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Tuesday, April 23, 2013

दो लाख रूपये का एक सरकारी शौचालय


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मंहगा शौचालय सिर्फ देश के योजना आयोग में भी नहीं बनता है। एक प्रदेश ऐसा है तो अपने स्कूली छात्रों का इतना ध्यान रखता है कि एक एक शौचालय बनाने पर दो दो लाख रूपया खर्च कर देता है। आपको विश्वास हो न हो लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के सरकारी अधिकारियों और योजनाकारों ने प्रदेश के बच्चों का इतना अधिक ध्यान रखा है कि सरकारी स्कूलों में एक एक शौचालय बनाने पर दो दो लाख रूपये से अधिक खर्च कर दिया है।
जिस प्रदेश में पक्का मकान बनाने के लिए चलाई जा रही इंदिरा आवास योजना के मद में सिर्फ 70 से 75 हजार रूपये दिये जाते हों उस राज्य में सिर्फ सरकारी स्कूल में एक शौचालय बनाने के लिए सरकार अगर 2 लाख 9 हजार रूपये खर्च कर दे तो कोई भी वाह वाह कर उठेगा। लेकिन इतनी भारी भरकम रकम शौचालयों पर क्या सचमुच खर्च की गई है? आरटीआई के तहत इस बाबत सूचना प्राप्त करनेवाली उर्वशी शर्मा कहती हैं-"यह साफ साफ किसी घोटाले का संकेत है।" उर्वशी शर्मा का कहना गलत नहीं है। आधिकारिक रूप से एक शौचालय के लिए निर्धारित रकम सिर्फ 24 हजार रूपये ही है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत केन्द्र से राज्य सरकारों को जो धन आवंटित किया जाता है उसमें शौचालय के लिए निर्धारित रकम 24 हजार रूपये ही होती है लेकिन उत्तर प्रदेश के आला अधिकारियों ने केन्द्र सरकार को ठेंगा दिखाते हुए 2 लाख नौ हजार रूपये की दर से लागत दिखाकर रकम उगाही कर ली।

उर्वशी शर्मा ने सूचना अधिकार के तहत जो जानकारी हासिल की है उसमें अनुसार बीते पांच वर्षों में (2007-2012) उत्तर प्रदेश के संबंधित विभाग को 24 हजार रूपये प्रति शौचालय की दर से 11,902 शौचालय का निर्माण करवाना था। कागजों पर उन्होंने किया भी। लेकिन कीमत बढाकर शौचालयों की संख्या घटा दी गई। शौचालयों के लिए जो राशि स्वीकृत की गई थी वह 2856 लाख थी। यह रकम खर्च तो की गई लेकिन शौचालय बनाये गये महज 1538। क्योंकि पूरा पैसा खर्च करना था इसलिए इन शौचालयों के लिए लागत वह नहीं रखी गई जो भारत सरकार द्वारा निर्धारित है। प्रति शौचालय निर्माण की कीमत दिखाई गई है 2 लाख 9 हजार रूपये। इस लिहाज से सिर्फ 1538 शौचालयों के निर्माण पर ही 3251 लाख 81 हजार का बिल बना दिया गया। उसमें भी आश्चर्यजनक रूप से शौचालय मद में जो धन खर्च किया गया उसका 60 फीसदी अकेले आगरा डिविजन में खर्च किया गया जबकि शेष 40 प्रतिशत रकम में पूरे प्रदेश के सरकारी स्कूलों को समेट दिया गया।

उर्वशी शर्मा कहती हैं कि यह सीधे सीधे सरकारी अधिकारियों का घोटाला है। उनका कहना है कि उन्हें बड़ी मशक्कत के बाद यह जानकारी हासिल हो सकी है। उन्होंने पिछले साल अक्टूबर में इस बाबत जानकारी मांगी थी लेकिन जानकारी मिलने में तीन महीने से ज्यादा वक्त लग गया।  उर्वशी शर्मा का कहना है कि ''मेरे अनुसार इस प्रकार का असमान आवंटन प्रकरण में अनियमितताओं की ओर इशारा कर रहा हैl'' वे कहती हैं कि इस संबंध में वे चुप नहीं बैठेंगी बल्कि मुख्यमंत्री से मिलकर इस घोटाले की जांच कराने का निवेदन करेंगी क्योंकि यह सीधे सीधे बच्चों की मूलभूत सुविधा से जुड़ा हुआ है।

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