकने के लिए जो छह सुरक्षा उपाय थे, वे हादसे के दौरान बेकार या फिर बंद थे। यहां तक कि किसी दुर्घटना के होने पर बजने वाला सुरक्षा अलार्म भी बंद था। यूनियन कार्बाइड अध्यक्ष एंडरसन 1982 के भोपाल संयंत्र के सुरक्षा आडिट के बारे में जानता था, जिसमें 30 खतरे बताए गए थे। उसने अमेरिका में अपनी कंपनी में इन सुरक्षा उपायों का तो सख्ती से पालन किया, लेकिन भोपाल में नजरअंदाज किया। हादसे के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया, लेकिन ऊपरी पहुंच के कारण वह जमानत पर रिहा हो गया। इसके बाद वह प्राइवेट जेट से अमेरिका भाग गया और फिर कभी भारत नहीं लौटा। भारत और इंटरपोल द्वारा वांटेट होने के बावजूद भारतीय और अमेरिकी अधिकारियों ने उसे पकड़ने में कोई मुस्तैदी नहीं दिखाई, लेकिन अमेरिका का कहना है उसे एंडरसन का कोई अता-पता नहीं है। अमेरिकी निवेश पर असर पड़ने के डर से भारत भी उसके प्रत्यर्पण की ऐसी मांग नहीं की जैसी करनी चाहिए थी। दुनिया सूत्र यह भी बताते हैं कि कुछ साल पहले ही विश्व के एक नामचीन पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस ने एंडरसन को अमेरिका के न्यूयार्क स्थित लांग आइलैंड्स में खोज निकाला था। जहां उसकी भव्य कोठी है और वह अपनी पत्नी के साथ रहता है। इसके अलावा अमेरिका में उसकी और दो कोठियां फ्लोरिडा और कनेक्टिकट में हैं। लेकिन शायद ही आ एंडरसन कभी भारत लौटे और उसे सजा मिलना तो दूर की बात है।

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