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Thursday, December 1, 2011

स्‍वामी चिन्‍मयानंद बलात्‍कार, गर्भपात के लिए दबाव डालने और हत्‍या का प्रयास का केस दर्ज

 
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लखनऊ. पूर्व केंद्रीय गृह राज्‍य मंत्री स्‍वामी चिन्‍मयानंद पर बलात्‍कार, गर्भपात के लिए दबाव डालने और हत्‍या का प्रयास करने के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ है। उत्‍तर प्रदेश पुलिस ने एक लड़की की शिकायत के आधार पर यह केस दर्ज किया है। लड़की बदायूं में रहती है। इससे पहले वह शाहजहांपुर में स्थित स्‍वामी के आश्रम में कई साल तक रह चुकी है।


अपर महानिदेशक (अपराध) सुबेश कुमार सिंह ने बताया कि केस दर्ज कर आरोपों की जांच की जा रही है। चिन्‍मयानंद ने आरोपों से इनकार किया है और इसे राजनीतिक साजिश बताया है।

सूत्र बताते हैं कि शिकायत करने वाली लड़की दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय की छात्रा रही चुकी है। उसने शाहजहांपुर के पुलिस अधीक्षक को एक विस्‍तृत चिट्ठी लिख कर चिन्‍मनयानंद के खिलाफ शिकायत भेजी थी। इसमें उन पर हमला करने, बलात्‍कार करने और जान से मारने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया है।

चिट्ठी मिलने के बाद लड़की को शुरुआती जांच के लिए वरिष्‍ठ अधिकारियों के सामने पेश होने के लिए कहा गया। लड़की बुधवार को खुद अफसरों के सामने आई। इसके बाद केस दर्ज कर लिया गया।

सूत्र बताते हैं कि लड़की का कहना है कि जब वह चिन्‍मयानंद के मुमुख आश्रम में रहती थी, तब उसके साथ बलात्‍कार किया गया था। बाद में वह किसी तरह वहां से भाग गई। उसका यह भी कहना है कि जब उसने पुलिस में शिकायत की बात की तो चिन्‍मयानंद ने उसे कथित तौर पर जान से मारने की कोशिश की।

 
 
एक स्वामी की सेक्स-गाथा

विप्लव
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यूपी में चुनाव सामने है और  अगर सच है तो इसे एक और धर्म गुरु की सेक्स गाथा का भंडाफोड़ माना जाए. या कोई साजिश अथवा  किसी साध्वी का बदला .. मगर जो सच सामने आया है उससे भाजपा के लिए तो राजनीतिक सदमे जैसे हालात है. पूर्व केंद्रीय गृह राज्‍य मंत्री स्‍वामी चिन्‍मयानंद बलात्‍कार, गर्भपात के लिए दबाव डालने और हत्‍या का प्रयास करने जैसे इल्जामों से घिर गए हैं और प्रतिक्रिया के लिए भी उपलब्ध नही है. एकतरफा आरोप के तहत आरोप में तत्काल कार्रवाई करते हुए उत्‍तर प्रदेश पुलिस ने मामला  दर्ज कर लिया है. अपर महानिदेशक (अपराध) सुबेश कुमार सिंह के मुताबिक़ पीड़ित साध्वी चिन्‍मयानंद के मुमुख आश्रम  (परमार्थ आश्रम हरिद्वार ) में रहती थी, उसने शाहजहांपुर के पुलिस अधीक्षक को एक विस्‍तृत चिट्ठी लिख कर चिन्‍मनयानंद के खिलाफ शिकायत भेजी थी। इसमें उन पर हमला करने, बलात्‍कार करने और जान से मारने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया है.


हिंदुत्व के मुद्दे प्र कट्टर माने जाने वाले स्वामी चिन्मयानंद बीजेपी के टिकट पर उत्‍तर प्रदेश के जौनपुर से सांसद चुने गए थे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उनको केंद्रीय गृह राज्यमंत्री भी बनाया गया था.उनके आश्रम की साध्वी ने आश्रम छोड़ने के बाद एक पत्रकार  से शादी भी कर ली थी. बुधवार को पीइता ने शाहजहांपुर पहुंचकर तहरीर दी, जिस पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है.दरअसल यह कहानी साध्वी चिदर्पिता उर्फ़  दक्षिण दिल्ली की मूल निवासी कोमल गुप्ता की  है. हाल में शादी के बाद वह चिदर्पिता गौतम हो गई है. हाल में साध्वी ने २२ अप्रेल को अपने ब्लॉग में लिखा-  मेरा सफर- दस-बारह वर्ष की आयु से ही जाने क्या था जो अपनी ओर खींचता था। जिंदगी से कोई विरक्ति नहीं थी, बल्कि बहुत-बहुत प्यार था। सिर्फ अपनी ही नहीं, सबकी जिंदगी से। यहाँ तक कि पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की भी। ईश्वर की कृपा ही नज़र आती है हर जीवन में मुझे।

इस प्रसन्नता के बावज़ूद संतुष्टि नहीं थी। हमेशा लगता कि बहुत सा काम अधूरा पड़ा है। वह काम क्या है, ये पता नहीं था। उम्र बढ़ने के साथ ये उत्कंठा बढ़ती गयी और कम हुई जब अपने गुरूजी परमपूज्य श्री स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती जी की शरण में आयी। उन्होंने कोई आदेश, कोई निर्देश नहीं दिया, बस सिर पर हाथ रख दिया। कुछ महीनों में लगने लगा कि दीक्षा ही मेरा जीवन है। ईश्वर ने मुझे जो भी दिया है, वह इसमें होम करके सुगंधि फ़ैलाने के लिए ही दिया है। मैंने गुरूजी से अपनी यह इच्छा प्रकट की। उस समय उम्र बीस साल और शिक्षा स्नातक तक की हुई थी। बाबाजी (मैं अपने गुरूजी को बाबाजी बुलाती हूँ) ने कहा अभी आगे पढ़ाई करो। उस समय एक और महात्मा पास बैठे थे।

उन्होंने कहा, " अब आगे पढ़ कर कौन सा नौकरी करनी है, धर्म-ग्रंथों का अध्ययन कराइए।" बाबाजी ने तुरंत ऐतराज़ जताते हुए कहा,"धर्म-ग्रंथों का अध्ययन इसके साथ भी हो सकता है। बुद्धि का जितना उपयोग किया जाये बढ़ती है।" उनके आशीर्वाद से लॉ, एम०ए० (इंग्लिश) और फिर एम०एड० किया। उनके उस एक निर्णय ने जीवन को मेरी आँखों के सामने खोलकर रख दिया। मैंने भारत की कानून व्यवस्था को जाना, अंग्रेज़ी की उत्तम कृतियों को पढ़ा तथा एम०एड० करते हुए अनेकानेक विचारकों के विचारों का अध्ययन भी किया। इसके साथ ही गीता एवं भागवत पर टीकायें, रामायण, विवेकानंद, अरविन्द, परमहंस जी आदि का स्वाध्याय भी चलता रहा। उनके उस निर्णय का एक लाभ ये भी हुआ कि किसी को भी मेरा निर्णय जोश में लिया गया निर्णय नहीं लगा और ईश्वर कृपा से मुझे भी कभी एक क्षण को अपने निर्णय पर खेद नहीं हुआ। मेरे विद्यार्थी जीवन में बाबाजी मुझे अचानक कभी भी किसी भी मंच पर बोलने को खड़ा कर देते। वे एक बार कहते कि जाओ तुम कर लोगी और मुझमें जाने कहाँ से सामर्थ्य आ जाता। गर्व से कह सकती हूँ कि उन्होंने मुझे अपनी शक्ति से सिंचित कर पाला है। आज अगर किसी को मुझमें प्रकाश की कोई किरण दिखती है तो वह उस सूर्य से प्राप्त है।

इसके बाद साध्वी ने 30  अक्तूबर 2011 को फिर लिखा - वह लगभग चौदह-पन्द्रह वर्ष का लड़का था.....नाम था संजय...आश्रम में सफाई और इधर-उधर के छोटे-मोटे काम करता...तवे सा काला रंग, फटी पैंट, बड़े-बड़े दाँत, मैली टीशर्ट और हमेशा चेहरे पर रहने वाली हँसी उसकी पहचान थी....उसके दिन भर हँसते रहने से आश्रम आने वाले यात्री परेशान होते और इसी से वह सबकी डांट खाता...एक दिन उसे किसी ने इसी बात पर थप्पड़ मार दिया और वह रोता हुआ मेरे पास आया...मैंने उसे चुप कराते हुए कहा कि तुम सफाई से रहने की आदत डालो और मुझसे रसोई का काम सीखो....मेरे जाने के बाद स्वामीजी की सेवा करना...यहाँ तुम्हे कोई कुछ नहीं कहेगा...मैं लगभग दो महीना हरिद्वार रहती ही थी...उसी दौरान मैंने उसे सब काम समझा दिया और उसने भी निष्ठा से सीखा...उसे ज़िम्मेदारी सौंपकर मैं वापस शाहजहाँपुर आ गयी....लगभग आठ महीने बाद दोबारा हरिद्वार जाना हुआ...वहाँ पहुँच कर देखा तो पुराना संजय पहचान में ही नहीं आया....कान में बाली, गले में सोने की चेन, ऊँगली में अंगूठी, कलाई में घड़ी, नोकिया के तीन-तीन महंगे सेट, दस से ज्यादा जोड़ी चप्पल-जूते, और अनगिनत ब्रांडेड कपड़े....मैं हैरान रह गयी...स्वामीजी के साथ ऐसे लोग भी थे जो दस साल की उम्र में आये और आज दस साल के बच्चे के पिता हैं...

मैंने कभी भी स्वामीजी को उनके प्रति इतना उदार नहीं देखा....वेतन के अलावा सामने होते तो पर्वों पर सौ-दो सौ दे देते...इसके अलावा उनके द्वारा इस्तेमाल की हुई वस्तुओं पर ही कर्मचारियों की दृष्टि होती थी और वे उन्हें पाकर प्रसन्न भी होते थे....नया खरीद कर देना तो काफी नयी घटना थी मेरे लिये...दो दिन बाद संजय को स्वामीजी के आसन पर सोते देखा...क्रोधित हो मैंने उसे डांटा तो वह खड़ा हो गया और बोला, दीदी स्वामीजी ने ही कहा था कि यहाँ सो जाया करो...यह एक और नयी बात थी...मुझे विश्वास नहीं हुआ...मैंने स्वामीजी से पूछा तो उन्होंने माना...अपनी उस समय की स्तिथि को मैं शब्दों में नहीं बता सकती....जो आश्रम से जुड़े हैं वह समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी बात थी....मेरे वहाँ न रहने पर वह सोफे पर बैठता और कर्मचारियों को घंटी बजाकर बुलाता...ऐसा स्वामीजी के अलावा और कोई नहीं करता था...पहली बार में जो देखा उससे स्तब्ध थी...धीरे-धीरे आगे और बातें सामने आती गयीं और हैरानी की जगह गुस्से ने ले ली... जो हो रहा था वह ठीक नहीं था...स्वामीजी से क्या कहती और निर्लीप्त रह नहीं पा रही थी...बस गंगा जी से मानसिक शांति की गुहार लगाती....जाने क्यों तब तक मुझे यही लगता रहा कि स्वामीजी यह सब जानते नहीं हैं या फिर फुर्सत न होने के कारण जानना ही नहीं चाहते....वह वहाँ लगभग चार साल रहा...इस बीच बहुत कुछ हुआ...पूरे आश्रम में कोई नहीं था जो उसे कुछ कह पाता.. जिस किसी ने कभी कुछ कहा तो स्वामीजी ने कहने वाले को सबके सामने मारा...किसी से झगड़ा होने पर वह स्वामीजी के मोबाईल पर फोन करता और स्वामीजी जहाँ होते वहीँ से उसका पक्ष लेते....स्वामीजी की अनुपस्थिति में भी उनके निवास की चाबी उसके पास रहती और वह उसी में रहता...उनके आसन पर बैठकर टीवी देखता, वहीँ सोता...वहीँ खाता....यह इसलिए भी अनुचित था कि स्वामीजी का निवास आश्रम की मर्यादा का हिस्सा था..

.भक्तों के लिये वह मंदिर ही था....इसके अलावा नीचे भण्डार चलता था और सभी आश्रम वासी उसी में खाते थे.....मर्यादा की तो यहाँ क्या बात करूँ....उसके कमरे में टीवी और म्युज़िक सिस्टम था...जिसे वह अपने गाँव जाने के पहले बेच देता और वापस आने पर नया खरीदता....जब भी गाँव जाता स्वामीजी उसे मुँह माँगा पैसा देते....कभी दस हज़ार कभी बीस हज़ार...डेढ़ हज़ार वेतन पाने वाले कर्मचारी के हिसाब से यह बहुत अधिक था और उसके घर में ऐसी कोई आपदा भी नहीं थी कि उसे इतना पैसा सहायता के तौर पर दिया जाता हो...मुझे यह इसलिए पता था कि उसके गाँव के और भी लोग वहाँ काम करते थे.....पैसे के अलावा लगभग हर बार वह एक फोन भी घर पर देकर आता....उसके और उसके घर के इन सभी मोबाईल का खर्च स्वामीजी ही उठाते थे...इस बीच उसे शराब की लत भी लग चुकी थी...वह चोरी से अलमारी से शराब निकालता और आश्रम के अपने खास मित्रों को उपर बुलाकर उनके साथ पीता...इसके अलावा उसे जो लत थीं उनका यहाँ किन शब्दों में उल्लेख करूँ समझ नहीं पा रही हूँ...मैंने स्वामीजी से ससंकोच इशारे में चर्चा की तो वे टाल गये...वह आश्रम में रहने वाले सन्यासियों तक से अभद्रता करता....मैं परेशान थी कि जो हो रहा है वह बाबा को दिख क्यों नहीं रहा....धीरे-धीरे एक के बाद एक बातें खुलती गयीं और स्तिथि साफ़ हो गयी...वह सब मेरे लिये ही नया था वरना वह और स्वामीजी दोनों ही आश्रम में चर्चा का विषय बन चुके थे...लोग चिरौरी करते कि आप यहीं रहिये...यह आप ही का लिहाज करता है....

स्वामीजी तो इसे कुछ कहते नहीं....न मेरे लिये संभव था उस गन्दगी को बर्दाश्त करना और न स्वामीजी ही चाहते थे कि मैं हरिद्वार में रह कर उनकी निजी जिंदगी में दखल दूँ....यह सब ऐसे ही चलता रहा...अचानक चार साल बाद कुछ हुआ...स्वामीजी ने उसे कमरे में बुलाया...दस मिनट बाद वह कमरे से निकला और अपना सामान लेकर आश्रम से चला गया...उसके कुछ दिन बाद स्वामीजी को शायद कुछ पता चला और उन्होंने अपने ड्राइवर को भेज कर उसे दोबारा बुलवाया...उसके आते ही कमरा अंदर से बंद हो गया....आखिरी बार फिर बंद कमरे में स्वामीजी की और संजय की कुछ बात हुई और तब से आज तक संजय की कोई खबर नहीं...वह ऐसे गया जैसे कभी था ही नहीं...क्या हुआ मुझे पता नहीं...उसे क्यों निकाला मुझे पता नहीं...सफाई करने वाले लड़के से भारत के पूर्व गृह राज्यमंत्री और इतने बड़े आश्रम के अध्यक्ष को कमरा सील करके चर्चा क्यों करनी पड़ी, मुझे पता नहीं....यह रहस्य वह अपने साथ ही ले गया...उसके जाने के बाद मेरा क्रोध शांत हो गया और मैं उसकी सारी गलतियाँ भूल गयी...याद रह गया तो केवल उसका वही हँसता हुआ चेहरा...उसका दौडकर आकर पाँव छूना और बच्चे सा ठुनकना....उसका भोलापन इस हश्र का अधिकारी नहीं था...अपनी आँखों को पोंछते हुए खुद से ही वादा करती हूँ कि वह कभी मिला तो उसकी जिंदगी को वापस पटरी पर लाने का ईमानदार प्रयास करुँगी.....यह बहुत आवश्यक इसलिए है कि आजकल स्वामीजी के पास रहने वाले लड़के शत्रुघ्न के लिये भी लोग यही कहते हैं कि यह भी संजय बन गया है...संजय का नाम ही मानो गाली हो गया है....अब कोई तीसरा लड़का संजय न बने ऐसी प्रार्थना और प्रयास है......


और अब साध्वी चिदर्पिता गौतम की शिकायत कहती है-  2010 में उनको श्री शंकर मुमुक्षु विद्यापीठ का प्रधानाचार्य बनाया गया था मगर वह 2001 में स्वामी के संपर्क में आई. 2005 में साथियों के साथ बंदूक के बल पर दिल्ली से शाहजहांपुर ले आए। यहां लाकर उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया गया। वह सशस्त्र लोगों की निगरानी में एक कमरे में कैद रहती थीं। एक दिन शराब के नशे में धुत होकर स्वामी जी उसके साथ बलात्कार किया। साध्वी का आरोप है कि स्वामी ने उसकी वीडियो फिल्म भी बनाई है. एक न्यूज पोर्टल के मुताबिक़ साध्वी बदायूं जनपद की बिल्सी सीट से चुनाव लड़ने का मन बना चुकी थी ।जिसका विरोध उनके गुरू स्वामी चिन्म्यानंद कर रहे थे,  साध्वी ने बिल्सी विधान सभा क्षेत्र में हजारों पोस्टर व होर्डिग्स जन्माष्टमी की शुभकामनाओं के साथ लगवाये थे।

स्वामी से इसी बात का पंगा हुआ. साध्वी आश्रम द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं में पदाधिकारी होने के साथ - साथ अनेक सामाजिक, सांस्कृृतिक व साहित्यक संस्थाओं से जुड़ी थीं तथा नगर में अनेक आयोजनों में मुख्य अतिथि के रूप में भी भाग लेती थीं। इससे एक ओर जहां आश्रम की शान बढ़ी हुई थी वहीं साध्वी का नाम भी दिनों दिन चमक रहा था, लेकिन एक दिन साध्वी के गायब होने की चर्चा पूरे जनपद में फ़ैल गयी. साध्वी के विरोधियों का कहना है कल तक जिस साध्वी द्वारा अपने ऐसे गुरु को पुजते हुए ‘गर्व’ का अनुभव होता हो अनायास ही उसे  आरोपी  साबित कर दिया जाना बहुत लोगों की समझ से परे है. ताजा मामले  में एसपी रमित शर्मा ने स्वामी चिन्मयानंद समेत अन्य लोगों के खिलाफ चौक कोतवाली में एफआइआर दर्ज किए जाने की पुष्टि की.स्वामी चिन्मयानंद और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ बंधक बनाकर रखने, गले में फंदा लगाकर मारने का प्रयास करने, बलात्कार के बाद जबरन गर्भपात कराने और मारपीट करने की एफआइआर दर्ज है.


 3 मार्च  १९४७ को रमईपुर त्योरासी -गोंडा  जन्मे ,अविवाहित, उपनिषद्  सार ’ गीता  बोध ’ भक्ति  वैभव  परमार्थ  पथ  अप्प  दीपो  भव  अँधेरे  में  भटकती  आत्मा  जैसी पुस्तकों के रचियता चिन्मयानद  के लिए आगे की राह बहुत मुश्किल नजर आती है. हाल में तहलका ने भी स्वामी को लेकर एक खबर दी कि  इतने बड़े अध्यात्मिक  गुरू को महिलाओं से तेल लगवाने में कोई संकोच नहीं है. तेल लगवाते समय ही महंगी शराब भी पीते हैं और दिन भर के लिए मस्त हो जाते हैं. ऐसा व्यक्ति जब इरादे से कुछ गलत करता होगा, तो मानवता तो आसपास भी नहीं रहती होगी। एक दिन ऐसा है, तो साल के तीन सौ पैंसठ दिन कैसे होते होंगे?

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