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Sunday, February 12, 2012

मुद्दा- ए- जवाबदेही

 डॉ. शशि तिवारी
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सत्य हमेशा कड़वा होता है और सत्य को सुनने के लिए विवेक की आवश्यकता होती है। शिवराज के राज में भी अब यू तो चुनावी पदचाप का आभास एवं अभ्यास, प्रशिक्षण, रणनीति एवं योजनाओं पर कार्य सुनियोजित एवं संगठित तरीके से शुरू हो गया है। समय एवं माहौल बनाने के लिए भी अभी पर्याप्त एवं अनुकूल समय है। फिर बात चाहे विकास की हो, भ्रष्टाचारियों की हो, दागी मंत्रियों, अफसरों की हो या कड़े फैसले लेने की हो। हर वर्ष की तरह अभी ‘‘तबादला उद्योग’’ भी शुरू होने वाला है, लोग ललचाई दृष्टि से अधीर हो इसका इंतजार भी कर रहे है और फिर शुरू होगा पैसों के लेन-देन का बड़ा व्यापार, भ्रष्टाचार का महासंग्राम जिसमें मंत्री से ले अधिकारी तक स्थानांतरण करने और निरस्त करने के खेल में मस्त रहेंगे। इस भ्रष्टाचार के दाग से सरकार को पूर्ण प्रतिबंध लगा अपने को हर हाल में बचाना होगा यदि तीसरी पारी खेलना है तो? 
 अभी हाल ही में कोर्ट ने सरकार के खिलाफ एवं जनता के हित में जो टिप्पणी की है वह आने वाले समय में राजनीति एवं भ्रष्टाचार की दिशा एवं दशा को नया आयाम देगी। भ्रष्टाचार मुक्त समाज में रहना आम जनता का मूल अधिकार है और इसके लिए उसका न्यायालय में जाना और न्याय प्राप्त करना उस नागरिक के मूल अधिकार का हिस्सा है इस पर सरकार द्वारा आवश्यक प्रतिबंध संविधान की मंशा  के प्रतिकूल है। साथ ही ऐसे मामलों में किसी को भी इसे व्यक्तिगत् रागद्वेष से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
 भ्रष्टाचार निरोध कानून 1988 की धारा 19 जिसमें लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा दायर के पहले सरकार की आवश्यक अनुमति मंे भी अब राज्य सरकार को लेतलाली नहीं करना चाहिए। यह सरकार के लिए घातक हो सकता है। विपक्षियों को मुद्दा मिल सकता है, कह सकते है ‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ हकीकत में भ्रष्टाचार के मामले में सरकार द्वारा अनुमति देने के पीछे शायद केवल एक ही मंशा रही होगी कि प्रभावित व्यक्ति का पक्ष सरकार पहले सुने फिर कार्यवाही करे। लेकिन इस आशय का सरकार एवं सरकार में बैठे लोगों के द्वारा केवल और केवल अनुचित ही उपयोग भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए ही किया गया है, ऐसा आम जनता को लगता है जो बहुत हद तक सही भी है? इसी के साथ सरकार की भी जवाबदेही अब और भी बढ़ गई है कि वह बताए कि भ्रष्टाचारियों को क्यों एवं किस मजबूरी के चलते संरक्षण दिया जा रहा है? ‘‘हो सकता है कि चुनाव में जनता ये यक्ष प्रश्न जनप्रतिनिधियों से मुख्यमंत्री से पूछे? अभी समय रहते विभिन्न जांच एजेन्सियों को कड़े निर्देश जारी करें कि भ्रष्ट निकम्मों की सफाई हर हाल में हर कीमत पर हो ताकि जनता के बीच एक नेक नियति का संकेत बिना लाग लपेट के जाए?
 तीसरी पारी के लिए शिव को कृष्ण की भूमिका में सरकार रूपी रथ में एक सारथी बन राजनीतिक भविष्य की दिशा और दशा को सुनिश्चित् करना ही होगा, राजनीति के रण में शिव को हो सकता है, एक साथ दो चुनौतियों  का सामना करना पड़े पहला विपक्षियों से दूसरा अपने ही कुनबे के असंतुष्टों एवं भीतराघातियों से ।  
 पहले कहा भी जाता था कि - ‘‘निंदक नियरे राखिये आंगन कुटि छवाए’’ हकीकत में देखा जाए तो अच्छे शासक के लिए यह आवश्यक भी है लेकिन आज ऐसे लोगों को लोग पसंद नहीं करते है। चाटुकारों का बढ़ता चलन ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है। शिव को जन कल्याण के लिए, अच्छे भविष्य के लिए यदि अपने कुनबे के दागियों जिन पर विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा आरोपी करार दिया गया है, को जनहित में यदि बलि भी देना पड़े तो कोई बुराई नहीं है। शिव द्वारा चलाई जा रही विभिन्न लोक कल्याणी योजनाओं की भी मॉनीटरिंग करनी होगी। क्या वास्तव में इसका लाभ वास्तविक हितग्राहियों को मिला या नहीं? यदि नहीं तो जवाबदेही का स्तर भी सुनिश्चित् करना होगा। यह भी देखना होगा ‘‘विकास यात्रा’’ कहीं एक भीड़ तंत्र का हिस्सा बन दिखावा न बन जाए।
                                                 (लेखिका ‘‘सूचना मंत्र’’ पत्रिका की संपादक हैं)

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