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Monday, January 30, 2012

वक्त आँकलन करने का


                डॉ. शशि तिवारी
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बीते 62 वर्षें पर बुद्धिजीवियों को, राजनेताओं को चिंतन करना होगा क्या खोया और क्या पाया। आखिर भागम-भाग में कहीं इतनी भी देर न हो जाए कि वापस अपनी अमूल्य धरोहर, नैतिकता, राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रबोध पर न लोैट सके! बहुत हुए भाषण, बहुत हुआ राजनीति पार्टियों की ढींगा मस्ती, बहुत हुआ आपसी मन-भेद, मत-भेद, कम से कम ये न तो देश के लिए शुभ संकेत है और न ही जनता की भलाई एवं प्रगति के लिए। पिछले एक वर्ष से देश कुछ ऐसी ही समस्याओं से जूझता नजर आ रहा है, लगता ही नहीं है कि देश में चिंतन है, सरकार है! जिसे भी देखिए, जिधर भी देखिए सभी अपने-अपने तमाशे में व्यस्त है। देश में एक ठहराव सा आ गया है। आदमी, समाज और वर्गों के बीच दिन-प्रतिदिन खाई गहरी ही होती जा रही है। गरीब और गरीब एवं नव घनाढ्यों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। 

राजनीति के क्षेत्र मे तो इसने सारे पूर्व के रिकार्ड ही ध्वस्त कर दिये है! चंद वर्षों में ही चाहे वह पार्षद, पंच, सरपंच, विधायक हो, सांसद हो या मंत्री हो करोड़ों-अरबों के मालिक बन बैठे है। इसमें भी चमत्कार इस बात का है कि बहुतेरे तो कुछ धन्धा करते ही नही लेकिन आय निरंतर सुरसा के बदन की तरह बढ़ती ही जा रही है। आज नेतागिरी ऐसा धन्धा बन गई है कि प्रत्येक नेता अपने बच्चों को अच्छा पढ़ाने-लिखाने के बाद भी इसी धन्धे में उतरवा रहे है। आखिर इससे अधिक मुनाफे का धन्धा और हो भी क्या सकता है जिसमें जनता के पैसे के खजाने से लूट की छूट, भ्रष्टाचार और अपने को नियमों से परे रखने की अधोघोषित छूट जो मिल जाती है, साथ ही अधिकारियों एवं जनता पर रोैब गांठने का अधिकार मिलता सो अलग। फिर इस धन्धे में मेहनत भी कोई खास नहीं है सिर्फ आपको अधिकाधिक जहर जाति, धर्म, भाषावाद, क्षेत्रवाद, अपराधवाद, आरक्षणवाद, को ही बढावा दे जनता को आश्वसानों की ही घुट्टी जो पिलाना होती है, बढ़ावा देना होता है फिर बात चाहे संसद में, विधानसभाओं, विधान मंडल में अच्छे बिल की हो या चुनाव की हो।

 कभी भी किसी राजनेता ने बेरोजगारी, भाषावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, भ्रष्टाचार के विरूद्ध ईमानदारी से संकल्प से प्रयास ही नहीं किया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, नागरिकों की सुरक्षा को ले कोई भी राजनीतिक दल गंभीर नहीं है। सभी राजनीतिक दलों की गंभीरता एवं एकता केवल एक ही मुद्दे पर देखने को मिलती है जब बात वेतनभत्तों की आती है तब एक दूसरे के घुर विरोधियों को भी सांप संूघ जाता है, थोडी भी शर्म हया भी इन्हें नहीं आती कि 32 रूपया प्रतिदिन में गुजारा करने वाली नंगी-भूखी अधिकांश जनता के पैसों पर यह किस तरह डाका डालते है? कैसे और अधिक अपने सुख-सुविधाओं की मांग करते है? क्या वाकई में ये जनप्रतिनिधि अंग्रेजों से भी ज्यादा संवेदनहीन हो गए है? क्या यही जनप्रतिनिधि का दायित्व है? क्या यही नैतिक चरित्र है? क्या यह संविधान की आड़ में दुरूपयोग नहीं है? आखिर क्या बात है इन 62 वर्षों में जातिवाद और आरक्षण घटने की जगह बढा ही है? रातोंरात अमीर बनते नेताओं के घर छापे क्यों नहीं पड़ते? निःसंदेह अफसरों की मक्कारी, नेताओं के संरक्षण के गठबंधन का खामियाजा महंगाई, भ्रष्टाचार के रूप में निरीह जनता को झेलना पड़ता है।

 हकीकत में देखा जाए तो आज इतने अधिनियम, नियम नित प्रतिदिन नए-नए बनते जा रहे है कि इन्हें लागू करने के लिए भी कही एक अधिनियम न बनाना पड़़ जाए। ऐसा भी नहीं है कि इन सभी कृत्यों एवं कर्मों के लिए केवल नेता-अफसर ही दोषी हो जनता उनसे भी बड़ी दोषी है कि वह अपना विरोधी स्वर तीव्र ही नही करती है? यूं ही आपस में एक दूसरे पर भड़ास निकाल शांत हो जाती है। जनता क्यों नही अपना नागरिक बोध जगाती? क्यों नही वोट देने को अनिवार्य बनाती? क्यों नही राईट टू रिजेक्ट, राईट टू रिकाल का जन अभियान, जन आंदोलन अपने-अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के माध्यम से चलाती ओैर जो पार्टी या नेता साथ न दे तो उन्हें क्यों नही वोट के हथियार के संवैधानिक माध्यम से घर पर बिठाती?

 ‘‘हकीकत में नेता की मजबूरी है जनता, जनता नेता की नहीं’’ इस सूत्र वाक्य को शिद्दता से समझना होगा फिर देखिए परिस्थिति बदलते भी देर नही लगेगी। फिर ये नेता अगड़ा-पिछड़ा, आरक्षण, जाति को आधार चुनाव में नही बनायेंगे। यदि फिर भी बनाते है तो जनता को चुनाव आयोग में बड़ी संख्या में आवेदन दे शिकायत दर्ज अवश्य करावें। ऐसों को चुनाव लड़ने से भी वंचित करवाया जाए। हम सभी भली भांति से जानते है कि नेता धर्म, जाति, समुदाय के आधार पर वोट नहीं मांग सकता। यहां कमी है तो सिर्फ ‘‘नागरिक बोध’’ की समस्या का समाधान डट कर मुकाबला करने से ही होगा न कि समस्या से भाग खड़े होने से। आखिर मर्जी है नागरिकों की आप कैसे देश के निर्माण की कल्पना करते है, आप कैसे लोगों को चुन देश चलाने के लिए भेजना चाहते है।

 मो. 09425677352


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