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Monday, March 5, 2012

डॉ. चांडक अस्पताल के बाहर खड़े वाहन लगाते है जाम


नों एट्री में घुसे शहर के अन्दर ट्रकों का 
चालान नहीं होता  

क्राइम रिपोर्टर// लखनलाल (कटनी// टाइम्स ऑफ क्राइम)  
क्राइम रिपोर्टर से संपर्क: 7509261794
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कटनी .चांडक चौक में आये दिन बनती है जाम की स्थिती डां. चांडक अस्पताल के बाहर मरीजों की खड़ी मोटर साइकिल के कारण आये दिन जाम की स्थिति निर्मित होती है। किन्तु इस बेकार स्थिति को काबू पाने के लिए शहर के यातायात विभाग का ध्यान इस तरफ  शायद कभी नहीं जायेगा। क्योंकि डां. चांडक एक तो राजनीति से जुड़े हुऐ एवं शहर के वरिष्ठ एवं गणमान्य नागरिकों में एक है। इसलिए शहर के आला अफसर भी इस देखना पसंद नहीं करगे जबकि कानून के नुमाईदें कानून की शेखी बघारते ही नजर आते है। लेकिन इन कानून के रखवालों को अच्छे पता है कि डां. चांडक अस्पताल के बाहर वाहन खड़े करना भी यातायत नियम की धज्जियां उड़ाना समझ में आता है। क्योंकि पार्किंग तो है नहीं जहां अपने वाहन खड़े किया जा सके। जबकि बाकी अस्पतालों में पार्किंग की व्यवस्था स्वयं अस्पताल के संचालक की होती है। परन्तु ये शहर के जानी मानी हस्तियों से बोले कौन क्योंकि जब इनके सामने यातासयात विभाग के उच्चाधिकारी अपनी जुवान नहीं खोल सकते तो बिचारे सिपाहियों की क्या विषात जो ये छोटे सिपाही कुछ बोल पाये। क्योंकि इन्हें मालूम है की हमारे अधिकारी भी इस तरफ अपनी आंख बंद करके बैठे है। जबकि सब को पता है की डां. चांडक के बाहर खड़े वाहन के कारण आये दिन जाम की स्थिति निर्मित होती है।  

इस जगह पर ध्यान दे अधिकारी 

इस तरह अगर वाहन आकर रोड में खड़े रहेगें तो हमेशा इसी तरह जाम की स्थिति बनती रहेगी इसलिए अधिकारी इस ओर भी ध्यान देंगे तो शायद इस व्यस्तम चौराहें पर जनता जाम की स्थिति से निजात पा लेगी जिससे जनता को कुछ तो राहत महसूस होगी वैसे भी शहर का यातायात व्यवस्था इतना बुरी तरह चरमरा चूका है की इसका सुधरना असंभव सा लगता है।  

परेशान करते हैं आटो चालकों को  

वैसे जब इन यातायात विभाग को कहीं कुछ करने को नहीं मिलता तो ये नित नये कानून बना कर रोज कहीं न कहीं कानूनी कार्यवाही चालू कर दी जाती है। इनका खर्चा कहीं न कहीं से तो निकलना है जिससे रोज का खर्च निकल सके अपनी डियूटी पूरी ईमानदारी से करना ही नहीं चाहते  ईमानदारी से घर का खर्च नहीं चलने वाला क्योंकि शासन जो पगार देती है उसमें काम नहीं चलता है। और फिर  करें भी क्या क्योंकि छोटा सा सिपाही भी अपने बालक को बाहर के किसी अच्छें स्कूल में पढऩा चाहता है उसके बाद उनका उस शहर का खर्चा आखिर कहां से निकलेगा। 

कभी नहीं होती नो एंट्री में घुसे ट्रकों के चालान 

इस चांडक में खड़े सिपाही का रोज का काम भी है। नों एट्री में घुसे शहर के अन्दर ट्रकों का चालान होता ही नहीं क्योंकि मुख्य चौराहों में खड़े सिपाही अपने अधिकारियों को बताते ही नहीं वो सिर्फ अपनी जेबें भरने से मतलब रखते है। तो फिर चालानी कार्यवाही हो भी कैसे  

यातायात सिपाही को मिलती है नेताओं से चमकौली  

    सभी मुख्य चौराहों पर खड़े सिपाही यदि ईमानदारी से अपना कार्य करना भी चाहता है और यदि पैसा न लेकर ट्रकों शहर में प्रवेश नहीं होने देता तो वहां पर खड़े सिपाही को नेताओं का फोन फालतू की झिडक़ी सुननी पडती है और अगर ये सिपाही अपने अधिकारियों को बताते है तो उनसे भी सुनने को मिलती है तभी सिपाही चुपचाप अपनी कमाई करते रहते हैं और अपने कर्तव्य का पालन करते नजर आते हैं।

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