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Thursday, February 16, 2012

टूटती मर्यादा गिरता चरित्र - डॉ. शशि तिवारी


               डॉ. शशि तिवारी
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आदमी के विचार ही उसकी आदत बनती है और आदत चरित्र का निर्माण करती है, चरित्र का आईना चेहरा होता है, कहते भी है कि चेहरा झूठ नहीं बोलता। चेहरे के हाव-भाव से ही उसकी चाल पर भी प्रभाव पड़ता है, अर्थात् चाल बदल जाती है। यदि चरित्र, चेहरा और चाल में तारतम्य एवं सामंजस्य हो तब व्यक्तित्व का निर्माण होता है, इनमें से किसी एक के भी असंतुलन की स्थिति में चरित्र, चेहरा कुरूप हो चाल में विरूपणता आ जाती है। सारा का सारा खेल ‘‘मन’’ से ही संचालित होता है, चूंकि मन अदृश्य एवं तरल होता है इसलिए पल-पल बदलता रहता है। मन ही वो अस्त्र है जो दिल को अच्छे या बुरे के लिए उकसाता है फिर आप लाख कहे कि ‘‘दिल है कि मानता नहीं’’ वो एक नहीं सुनता फिर वो सब कुछ होता है जो नहीं होना चाहिए।

सार्वजनिक जीवन जीने वालों का जीवन किसी तलवार की धार पर चलने ही जैसा होता है एक ही पल में चरित्र चेहरा पर कालिख पुतते भी देर नहीं लगती। ऐसे लोगों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि निजता घर की चौखट के भीतर ही होती है बाहर नहीं। हकीकत में शील और अश्लील के बीच एक झीना सा ही पर्दा है, जिसके हटते ही सब अश्लील हो जाता है। ऐसी ही कुछ घटना कर्नाटक विधानसभा में भारत के इतिहास में संभवतः पहली बार घटित हुई होगी जिसमें तीन प्रतिष्ठित एवं जिम्मेदार मंत्री अश्लील वीडियो क्लिपिंग देखते धरे गए। लक्ष्मण सवदी सहकारिता मंत्री, सी.सी.पाटिल महिला एवं बाल विकास मंत्री जिस अश्लील विडियों क्लिपिंग देखने में मग्न थे उस वक्त सदन में एक संवेदनशील मुद्दा जिसमें एक हिन्दुवादी संगठन के बागलकोट जिले में सिंदगी तालुक आफिस पर एक जनवरी को पाकिस्तानी झण्डा फहराने की घटना पर गंभीर बहस चल रही थी। हकीकत में देखा जाए तो असली गुनाहगार तो बंदरगाह मंत्री कृष्णा पालेमर थे जिनका ये मोबाइल था जिस पर अश्लील विडियो क्लिपिंग लोड थी।

                जैसा कि होता है पहले हर अपराधी अपने को निर्दोष और सामने वाले को ही दोषी मानता है की तर्ज पर पहले तो उडुपी के पास सेंट मेरीस द्वीप पर हुई रेव पार्टी का बहाना बनाया जिसमें एक युवती के साथ गेंगरेप की घटना हुई को देख रहे थे, ऊपर से सीना जोरी ये कि हमने कोई गलती नहीं की? फिर इस्तीफा क्यों? हो सकता है कि उनका ये तर्क झेंप मिटाने के लिए ठीक हो सकता है लेकिन कैमरे की नजरों ने जो देखा, चैनल पर जो दिखाया उसका क्या? जब ये तीनों गलत नहीं थे तो फिर लज्जित हो इस्तीफा क्यों दिया? हो सकता है कि ये तीनों कानून की कमियों के चलते देर-सबेर बच भी जाए लेकिन हाल-फिलहाल इज्जत गई उसका क्या? परिवार, समाज, बहन-बेटी के नजरों में गिरे सो अलग? ये तो वक्त ही बतायेगा कि भाजपा आलाकमान ने तीनों का इस्तीफा ले त्वरित कार्यवाही की या त्वरित मिट््टी डाल प्रकरण को ठण्डे बस्ते में भेज दिया?          

हकीकत में देखा जाए तो आज कोई भी राजनीतिक पार्टी सेक्स स्केण्डल के दाग से बेदाग नहीं है। हर एक राजनीतिक पार्टी में ऐसे कुलक्षण लोग मौजूद है अन्तर सिर्फ इतना है कि कुछ लोगों के नाम उनकी बेवकूफी या अति चतुराई की वजह से उजागर हो गए है तो कुछ ढंके-दबे चल रहे है। राजनीतिक पार्टियां ऐसे मुद्दों को ले एक दूसरे पर भरपूर कीचड़ उछाल फुल नौटंकी करने से भी बाज


नहीं आती। यदि कुछ लोग कुकर्मी, बदचलन, मर्यादाहीन है तो फिर ये पार्टी की शोभा कैसे बढ़ा रहे हैं? ऐसे लोगों का स्थान क्या पार्टी या समाज में होना चाहिए? या जेल में? मेरे मत में ऐसे लोग उतने दोषी नहीं है जितनी की राजनीतिक पार्टियां जो इन्हें पाल-पोस रही है?      

राजनीतिक पार्टियों को मिल गंभीरता से सोचना होगा? सब कुछ चलता है कि आदत को छोड़ना होगा, नहीं तो वह समय दूर नहीं जब जनता ही ऐसी राजनीतिक पार्टियों को ‘‘चरित्रहीन पार्टी’’ के नाम से पुकारे? हो सकता है जनता को ही भ्रष्टाचार के साथ-साथ कुकर्मियों, नैतिक एवं चारित्रिक पतन के विरूद्ध भी एक जन अभियान की क्रांति की पहल करना पड़े?      भारत और भारत के संविधान का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा जिसमें बलात्कारी, सेक्स मेनिया से पीड़ित, लूट, डकैती, अपहरण, अवैध कारोबार में संलिप्त लोग ‘‘माननीय’’ बने। ऐसी संकट की घड़ी में निःसन्देह अच्छे लोगों को आगे आ संविधान में आवश्यक संशोधनों को कराना होगा जिससे देश और संविधान की ‘‘लज्जा’’ बच सकें।


(लेखिका ‘‘सूचना मंत्र’’ पत्रिका की संपादक हैं)

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