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Monday, February 6, 2012

जिला अस्पताल में हो रही धांधली


ब्यूरो प्रमुख // पी.वेंकट रत्नाकर (कटनी // टाइम्स ऑफ क्राइम)
ब्यूरो प्रमुख से संपर्क: 99934 54490
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कटनी . जिला अस्पताल में डॉ. एवं कर्मचारियों पर आये दिन आरोप लगते रहते है और सच्चाई अखबार के माध्यम से सभी बड़े अधिकारी एवं शासन के सामने आती रहती है फिर भी सभी बड़े अधिकारी मौन बन कर तमाशा देखते हैं पर बोलने की हिम्मत जैसे किसी में नहीं है। ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है 01/02/12 को दोपहर 2 बजे के आसपास की है। जिस दिन केमोर में सरदारों एवं मुसलमानों दो समाजिक गुट भिड़ गये थे। उस दिन राकेश सेठी घायल अवस्था में कैमोर से कटनी जिला अस्पताल लाये गये इलाज के लिये उन्हैं कैमोर के डॉं. ने अपना एक्सरा करवाने के लिए जिला अस्पताल रिफर किया था। जब राकेश सेठी अस्पताल पहुंचे तब तक 2 बज चुके थे जिस कारण एक्सरा विभाग बंद हो चूका था। तब राकेश सेठी के साथी संजय ने एक्सरा करने के बोला तो कह दिया गया की एक्सरा अब नहीं हो सकता क्योंकि 1 बजे के बाद एक्सरा होना बंद हो जाता है  


एक्सरा विभाग में ली गई रकम  


राकेश सेठी कैमोर से आये थे और घायल थे उन्हें लौटना भी था एक्सरा विभाग में बैठे एक्सरा एक्पर्ट अभिषेक सिंह ने कहा अगर एक्सरा करना हैै तो ज्यादा रकम देनी पड़ेगी क्योंकि यह बड़े अधिकारियों का कहना है और एक्सरा की रिपोर्ट कल मिल जायेगी है सो राकेश सेठी को जितना एक्सरा का लगता है उसके उपर तीन गुना रकम ज्यादा देना पड़ा  और एक समय होने के बाद ऊपरी कमाते हैं        कर्मचारी जिला अस्पताल में बैठे डॉ. एवं कर्मचारियों की डूयूटी शायद 1 बजे तक ही रहती है। उसके बाद अगर कोई मरीज आता है तो उसे समय का हवाला देकर उसे भगा दिया जाता है और अगर कोई पहचान का हुआ या फिर कोई मरीज अधिक रकम देता है उसका इलाज एवं सारी सुविधा मुहैया करा दी जाती है। इस बिषय में बड़े डॉ. से शिकायत कोई मरीज करता है तो बड़े डॉ. उसे डांट डपट कर भगा देते है या फिर उन्हें समझा कर चलता कर दिया जाता है। इससे ये बात साफ समझ में आती है की डॉ. और कर्मचारियों की मिली भगत से मरीजों को इस कदर लूटा जाता है की मरीज कहीं का नहीं रह जाता।  


दी जाती है निजी अस्पताल की सलाह  


मरीज जब सरकारी अस्पताल में लूट पिट जाता है और उसका स्वास्थ फिर भी ठीक नहीं होता तो खुद वरिष्ठ डॉ. निजी अस्पताल की सलाह देने लगते है। क्योंकि निजी अस्पताल में भेजने से उनको एक बड़ी रकम कमीशन के तौर पर मिल जाती है। 


मरीजों की जांच करने की फुरसत नहीं 


जिला अस्पतालों के लगभग सभी डॉ. ने अपना खुद का निजी अस्पताल खोल रखा है। जिससें सभी डॉ. को अपनी निजी अस्पताल की चिन्ता दिन भर सताती रहती है। कहीं मरीज न चला जाये। इसी उधेड़ बुन में दिन निकल जाता है। और हर दस मिनट में घड़ी में नजर डालते नजर आते है। कहीं टाइम तो नहीं हो गया, इन्ही कारणों से डॉ. जिला अस्पताल में भर्ती मरीजों को चेक कर नहीं पाते है।

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