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Friday, October 19, 2012

बढ़ता अहम, घटती सहन शक्ति


बढ़ता अहम, घटती सहन शक्ति
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         (डॉ. शशि तिवारी)
 अहम यानि ‘‘मैं’’ इस दुनिया में सारे फसाद की जड़ ही ‘‘मैं’’ है। हम ‘‘मैं’’ को ही पुष्ट करने में दिन-रात लगे रहते हैं। यह तब और भी पुष्ट होता है जब इसे लोगों का समर्थन मिलता है यह इच्छा और संकल्प शक्ति से ही शक्तिशाली होता है। ‘‘मैं’’ का असली मजा ही दिखाने में और प्रदर्शन में है। हकीकत में देखा जाए तो ‘‘मैं’’ का खंजर जब सामने वाले के सीने में घोंपा जाता है तब उससे उठे दर्द की नकारात्मक सोच ही ऐसे लोगों को असीम आनंद प्रदान कराती है। आज समाज में, धर्म में, प्रशासन-शासन में, जन-प्रतिनिधियों में, सरकारो में, मानवता में जातियों में इनता पुष्ट हो गया है कि चारों और केवल और बिखराव ही घटित हो रहा है। ‘‘मैं का वर्तुल तब और भी बढ़ जाता है जब इसे पद, मान-सम्मान, राजयोग के भोग-विलासता का पुट मिल जाता है। इस ‘‘मैं’’ के समक्ष फिर सभी लोग तुच्छ लगने लगते है। ये ‘‘मैं’’ ही था जिसने पृथ्वी का सबसे बड़ा युद्ध ‘‘महाभारत’’ को जन्मा यदि दुर्योधन का ‘‘मैं’’ जोर नहीं मारता तो ‘‘महाभारत’’ घटित नहीं होती। अपने को श्रेष्ठ, उत्कृष्ट, अच्छे की सोच ही दूसरे को कमतर बना देती है।

 आज की राजनीति एवं राजनेता भी इससे अछूते नहीं है ‘‘मैं’’ की इस लडाई में हम इतने गिर गए है कि न हम केवल अपना आपा खो रहे है बल्कि शब्द की अभिव्यक्ति भी इतनी गिर गई है कि उनका दिमागी स्तर फटे हाल भी हो गया है। इस कृत्य में सभी दल के नेता समय, परिस्थिति स्थिति के आधार पर घिरते ही नजर आते है। सच बात को सुनने के लिए विवेक एवं धैर्य की आवश्यकता होती है।

 हकीकत में देखा जाए तो नौकरशाह और जनप्रतिनिधि दोनों ही जनता के सेवक है। दोनों का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ जनता की सेवा करना ही होता है। लेकिन राजनीतिक के सेवक जनता के नाम पर वो सब तानाशाही चलाना चाहते है जो नहीं होना चाहिए। अपने आकाओं की नजरों में चढ़ने, पारितोष लेने के लिए कुछ भी अजीबो-गरीब हरकत करते है। हाल ही में म.प्र. के रतलाम में एक दशक से सत्ता से महरूम कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों ने रतलाम में भारतीय प्रशासनिक अधिकारी को ही निशाने पर ले अपने मन की कुण्ठा की पूरी भड़ास कलेक्टर पर निकाल डाली। यहां बात केवल कलेक्टर राजीव दुबे का जनप्रतिनिधि के रूप में कांतिलाल भूरिया, मीनाक्षी नटराजन, प्रेमचंद गुड्डू की नहीं है। ये तो मात्र एक प्रतीक है इसके पूर्व भी इन्दौर में ताई और भाई की लड़ाई का मजा और सजा अधिकारीगण भुगत चुके है। राजनीतिक परिदृश्य में आए दिन मंत्री एवं प्रशासन/पुलिस को अपमान से दो चार होना पड़ता है। मध्यप्रदेश वर्तमान सरकार में भी कुछ मंत्री मात्र इसी तरह की बातों के लिए मीडिया की खुराक बनते ही रहते है। यहां नौकरशाह को भी समझना होगा कि बिना भेदभाव के नहीं करें, जो विधि और नियम संगत हो वही करें जब-जब ये इस पथ से पथभ्रष्ट होंगे तब-तब इस तरह की घटनाएं जोर मारेगी। कमोवेश यही स्थिति अन्य राज्यों में भी है।  

गुजरात कांग्रेस के सांसद विठ्ठल राडिया ने टोल कर्मचारियों पर बन्दूक तान दी, इसी तरह उ.प्र. सरकार के मंत्री विनोद सिंह को गोडा के सी. एम. ओ. को धमकाने एवं अगवा करने के आरोप में इस्तीफा देना पड़ा। देश की कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का ’’मैं’’ तो इतना बलशाली निकला की प्रेस कांफ्रेंस में ही आज तक टी.वी.चेनल के पत्रकार को धमका डाला, उपस्थित पत्रकारगण सख्ते में आ गये इस धमकी की परणीति क्या होगी, आगे क्या होगा यह तो वक्त के गर्व में ही है।   
 यहाँ जनप्रतिनिधियों मंत्रियों को भी अपने आचरण में न केवल शालीनता लानी होगी बल्कि ऐसा आदर्श भी जनता के सामने प्रस्तुत करना होगा ताकि राजनीति की नई ‘‘कोपलो’’ में ’’राजनीति के माध्यम से समाज सेवा में‘‘ रोल मॉडल मिल सके युवा उनका अनुसरण कर शांति एवं प्रगति के मार्ग पर चल सकें।




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