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Saturday, August 3, 2013

शायद बलात्कार कुछ कम हो जाएँ...!

Ashish Pathak के फेसबुक वॉल से.
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अब जब बियर बार खुल ही रहे हैं तो शायद बलात्कार कुछ कम हो जायेंगे, क्यूंकि बलात्कार करने का वक़्त ही नहीं बचेगा...शाम होते ही शर्मीले नवयुवक बियर बार के अँधेरे में जाकर अपने ह्रदय की नयी उत्तेजना को थोड़ा कम कर लेंगे वहीँ वेह्शी दरिन्दे जिन्हें औरत की लत पड़ चुकी है, वो सस्ते में ही अपना पागलपन शांत कर सकेंगे. इसी बहाने देर रात आने जाने वाली मासूम बहनें शांतिपूर्वक सडकों पर आजा सकेंगी क्यूंकि सारे नरपिशाच तो बियर बारों में व्यस्त होंगे. पढ़के थोड़ा अजीब तो लगेगा पर ये उतना बुरा नहीं है जितना लगता है, कम से कम मासूम और अनिच्छुक लड़कियों से जबरन सम्भोग करने वाले पिशाच अपनी गर्मी शांत करने के लिए उन औरतों का सहारा लेंगे जिनका घर ही इस वेश्यावृत्ति के काम से चलता है.

उन औरतों को दूसरा काम देने और सुधरने की सोच काम नहीं आ सकेगी क्यूंकि उन्हें ये काम रास आने लगा है. मैंने काफी समय पहले २००५ में जब बियर बार बंद करवा दिए गए थे तब इनमे से कुछ से बात भी की थी, वो अब आदत से मजबूर थीं और काम बंद हो जाने से बेहद परेशान लिहाज़ा उन सबने अपनी छोटी छोटी कोठरियों जैसे रिहाइशी स्थानों पर ही धंधा शुरू कर दिया था, पेट की आग तो बुझानी ही थी और घर भी चलने थे. आसान भी और आमदनी का जरिया भी.

अब आप कहेंगे की मैं बार गर्ल्स को वेश्या कह रही हूँ ऐसी बात नहीं है, पर इसमें ग़लत भी क्या है? हर बार गर्ल वेश्या नहीं हो सकती पर हर वेश्या बार गर्ल हो सकती है. अब कोई फर्क करे भी तो कैसे? हमारे देश में बिंदास (बोल्ड) लड़कियों को भी गन्दी निगाह से देखने का चलन है, और अगर वो शराब पीने या पिलाने के काम से जुड़ी हो तो उस कन्या के लिए सिवाय वेश्या के कोई दूसरा शब्द हमारे भारतवर्ष के निवासी सोच नहीं सकते, क्यूंकि शराब पीना और ऐय्याशी करना तो सिर्फ पुरुषों का जन्मसिद्ध अधिकार है. औरत तो तब भली है जब घर के अन्दर छुपी हो, पर वंहा भी कहाँ सुकून मिलता है उन्हें, कभी अपने तो कभी पराये उनपर हमला बोल देते हैं, तो बाहर की दुनिया के साथ-साथ घरों के भीतर होनेवाले मानसिक एवं शारीरिक प्रतार्नाएं (बीवी और वेश्या एक से नहीं हो सकते) जिनके लिए पति पत्नी के अति अन्तरंग सम्बन्ध भी कानून की अनुमति के मोहताज हो चुके हैं, (अपनी बीवी से प्यार की मांग अगर थोड़ी जबरन हुई तो बलात्कार) इसमें कुछ नरमी आ जाये.

बलात्कारियों को तो उम्र का भी लिहाज़ नहीं रहा, ४ साल की नन्ही हो या ४० साल की सुघढ़ ... मतलब होता है तो बस स्त्री के निजी अंगों से, शब्द बड़े कठोर हैं पर भावना एकदम स्पष्ट, मैं बियर बार खोले जाने के पक्ष में हूँ. इससे बलात्कार पूरी तरह से ख़त्म न हो न सही पर प्रतिशत में कुछ कमी तो आ ही जाएगी... है तो हाड़-मांस का बना भला कितना वीर्य खर्च करेगा कभी न कभी तो घुटनों से मात खायेगा, कभी न कभी तो वैध हकीमो की दवाओं का गुलाम हो जायेगा. कभी तो अंतरात्मा धिक्कारेगी कभी तो औरत के अलग अलग रूपों को समझ पायेगा. औरत को सम्भोग और मज़े का सामान नहीं इंसान समझेगा..

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