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Thursday, March 21, 2013

प्रपंचकारी- सत्यानाशी सोच


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डॉ. शशि तिवारी 
केन्द्र सरकार कानून 354 भारतीय दण्ड संहिता में संशोधन करने पर तुली हुई है, जिसमें 16 वर्ष की लडक़ी किसी भी पुरूष के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिये स्वच्छंद होगी लेकिन शादी के लिये 02 वर्ष का इन्तजार अर्थात् 18 वर्ष के पहले नहीं कर सकती है। ये निर्णय ठीक ऐसा ही है, कि गुड़ तो खाओ लेकिन गुल-गुले से परहेज। मंद बुद्धिजीवियों का तीखा प्रहार कहीं न कहीं पाश्चात् सभ्यता से प्रभावित हो नारी को केवल और केवल उपभोग से ज्यादा और कुछ नहीं समझ रहे है। एक ओर जहां सिने जगत ने नारी के तन से कपड़े छीने है वही समाज के, कानून के जिम्मेदार लोग औरत से औरत का शरीर ही छीनने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।  कहने को, दिखाने को राज्य एवं केन्द्र सरकार लड़कियों, महिलाओं एवं कन्या भू्रण हत्या के लिए न केवल किस्म-किस्म की योजनाएं चलाते नहीं थक रही, वही दूधमुंही बच्चियों से लेकर अधेड़ उम्र की महिला तक महफूज नहीं है। कोख से ही कन्या के प्रति होती ज्यादती जन्म से पहले और जन्म के बाद से मृत्यु तक केवल और केवल डर के ही साये में जीने को मजबूर है।

नारी का शोषण चाहे दैहिक स्तर पर या भावात्मक स्तर पर हो, हो ही रहा है, फिर चाहे वह पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़ हो, सिर्फ तौर तरीके में ही अंतर रहा है। इसीलिए आज नारी सशक्तिकरण की बात करते न थकने वाले ही शोषण में संलिप्त है। आज उच्च अधिकारी से लेकर कर्मचारी स्तर की महिलाएं कही न कही न केवल डरी हुई है बल्कि समय-समय पर आघात का शिकार भी होती रहती है। ऐसी खबरे आये दिन मीडिया एवं अखबारों की सुर्खियां बनती ही रहती है। इस देश में हमारे ऋ षि मुनियों ने भोग एवं योग पर उच्च स्तरीय शोध एवं चिन्तन किया है, इसीलिए हमारी भारतीय संस्कृति में चार आश्रमों का वर्णन है। जब-जब इनकी सीमाओं का अतिक्रमण होगा तब-तब वर्जनाएं ध्वस्त होगी। विश्व को दिशा देने का सपना देखने वाला भारत न जाने कब पथ भ्रष्ट हो गया है, यह एक चिंतनीय विषय है। शादी 18 की उम्र में सेक्स 16 में ये घटिया वाहियाद कुतर्क प्रश्न आखिर देश व समाज को किस दिशा में ले जाना चाहता है? आज कम उम्र की बिन ब्याही लड़कियों की संख्या में इजाफा हुआ है। अभी हम पश्चिमी संस्कृति के शिकार ‘‘लिव इन रिलेशन’’ के घटिया विचारों के कुचक्र के दुष्परिणामों, टूटते सामाजिक ताने-बाने से उबर ही नहीं पाए कि 18 से 16 वर्ष की उम्र में पड़ गए। क्या हमारे भाग्य विधाताओं ने सामाजिक समरसता का तानाबाना को नष्ट करने को ही मानो कसम खा रखी हैं? इस विकृति के लिए समाज तो दोषी है ही है लेकिन वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था भी कोई कम दोषी नहीं है।

आज दुष्कर्मी, दुराचारी जानता है कि अपनी ऊँची पहुंच के चलते, तो कभी स्वयं प्रभावशाली राजनीतिज्ञ अपने पदो ंके दुरूपयोग के चलते, तो कभी अपने को कानून के ऊपर रखने, तो कभी जन प्रतिनिधित्व कानून में कमी के चलते, कभी सेक्स स्केण्डल काण्ड, तो कभी भयाक्रांत माहौल निर्मित करने में ही अपनी आन और शान समझ रहा है। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि देश की स्वतंत्रता के 66 वर्षों बाद यदि तेजी से किसी चीज में गिरावट आई है तो वह है चरित्र, चरित्रहीन लोग आज हर राजनीतिक पार्टी में मौजूद हैं। अब ऐसा लगता है राजनीतिक पार्टियां भी ऐसे लोगों को रखने में न केवल गौरवान्वित महसूस करती है बल्कि अपनी हद से निकल उनका बचाव भी करती है और अपने राजनीतिक लाभ के लिए चूहे-बिल्ली की तरह लड़ अपने को उजला और सामने वाले को घटिया सिद्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती।

सामान्यत: हम घटनाओं से सबक ले सीख लेते हैं, यह प्राकृतिक एवं सहज प्रक्रिया भी है। लेकिन दिक्कत तब शुरू होती है जब इनसे हम कोई सीख न ले। केवल घटना पर अफसोस जताने को ही अपनी आदत में शुमार कर लेते हैं ओैर राजनीति का तडका लगा अपने को दोषमुक्त समझने लगते है।  ऐसी ही कुछ घटनाएं अभी हाल में न केवल घटित हुई है बल्कि बदस्तूर जारी भी है फिर चाहे वह दिल्ली की चलती बस में दामिनी की घटना हो या इन्दौर में चलती बस में दामिनी हो या शाजापुर में ढाई साल की बच्ची के साथ ज्यादती या भोपाल मेंं घटित काजल हो या दतिया में घटित विदेशी पर्यटक स्विटजरलैंड मूल की महिला के साथ गैंगरेप की घटना हो। ऐसी ही घटनाएं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर न केवल प्रदेश को कलंकित करती है बल्कि देश के ऊपर भी एक स्याह धब्बा लगाती है। वक्त ईमानदार प्रयास और कठोरता से कानून का पालन कराने का है। शारीरिक संबंध के लिए लड़कियों को उम्र 18 से 16 करने का विरोध सभी राजनीतिक पार्टियों को मत और मनभेद से ऊपर उठ भारतीय संस्कृति को बचाने के लिये एक जुटता दिखानी ही होगी।  


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