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Saturday, March 23, 2013

उपभोक्ता अदालतें भी करती हैं भेदभाव!


संजय दत्त को जिस अपराध में सजा दी गयी है, उसमें उसे पहले ही विशेष कोर्ट द्वारा बहुत ही कम सजा दी गयी, अन्यथा देश के दुश्मनों और आतंकियों से सम्बन्ध रखने और उनसे गैर-कानूनी तरीके से घातक हथियार प्राप्त करने और उन्हें उपने घर में रखने। आतंकियों के बारे में ये जानते हुए कि वे आतंकी हैं, उनसे गले लगकर मिलने जैसे गम्भीर आरोपों में यदि अन्य कोई समान्य व्यक्ति फंसा होता तो निश्‍चय ही उसे भी आतंकी करार दे दिया गया होता। ऐसे में मात्र गैर-कानूनी रूप से हथियार रखने के छोटे जुर्म के लिये ही संजय दत्त को दोषी ठहराया जाना अपने आप में अनेक प्रकार के सवाल खड़े करता है? यदि संजय दत्त के स्थान पर कोई संजय खान रहा होता तो और चाहे उसकी ओर से कितने ही समाज सेवा के काम किये गये होते उसे अदालत के साथ-साथ समाज की ओर से भी कभी भी नहीं बक्शा जाता।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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संजय दत्त एक अच्छे अभिनेता हैं और इसके साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा सिद्धदोष अपराधी हैं, बेशक सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिस मामले में उसे दोषी ठहराया गया है, वह अपराध बीस वर्ष पुराना है! वर्तमान में संजय दत्त को दोषी ठहराया जाना अनेक लोगों को हजम नहीं हो रहा है। सुनियोजित तरीके से मीडिया में ऐसे बयान आ रहे हैं, मानों संजय दत्त को जेल में डाल देने से देश का बहुत बड़ा नुकसान हो जायेगा। संजय दत्त के बारे में ऐसी स्टोरीज (कहानियॉं) सामने लायी जा रही हैं, जिनको पढकर एक आम सामान्य व्यक्ति सोचने को विवश हो जाता है कि आखिर संजय दत्त जैसे मासूम और समाज सेवा के लिये समर्पित व्यक्ति को माफ क्यों न कर दिया जाये? सुप्रीम कोर्ट के जज रहे मार्केण्डेय काटजू भी महाराष्ट्र के राज्यपाल को बिन मांगी सलाह दे रहे हैं कि संजय दत्त की सजा को माफ कर दिया जाना चाहिये। अनेक राजनैतिक दल और फिल्मी हस्तियॉं भी इसी प्रकार के बयान जारी कर रही हैं। मीडिया भी बम्बई बम ब्लास्ट के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गयी सजा के बारे में समाचार प्रकाशित/प्रसारित करने के बजाय संजय दत्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गयी सजा पर इस प्रकार से कहानियॉं और परिचर्चाएँ प्रकाशित/प्रसारित कर रहा है, मानों सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त को सजा सुनकर कोई अनहोनी कर दी हो!

पिछले कुछ समय से हमारे देश में यह देखने में आया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी अपराधी को माफ कर देने या उसकी फांसी माफ कर देने की मांग करने लगा है। ऐसे अपराधियों में आतंकी भी शामिल होते हैं। मैं समझता हूँ कि यह इसी का परिणाम है कि संजय दत्त जैसे सिद्धदोष अपराधी को मासूम घोषित करने की होड़ लगी हुई है। ऐसे में विचारणीय सवाल यह है कि ख्यातनाम लोगों को सजा देने को लेकर जो कुछ भावनाएँ मीडिया द्वारा प्रायोजित तारीके से सामने लायी जा रही हैं, उसके पीछे असल बातें छिप रही हैं।

बॉलीवुड के अरबों रुपये और उद्योग जगत के विज्ञापनों पर संजय दत्त के नाम से किये गये खर्चे और निवेश की भरपाई तभी ही सम्भव है, जबकि संजय दत्त को येनकेन प्रकारेण जेले जाने से रोका जा सके और दूसरी गम्भीर बात ये है कि आज यदि पूर्व मंत्री सुनीद दत्त के बेटे और ख्यात अभिनेता संजय दत्त को कैद काटनी पड़ी तो कल को दूसरे वर्तमान और पूर्व मंत्रियों या खुद महान हस्तियों या उनके बेटे-बेटियों या परिजनों को दोषी पाए जाने पर, सजा से कैसे बचाया जा सकेगा? ऐसे में संजय दत्त को प्रायोजित तरीके से मासूम, समाज सेवी और महामानव की भॉंति प्रचारित किया जा रहा है।

यदि हम वास्तव में कानून द्वारा शासित नागरिक हैं और सच में एक लोकतांत्रिक देश में निवास करते हैं तो हमें इस बात की ओर ध्यान क्यों नहीं देना चाहिये कि आज यदि एक संजय दत्त को इस आधार पर कैद भोगने से वंचित कर दिया जाता है कि वह बीस साल बाद सुधर गया है, अब वह अपराधी नहीं रहा है तो फिर तो ऐसे हजारों मामले सामने आने लगेंगे। चूंकि संजय दत्त तो एक ख्यात नाम है सो उसके अच्छे-बुरे कामों के बारे में जन-जन को पता है, लेकिन समाज में ऐसे हजारों आरोपी और गुनाहगार हैं, जो जमानत पर छूटने के बाद संजय दत्त से भी अधिक सज्जन नागरिक बन चुके हैं और संजय दत्त से कई गुना अधिक देशभक्त, समाजसेवी और भले मानव बन चुके हैं, ऐसे में उनको भी यदि कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया जाता है तो क्या उन्हें भी माफ करने के लिये कोई दलील पेश करके या अभियान चलाया कर बचाया जा सकेगा? कभी नहीं!

अत: हमारे द्वारा भावनाओं में बहकर किसी भी दोषी के प्रति आज सहानुभूति प्रकट करना कल अनेक मुसीबतों को आमंत्रित करना होगा। बेशक तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया जो औद्योगिक घरानों का असली प्रतिनिधि हैं और उन्हीं की भाषा बोलता है, लेकिन देश के कानून का सम्मान करने और कानून के अनुसार संजय दत्त को पांच वर्ष की कैद भुगताकर हमें एक मिसाल कायम करनी चाहिये कि हमारे देश में कानून के समक्ष सभी को समान समझा जाता है। सभी को कानून का सम्मान करना ही होता है। अन्यथा इसके विपरीत हम सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को धता बताकर कोई ऐसी पतली गली निकालते हैं, जिसके जरिये संजय दत्त को सजा भोगने से बचा लेते हैं तो इससे अत्यन्त ही नकारात्मक संदेश जाने वाला है।

संजय दत्त को जिस अपराध में सजा दी गयी है, उसमें उसे पहले ही विशेष कोर्ट द्वारा बहुत ही कम सजा दी गयी, अन्यथा देश के दुश्मनों और आतंकियों से सम्बन्ध रखने और उनसे गैर-कानूनी तरीके से घातक हथियार प्राप्त करने और उन्हें उपने घर में रखने। आतंकियों के बारे में ये जानते हुए कि वे आतंकी हैं, उनसे गले लगकर मिलने जैसे गम्भीर आरोपों में यदि अन्य कोई समान्य व्यक्ति फंसा होता तो निश्‍चय ही उसे भी आतंकी करार दे दिया गया होता। ऐसे में मात्र गैर-कानूनी रूप से हथियार रखने के छोटे जुर्म के लिये ही संजय दत्त को दोषी ठहराया जाना अपने आप में अनेक प्रकार के सवाल खड़े करता है? यदि संजय दत्त के स्थान पर कोई संजय खान रहा होता तो और चाहे उसकी ओर से कितने ही समाज सेवा के काम किये गये होते उसे अदालत के साथ-साथ समाज की ओर से भी कभी भी नहीं बक्शा जाता।

इसलिये हमें अपराधी के व्यक्तिगत नाम, उसकी ख्याति, प्रतिष्ठा या उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि आदि को देखे बिना उसे सिर्फ और सिर्फ अपराधी ही मानना चाहिये और समाज को संजय दत्त को भी उन लाखों लोगों की भांति अपने किये की सजा भुगतने देनी चाहिये, जिनको बचाने वाला कोई नहीं होता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो देश में एक नयी और गैर-कानूनी ऐसी धारणा का अभ्युदय होगा, जिसके तहत समर्थ और विख्यात लोगों के प्रति मीडिया के मार्फत प्रायोजित सहानुभूति जगाकर उन्हें आसानी से बचाया जा सकेगा! ये रास्ता हमें अन्धकार और अन्याय की ओर ले जाता है और ऐसे ही मनमाने और गैर-कानूनी कारनामें समाज में असन्तोष और आपराधिक माहौल को जन्म देते हैं। यदि एक पंक्ति में कहें तो संजय दत्त को बचाना आग से खेलना है। अन्तत: ऐसे मनमाने कारनामों की परिणिती नक्सलवाद जैसे विकृत रूपों में नजर आती है। चुनाव हमें करना है कि हम कानून का शासन चाहते हैं या जानबूझकर कानून और न्याय-व्यवस्था को धता बताकर नक्सलवाद जैसे हालातों को आमंत्रित करना चाहते हैं?

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