Pages

click new

Monday, August 27, 2012

भारत की अखण्डता पर चोट करती वोट नीति


भारत की अखण्डता पर चोट करती वोट नीति

[डॉ. शशि तिवारी]
toc news internet channal

धर्म के आधार पर हिन्दुस्तान, भारत और पाकिस्तान के रूप में देश विभाजन की भीषणत्रासदी को पहले ही झेल चुका है। 65 वर्षों के बाद भी आज याद मात्र से ही शरीर में सिरहन दौड़ जातीहै, आदमी भयभीत हो जाता है। यूं तो इतिहास होता ही सबक लेने के लिए, सीख ले आगे ऐसे रास्ते परन चलने के लिए, ऐसी घटनाओं से बचने के लिए लेकिन इन 65 वर्षों में अब ऐसा लगने लगा है किभारत के जनप्रतिनिधियों ने इससे कोई भी सबक नहीं लिया है। भारत का संविधान निःसंदेह अद्वितीयहै लेकिन इसमें भी स्वार्थ के चलते मनमाफिक लगभग 100 से अधिक संशोधनों के पश्चात् भी अबऐसा लगने लगा है कि इसकी आत्मा ही नष्ट हो गई है। कई बार बुद्धिजीवियों, आवाम, राजनीति मेंसक्रिय पािर्टयों एवं लोगों की तरफ से कुछ ऐसी ही हलचल होती रहती है इसे पुनः वर्तमानआवश्यकताओं एवं हालात के मध्य नजर लिखा जाए।

आज देश में जिस प्रकार की घटनाएं घटित हो रही हैं मसलन जातिवाद, धर्मवाद, आरक्षण,भ्रष्टाचार, जन प्रतिनिधियों में घटती स्वच्छ छवि के लोगों की संख्या, जन प्रतिनिधियों मंे बढ़ताअहंकार, दबंगई, जवाबदेही की कमी आदि वोट की खातिर जाति, धर्म, आरक्षण का घिनौना खेल पुनःभारत को विभाजन की ओर ले जा रहा है। वैसे भी समय-समय पर धर्म आधारित सुविधा की मांगमसलन जाति के घनत्व के आधार पर प्रतिनिधित्व की मांग के कुचक्र का षडयंत्र शुरू हो गया है।

आज पुनः अल्पसंख्यक को परिभाषित करने का समय आ गया हैं। समस्या गंभीर तब औरभी हो जाती है जब देश का कानून मंत्री ही पत्नी के चुनाव क्षेत्र में धर्म विशेष को हवा देने में लग जाताहै। आज नेता निहितार्थ के चलते पूरे भारत के आवाम को अगडे़-पिछडे़ जन्म आधारित आरक्षण से नकेवल बहुसंख्यक जिन्हें देश में हिन्दू कहा जाता है, को तोड़ रहा है बल्कि अल्पसंख्यक जो कमी थे केप्रति भी उनमें जहर घोल उन्हें समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग करने में भी जुटा हुआ है।

हमारे नेताओं की घटिया सोच को तो देखिए कि भोले-भाले आदिवासियों को भी पार्टियों मेंबांट दिया है। हम इतने निकम्मे हो गए है कि जाति-धर्म पर राजनीति के अलावा अब काम ही नहींचलता। मूल उद्देश्य केवल वोट कबाडने का है फिर चाहे इसके लिए जाति धर्म का विष ही क्यों नफैलाना पड़े।

हाल ही में असम में घटित घटना भी कुछ इन्हीं का परिणाम हैं। यह घटना कोई पहली बारघटित नहीं हुई है ये बात अलग है कि अब येे विकराल रूप ले नेताओं के बूते से बाहर हो गई हैं।

असम में बांग्लादेश के मुस्लिमों की घुसपेठ की शिकायतें यदा-कदा मीडिया में आती हीरहती थी लेकिन नेताओं के वोट नीति के स्वार्थ के चलते ये नजरअंदाज होती रही। अब जब 30-35वर्षों में इनकी संख्या पर्याप्त हो गई तब स्थानीय लोगों एवं इन शरणार्थियों-घुसपेठियों के बीच वर्चस्वको ले वर्ग संघर्ष शुरू हो गए। एक आंकडे के अनुसार पूरे भारत में करीब 2 करोड 14 हजार अवैधविदेशी है। इनमें पाकिस्तान एवं अफगानिस्तानी भी है। कोई मैच देखने के बहाने, कोई अपने रोजगारके बहाने भारत तो आते है लेकिन चलर कानून व्यवस्था के कारण भारत की भीड़ में ही खप जाते हैं।


असम समस्या को ले प्रारंभ में तो केन्द्र सरकार उसे राज्य की समस्या बता पल्ला झाड़तारहा लेकिन जब ये आग मुम्बई के आजाद मैदान पहुंची जहां रजा अकादमी के अव्हान पर एक धर्मविशेष सुन्नी समुदाय के मुसलमानों को बुला भड़काऊ भाषण दे भीड़ को सुनियोजित ढंग से धार्मिकआधार पर उकसा अचानक आगजनी, पथराव की घटना की जिसकी प्रशासन को भी उम्मीद नहीं थीसकते में आ गई, तब केन्द्र सरकार की आंखें खुली। इस प्रदर्शन ने पूरे भारत की आंखें खोल दी। यहांयक्ष प्रश्न उठता है हमारे देश/प्रदेश की खुफिया एजेन्सी क्या कर रही हैं? रजा अकादमी ने 1500 लोगोंकी अनुमति ली थी, 50,000 कैसे हो गए? मुम्बई में ही ये आंदोलन क्यों हुआ? इसके प्रायोजन मेंकौन-कौन संलिप्त हैं? इनका असली मकसद क्या है? इन्हें पैसा कहां से और कौन-कौन देता है? क्या येदेशद्रोही गतिविधि की श्रेणी में नहीं आयेगा? क्या भारत ऐसे देशद्रोहियों को कड़ी सजा दे पायेगा? याराजनीति रंग दे लीपा पोती करेगा?

इस प्रदर्शन ने भारत के भविष्य की ओर संकेत कर दिया है। मुम्बई की घटना के बाद पूरे देशमें अब एस.एम.एस. सोशल साईट के जरिये प्रसारित संदेशों ने बची-खुची कसर पूरी कर दी जिससेपुणे, बेंगलूर, चेन्नई, हैदराबाद, गुजरात, गोवा, लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर में रह रहे पूर्वाेत्तर केनागरिकों का पलायन अपने असम राज्य के लिए हो गया। कूच करने की आपाधापी, अफरा-तफरी कोजब मीडिया चैनलों द्वारा ये दृश्य रेल्वे स्टेशन एवं अन्य आवागम साधनों के स्थलों को दिखाया जारहा था तब इसे देख अनायास ही भारत-पाक विभाजन की याद ताजा हो गई। इस विषम परिस्थिति मेंएक बात अच्छी रही कि देश की संसद में इसे ले सभी राजनीतिक दल गंभीर नजर आए मसलनअफवाह फैलाने वाले एस.एम.एस. थोक में भेजने वालों पर प्रतिबंध, फेसबुक पर धर्म समुदाय के फोटोको डालने पर प्रतिबंध 15 दिनों के लिये लगाया।

यहां असम के मुख्यमंत्री भी अपने नाकारापन को ढक नहीं सकते। केन्द्र एवं राज्य के मंत्रियोंएवं जन प्रतिनिधियों को अब सोचना होगा। हिन्दू-मुसलमान की राजनीति को करना छोड़े। यदि कोईनेता ऐसा कहते-करते भी पाया जाए तो उस पर देश को तोड़ने-लडाने का, शांति भंग करने का मुकद्माचलाया जाएं। वास्तव में देखा जाए इन्होंने न तो हिन्दुओं और न ही मुसलमानों का भला किया है। हांअर्नगल भाषण दे खाई पैदा करने का काम जरूर किया है। भारत की जनता अमन चैन चाहती है,अपना जीवन चलाना चाहती है, रोजगार और सुरक्षा चाहती हैं ।

हकीकत में देखा जाये तो इस देश में 10 वर्षों के लिए चुनाव को बंद कर देना चाहिए ताकिनित नए घपले घोटाले, नेताओं पर खर्च होने वाली भारी भरकम धन राशि को भी बचाया जा सके। रहासवाल अधिकारी-कर्मचारियों की निरंकुश होने का तो उसके लिए पहले से ही सिविल आचरण संहिताहै के तहत् दोषी को तत्काल नोैकरी से हटा दिया जायें।

यदि देश के विखण्डन को वोट की चोट से बचाना है तो भारत को 10 वर्षो तक के लिए कडेअनुशासन के डण्डे से ही हांकना ही होगा अर्थात् राष्ट्रपति शासन लगाना होगा वर्ना भारत की हालतसोवियत रूस की तरह खण्ड-खण्ड होते भी देर नहीं लगेगी। वैसे भारत में अब इसका टेªलर शुरू होचुका है।


लेखिका ‘‘सूचना मंत्र’’ पत्रिका की संपादक है
मो. 09425677352

No comments:

Post a Comment