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Wednesday, December 21, 2011

स्वामी असीमानंद पर एनआईए की खुलती पोल

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राष्ट्र-चिंतन
विष्णुगुप्त की कलम से
स्वामी असीमानंद और हिन्दू आतंकवाद का हौव्वा खड़ा कर मुस्लिम आतंकवाद पर पर्दा डालने वाली एनआईए और गृहमंत्री पी चिदम्बरम की धीरे-धीरे पोल खुलने लगी है। अब यह साफ होने लगा है कि वोट की राजनीति के तहत कांग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद का प्रत्यारोपण किया है जबकि मुस्लिम आतंकवाद पर उदासीनता की नीति अपना कर देश के अंदर हुए कई आतंकवादी घटनाओं में निर्दोष जिदंगियों को ग्राह्य बनाने में मदद की है। बाटला हाउस के आतंकवादियों के पक्ष में कांग्रेस कैसे खड़ी थी और आतंकवाद का कारखाना उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने कैसे मुस्लिम आतंकवाद की महिमा मंडित की थी और संरक्षण दिया था।

यह भी जगजाहिर है। हिन्दू आतंकवाद का प्रत्यारोपित हौव्वा खड़ा कर मुस्लिम आतंकवाद पर उदासीनता बरतने की नीति देश की सुरक्षा और एकता के लिए घातक है। कश्मीर से शुरू हुआ मुस्लिम आतंकवाद की पाठशाला आज देश के कोन-कोने में स्थापित हो चुका है। बिहार, उत्तर प्रदेश, आध्रप्रदेश,कर्नाटक और तमिलनाडु मुस्लिम आतंकवाद का गढ़ बन चुके हैं। केरल में पापुलर फ्रॅन्ट ऑफ इंडिया (पाएफआइ) नामक एक ऐसा मुस्लिम संगठन है जो राजनीतिक वेश में आतंकवाद का चेहरा है। पीएफआई द्वारा एक प्रोफेसर के दोनों हाथ काटने की घटना को कैसे भुलाया जा सकता है। मुस्लिम आतंकवाद के कई नाम और कई चेहरे हैं। पर सभी का एक ही लक्ष्य भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाना है और इस्लामिक शरीयत लागू कराना है। इसके लिए उनके जेहाद में निर्दोष जिंदगियां शिकार होती हैं, इसमें उन्हें कोई गैर कानूनी या गैर इस्लामिक नहीं लगता है।


स्वामी असीमानंद के एक पत्र ने जो तथ्य सामने रखे हैं उसके निहितार्थ गंभीर हैं। असीमानंद के पत्र से यह जाहिर होता है कि केन्द्रीय गृहमंत्रालय एनआईए का उसी प्रकार से दुरूपयोग कर रही है और पॉकेट सुरक्षा जांच एजेंसी बना छोड़ा है जिस प्रकार से सीबीआई का हथकंडा केन्द्रीय सरकार और केद्रीय गृहमंत्रालय अपने विरोधियों के खिलाफ आजमाती है। इसके अलावा मनावाधिकार का एकांकी प्रश्न भी प्रमुखता से प्रकट होता है। अब यहां सवाल यह उठता है कि स्वामी असीमानंद के पत्र के तथ्य क्या है और उनके पत्र से एनआईए जैसी सभी सुरक्षा एजेंसियों की झूठ और प्रत्यारोपित कहानी किस प्रकार से बेपर्द होती हैं। दरअसल स्वामी असीमानंद ने राष्ट्रपति,गृह सचिव, सुप्रीम कोर्ट, और विभिन्न हाईकोर्ट के प्रमुखों के नाम एक पत्र लिखा है। पत्र में साफतौर पर कहा गया है कि एनआईए की टीम उनके साथ जबरदस्ती और धमकी से झूठ कहलवाया है। स्वामी असीमानंद के अनुसार एनआईए की टीम ने उनका उत्पीड़न किया और लगातार यातनाएं दी गयी।


एनआईए की टीम पहले ब्लैकबोर्ड पर लिखते थे और उन्हें याद कर न्यायालय में बोलने के लिए विवश किया गया। एनआईए ने यह भी धमकी दी थी कि अगर उसके अनुसार तथ्य न्यायालय में नहीं रखे तो उसके परिवार वालों को तबाह कर दिया जायेगा और उनकी मां के सामने ही उसके कपड़े उतार दिये जायेंगे। लगातार यातनाओं की पीड़ा ने स्वामी असीमानंद को एनआईए के हां में हां मिलाने के लिए और हिन्दू आतंकवाद की बात स्वीकारने के लिए मजबूर किया है।


समझौता एक्सप्रेस में हुई बम विस्फोट की घटना में भी असीमानंद कोे फंसाने के लिए एनआईए ने जो तथ्य रखें हैं वे झूठ पर आधारित है। समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट के तुरंत बाद ही पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन ‘लश्कर ए तैयबा‘ ने बम विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी। ‘लश्कर ए तैयबा‘ के तीन आतंकवादियों को गिरफ्तार भी किया गया था। लश्कर ए तैयबा के गिरफ्तार आतंकवादियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था। इन तीनों का नार्को टेस्ट भी हो चुका है। समझौता बम विस्फोट कांड के आतंकवादियों को धन दाउद इब्राहिम ने उपलब्ध कराया था।


जब लश्कर ए तैयबा के आतंकवादियों ने समझौता एक्सप्रेस बम कांड में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली थी तब उस बम विस्फोट कांड में असीमानंद की भूमिका कैसे हो सकती है। एनआईए ने कई जांचों को घाल-मेल करने में लगी रही है। असीमानंद ने अपने पत्र में यह भी कहा है कि एनआईए समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट कांड, मालेगांव बम कांड और अजमेर बम कांड के विभिन्न नमूनों के साथ छेड़छाड़ कर रही है या फिर छेड़छाड़ कर चुकी है। असीमानंद ने यह भी सवाल उठाया है कि उन्होंने जो बातें नहीं की है उसे भी एनआईए की टीम ने लिखकर न्यायालय में रख दिया है।


मालेगांव के आतंकवादियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया है। पर असीमानंद या फिर प्रज्ञा ठाकुर को जमानत क्यों नहीं? मालेगांव के मुस्लिम आतंकवादियों को इसलिए जमानत मिल गयी कि जांच एजेंसियों ने न्यायालय में जमानत का विरोध नहीं किया और मुस्लिम आतंकवादियों की रिहाई पर रजामंदी दिखायी। मालेगांव के मुस्लिम आतंकवादियों ने मालेगांव विस्फोट कांड में अपनी भूमिका स्वीकारी थी। मालेगांव बम विस्फोट कांड में जांच एजेंसियां पहले यह मान चुकी थी कि इस घटना में मुस्लिम आतंकवादियों का हाथ है।

असीमानंद ने कई बार अपनी जमानत की याचिका न्यायालय में दी है पर जांच एजेंसी एनआईए ने हर बार असीमानंद की जमानत का विरोध किया है। यही कारण है कि असीमानंद को जमानत नहीं मिल पा रही है। असीमानंद अगर जमानत पर जेल से बाहर होते तो गुनहगार नहीं होने का सबूत आसानी से दे सकते थे। एनआईए के झूठ का पर्दाफाश कर सकते थे। एनआईए को भी यह मालूम है कि असीमानंद के बाहर होने का अर्थ उनके झूठ से पर्दा हटना होगा। इसीलिए एनआईए की टीम किसी भी स्थिति में असीमानंद को जेल से बाहर नहीं आने देना चाहती है।

असीमानंद ही नहीं बल्कि प्रज्ञा ठाकुर के साथ भी एनआईए और अन्य सुरक्षा जांच एजेंसियां ज्यादतियां ही नहीं कर रही हैं बल्कि जेल से बाहर नहीं आने देने के लिए षडयंत्र भी रच रखी गयी हैं। जिस मालेगांव विस्फोट कांड में प्रज्ञा ठाकुर को गिरफ्तार कर हिन्दू आतंकवाद का वीजारोपण किया गया है उसकी सच्चाई भी अब सामने आने लगी है। प्रज्ञा ठाकुर पर महाराष्ट्र एटीएस ने जो भी अरोप लगाये थे उसकी सच्चाई कोर्ट में प्रमाणित नहीं हो पा रही हैं। महाराष्ट्र एटीएस के सभी दांव अब उल्टे ही साबित हो रहे हैं। न्यायालयों की लगातार टिप्पणियां यह कहती हैं कि महाराष्ट्र एटीएस ही नहीं बल्कि एनआईए हिन्दू आतंकवाद को लेकर खतरनाक खेल खेल रही है। अब सवाल यह उठता है कि प्रज्ञा ठाकुर को जमानत क्यों नहीं मिल रही है। दरअसल प्रज्ञा ठाकुर पर ‘मकोका‘ लगा हुआ है।


मकोका के कारण ही प्रज्ञा ठाकुर को जमानत नहीं मिल रही है। मकोका कानून हटने से प्रज्ञा ठाकुर को जमानत मिल सकती थी। महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार है। जब कांग्रेस-एनसीपी की सरकार ने खुद प्रज्ञा ठाकुर को गिरफ्तार करा कर हिन्दू आतंकवाद का हौव्वा खड़ा किया है तब कांग्रेस-एनसीपी सरकार प्रज्ञा ठाकुर पर से मोकाका हटायेगी? यह उम्मीद हो ही नहीं सकती है।


एनआईए हो या सीबीआई या फिर अन्य कोई सुरक्षा जांच एजेंसियां, ये सभी सरकार के इशारे पर ही चलती हैं और सत्ता के एजेंडे को आगे बढ़ाती हैं। केन्द्र की कांग्रेस सरकार का मुख्य एजेंडा तुष्टिकरण की नीति है और तुष्टिकरण की नीति के तहत मुस्लिम आबादी का वोट हासिल करना। मुबंई हमले के तुरंत बाद कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति चली थी और उसका लाभ भी कांग्रेस को पिछले लोकसभा चुनाव में मिला था। कांग्रेस आखिर हिन्दू संवर्ग को इतना आसान शिकार क्यों समझती है। वास्तव में कांग्रेस को मालूम है कि हिन्दू आतंकवाद का प्रत्यारोपित हौव्वा खड़ा करने के बाद भी हिन्दुओं का मत उसे चुनावों में मिलता रहेगा और मुस्लिम आबादी की एकजुटता उसके पक्ष में होगी।


अगर हिन्दू संवर्ग की एकता होती तो कांग्रेस क्या कोई भी राजनीतिक दल हिन्दुओं को आतंकवादी ठहराने की हिम्मत नहीं कर सकता था। असीमानंद या प्रज्ञा ठाकुर का उनका हिन्दू होना ही गुनाह है जिसकी सजा वे भुगत रहे हैं।

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