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Monday, February 13, 2012

गौशाला में व्यवस्थाओं की भारी कमियॉ


क्राइम रिपोर्टर// लखनलाल (कटनी // टाइम्स ऑफ क्राइम) 
ब्यूरो प्रमुख से संपर्क: 99934 54490
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कटनी. भा.ज.पा शासित प्रदेश जहॉ एक और गौवंश की रक्षा के लिए एक ओर संकल्पित हैं। वहीं दूसरी ओर राज्य में गौवंश की रक्षा के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है। जिस कारण मजबूरन ही मवेशियों को कम क्षमता वालें आवास में जबरन बेड़ा जा रहा है। जहॉ गौशाला गौवंश की रक्षा के लिए बनाई गई है। वहीं यह गौशाला गौवंश की कब्रगाह बनती जा रही है। 


झुरही टोला के गौशाला में कुछ दिनों पूर्व लगभग आधा दर्जन मवेशियों के मारे जाने की खबर प्रकाश मे आई थी। जिस गौशाला को जैन संस्था द्वारा संचालित किया जाता है। आश्चर्य चकित बात तो यह है कि खबरों में बने रहने वाले गौवंश के रक्षक अपने दायित्व निभाने में हमेशा असफल ही रहें है। बल्कि उन्हे खबर ही नहीं कि लापरवाही के कारण गौवंश काल का ग्रास बन चूॅकि है। ऐसे में राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत बनानें व अच्छे पद पाने के चक्कर में यह लोग तस्करी करके ले जाने वाले जानवरों को पकडक़र उसे गौशाला के हवाले कर अखबारों के माध्यम से अपने कद को बढ़ाने के लिए कोशिश में लगे रहते है। और सार्वजनिक तौर पर गाय को माता कहने वाले मौत के बाद भी उनका सौदा करने से नहीं चूकतें।  


गौशाला में अच्छे कर्मचारियों की कमी 


मालूम होना चाहिए कि गौशाला को संचालन करने वाली संस्था के प्रंबधको व सदस्यों ने गौ सेवा को परम श्रधेय के पाठ को भूला दिया है। इसलिए तो वे भी गौशाला में व्याप्त अराजकता को नजर अंदाज करते रहते है। बदहाली में संचालित किए जा रहे पशु आवास में उनके खाने पीने से लेकर रहने की व्यवस्था पर लीपापोती की जाती है। हजारों की संख्या में पशुओं के होने से एक दूसरें पर चढक़र पशुओं की मौत हो जाती है। उधर कम क्षमता वाले इस गौशाला में पर्याप्त सेवा देने वाले निपुण कर्मचारी की संख्या केवल एक ही है। गौशाला में व्यापत गंदगी के कारण हर रोज कोई न कोई पशु बीमारी की चपेट में आ जाता है। जिसकी देखरेख कर्मचारी महीनों नहीं करता हैं। संस्था के प्रंबधक एॅवम सदस्य कभी गौशाला की सुध लेने एॅवम् कर्मचारी से पशुओं की बीमारी के बारें में पूछनें की फुरसत ही नहीं है।  


सिर्फ दुधारू गायों को मिलता है पौष्टिक आहार 


गौशाला में शुरू से मॅुह देखा जैसा काम किया जाता आ रहा है। क्योकि जब कोई गाय पेट से होती है एवं दूध देने लगती है। तब इन दूध देने वाली गायों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। क्योंकि इन गायों से ज्यादा कमाई के आसार होते है। जिससे उन को गायो पर पौष्टिक आहार खिलाया जाता है। कर्मचारी से जब इस दुव्यवहार के बारे में पूछा गया तो कर्मचारी ने कहा कि जो तस्करी वाले पशुओं को लाया जाता है तथा जितने ंभी बेकार पशु समझ में आते है। उन्हे दूसरें प्रदेशो में कटवाने भेजा जाता है। जिन्हें स्वंय सेवियों द्वारा गौशाला में लाया जाता है। पशुओं की काफी संख्या होने के कारण बेकार पशुओं को ऐसा आहार देना सम्भव नहीं है। इससे साफ जाहिर होता है कि गौशाला जानवरों के लिए नहीं है। अपितु व्यवसाय के लिए गौवंश की संस्था बनाई जाती है।  


कार्यवाही करने से कतराते है अधिकारी 


कहते है कि बीच बीच में प्रशासनिक अमले के अधिकारियों का दौरा व निरीक्षण कर हालातों का जायजा लेने के लिए होता रहता है। इस तरह कुछ दिनों पूर्व सूरही स्थित गौशाला का निरीक्षण किया गया। लेकिन निरीक्षण के उंपरात भी गौशाला में किसी प्रकार का बदलाव नहीं पाया गया है। बल्कि वैसी गंदगी एवं बीमार पशु ही देखने को मिले। ऐसे में समझ में आता है कि मुश्किल नहीं कि गौवंश की रक्षा को लेकर प्रदेश की सरकार शिथिल है। वरना कार्यवाही के बाद गौशाला कि रूपरेखा बदल जाती।

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