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Sunday, January 6, 2013

शिवराज सिंह अपने स्वजाति बीएमओं को बचाने के चक्कर में


शिवराज सिंह अपने स्वजाति बीएमओं को बचाने के चक्कर में हमारी इज्जत को तार - तार कर रहा है
तीसरी बार जांच से दुखी यौन उत्पीडऩ की शिकार महिला स्वास्थ कर्मचारियों का मुख्यमंत्री पर आरोप

बैतूल  // रामकिशोर पंवार

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ जमकर नारेबाजी एवं हंगामा करने वाली लगभग चार दर्जन से अधिक महिला स्वास्थ कर्मचारियों ने खुले आम आरोप लगाया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने स्वजाति बीएमओं को बचाने के लिए हमारी इज्जत को जांच के बहाने तार - तार करने में लगे है। 

उल्लेखनीय है कि आमला ब्लॉक के तत्कालीन बीएमओ डॉ बीपी चौरिया के विरूद्ध वहां की महिला स्वास्थ्य कर्मचारियों ने यौन उत्पीडऩ, दैहिक शोषण, अपमानजनक आचरण, प्रताडऩा जैसे गंभीर आरोप लगाते हुए कई स्तर पर शिकायतें की, जिसमें बैतूल कलैक्टर बी चंद्रशेखर के निर्देश पर आईएएस अधिकारी के वासुकी ने जांच करने के बाद 22 मई 2012 को अपनी रिपोर्ट प्रशासन को फाइल कर दी। इस रिपोर्ट में डॉ. चौरिया पर लगे आरोपों को सत्य बताते हुए उनके खिलाफ कई धाराओं में प्रकरण दर्ज करने के लिए अनुशंसा की गई। इसी दौरान मध्यप्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने भी जांच की और जांच के बाद 14 अगस्त 2012 को अपनी जांच रिपोर्ट शासन को दे दी। इस जांच रिपोर्ट में भी डॉ. चौरिया के आचरण पर आरोपों को सही बताया गया और कार्रवाई की अनुशंसा की गई। पूरे मामले में न तो जिला प्रशासन ने कोई कदम उठाया और न ही पुलिस ने किसी प्रकार की कोई कार्रवाई की। इसी दौरान प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता माणक अग्रवाल ने भोपाल में एक पत्रकारवार्ता लेते हुए पूरे मामले में कई सवाल खड़े किए।अचानक ही इस मामले में एक बार फिर जांच खड़ी हो गई, जिसमें स्वास्थ्य विभाग के कमिश्नर द्वारा डिप्टी डायरेक्टर डॉ. तारा सक्सेना के नेतृत्व में तीन सदस्यीय दल नियुक्त किया गया। 

इस दल ने मामले में जांच का विषय डॉ. नमिता नीलकंठ द्वारा की गई झूठी शिकायतों की जांच बताया और इसी आधार पर डॉ. नमिता नीलकंठ सहित 20 अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को 5 जनवरी दिन रविवार को बैतूल सीएमएचओ कार्यालय तलब किया गया। यौन उत्पीडऩ और दैहिक शोषण जैसे संवेदनशील मामले में जांच के लिए बनाए गए दल में दो पुरूष अधिकारियों को भी शामिल किया गया। बैतूल पहुंचे इस दल ने पहले तो अपने आने के कारण और जांच के विषय को सही स्थिति स्पष्ट करने की जगह लगातार गुमराह करने वाले जवाब दिए।अचानक कर्मचारी संगठनों के नेताओं के पहुंचने के बाद सीएमएचओ कार्यालय में जांच के विषय और तरीके को लेकर हाईवोल्टेज हंगामा हो गया। अजाक्स अध्यक्ष अनिल काप्से, केएल ठाकुर और चौहान ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जब जिला प्रशासन एक आईएएस अधिकारी से जांच करा चुका है और इसके बाद अनुसूचित जाति आयोग जैसी संवैधानिक संस्था मामले की जांच कर चुकी है, तो फिर इस जांच का औचित्य क्या है। इन कर्मचारी नेताओं ने इस बात पर भी आपत्ति लगाई कि जांच में जांचकर्ता अधिकारियों द्वारा अपने मनमाने तरीके से बनाई गई प्रश्नावली पर जबरन बयान लिए जा रहे हैं, जो कि किसी भी लिहाज से जांच का सही तरीका नहीं है। इन तथ्यों को लेकर करीब 25 मिनट तक जांचकर्ता अधिकारी और कर्मचारी नेताओं के बीच बहस होते रही। सीएमएचओ कार्यालय में बयान के दौरान पूछे गए सवालों से मुलताई में पदस्थ स्टाफ नर्स वनिता उबनारे की आंखों से आंसू निकल पड़े और उन्होंने जांच की प्रश्नावली के सवालों की भाषा को लेकर भी अपनी पीड़ा जाहिर की। उन्होंने अपनी पीड़ा को जिस तरीके से सार्वजनिक रूप से बयान किया, उससे वहां मौजूद सारे लोग हतप्रभ थे और थोड़ी देर के लिए जांचकर्ता भी सकते में आ गए थे। 

वनिता उबनारे ने धाराप्रवाह तरीके से आक्रोश में एक बार फिर डॉ. चौरिया पर आरोपों की झड़ी लगा दी। मामले में जांच के लिए पहुंची डॉ. नमिता नीलकंठ ने जांच के औचित्य पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि इसका मकसद क्या है। उन्होंने बताया कि पूर्व में यही जांचकर्ता अधिकारी बिना किसी सूचना के आमला पहुंचे थे और बिना बयान लिए वापस आ गए थे। अब इसके बाद पुन: यह सब हो रहा है। उनका कहना था कि जब महिलाएं पहले अपने बयान दे चुकी हैं और आयोग ने अपनी रिपोर्ट दे दी है, तो उस पर कार्रवाई होना चाहिए। उन्होंने जांच के विषय पर ही सवाल खड़े किए हैं। राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने 14 अगस्त को शासन को अपनी रिपोर्ट दी है, उसमें डॉ. चौरिया पर लगे आरोपों को सही ठहराते हुए उनके विरूद्ध एट्रोसिटी एक्ट के तहत विशेष पुलिस थाने में प्रकरण दर्ज कराने, 20 वर्ष की सेवा या 50 वर्ष की उम्र पूर्ण करने पर घृणित कृत के लिए अनिवार्य सेवानिवृत्त दिए जाने और इन्हें शासकीय सेवा के योग्य नहीं माना। वहीं डॉ. चौरिया को सहयोग करने वाले चार कर्मचारियों को जिले के बाहर स्थानांतरित करने की अनुशंसा की थी और पूरे मामले में 15 दिन में पालन प्रतिवेदन मांगा।

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