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Tuesday, April 24, 2012

एमपी हाऊसिंग बोर्ड का घोटाला,करोड़ों की चपत

भोपाल // आलोक सिंघई
राजधानी का बहुचर्चित रिविएरा टाऊन प्रोजेक्ट जनता के खजाने के लिए मंहगा सौदा साबित हो रहा है। इस बेशकीमती जमीन पर बनाए गए हाऊसिंग प्रोजेक्ट ने जहां नियमों कानूनों की धज्जियां उड़ाकर रख दीं हैं वहीं यह परियोजना सरकारी जमीन की बंदरबांट बनकर रह गई है। इन्हीं गड़बडिय़ों पर पर्दा डालने के लिए समय समय पर अफसरों,नेताओं और प्रभावशाली ठेकेदारों को आवास उपलब्ध कराए गए। पूर्व लोकायुक्त जस्टिस रिपुसूदन दयाल को गैरकानूनी तरीके से लाभ पहुंचाने का मामला इन दिनों माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर के समक्ष विचाराधीन है। इसी सिलसिले में अब नया विवाद सामने आया है जिससे पता चलता है कि ये प्रोजेक्ट पूरी तरह से भ्रष्टाचार के दलदल में समाया हुआ है।प्रस्तुत है इस मामले की तहें खोलती विशेष रपट |

माता मंदिर के पास कुक्कुट पालन प्रक्षेत्र कोटरा सुल्तानाबाद की भूमि दो चरणों में मध्यप्रदेश हाऊसिंग बोर्ड को मिली थी। पहले चरण में 13.31 एकड़ की भूमि को पुर्नघनत्वीकरण योजना के नाम पर देना बताया गया। दूसरे चरण में करीब साढ़े दस एकड़ भूमि एमपी एमएलए के नाम से हाऊसिंग बोर्ड को आवासीय परियोजना बनाने के लिए दे दी गई। रोचक तथ्य यह है कि आवास एवं पर्यावरण विभाग ने आदेश दिनांक 2 सितंबर 1999 क्रमांक एफ 13-14 । 99 । 32 के जरिए मंत्रिपरिषद की विभागीय समीक्षा में विचार के दौरान दिनांक 22 जून 99 को कई निर्णय लिए और शासकीय भूमि पर मकानों के पुर्नघनत्वीकरण योजनाओं के त्वरित क्रियान्वयन के लिए साधिकार समिति का गठन किया । शासन ने उस समय पुर्नघनत्वीकरण योजना के संबंध में मार्गदर्शी सिद्धांत निर्धारित किए बिना मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक दिनांक 7.4.2011 को आयोजित की।

इस बैठक में कुक्कुट प्रक्षेत्र की 13.71 एकड़ भूमि पुर्नघनत्वीकरण योजना के अंतर्गत मप्र हाऊसिंग बोर्ड को 10.95 करोड़ में सौंप दी। बैठक दिनांक 7.4.2001 के बिंदु क्रमाक 3- ब के अनुसार इस आवासीय योजना के ले आऊट का अनुमोदन प्रदान करते समय वृक्षों से आच्छादित 3 एकड़ भूमि को ग्रीन बैल्ट के रूप में सुरक्षित रखते हुए उसे सर्व सुविधायुक्त उद्यान के रूप में विकसित करने की शर्त लगाई गई। साथ ही भविष्य में प्रक्षेत्र की शेष भूमि 24.28 एकड़ के उपयुक्त विकास को भी ध्यान में रखने की शर्त थी। भूमि की कीमत 10.95 करोड़ के विरुद्ध मप्र हाऊसिंग बोर्ड को प्रथम चरण में हथाईखेड़ा में पोल्ट्री फार्म का निर्माण, अन्य फार्मों का सुद्ृढ़ीकरण, विभागीय आवासगृहों का निर्माण और दूसरे चरण में पशु चिकित्सा भवनों एवं पशु चिकित्सा महाविद्यालयों का सुदृढ़ीकरण करते हुए उनमें उपकरणों का प्रदाय करना था तृतीय चरण में प्रशिक्षण संस्थाओं का निर्माण एवं मरम्मत के साथ कुक्कुट विकास भवन की मरम्मत का कार्य भी करना था। यह तीनों चरण चार सालों की अवधि में पूरे किए जाने थे। बिंदु क्रमांक 5 में पशुपालन विभाग ने ये शर्त रखी कि हाऊसिंग बोर्ड ने विभाग के कार्य के लिए जो समयावधि और लागत तय की है उसमें किसी प्रकार की वृद्धि नहीं की जाएगी। यदि हाऊसिंग बोर्ड विलंब करता है तो बोर्ड से अपूर्ण कार्य की लागत की दो प्रतिशत तक दंड राशि भी वसूल की जाएगी।

बिंदु क्रमांक 6 में यह स्पष्ट किया गया कि भूमि की रजिस्ट्री में हाऊसिंग बोर्ड को शासन की ओर से स्टांप। पंजीयन शुल्क में किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी जाएगी। बिंदु क्रमांक 8 में ये कहा गया कि पशु चिकित्सा विभाग की क्रय समिति उपकरणों की खरीद करेगी, परंतु क्रय के उपरांत देयकों का भुगतान हाऊसिंग बोर्ड करेगा। 
बिंदु क्रमांक 9 में यह स्पष्ट शर्त रखी गई कि प्रस्तावित आवासीय योजना के अंतर्गत निर्मित किए जाने वाले आवास । फ्लैटों को खुले बाजार में विक्रय किए जाने के लिए मंडल के दो विज्ञापन अथवा प्रथम तीन माह की अवधि तक शासकीय विभागों एवं राज्य शासन के उपक्रमों के अधिकारियों तथा कर्मचारियों को आबंटन में प्राथमिकता दी जाएगी। 
चूंकि पुर्नघनत्वीकरण योजना के मार्गदर्शी सिद्धांत नहीं बने थे इसलिए हाऊसिंग पालिसी 1995 के पैरा 6.8, 6.9, एवं 6.10 के अंतर्गत कमिश्नर हाऊसिंग बोर्ड और डायरेक्टर वेटनरी विभाग के मध्य दिनांक 31 जुलाई 2001 को एक एमओयू हस्ताक्षरित किया गया। जिसके बिंदु क्रमांक 6 में यह स्पष्ट किया गया कि इस योजना के शुरु के दो विज्ञापनों अथवा तीन माह की अवधि में शासकीय सेवक एवं अर्ध शासकीय संस्थाओं के कर्मचारियों को आबंटन में प्राथमिकता दी जाए। 

इस 13.31 एकड़ भूमि के विकास एवं भवन निर्माण योजना की स्वीकृति संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश जिला भोपाल ने अपने पत्र क्रमांक 3283 । एल . पी. । 29 । नग्रनि। 2003 दिनांक 20.09.2003 द्वारा प्रदान की। स्वीकृति पत्र के बिंदु क्रमांक 9 में यह स्पष्ट किया कि प्रस्तावित नक्शे में 62 विकसित आवासीय इकाईयां कमजोर आय वर्ग के लिए उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा। नगर निगम भोपाल इसका अनुपालन सुनिश्चित करेगा। बिंदु क्रमांक 11 में यह स्पष्ट किया गया कि स्थल पर विद्यमान वृक्षों को यथावत रखना होगा। बिंदु क्रमांक 26 में पुन: ये स्पष्ट किया गया कि इनफार्मल सेक्टर के लिए मंडल ने आवास नीति 1995 के बिंदु क्रमांक 5.2 के अनुसार प्रस्तावना देकर स्थल से दो सौ मीटर की दूरी पर प्रस्ताव दिया है। अत: 680 वर्ग मीटर न्यूनतम पर 20.37 वर्गमीटर के 52 ईडब्ल्यूएस इकाई निर्मित करनी होंगी जिसका पालन नगर निगम भोपाल सुनिश्चित करेगा। नगर तथा ग्राम निवेश विभाग के मूल स्वीकृत नक्शा दिनांक 23.09.2003 में तीन तरफ बहुमंजिला इमारतें स्वीकृत की गईं थीं। इसी के आधार पर इस योजना को पुर्नघनत्वीकरण की मंजूरी मिली थी। 

महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि हाऊसिंग बोर्ड को इस 13.71 एकड़ भूमि का कब्जा आयुक्त सह संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं मध्यप्रदेश ने पत्र दिनांक 11 जनवरी 2005 को सौंपा। परंतु कार्यपालन यंत्री संभाग क्रमांक 6 ने इस योजना में बुकिंग के लिए प्रथम विज्ञापन दिनांक 6.11.2003 को जारी कर दिया। दूसरा विज्ञापन दिसंबर 2003 में जारी हुआ। उच्चाधिकार प्राप्त समिति एवं एमओयू में निहित शर्त के अनुसार प्रथम दो विज्ञापन अथवा प्रथम तीन माह की अवधि में शासकीय । अर्ध शासकीय कर्मचारियों को प्राथमिकता देना था। परंतु यह नहीं किया गया। तत्कालीन अपर आयुक्त हाऊसिंग बोर्ड ने पत्र दिनांक 17.10.2003 द्वारा 134 भवनों की प्राथमिक प्रशासकीय स्वीकृति जारी की जो केवल छह माह तक के लिए वैध थी। इसके उपरांत आज दिनांक तक अंतिम प्रशासकीय स्वीकृति जारी नहीं की गई है। 

कार्यपालन यंत्री । संपत्ति अधिकारी संभाग 6 भोपाल ने तीसरा विज्ञापन दिनांक 13.12.2005 को जारी किया। इसमें भी शासकीय अथवा अशासकीय कर्मचारियों को कोई प्राथमिकता नहीं दी गई। वृत्त 1 भोपाल के तत्कालीन उपायुक्त श्री आर.के.यादव एवं संभाग 6 के तत्कालीन कार्यपालन यंत्री श्री डी.के.मेहता ने नगर तथा ग्राम निवेश विभाग द्वारा वर्ष 2003 में स्वीकृत नक्शे में तीन तरफ स्थित बहुमंजिला भवनों के स्थान पर 36 ड्यूप्लेक्स बंगलों की योजना बनाकर दिनांक 9.11.2007 को एक विज्ञापन जारी कर दिया। जिसमें केवल शासन के विभागों एवं शासकीय उपक्रमों के अधिकारियों कर्मचारियों से आवेदन आमंत्रित किए गए। तथा सभी के सभी 36 मकान शासकीय कर्मचारियों को आबंटित कर दिए गए। जबकि मप्र शासन आवास एवं पर्यावरण विभाग की ओर से जारी आदेश के अनुसार अनुसूचित जाति जनजाति, सांसद विधायक आदि सभी वर्गों को सम्मलित करते हुए 65 प्रतिशत से अधिक आरक्षण किया जाना नियम विरुद्ध है परंतु कार्यपालन यंत्री एवं उपायुक्त ने मिलकर योजना परिवर्तित कर सौ प्रतिशत आरक्षण दे दिया। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि साधिकार समिति की बैठक दिनांक 7.4.2001 एवं एमओयू दिनांक 30.7.2001 की कंडिका 6 अनुसार शासकीय और अर्धशासकीय कर्मचारियों को केवल प्रथम दो विज्ञापनों में ही प्राथमिकता देनी थी। 

इस बीच मुख्यालय से तत्कालीन अपर आयुक्त श्री ए. के. शुक्ला सेवा निवृत्त हो गए। मुख्यालय में उनका कार्य वृत्त 1 के तत्कालीन उपायुक्त आर.के.यादव ने प्राप्त कर लिया। श्री यादव ने बहुमंजिला भवनों के स्थान पर इन 36 भवन (4 नाईस ड्यूप्लेक्स कार्नर, 14 ट्रिपलेक्स एवं 18 ड्यूप्लेक्स भवन)की पृथक से प्राथमिक प्रशासकीय स्वीकृति दिनांक 3.01.2008 को जारी कर दी। ये स्वीकृति केवल तीन माह के लिए ही वैध थी परंतु आज दिनांक तक अंतिम प्रशासकीय स्वीकृति जारी नहीं हुई है। लाटरी इस तरह से डाली गई कि जिसमें उस इलाके के तीन पटवारी, एक ए.एनएम, मंत्री के पीए, उनकी पुत्री और 18 डाक्टरों के नाम निकल आए। 

मप्र हाऊसिंग बोर्ड के विज्ञापन दिनांक 9.11.2007 के बिंदुक्रमांक 6 में यह स्पष्ट किया गया था कि भवनों का मूल्य पूरी तरह अनुमानित है। योजना पूरे होने पर स्वीकृत वास्तविक मूल्य निर्धारण अनुसार भवन का मूल्य देना होगा। बिंदु 7 में यह स्पष्ट किया गया था कि सर्विस टैक्स,लीज रेंट आदि नियमानुसार देय होगा। योजना 2003 से चल रही है तबसे तीन चरणों में विकास कार्य हो रहा है जो अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। यही दो बिंदु सभी विवादों की जड़ बन गए हैं। जबकि विवादों का बिंदु यह भी है कि संपूर्ण प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया गया है। पहले दो विज्ञापनों के स्थान पर बहुमंजिला भवनों की योजना को परिवर्तित कर इन 36लोगों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से 36 ड्यूप्लेक्स मकान बनाकर दे दिए गए। 

रिविएरा टाऊन में विवादों की स्थितियां 2009 के आरंभ में ही बन गईं थीं। मंडल के उपायुक्त (वाय) ने परिपत्र क्रमांक 07 दिनांक 19.05.2008 जारी किया। जिसमें पर्यवेक्षण शुल्क एवं आकस्मिक व्यय3 प्रतिशत पारित कर दिया गया। यह शुल्क उन सभी योजनाओं पर लागू था जिनका अंतिम मूल्य निर्धारण परिपत्र जारी होने तक नहीं हुआ था। इससे रिवियेरा फेस वन के सभी आबंटिती ( एमपी एमएल ए समेत)प्रभावित हो गए। इस समस्या के निराकरण के लिए मामला बोर्ड की 205 वीं बैठक दिनांक 15.09.2009 के अनुक्रमांक 26 पर प्रस्तुत हुआ। चूंकि पूर्व में जारी सभी नीतियां उन प्रकरणों पर लागू थीं जिनके अंतिम मूल्य निर्धारण नहीं हुए थे। ऐसी स्थिति में बोर्ड के समक्ष यह प्रस्ताव दिया कि जिन योजनाओं में विक्रय अभिलेख । अनुबंध निषपादित किए जा चुके हैं उनका मूल्य निर्धारण तत्समय लागू प्रावधानों के अनुसार किया जाए। संचालक मंडल ने सर्व सम्मति से इस प्रस्ताव को अनुमोदित कर दिया। परंतु अधिकारियों ने आदेश ।

परिपत्र क्रमांक 17 दिनांक 07.10.2009 जारी करते समय बोर्ड की ओर से स्वीकृति प्राप्त मूल प्रस्ताव, (पंजीयन विलेख। अनुबंध निष्पादित हो जाना अर्थात रजिस्ट्री हो गई है) के शब्दों का उपयोग न करते हुए उसके स्थान पर पूर्व में जो योजनाएं प्रारंभ हो चुकी हैं उन पर नई नीति लागू न होने के निर्देश जारी कर दिए गए। इस मूल प्रस्ताव में शब्दों का हेरफेर कर दिया गया। योजना पूर्ण होने के स्थान पर योजना आरंभ शब्द का उपयोग करके सभी को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया।

इस प्रकरण में महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि भोपाल की रिविएरा टाऊन फेस 1 एवं बागमुगलिया एम्स के पास बन रही एमराल्ड पार्क सिटी योजना में केवल प्लाट पर रजिस्ट्री कर दी गई थी। जिसके कारण जिस वर्ष में प्लाट की रजिस्ट्री हुई उसी वर्ष की कलेक्टर गाईडलाईन के आधार पर उसकी कीमत ले ली गई। यही खेल सभी बिल्डर्स भी कर रहे थे। महानिरीक्षक पंजीयन एवं मुद्रांक मध्यप्रदेश ने शासन को स्टाम्प ड्यूटी एवं रजिस्ट्री फीस में हो रही हानि को देखते हुए इस पर आपत्ति ली। इसके बाद हाऊसिंग बोर्ड ने प्लाट पर रजिस्ट्री करना बंद कर दिया है जिसके कारण रिविएरा के ये 36 आबंटिती एवं प्रदेश के अन्य आबंटिती कलेक्टर गाईड लाईन के घेरे में आ गए। 

हाऊसिंग बोर्ड और शासन के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि योजनाओं को समय पर पूरा न करने के कारण कलेक्टर गाईडलाईन में हुई बेतहाशा वृद्दि का भार आबंटितियों पर डाला जाए तो उसे उनके गुस्से का सामना करना पड़ रहा है, कार्य में विलंब होने के कारण परियोजना में देरी हुई, इस पर कार्रवाई होती है तो सभी इंजीनियर जांच के घेरे में आ जाएंगे। अगर बोर्ड अपने इंजीनियरों को बचाता है तो उसका नुक्सान बोर्ड को खुद वहन करना पड़ेगा।

दूसरा डर यह भी है कि जिस तरह टू जी स्पेक्ट्रम आबंटन मामले में आबंटन के विक्रय के वर्ष के सर्किल रेट न लेते हुए ए. राजा ने 2001 के सर्किल रेट पर सभी स्पेक्ट्रम आबंटित कर दिए तो स्पेक्ट्रम आबंटन दिनांक के रेट और 2001 के रेट के अंतर की राशि 175 लाख करोड़ के घोटाले में ए राजा फंसे हुए हैं लगभग ऐसी ही स्थितियां रिविएरा और अन्य योजनाओं में भी बन गई है। मकान 2012 में पूर्ण हो रहे हैं और कलेक्टर रेट 2007 का लगा दिया जाए तो निर्णय लेने वाले उलझें नहीं इसीलिए हाऊसिंग बोर्ड ने गेंद सरकार के पाले में डाल दी है। आवास एवं पर्यावरण विभाग ने यह गेंद मुख्यमंत्री महोदय के पाले में डाल दी और मुख्यमंत्री ने यह गेंद गेंद वित्त विभाग के पाले में डाल दी है। यदि कलेक्टर रेट में माफी का ये प्रस्ताव सरकार स्वीकार कर लेती है तो बोर्ड को अकेले रिविएरा टाऊन में कम से कम छह करोड़ का और पूरे मध्यप्रदेश में 35 से 40 करोड़ का नुक्सान भुगतना पड़ेगा। इस हेराफेरी का लाभ लेने वाले तो हकीकत में पचास साठ करोड़ से ज्यादा लाभ पाएंगे जिसका बोझ सीधे जनता के खजाने पर पड़ेगा। फिलहाल ये मामला वित्त विभाग के सामने विचाराधीन है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वह जनता के धन की रक्षा करेगा।

" इन्वेस्टरों को जनता के खजाने से मुनाफा बांटने का प्लान "
"सरकार सोचे कि वह गरीबों का हक मारकर किसे नवाज रही "

रिविएरा टाऊन प्रोजेक्ट में कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य निम्नानुसार हैं। 

1. कुक्कुट भवन की योजना पुर्नघनत्वीकरण योजना के अंतर्गत नहीं मानी जा सकती क्योंकि पुर्नघन्त्वीकरण योजना के प्रथम मार्गदर्शी सिदंत 6 सितंबर 2002 को जारी कर दिए गये थे। इस स्थिति में एमओयू दिनांक 30.7.2001 में आवास नीति 1995 के पैरा 6.8, 6.9.और 6.10 को आधार बनाकर कार्रवाई की गई। इस स्थिति में आवास नीति के नियम लागू होंगे। 

2.रिविएरा टाऊन के तीनों चरणों में से किसी भी चरण की प्रशासकीय स्वीकृति मंडल ने जारी नहीं की। अधिकारियों ने अपनी मनमर्जी से बिना प्रशासकीय स्वीकृति के योजना बनाकर बेच दी। किसी भी अधिकारी पर इसके लिए कोई कार्रवाई भी नहीं की गई। 

3. विज्ञापन में आबंटितों से लीज रेंट लेने का उल्लेख है परंतु पुर्नघनत्वीकरण योजना को आधार बनाकर भूभाटक नहीं लेने का तर्क दिया जा रहा है। जबकि इसके विपरीत कलेक्टर भोपाल ने प्रमुख सचिव राजस्व विभाग को पत्र दिनांक 17.12.2009 द्वारा मार्गदर्शन मांगा है,तथा कमिश्नर हाऊसिंग बोर्ड ने अर्धशासकीय पत्र दिनांक 2.12.2009 द्वारा प्रमुख सचिव राजस्व विभाग से भू भाटक लेने या नहीं लेने बाबत मार्गदर्शन मांगा है। 

4. यह योजना साधिकार समिति की बैठक दिनांक 7.4.2011 में लिए गए निर्णय एवं एमओयू दिनांक 30.7.2001 में निहित प्रावधानों के अनुसार संचालित एवं निर्णीत होगी। जिसमें संपूर्ण भूमि की रजिस्ट्री कराए जाने, ग्रीन बैल्ट को सुरक्षित रखने, क्रय समिति के अनुसार उपकरणों का भुगतान करने, केवल प्रथम दो विज्ञापनों में ही शासकीय कर्मचारियों को प्राथमिकता का लाभ देना था। परंतु बोर्ड ने इन तीनों शर्तों का उल्लंघन किया है। 

5. पुर्नघनत्वीकरण योजना के मार्गदर्शी सिदंत 6 सितंबर 2009 को जारी हुए जिसमें विकास संस्थाओं को आबंटित भूमि पर भू भाटक नहीं लगने का उल्लेख है। यह निर्देश बाद में जारी हुए हैं जो साधिकार समिति की बैठक दिनांक 7.4.2011 में लिए गए निर्णय को अधिक्रमित नहीं करते। इसी आधार पर कलेक्टर भोपाल ने पत्र क्रमांक 607 दिनांक 17.11.2009 द्वारा प्रमुख सचिव राजस्व विभाग से यह स्पष्ट मार्गदर्शन चाहा है कि साधिकार समिति की बैठक में उक्त भूमि के नामांतरण मंडल के पक्ष में किए जाने का एवं कितना प्रीमियम व लीज रेंट लिया जाए इस संबंध में कोई लेख नहीं किया है अत: नामांतरण मंडल के पक्ष में करने एवं प्रीमियम के अनुसार भूभाटक की राशि किस प्रकार वसूल की जाए इसका मार्गदर्शन चाहा है जो आज दिनांक तक नहीं मिला है और न ही भूमि का नामांतरण हुआ है।ये भूमि आज तक शासन के ही रिकार्ड में दर्ज है। कानून के अनुसार हाऊसिंग बोर्ड भी आज तक उसका मालिक नहीं है। जबकि वह यह भूमि बेच चुका है।

6. बोर्ड बैठक दिनांक 15.09.2009 में जो योजनाएं प्रारंभ की जाकर पंजीयन विलेख । अनुबंध निष्पादित किए जा चुके हैं उनका मूल्य निर्धारण तत्समय लागू प्रावधानों के अनुसार करने का निर्णय हुआ था। मंडल के अधिकारियों ने मिलीभगत करके आयुक्त से भ्रमपूर्ण परिपत्र संशोधन जारी करवा दिया जिसमें केवल योजनाओं के शुरु होने का उल्लेख था रजिस्ट्री और अनुबंध संबंधी अनिवार्यता का उल्लेख ही नहीं किया गया था। जिसके कारण आबंटिती ये दावा कर रहे हैं कि पिछली नीति के अनुसार ही उनसे तत्समय की गाईडलाईन के अनुसार रजिस्ट्री मूल्य लिया जाए। यदि बोर्ड अपने ही अधिकारियों की गलती को छिपाएगा तो उसे करोड़ों की हानि होगी और उसकी जवाबदारी किसकी होगी। जनता के कल्याण के नाम पर चलाई जाने वाली योजनाओं पर पहला हक तो जनता का ही है।

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