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Sunday, January 5, 2014

जी ए डी पीएस के सुरेश के खिलाफ भी अभियोजन की अनुमति!

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के सुरेश 
भोपाल 04 जनवरी. भ्रष्टाचार के मामले में राज्य शासन की वरिष्ठ अधिकारी अजिता वाजपेयी पांडे के बाद अब वर्ष 1982 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के सुरेश के खिलाफ भी केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय द्वारा सीबीआई को अभियोजन की अनुमतिदिए जाने के संकेत हैं। इससे श्री सुरेश की मुश्किलें बढ गई हैं। हालांकि आला अधिकारी इसे महज अफवाह करार दे रहे हैं।

मध्यप्रदेश काॅडर के अधिकारी श्री सुरेश वर्तमान में यहां सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव हैं। उन पर भ्रष्टाचार का मामला उनके चैन्नई पोर्ट टस्ट के अध्यक्ष व सेतु समुद्रम परियोजना का मुख्य कार्यपालन अधिकारी रहते हुए दर्ज किया गया था। मामला वर्ष 2004 से 2009 के बीच का है। उक्त परियोजना में भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलने पर केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने श्री सुरेश के आवास व कार्यालय में छापा डाला था। सीबीआई ने छापे के दौरान जो दस्तावेज बरामद किए उनमें बडे पैमाने पर आर्थिक गडबडी सामने आई थी। इस पर श्री सुरेश को प्रथम दृष्टया दोषी मानते हुए उनके विरुद्ध अपराधिक प्रकरण क्रमांक 18 ए /2011 दर्ज किया गया था। जांच के बाद सीबीआई ने केंद्र सरकार से इस मामले में करीब छह माह पूर्व  अभियोजन की अनुमति चाही थी। बताया जाता है,कि हाल ही में केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने सीबीआई को अभियोजन की स्वीकृति दे दी है। इस मामले में राज्य शासन पहले ही अपनी ओर से अनुमति दे चुकी है।

उनके खिलाफ चालान पेश होने पर उनका निलंबन तय माना जा रहा है। ज्ञात हो,कि वर्ष 1996 में मप्र में हुए बिजली मीटर खरीदी घोटोले की आरोपी एवं वर्तमान में राज्य के तकनीकी शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव श्रीमती अजिता वाजपेयी पांडे के खिलाफ भी केंद्र सरकार ने राज्य के लोकायुक्त को अभियोजन अदालत  में पेश करने की अनुमति प्रदान की है। दरअसल, नई दिल्ली में आम आदमी की पार्टी की सरकार बनने के बाद से केंद्र सरकार भी भ्रष्टाचार मामलों में सतर्क हो गई है। इस तरह के लंबित मामलों में कार्रवाई कर वह अपनी साख सुधारने की कवायद कर रही है। केंद्रीय सतर्कता आयोग में ही देश भर के 29 वरिष्ठ अधिकारियों के करीब 19 मामले लंबित हैं। इनमें आरोपी अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोप सही पाए जाने के बाद अभियोजन की अनुमति नहीं मिलने से इनके खिलाफ मामलों को अदालत तक नहीं ले जाया सका। इनमें एक मामला श्री सुरेश के खिलाफ भी लंबित था।

के सुरेश को छग सरकार ने भी बचाया

उक्त मामला उजागर होने के बाद मध्यप्रदेश वापस लौटे श्री सुरेश को मप्र सरकार ने ही नहीं नवाजा बल्कि छत्तीसगढ सरकार भी उन्हें भ्रष्टाचार के एक मामले में अभयदान दे चुकी है। यह मामला वर्ष 1997 का है तब श्री सुरेश अविभाजित मप्र के बिलासपुर जिले में पदस्थ थे और अपनी पदस्थापना के दौरान उन पर साक्षरता अभियान की पुस्तकें छपवाने में गोयनका प्रिंटर्स इंदौर को नियमों के विरुद्ध करीब ढाई लाख रुपए का भुगतान कर उपकृत किए जाने का आरोप लगा था। यह मामला आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो में दर्ज किया गया।  ब्यूरो ने वर्ष 2010 में इस प्रकरण में खात्मा लगा दिया। बाद मंे राज्य सरकार ने साक्ष्य नहीं मिलने का तर्क देकर श्री सुरेश के साथ ही आईएएस अधिकारी आईएन एस दाणी, एमके राउत समेत चार अधिकारियों के खिलाफ प्रकरण वापस  ले लिया था। इस पर वहां विपक्ष के नेता रवीन्द्र चैबे ने सवाल उठाया था,कि जब आरोपी अधिकारी ही अपने मामलों की जांच करेंगे तो साक्ष्य कैसे मिलेंगे।


अफवाह है अभियोजन स्वीकृति  की बातः मनोज श्रीवास्तव

इधर श्री सुरेश के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति संबंधी बात को मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने महज अफवाह बताया है। उन्होंने कहा ,कि श्रीमती पांडे के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की खबर भी सही नहीं है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान द्वारा जीरो टोलरेंस नीति अपनाए जाने के कारण इस तरह की अफवाह फैलाई जा रही है। इस मामले में श्री सुरेश से तो संपर्क नहीं हो सका अलबत्ता श्रीमती पांडे ने अपने मामले में अभियोजन स्वीकृति संबंधी जानकारी के बारे में अनभिज्ञता जताई। उन्होंने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत तौर पर तो कोई सूचना कंेद्र से नहीं मिली है। 

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