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Tuesday, March 19, 2013

मीडिया मैनेजमेंट में मास्टर हैं मोदी


(लिमटी खरे)
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भाजपा के नए उभरते नेता नरेंद्र मोदी इस समय मीडिया पर छाए हुए हैं। उनके मीडिया सलाहकार उनकी छवि का निर्माण जमकर करने पर तुले हुए हैं। सोशल मीडिया में अनेक एकाउंट्स बनाकर मोदी को देश का सबसे ताकतवर नेता प्रोजेक्ट किया जा रहा है। वहीं कांग्रेस इस मामले में बुरी तरह पिछड़ती नजर आ रही है। भाजपा में नरेंद्र मोदी के समकक्ष समझे जाने वाले शिवराज सिंह चौहान, डॉ.रमन सिंह और सुषमा स्वराज का मीडिया मैनेजमेंट कमजोर ही है। सोशल मीडिया में कांग्रेस पर एक के बाद एक वार करते हुए नरेंद्र मोदी की टीआरपी (टेलीवीजन रेटिंग प्वाईंट) बढ़ाने का काम अनेक एजेंसियों के हवाले है। गुजरात का जनसंपर्क महकमा भी उनके लिए मीडिया को साधे हुए है। वहीं दूसरी ओर शिवराज का मीडिया प्रबंधन जीरो ही नजर आ रहा है। शनिवार को दिन भर एक निजी चेनल पर नरेंद्र मोदी ही छाए रहे। जानकार इसे मोदी के विज्ञापन के बतौर ही देख रहे हैं, पर आम दर्शक तो मंत्रमुग्ध होकर उन्हें देख सुन रहे हैं।

गुरू गुड़ चेला हो गए शक्कर!
उड़ीसा के निजाम नवीन पटनायक बेहद परेशान हैं। इसका कारण उनका पर्स चोरी होना है। पर्स का तातपर्य उनके अघोषित खजांची का उनसे टूटकर जाना है। चर्चा है कि नवीन पटनायक के सारे हिसाब किताब रखने वाले प्यारी मोहन महापात्र अब उनके साथ नहीं हैं। नवीन पटनायक द्वारा वैध अवैध तरीके से संचित धन महापात्र के साथ ही चला गया। अब पटनायक को पास पाटी चलाने के लिए भी लाले पड़ रहे हैं। उधर, महापात्र ने नवीन से सारे गुर सीखकर उड़ीसा जनमोर्चा का गठन कर नवीन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। महापात्र का कहना है कि अगर वे सत्ता में आए तो पश्चिमी उड़ीसा को स्वायत्ता दिलाने के साथ ही साथ संबलपुरी भाषा को राजभाषा का दर्जा भी दिलवाएंगे। इतना ही नहीं पश्चिमी उड़ीसा में एक अलग हाईकोर्ट भी होगा। महापात्र चूंकि नवीन के साथ रहे हैं अतः उन्हें नवीन के बारे में सारी जानकारियां हैं, यही कारण है कि वे अपने भाषणों में इशारों ही इशारों में पटनायक को पटखनी दे रहे हैं।

कौन भोगेगा चालीस हजार का भोगमान!

सरकारी खजाने से भले ही एक रूपए की फिजूलखर्ची की जाए या एक करोड़ की, दोनों ही अवैध है। केंद्र के एक चर्चित मंत्री के विभाग में उनके काफिले की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई। उसके सुधार में खर्च होने वाले चालीस हजार रूपए की रकम का भोगमान कौन भोगे इस बारे में अब सब बगलें झांकते नजर आ रहे हैं। दरअसल, दिल्ली सहिए देश भर में नामी स्कूल की एक चेन के प्रमुख रहे वर्तमान में केंद्र में विवादस्पद मंत्री के कान्वाय की एक कार को उनके जानने वाले चहेते अपने निजी उपयोग में ला रहे थे। दिल्ली के एक अखबार के अनुसार उक्त बड़बोले मंत्री के कथित चम्मच उनके मंत्रालय की कार का उपयोग अपने रिश्तेनाते दारों को एयरपोर्ट छोड़ने के लिए कर रहे थे, रास्ते में कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई। कार की मरस्मत पर चालीस हजार रूपए का खर्च आया। अब मंत्रालय संशय में है कि वह बिल के भुगतान के लिए मंत्री जी से कहे तो कैसे?

ठाकुरों से पल्ला झाड़ते अखिलेश!

उत्तर प्रदेश में कभी ठाकुरों का बोलबाला हुआ करता था। कांग्रेस ने सदा ही ठाकुरों को सर माथे पर बिठाया तो अब भाजपा ने अपनी नैया राजनाथ सिंह के हाथों में देकर ठाकुरों को लुभाने का जतन किया है। इससे उलट उत्तर प्रदेश के निजाम अखिलेश यादव ने अब उल्टी सोशल इंजीनियरिंग करना आरंभ कर दलितों को लुभाने का प्रयास किया है। अखिलेश यादव ने ठाकुरों को पदावनत करना आरंभ किया है ताकि पिछड़ी जाति के लोग सपा का साथ खुलकर दे पाएं। हाल ही में अखिलेश ने तीन ठाकुर मंत्रियों के पर कतरे हैं। परिवहन मंत्री दिनेश सिंह को स्टाम्प और पंजीयन, राजा भैया से जेल मंत्रालय वापस लिया गया तो राज किशोर सिंह को ग्रामीण इंजीनियरिंग से हटा दिया गया है। माना जा रहा है कि अगामी लोकसभा चुनावों में अगड़ों के बजाए पिछड़ों को अपने करीब लाने का यह पहला कदम है।

देश के सबसे गरीब निजाम!

देश में अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा दिया है। हर कहीं सीएम लखपति और करोड़पति निकल रहे हैं। एसे में एक मुख्यमंत्री एसे भी सामने आए हैं जो सबसे गरीब सीएम कहकर पुकारे जा सकते हैं। त्रिपुरा के निजाम मानिक सरकार देश के सबसे गरीब मुख्मयंत्री हैं। उनके मंत्रीमण्डल में शामिल उनके सारे सहयोगी उनसे कहीं ज्यादा अमीर हैं। सरकार के पास ना घर है ना कार। वे आने जाने में सरकारी वाहन का प्रयोग करते हैं तो उनकी सरकारी सेवा से रिटायर पत्नि आवागमन के लिए बस या आटो का प्रयोग करती हैं। 2003 में उनके पास महज 3000 रूपए थे और 2013 में उनकी जमा पूंजी 1080 रूपए है। वे अपना सारा वेतन पार्टी को दान दे देते हैं बदले में पार्टी उन्हें पांच हजार प्रतिमाह देती है। मानिक सरकार के पास ना तो मोबाईल है और ना ही उनके पास कोई इंटरनेट पर ईमेल एकाउंट। हैं ना इक्कीसवीं सदी में पहला एसा नायाब मुख्यमंत्री भारत में।

यूपी ही बना राजनाथ के लिए परेशानी का सबब!

उत्तर प्रदेश से आते हैं भाजपा के नए निजाम राजनाथ सिंह। राजनाथ सिंह को अपनी टीम बनाने में पसीने आ रहे हैं। उनकी पेशानी पर छलकती पसीने की बूंदें उत्तर प्रदेश के कारण होने वाली परेशानी की साफ साफ चुगली करती दिख रही है। दरअसल, उत्तर प्रदेश राजनाथ सिंह का गृह प्रदेश है और वर्तमान में उत्तर प्रदेश से काफी सारे नेता कार्यकारिणी में हैं और पदाधिकारी भी हैं। अब राजनाथ अगर किसी उत्तर प्रदेश के नेता को ड्राप करते हैं तो उनके लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इन परिस्थितियों में वे अपनी पसंद के नेता को भी स्थान देते हैं तो उन पर भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बजाए उत्तर प्रदेश राज्य भाजपा के गठन के आरोप लगने लगेंगे। अभी मुख्तार अब्बास नकवी, विनय कटियार, कलराज मिश्र उपाध्यक्ष हैं। राजनाथ के करीबी रमापति राम त्रिपाठी अपने लिए लाबिंग कर रहे हैं उधर कल्याण सिंह भी लंगोट लगाकर तैयार खड़े हैं।

झल्लाने लगे हैं मोहन प्रकाश!

हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए मोहन प्रकाश पता नहीं क्यों काफी झल्लाए झल्लाए दिख रहे हैं। उनकी झल्लाहट का आलम यह है कि वे अपने आगे कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के सियासी मददगार अहमद पटेल और कांग्रेस प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी को भी कुछ नहीं समझ रहे हैं। मोहन प्रकाश गुजरात में कांग्रेस के औंधे मुंह गिरने पर अहमद पटेल को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। गुजरात की हार के बारे में जब उनसे पत्रकार प्रश्न करते हैं तो वे झल्लाकर कह उठते हैं जाईए अहमद पटेल से जाकर पूछिए। इसी तरह लगता है मोहन प्रकाश के रडार पर कांग्रेस प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी भी हैं। एक मर्तबा जब पत्रकारों ने उन्हें उकसाते हुए किसी मामले में उनका और कांग्रेस का पक्ष जानना चाहा तो लगभग चिल्लाते हुए मोहन प्रकाश बोल पड़े-''आपको मैं कांग्रेस का प्रवक्ता दिखता हूं, क्या? जाईए इस बारे में जनार्दन द्विवेदी से पूछिए वह हैं कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता।''


अव्यवस्था छाई रही भाजपा अधिवेशन में

भारतीय जनता पार्टी के तालकटोरा स्टेडियम में हुए अधिवेश में अव्यवस्थाएं जमकर हावी रहीं। दिल्ली भाजपाध्यक्ष विजय गोयल इस आयोजन के बाद राजनाथ सिंह की ब्लेक लिस्ट में शामिल होते दिख रहे हैं। समूचे अधिवेशन में टेंट, खाना पीना, पावर बैकअप, परिवहन आदि हर मामले में पदाधिकारियों को असुविधा का सामना करना पड़ा। आड़वाणी और राजनाथ समर्थकों ने आला नेताओं को अपना दर्द बयां किया तो दोनों ने इशारों ही इशारों में अपने उद्बोधनों में इस पर प्रकाश भी डाला। अब सवाल यह उठता है कि गोयल की इस तरह भद्द पिटने से ताली कौन पीट रहा था। एक तो सुधांशु मित्तल थे, जिनका टेंट हाउस भाजपा के प्रोग्राम्स में काम आता है, जो इस बार नहीं लिया गया। और दूसरी आरती मेहरा, जो कि खुद को शीला दीक्षित की टक्कर में भाजपा की सीएम इन वेटिंग बनने का ख्वाब देख रही हैं।

नितीश के लिए उजाड़ दिया बाग!

बिहार के निजाम नितीश कुमार पैदा हुए थे एक मार्च को। जिस तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी के जन्म दिवस के बारे में उनके चंद समर्थक ही जानते हैं उसी तरह नितीश भी सादगी पसंद हैं और उन्हें अपने जन्मदिन पर शोर शराबा पसंद नहीं है। उनके जन्म दिवस के बारे में किसी को पता नहीं था। 01 मार्च को जब नितीश विधानसभा पहुंचे तब वहां उद्योग मंत्री रेणु कुमारी ने उन्हें बड़ा सा गुलदस्ता भेंट कर उन्हें जन्म दिवस की बधाई दी। वहां खड़े विधायकों को जब इस बात की भनक लगी वे आनन फानन गुलदस्ते के इंतजाम में जुट गए। गुलदस्ते के आने में देरी को देखकर उन्होंने विधानसभा के बाग में लगे गुलाब के फूल तोड़ना आरंभ किया। माली ने दयनीय हालत में कहा साहब नौकरी चला जाएगा। विधायक कहां मानने वाले थे बोले -'अबे तेरा नौकरी की फिकर किसे है, इधर हमारा नौकरी जा रहा है।'

लाशों की बुनियाद पर तैयार होती बिजली!

बिजली के संकट से निपटने कोल आधारित पावर प्लांट्स स्थापित किए जा रहे हैं। कोयला आधारित पावर प्लांट्स से निकलने वाले उत्सर्जन के कारण देश में 2011-12 में करीब एक लाख लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। इनमें से करीब 8800 लोग दिल्ली और हरियाणा इलाके के हैं। सूत्रों की मानें तो पर्यावरण मामलों की जानी-मानी संस्था ग्रीनपीस और अर्बन इमिशंस द्वारा मुंबई के कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट की अगुवाई में की गई एक स्टडी से ये आंकडे़ सामने आए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि इन प्लांट्स की वजह से आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की जिंदगी बहुत तकलीफदेह हो गई है। बुजुर्गों और बच्चों की सेहत पर सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। आंकलन से साफ हो गया है कि इन पावर प्लांट्स से बड़े पैमाने पर सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पारे के साथ भारी मात्रा में कार्बन और अन्य महीन कण निकलते हैं। इनकी चपेट में आने वाले लोग अस्थमा, सांस और फेफड़ों की दूसरी कई बीमारियों, कैंसर और दिल के रोगों के शिकार हो रहे हैं।

पुच्छल तारा

इस समय सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स पर पत्रकारों की मश्के कसने की खबरें आम हैं। भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने पत्रकारों की न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने की बात कही है। उन्होंने इसके लिए एक समिति का गठन भी कर दिया है। जस्टिस काटजू के इस कदम से मीडिया की गर्दी छटना स्वाभाविक है। सोशल मीडिया में इस बारे में चिंतन चल रहा है बहस चल रही है। मीडिया में भीड़ तो कम हो जाएगी किन्तु जस्टिस काटजू ने जिस उद्देश्य यह किया है वह तो वे ही जानते होंगे पर एसा करने से क्या उनका उद्देश्य पूरा हो पाएगा। काश वे एसी पहल संसद और विधानसभा चुनावों लड़ने वालों के लिए भी कर पाते।

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