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Monday, January 28, 2013

कलैक्टर साहब दामन तो आपका भी पाक साफ नहीं है......?

बैतूल जिले में अधिकांश बालिका छात्रावासों एवं आश्रमो में हो रहा है अनाचार

गैरआदिवासी अधिकारी डकार रहे है करोड़ो का सरकारी अनुदान 


रामकिशोर पंवार पत्रकार बैतूल

बैतूल, ताप्तीचंल में बसा आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला अकसर सुर्खियों में रहता है। जिले के एसी सीधे भोपाल से आदिम जाति कल्याण मंत्री की पसंद से आते और जाते है इसलिए उनका अहंकार किसी दसमुखी रावण से कम नहीं है। इस समय जिले के डेढ़ सौ से अधिक बालक एवं बालिका छात्रावास एवं आश्रमो में चल रहा गोरखधंधा किसी दुराचार से कम नहीं है। 

खुले आम शोषण के शिकार बन रहे आदिवासी बालक एवं बालिकाओं के मुंह का निवाला छिनने से लेकर उनके तन के कपड़े एवं शिष्यावृति तक के पैसो में एश कर रहे छात्रावास एवं आश्रम अधिक्षक बैतूल जिला मुख्यालय में निवासरत होने के साथ - साथ मंहगे मकानो एवं बेशकीमती दुपहिया एवं चौपहिया वाहनो से आना - जाना कर रहे है। प्रत्येक छात्रावासो एवं आश्रमो से बीईओ एवं विकासखंड स्त्रोत समन्वयक के माध्यम से 20 सीटर से 2500 रूपए, 50 सीटर से 5000 रूपए तथा 100 सीटर आश्रम एवं छात्रावासों से दस हजार रूपए का संकलन हो रहा है। पूरा पैसा एसी के नाम पर संकलित होने के बाद ऊपर तक जाने के नाम पर लोगो की जेबो में पहुंच रहा है। भले ही बैतूल कलैक्टर इमानदार हो लेकिन उनके पास तक पहुंचने वाली सैकड़ो शिकवा - शिकायते , सूचना के अधिकार नियमों की अपीले एवं अन्य कार्रवाई में दोषी छात्रावास एवं आश्रम अधिक्षको के साफ बच निकलने के पीछे की कहानी से कलैक्टर का दामन भी दागदार होने से नहीं बच पा रहा है। बैतूल जिले में बीते वर्ष में साल के आखरी दो माह में दो बार राज्य महिला आयोग स्कूली छात्राओं एवं छात्रावासों में रहने वाली दुराचार की शिकार बनी छात्राओं की खबरो पर आ धमका है। दोनो बार आयोग को महिलाओं के कथित यौन शोषण के मामलो की शिकायते मिली है। आदिवासी बालिका छात्रावास की एक बालिका की संदेहास्पद स्थिति में हुई मौत के मामले को लेकर पहले राज्य बाल संरक्षण आयोग बैतूल पहुंचा था लेकिन आयोग अपनी जांच रिर्पोट शासन को सौपता इसके पूर्व ही राज्य महिला आयोग भी बैतूल आकर शिकायतो की जांच करके जा चुका है। 

पूरे मामले में आज दिनांक तक मात्र बीईओ गुप्ता के खिलाफ क्षणिक कार्रवाई के बाद उनकी पुन: बहाली कहीं न कहीं सिस्टम में फाल्ट की ओर इशारा करती है। प्रदेश के मुुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चहेते बैतूल कलैक्टर बी चन्द्रशेखर के कार्यकाल में तीसरी बार राज्य महिला आयोग की टीम आ धमकी है। बैतूल जिले में लगातार बढ़ रहे यौन शोषण के मामलो के बाद बैतूल जिला प्रदेश के बेटी बचाओं अभियान की ढोल की पोल को खोल कर रख चुका है। एक तरफ हमेशा आदिवासी एवं दलितो के तथाकथित हितो एवं आर्दशो की दुहाई के पाठ पढ़ाए जाते है वही दुसरी ओर आदिवासियों एवं दलितो के ऊपर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे है। ताप्तीचंल के बैतूल जिले में कलैक्टर आदिवासी विकास (शिक्षा) विभाग एवं राजीव गांधी शिक्षा मिशन तथा शिक्षा विभाग द्वारा संचालित अधिकांश सामान्य एवं उत्कृष्ट बालिका छात्रावास एवं आश्रमो तथा कस्तुरबा गांधी बालिका छात्रावासो में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों ने पूरे विभाग की कार्यप्रणाली एवं सरकारी मंशा बेटी बचाओं अभियान के चेहरे पर कालिख पोत दी है। बैतूल जिले में संदेहास्पद परिस्थिति में बालिग एवं नाबालिग छात्राओं की मौतो एवं उनके ऊपर होने वाले तथाकथित यौन शोषण के मामलो ने इस समय बैतूल जिले का सर शर्म से झुका दिया है। 

बैतूल जिले के हालात तो यह है कि रानीपुर की एक बेवा छात्रावास अधिक्षका को हटाने के लिए पूरी ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष तक ने एड़ी से चोटी तक जोर लगा डाला लेकिन खबर लिखे जाने तक वह आज भी वहीं पर कुण्डली मारे बैठी हुई है। इतना ही नहीं अधिक्षका ने अपने ही सगी ननद को सहायक वार्डन भी बना रखा है। दोनो ननद -भौजाई से पूरा गांव हैरान एवं परेशान है लेकिन रतलाम से आए डीपीसी जेएल साहू के लिए सब कुछ बढिय़ा है। आज तक कलैक्टर के संज्ञान में आ चुके बाकुड़ छात्रावास के मामले में कोई कार्रवाई इसलिए नहीं हो सकी क्योकि उसकी छात्रावास अधिक्षका कलैक्टर से लेकर डीपीसी तक की नब्ज को दबाने का दम रखती है। वैसे तो करोड़ो - अरबो के कमाऊपूत छात्रावासो एवं आश्रमो में व्यापत भ्रष्ट्राचार की रिर्पोट को राज्य सरकार के ग्वालियर स्थित महालेखा नियंत्रक तक की रिर्पोट में स्थान मिल चुका है। बड़े पैमाने पर केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार के सर्व शिक्षा अभियान एवं आदिम जाति कल्याण विभाग के पैसो से आदिवासी का कम गैर आदिवासियों का कल्याण कुछ जरूरत से ज्यादा हो रहा है। बैतूल जिले की शाहपुर तहसील के ग्राम जामुनढाना निवासी छात्रा की मौत के मामले में जांच के लिए पहुंची मप्र राज्य बाल सरंक्षण अधिकार की टीम सिर्फ भौंरा छात्रावास में जांच करके चली गई। आयोग की अध्यक्ष ने छात्रा के परिजनों से भी मिलना मुनासिब नहीं समझा। टीम रविवार की दोपहर ग्राम भौंरा पहुंची थी। छात्रा की मौत के मामले में शाहपुर पुलिस ने अज्ञात आरोपी पर हत्या का मामला दर्ज किया है।

मप्र राज्य बाल संरक्षण अधिकार आयोग अध्यक्ष ऊषा चतुर्वेदी, सदस्य आरएच लता, विभांशु जोशी की एक टीम छात्रा की मौत के मामले में जांच के लिए ग्राम भौंरा के कन्या छात्रावास पहुंचीं। यहां पर छात्रा कावेरी टेकाम रहती थी। टीम ने छात्रावास अधीक्षका ज्योति भलावी, यहां के स्टॉफ और कुछ छात्राओं से अलग-अलग चर्चा की। कावेरी के मामा की लड़की पिंकी से भी अध्यक्ष ने चर्चा की। पिंकी भी इसी छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रही है। पिंकी ने बताया कि उसने कावेरी को 20 नवंबर को ग्राम जामुनढाना छोड़ दिया था। लगभग दो घंटे चर्चा करने के बाद टीम भोपाल रवाना हो गई।आयोग अध्यक्ष छात्रा कावेरी के गांव जामनुढाना भी नहीं पहुंचीं। बताया गया कि छात्रा का गांव ग्राम भौंरा से लगभग दस किमी दूर है। कावेरी का पूरा परिवार इसी गांव में रहता है। पुलिस ने छात्रा की मौत के मामले में अज्ञात पर हत्या का मामला दर्ज किया है। जांच के दौरान एसडीएम टीआर वर्मा, एडिशनल एसपी गीतेश गर्ग, एसडीओपी पीएस मंडलोई, बीईओ एसबी सोनी, परियोजना अधिकारी व्हीपी गौर उपस्थित रहे। ग्राम जामुनढाना निवासी कक्षा 11 वी छात्रा कावेरी टेकाम 27 अक्टूबर को गांव में ही अपनी भाभी के घर से आते समय लापता हो गई थी। 29 अक्टूबर को इसकी गमुशुदगी की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई थी। दो नवंबर की रात में छात्रा का शव पास के ही जंगल मे जमीन के अंदर मिला था। 

शाहपुर थाना क्षेत्र के ग्राम जामुनढाना की लापता छात्रा का शव पांच दिनों बाद पास के ही जंगल में जमीन के अंदर मिला है। छात्रा की हत्या की आशंका जताई जा रही है। पुलिस ने फिलहाल मर्ग कायम कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने बताया कि गुरूवार ग्रामीणो को जंगल मे जमीन दबा हुआ शव दिखाई दिया। सूचना मिलने पर पुलिस ने इसे निकलवाया। शव के ऊपर रेत भी पड़ी हुई थी। पुलिस ने इसकी पहचान छात्रा कावेरी टेकाम ग्राम जामुनढाना के रूप में की। छात्रा की हत्या की आशंका जताई जा रही है। छात्रा का शव मिलने से क्षेत्र मे सनसनी फैल गई है। पुलिस ने फिलहाल मर्ग कायम कर जांच मे लिया है। छात्रा कावेरी के परिजनों ने इसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट 29 अक्टूबर को थाने में दर्ज कराई थी। बीईओ एसडी सोनी ने बताया कि छात्रा के परिजनों को 25 हजार रूपए की सहायता दी गई है। 18 वर्षीय छात्रा कावेरी पिता स्व. भारत सिंह टेकाम भौंरा कन्या स्कूल कक्षा 11 वी की छात्रा थी। कावेरी ग्राम भौंरा के कन्या छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रही थी। 

छात्रा 20 अक्टूबर को दशहरे की छुट्टी में घर आई थी। 27 अक्टूबर की रात अपनी छोटी भाभी सुखवंती के साथ गांव में ही बड़ी भाभी के घर जरूरी बात करने पहुंची थी। यहां से अकेले आने के दौरान शाम को लापता हो गई। कावेरी घर नहीं पहुंची तो परिजनों ने तलाश की। कहीं पर भी पता नहीं चलने पर पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। अनाचार एवं दुराचार का केन्द्र बनते चले जा रहे इन छात्रावासों एवं आश्रमो का करोड़ो का बजट सिर्फ अधिकारी एवं कर्मचारी दीमक बन कर चट कर खा रहे है। बैतूल जिले के तो ए हाल है कि यहां के छात्रावासों एवं आश्रमों में कोई रतलाम की सेव की गंध सुंघते सियार की तरह जा घुसता है तो कोई विदिशा के कबरबिज्जू की इनकी दिवारो में ही सेंध मारने में लगा हुआ है। दुराचार एवं अत्याचार के बाद अनाचार के इस माहौल में छात्रावासों की सुरक्षा के नाम पर एक मजबूत लाठी और कंधा भी नहीं है। छात्रावासों के अधिकांश कर्मचारी बुढ़े हो चुके है। सुरक्षा के नाम पर छात्रावास अधिक्षिका का पूरा परिवार छात्रावास में कुण्डली मार कर बैठा हुआ है। छात्राओं के चरित्र पर ऊंगलीयंा उठाने से पहले अधिक्षिकाओं के चरित्र को भी जान ले्रना जरूरी है। सावलमेंढ़ा का वार्डन एवं सहायक वार्डन का प्रेम प्रसंग कम शर्मनाक नहीं है। जब शिक्षक एवं शिक्षिका ही दुराचार करने लगे तब लोगो को उन पर क्या पूरे सिस्टम पर ऊंगलियां उठाने का मौका तो देगी। बैतूल जिले में दुराचार पूरे प्रदेश में अव्वल है और वह तब जब बैतूल जिले की प्रशासन और कानून व्यवस्था का पूरा दामोदार उन कंधो पर है जो उसी समाज से आते है।

बैतूल जिले के छात्रावासों में पांव पसार रहे दुराचार एवं अनाचार से अनजान बने के पीछे की कहानी शर्मसार कर देने वाली है। बैतूल जिले में केवल छात्रावासों एवं आश्रमों में अधिक्षिका का पद उन लोगो के लिए चारागाह बने हुए है तभी दस से बीस साल तक एक पद घुम - घुम कर कुण्डली मार कर बैठे इन विषधरो ने अपनी महत्वाकांक्षा में अब आदिवासी और दलितो लड़कियों की भी बलि देनी शुरू कर दी है। किसी भी छात्रावास में खास कर बालिका छात्रावास में अधिक्षिका उसी समाज की तथा उसी स्कूल से सबंद्ध होनी चाहिए लेकिन बैतूल कलैक्टर साहब को आज तक यह नहीं पता कि किस छात्रावास की अधिक्षिका किस समाज की है तथा उसका अपना क्या चाल चरित्र (जो विभाग प्रतिवर्ष तैयार करता है) वह कैसा है...? । क्योकि जब एक शादीशुदा जवां बेटे की मां बन चुकी पौढ़ महिला वार्डन अपने से आधी उम्र के सहायक वार्डन के प्यार में पागल हो सकती है तब तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता। 

ताप्तीचंल के हाईटेक या आदर्श बैतूल की कल्पना तब तक बकवास है जब तक की ऐसी शर्मनाक घटनाओं पर रोक नहीं लग पाएगी। जानबुझ कर अनजान बने रहने का का मतलब यह नही होता कि जिले के जागरूक लोगो को यह पता नहीं कि बैतूल जिले के छात्रावासों के इतने मामले कलैक्टर साहब एवं जन सुनवाई में लाने के बाद कलैक्टर के द्वारा करवाई जाने वाली जांच के बाद उनकी जानकारी में आने वाले मामले का नाटकीय ढंग से पटाक्षेप क्यूं हो जाता है। शिकायत करने के बाद वे छात्राए और छात्र आखिर तथाकथित जांच के बाद यूं अचानक अपने पूर्व के ब्यान को क्यूं बदल देते है या उन्हे ब्यान बदलने के लिए विवश किया जाता है। आठनेर के छात्रावास के मामले में जनपद पंचायत के एक पदाधिकारी एवं भाजपा नेता की रंगरैलियों के समाचारों की तह तक जाने की किसी ने हिम्मत नहीं जुटाई एक सांध्य कालीन समाचार पत्र ने छापा प्रमाण दिए लेकिन जांच के नाम पर सब कुछ लीप पोत कर बराबर कर दिया गया। माउंवी में एक छात्रा की मौत हुई लेकिन शिवराज सिंह की स्वजाति महिला अपने दामन पर दाग लगाने से पूर्व धोकर पाक साफ हो गई। 

सवाल चिचोली, चिल्लौर , भीमपुर , या भैसदेही का नही पूरे जिले का है कि बैतूल जिले के सवा सौ से अधिक बालिका छात्रावास एवं आश्रमों में छात्रावास अधिक्षक के अलावा जब कोई नहीं रह सकता तब वहां पर होटल वाले से लेकर उनके पति परमेश्वर क्या करते है। चिल्लौर में जब ऐसे ही आरोप लगे थे तो छात्रावास अधिक्षक को हटा दिया गया लेकिन जांच में आरोपो की छात्राओं ने पुष्टि नहीं की तो कारण कुछ और बता दिया गया। बैतूल जिले में महिला छात्रावास अधिक्षक अपने पतियों के साथ कैसे रहती है। उनके साथ उनका परिवार किस अनुमति के साथ खाने से लेकर सोने तक की सुविधा भोग रहा है। सबसे शर्मनाक बात तो यह आ रही है कि अधिकांश छात्रावास अधिक्षका ऐसी है जिन्हे दस से बीस वर्ष हो गए लेकिन उनका छात्रावास प्रेम आज तक टूटा नहीं। कुछ तो ऐसी भी है जो कि पचास - पचास हहजार रूपए खर्च करने के बाद पांच दिन भी रह नहीं पाई लेकिन उसके बाद भी पचास हजार का जुआ खेलने के लिए हमेशा तैयार रहती है। छात्रावासों की पोस्टिंग बैतूल जिले में गोरखधंधा ही नहीं जिस्म का धंधा भी बन गया है। आज भी जिले के अधिकांश छात्रावासों में बिना शासन की अनुमति के गोपनीय ढंग से प्रमि माह छात्राओं का मासिक कौमार्य परीक्षण किया जाता है। जब छात्रा दिन में स्कूल और रात को स्कूल से लगे छात्रावास में रहती है तब ऐसे परीक्षण की क्या जरूरत है..? 

सवाल का कोई जबाब नहीं क्योकि अधिकारियों को सेवा और मेवा देने में वे छात्रावास कभी पीछे नहीं हटते है। ताजा घटनाक्रम के पीछे की कहानी भी छात्रावास की अंधेरगर्दी से जुड़ी हुई है। जब नियम में साफ लिखा है कि बालिग हो या नाबलिग कोई भी छात्रा को उसके पालक या परिजन के हाथो ही सौपा जाए जब जामुनढाना की कावेरी को अकेले क्यूं जाने की अनुमति दी गई। बीती 27 अक्टुबर से घर के लिए निकली कक्षा 11 वी की आदिवासी छात्रा कावेरी के साथ क्या कुछ हटा यह तो उसकी लाश की पीएम रिर्पोट आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन अकेली छात्रा अकारण मर नहीं सकती कोई न कोई वजह तो होगी उसकी मौत की जो छात्रावास की अंधेरगर्दी को बयां करती है। 

बैतूल जिले के अधिकांश छात्रावासों की यह हालत है कि छात्रावासों में छात्राओं के लिए सुविधा के नाम पर सिर्फ दुविधा ही दिखाई पड़ती है और छात्रावस अधिक्षिकाओं की बैतूल में गगन चुम्बती आलिशान बिल्डींग जो कि इस बात का अहसास कराती है कि छात्रावास बैतूल जिले में चारागाह बन चुके है। बैतूल जिले में आज भी पुरूष कर्मचारी बालिका छात्रावासों में काम ही नहीं कर रहे है बल्कि अनुउपस्थित वार्डन एवं सहायक वार्डन की जगह काम कर मौज मस्ती कर रहे है। शर्मनाक बात तो यहां तक है कि जिले के अधिकांश छात्रावासों की वार्डन , सहायक वार्डन, चौकीदार,खानसामा अपने पति एवं परिवार के साथ छात्रावास एवं आश्रम कैम्पस में रह रही है। आठनेर में तो यहां तक स्थिति देखने में आई कि अधिक्षका के पति के यार दोस्त भी छात्रावास में कड़कनाथ की सेवाओं के साथ शराब के नशे में धूत मिल चुके है। खबर तो यहां तक है कि बरसो से अंगद के पांव की तरह जमें बैतूल जिले के 60 से 70 प्रतिशत छात्रावासों एवं आश्रमो के पुरूष कर्मचारी शराब के नशे के आदी है। इसी कड़ी में छात्रावासो की वार्डन एवं सहायक वार्डन तलाकशुदा , विधवा एवं पति से अलग रह रही है। ऐसे में स्वभाविक जरूरतो की पूर्ति के लिए सावलमेंढ़ा जैसे कृत्यों की घटनाएं जन्म लेती है। 

खबर तो पिछले दरवाजे से यह भी आई है कि छात्रावासों एवं आश्रमों में अचानक निरीक्षण किया जाए तो वहां पर कौमार्य परीक्षण एवं मासिक धर्म के टेस्टींग के पचास रूपए वाले उपकरण मिल जाएगें। कौमार्य परीक्षण की शिकायतों के मामले में भी जन सुनवाई तक पहुंचने के बाद दब चुके है। चिल्लौर में एक आदिवासी छात्रा रामकली (परिवर्तित नाम ) को छात्रावास से हटाने के पीछे का सच कहीं न कहीं उसके मासिक परीक्षण के बाद सामने आई सच्चाई से भी जोड़ कर देखा जा चुका है। बदनामी के डर से छात्रा के परिजनो ने बाद में छात्रावास अधिक्षका के पति के चरित्र पर ही ऊंगलियां उठाई जो बाद में जांच में झुठी पाई गई। आठनेर में छात्रावास में भाजपाई नेताओं की रंगरैलियों के किस्से भी इसी कड़ी में मासिक धर्म टेस्ट्रींग रिर्पोट (कौमार्य परीक्षण) की कहानी बयां करते है। सवाल यह उठता है कि बैतूल कलैक्टर पूरे मामले मे ंछात्रावासों की आज तक मिली शिकवा - शिकायतों पर कार्रवाई से बचते क्यूं चले आ रहे है। बात - बात पर कर्मचारियों एवं अधिकारियों को जेल में डाल देने की धमकी देने वाले जिला कलैक्टर की आखिर ऐसी कौन सी नब्ज दबी हुई है कि सर्व शिक्षा अभियान एवं आदिम जाति कल्याण विभाग के बालक एवं बालिका छात्रावास एवं आश्रमों के वार्डन एवं सहायक वार्डन पर ऐसी कोई तारीफे काबिल कार्रवाई नहीं हो सकी है।

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