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Monday, May 13, 2013

अल्लाह का नाम लेकर मुसलमानों को कानूनी और लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर रहे हैं आजम खान- रिहाई मंच



तारिक-खालिद के मामलेे में सरकार ईमानदारी से निभाए राजधर्म
निमेष आयोग की रिर्पाट के आधार पर स्वतंत्र जांच एजेंसी से पुर्नविवेचना कराए सरकार
सपा मंत्रियों,  कार्यकर्ताओं पर से मुकदमा हटाने के वादे से नहीं मिली
थी सपा को सत्ता
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लखनऊ / रिहाई मंच ने बाराबंकी कोर्ट से तारिक-खालिद के मुकदमा वापसी के राज्य सरकार के प्रार्थना पत्र के खारिज हो जाने पर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खान द्वारा दिये गये बयान की उनकी सरकार अपील के लिए हाई कोर्ट जाएगी और वहां भी फैसला पक्ष में नहीं आया तो फिर अल्लाह की अदालत की शरण में जायेगी को अगंभीर व मुसलमानों को भ्रमित करने वाला करार दिया है।

रिहाई मंच के वरिष्ठ नेता और इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि सरकार अपना राज धर्म नही निभा रही है और उसे आजम खान जैसे लोग मुसलमानों को अल्लाह का वास्ता देकर सरकार को क्लीन चिट देने का वही काम कर रहे हैं जैसा कि उन्होंने कोसी कला दंगे समेत इस सरकार मंे हुये 27 बड़े दंगों मे सरकार को क्लीनचिट देकर करते आए हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार का राजधर्म यह था कि वे कचहरी धमाकों के आरोप में फंसाए गए तारिक और खालिद की बेगुनाही के सबूत निमेष आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार करके उसे विधानसभा में प्रस्तुत करती और उसके आधार पर दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्यवाही करती जिन्होने तारिक और खालिद का झूठा अभियोजन किया है। सरकार का यह दायित्व था कि वह निमेष आयोग रिपोर्ट के आधार पर स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराकर अदालत के सामने पूरक रिपोर्ट अंतर्गत धारा 173(8) दाखिल कराकर तारिक और खालिद को रिहा करने की प्रार्थना करती। परन्तु सरकार ने निमेष आयोग की रिपोर्ट को छिपाते हुए और मुसलमानों को गुमराह करते हुए अदालत में अंतर्गत धारा 321 प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया जिसे अदालत को खारिज करना ही था क्योंकि कोई मजबूत कारण मुकदमा वापसी का सरकार ने अदालत को नहीं बताया और न ही जिलाधिकारी द्वारा शपथपत्र प्रस्तुत   किया गया।

रिहाईमंच के महासचिव और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक श्री एस आर दारापुरी ने कहा कि जब सरकार द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किया गया प्रार्थनापत्र ही अधूरा और दोषपूर्ण है तो उस पर पारित आदेश के विरूद्ध अपील भी कमजोर और निरर्थक होगी। उन्हांेने  कहा कि आतंकवाद जैसे गंभीर आरोपों के मुकदमें में सरकार द्वारा मुकदमा वापसी का फैसला औचित्यपूर्ण और मजबूत आधार पर होना चाहिए जो कि निमेष आयोग की रिपोर्ट वह सभी तथ्य और साक्ष्य सरकार को उपलबध कराती है जिनके आधार पर मुकदमा वापसी का फैसला जनहित, मानवाधिकार और सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए लाभकारी प्रमाणित होता है। क्योंकि निमेष आयोग की रिपोर्ट यह प्रमाणित करती है कि किस प्रकार एजेंसियां एक विशेष वर्ग के निर्दोष युवकों को आतंकवाद के नाम पर झूठा फंसा रही है। इन हालात में जो सरकार निमेष आयोग की रिपोर्ट पर अमल नहीं कर रही उसे कैसे ईमानदार और राजधर्म का पालन करने वाली सरकार कहा जा सकता है।

रिहाई मंच के नेताओं ने कहा कि आजम खां को याद होना चाहिए कि वो बूढ़ और कमजोर लोग जो आतंकवाद के मामलों में झूठे फंसाए गये हैं, किस प्रकार का अमानवीय, यातनापूर्ण और बीमार अवस्था में जेलों के अंदर जी रहे हैं। रामपुर सीआरपीएफ हमले का आरोपी और रामपुर निवासी जंग बहादुर हार्ट की गंभीर बीमारी से ग्रस्त है। ऐसे में उसे या जेलों के अंदर लंबे समय से यंत्रणा झेल रहे आतंकवाद के नाम पर बंद किसी कैदी के साथ कोई अप्रिय घटना होती है तो इसकी जिम्मेदार वादा खिलाफ सपा सरकार होगी। नेताओं ने सपा सरकार द्वारा अपने मंत्रियों, सत्ता के हिमायती कथित उलेमाओं, कार्यकर्ताओं समेत 254 मुसलमानों पर से मुकदमा हटाने को आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों को छोड़ने के वादे से मुकरने पर मुसलमानों में व्याप्त गुस्से को नियंत्रित करने की हताश कोशिश करार देते हुए कहा कि इससे मुसलमान भ्रम में नहीं आनेे वाला क्योंकि चुनावी वादा अपने कार्यकर्ताओं पर से मुकदमा हटाने का नहीं बल्कि आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषोें पर
से मुकदमा हटाने का था।

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