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Monday, May 6, 2013

धोखाधड़ी के आरोपी को कठोर कारावास


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                          4.25 लाख रुपये का लगाया प्रतिकर


छतरपुर। न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी श्री प्रदीप दुबे की अदालत ने धोखाधड़ी करने वाले  एक आरोपी को एक साल के कठोर कैद के साथ 4 लाख 25 हजार रुपये का प्रतिकर की सजा सुनाई।


      एडवोकेट लखन राजपूत ने बताया कि जिला अन्त्याव्यवसायी सहकारी विकास समिति मर्यादित छतरपुर ऋण देने का कार्य करती हैं। थाना ईशानगर अंतर्गत रहने वाले आरोपी हीरालाल पुत्र उम्मेदा अहिरवार 45 वर्ष, निवासी परापट्टी ने एक मार्शल जीप खरीदने के लिये उक्त संस्था से ऋण लिया था। आरोपी हीरालाल ने उक्त ऋण के भुगतान करने के लिये अपने स्टेट बैंक ऑफ इंदौर स्थित बैंक खाता की तीन लाख रुपये की चैक दिनांक 28 जनवरी 2008 को जिला अन्त्याव्यवसायी सहकारी समिति को दी थी। उक्त चैक की राशि का भुगतान प्राप्त करने के लिये उसे बैंक खाता में जमा की गई। लेकिन आरोपी हीरालाल के बैंक खाता में पर्याप्त धनराशि ना होने से चैक का भुगतान करने से मना कर दिया। उक्त जानकारी जिला अन्त्याव्यवसायी सहकारी समिति द्वारा आरोपी हीरालाल को दी गई किंतु उसने ली गई ऋण राशि का भुगतान नही किया। तब उक्त संस्था के कार्यपालन अधिकारी द्वारा अदालत में धारा 138 पराक्रम्य लिखित अधिनियम 1881 के तहत मामला पेश किया गया। न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी श्री प्रदीप दुबे की अदालत ने मामले की अंतिम सुनवाई करते हुये आरोपी हीरालाल अहिरवार को धारा 138 पराक्रम्य लिखित अधिनियम के तहत अपराध का दोषी ठहराते हुये एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। साथ ही आरोपी हीरालाल द्वारा संस्था को दी गई तीन लाख धनराशि की चैक के स्थान पर 4 लाख 25 हजार रुपये का प्रतिकर भी अधिरोपित किया। उक्त 4 लाख 25 हजार रुपये आरोपी हीरालाल द्वारा उक्त संस्था को तीस दिन के अंदर देने का आदेश दिया। यदि आरोपी हीरालाल द्वारा उक्त राशि तीस दिन के अंदर अदा नही की जाती हैं तो उसे एक साल का अतिरिक्त कारावास भुगतना पड़ेगा।

      गौरतलब हैं कि बहुत से लोग ऋण लेने के लिये विभिन्न संस्थाओं में जाते हैं। और ऋण देने वाली संस्था के नियमों व शर्तो को पूरी तरह समझे बिना ही उनकी शर्तो का पालन करने के लिये राजी हो जाते है। बिना सोचे समझे ऋण देने वाली संस्था को अपने हस्ताक्षर करके ब्लैंक चैक दे देते हैं और उनके विभिन्न ब्लैंक फॉर्मो में अपने हस्ताक्षर कर देते हैं। जिसका फायदा ऋण देने वाली संस्थाओं आसानी से उठाती हैं और खामयाजा बाद में ऋण लेने वाले व्यक्ति को भुगताना पड़ता हैं।


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