Pages

click new

Saturday, May 16, 2015

अपात्रों को कर्ज बांट कंगाल हुए सहकारी बैंक

1200 करोड़ के घोटाले की फांस में शिव राज 

टीओसी न्यूज @ विनोद उपाध्याय

भोपाल। मछली तालाब से कितना पानी पीती है क्या आप इसका पता लगा सकते हैं....? बिल्कुल इसी तरह ये पता लगाना भी मुश्किल है कि सरकारी अमला खजाने से कितना ghधन लूटता है। इसी उधेड़बुन में मध्यप्रदेश के अधिकारी और नेता मिलकर लूट-खसोट में जुटे हुए हैं। खुद को किसान पुत्र कहने वाले शिवराज के राज में किसान भी इस लूट से अछूते नहीं हैं। प्रदेश में कृषि ऋणमाफी, किसानों को सस्ती ब्याज दर पर ऋण देने जैसी लोक लुभावन राजनीतिक घोषणाओं के कारण राज्य की मजबूत सहकारी कृषि ऋण व्यवस्था जर्जर और बदहाल हो गई हैं। अब तो राज्य के कई जिला सहकारी बैंकों के खजाने खाली हो गए हैं। जिससे कई बैंक कंगाली की कगार पर आ गए हैं। आलम यह है कि पिछले 10 साल में प्रदेश के अपेक्स बैंक समेत 38 जिला सहकारी बैंक की 852 शाखाओं के हिसाब से 1200 करोड़ रूपए गायब हो गए हैं। इस घपले की जांच करने की जगह इसे किसी न किसी मद में खर्च दिखाकर हिसाब बराबर किया जा रहा है। यही नहीं कर्ज माफी के नाम पर अरबों रूपए की हेराफेरी को दबाने की कोशिश भी की जा रही है। राज्य के सहकारी बैंकों व प्राथमिक सहकारी समितियों ने धडल्ले से अपात्रों से मिलीभगत करके यह घपला किया था।

 इन तमाम घपले-घोटाले के बीच सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 में सहकारी बैंकों के माध्यम से 18,000 करोड़ रूपए किसानों को वितरित करने का प्रावधान रखा है। मध्य प्रदेश राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के लगभग 761 करोड़ रुपए वसूली न होने के कारण डूब चुके हैं, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा घोषित कृषि ऋणमाफी योजना के मानदण्डों के अनुसार काम करने पर जिला सहकारी बैंकों ने 861.37 करोड़ रुपयों की सकल वसूली की तुलना में केवल 98.44 करोड़ रुपए ही वसूल किए हैं। बैंक ने वसूली की उम्मीद भी छोड़ दी है और इसीलिए जमीनी कर्मचारियों ने भी वसूली के काम में कोई रुचि नहीं ली है। किसान ऋण राहत योजना के क्रियान्वयन में सहकारी बैंकों के कामकाज में घपले, घोटालों से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार भी मानती है कि गड़बडिय़ां जरूर हुई हैं। सरकार ने शिकायतें मिलने पर गुपचुप तरीके से 3 नवंबर 2009

 को राज्य के सभी जिला सहकारी बैंकों के ऋणमाफी प्रकरणों की जांच के निर्देश दिए थे। जानकारी के मुताबिक 38 जिला बैंकों में से 32 जिला बैंकों की जांच की गई जिनमें 16 बैंकों में विभिन्न प्रकार की गड़बडिय़ां होने के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 115 करोड़ रुपयों की गड़बड़ी या हेराफेरी हुई है। उसके बाद से अभी तक लगातार गड़बडिय़ां हो रही हैं और यह आंकड़ा 320 करोड़ रूपए के ऊपर पहुंच गया है। अभी तक की जांच में जो तथ्य निकलकर सामने आया हैउसके अनुसार, सहकारिता विभाग घोटालों का गढ़ बन गया है। इस विभाग में कोई न कोई गड़बडिय़ां आए दिन उजागर हो रही हैं। विभाग की पूरी कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। सहकारिता विभाग और अनियमितताएं एक दूसरे के पर्याय बन गई है। इस विभाग में हर महीने कोई न कोई घोटाला सामने आ रहा है। सहकारी बैंकों में ऋणों की वसूली नहीं हो रही है, उस पर ऐसे व्यक्तियों को ऋण बांटा जा रहा है जिन्हें ऋण की कोई आवश्यकता नहीं है।

 आलम यह है की कई सहकारी बैंक हो गए कंगाल हो गए हैं। नौ सहकारी बैंकों की एनपीए 800 करोड़ पहुंचा किसानों को शॉर्ट टर्म लोन देने वाले जिला सहकारी बैंकों की माली हालत गड़बड़ाने लगी है। कुछ बैंक सी कैटेगरी में भी पहुंच चुके हैं। करीब नौ बैंकों में तो खतरे की घंटी बज गई है। इनका एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग असेट) पौने आठ सौ करोड़ को पार गया है। अपेक्स बैंक सहित अन्य संस्थाओं की देनदारी इन बैंकों पर बढ़ती जा रही है। हालत नहीं सुधरी तो बैंक आर्थिक आपातकाल (धारा 11) की स्थिति में पहुंच जाएंगे यानी इनके कार्य व्यवहार पर भारतीय रिजर्व बैंक रोक लगा देगा। यही नहीं, नाबार्ड इन्हें दिए जाने वाले लोन में कटौती कर देगा। ऐसे हालात 1997-98 से लेकर 2003-04 में बने थे। तब करीब 18 बैंक धारा 11 में आ गए थे। बैंकों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई थी। अब फिर सरकार और बैंक के स्तर पर समीक्षा और कड़े कदम उठाने का दौर शुरू हो गया है। उल्लेखनीय है कि अपेक्स बैंक द्वारा की गई समीक्षा में जब सहकारी बैंकों की खस्ताहालत होने का मामला सामने आया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विभागीय मंत्री गोपाल भार्गव सहित आला अफसरों के साथ हुई बैठक में कड़े कदम उठाने के निर्देष दिए और इसके लिए उन्हें फ्री-हैंड भी दे दिया है। 

ज्ञातव्य है कि 2006-07 में बैंकों की आर्थिक हालात सुधारने के लिए वैद्यनाथन पैकेज में मिले 1200 करोड़ रुपए की वजह से बैंक पटरी पर आ गए थे लेकिन दोबारा वही हालात बनने लगे हैं। सीधी में तो 1100 ट्रैक्टर फाइनेंस के मामले में बड़ा घोटाला सामने आ गया है। करीब 114 ट्रेक्टर जिन्हें फाइनेंस करना बैंक ने दस्तावेजों में बताया है, वे किसी और के नाम पर पंजीकृत हैं। अपेक्स बैंक द्वारा की गई समीक्षा के अनुसार, टीकमगढ़ बैंक की एनपीए 110 करोड़ रूपए हो गई है। वहीं रायसेन बैंक की 90 करोड़ रूपए, मंडला बैंक की144 करोड़ रूपए दतिया बैंक 60 करोड़ रूपए, ग्वालियर बैंक 80, होशंगाबाद बैंक 131, छतरपुर बैंक 98, रीवा बैंक 62 और सीधी बैंक की एनएपी 39 करोड़ रूपए हो गई है। इसलिए बिगड़े हालात बताया जाता है सहकार बैंकों की खस्ता हालत के लिए की लोन वितरण में फर्जीवाड़ा सबसे बड़ा कारण है। इसके अलावा पीडीएस में घोटाले के चलते समितियों ने बैंकों को पैसा नहीं दिया जिसे बैंकों ने अपने रिजर्व फंड से चुकाया। 

तीन साल में कृषि ऋण की वसूली काफी कम रही। प्राकृतिक आपदा की वजह से सरकार ने वसूली स्थगित करवाई पर रकम समय पर नहीं दी, जिससे बैंकों पर ब्याज का बोझ बढ़ा। जीरो परसेंट ब्याज पर कर्ज देने से बैंकों का ध्यान इस पर ही लगा रहा। बैंक बिना इजाजत ही दस-दस शाखाएं खोल रहे हैं और भर्तियां भी की हैं। इस कारण अब आलम यह है कि राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (भूमि विकास बैंक प्रचलित नाम) बंद होने की कगार पर है। बैंक को 1 लाख 27 हजार किसानों से 13 सौ करोड़ से ज्यादा कर्ज वसूलना है। लेकिन, वसूली 5-6 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। बैंक ने किसानों को दीर्घावधि कर्ज देना 2010 से बंद कर दिया है। बैंक इस स्थिति में भी नहीं है कि नाबार्ड के 990 करोड़ लौटा सके, इसलिए सरकार अपनी गारंटी पर कर्ज अदायगी कर रही है। इसके बावजूद सरकार बैंक के भविष्य को लेकर संजीदा नहीं है। यही वजह है कि पिछले डेढ़ साल से एकमुश्त समझौता योजना का प्रस्ताव फाइल में कैद है।

 बैंक के लिए कोई कारगर बिजनेस मॉडल नजर नहीं आने पर मंत्रिमंडलीय समिति इसे बंद करने की सिफारिश तक कर चुकी है पर कोई फैसला अब तक नहीं हुआ है। नेताओं की चारागाह सहकारी बैंक नेताओं की चारागाह बन गए हैं। ये तय ही नहीं हो पा रहा है कि इन्हें सहकारिता में रखें या फिर बैंक बने रहने दें। ईमानदार सीईओ को बैंक अध्यक्ष रहने ही नहीं देते हैं। दोनों के बीच कभी बनती ही नहीं है। बैंकों का हर साल नाबार्ड की ओर से निरीक्षण होता है। वित्त सचिव के साथ जब भी बात होती है, गड़बडिय़ों की ओर ध्यान आकर्षित कराया जाता है पर इसका हल नहीं निकलता। नोटिस फॉर फ्यूचर कम्पलाइंस नोट भी दिया जाता है पर उसका पालन नहीं होता। नाबार्ड के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक केए मिश्रा कहते हैं कि एनपीए बढऩे और वसूली न होने से बैंकें सी और डी केटेगरी से होती हुई धारा 11 में पहुंच जाती हैं। इसके बाद या तो सरकार मदद करके इन्हें फिर खड़ा कर देती हैं या फिर वैद्यनाथन पैकेज जैसा कोई फंडा फिर आ जाता है और बैंक चल पड़ते हैं। लेकिन, कोई स्थायी समाधान नहीं निकला।

 समस्या ये है कि बैंकों को लेकर सरकारें गंभीर नहीं हैं। इस स्थिति का नुकसान अंतत: किसानों को होगा क्योंकि किसी भी वाणिज्यिक बैंक की रूचि क्रॉप लेने-देने में नहीं है। प्रमुख सचिव सहकारिता अजीत केसरी कहते हैं कि बैंक विषम परिस्थितियों में न फंसें, इसके लिए सरकार सक्रिय हुई है। मुख्यमंत्री स्वयं समीक्षा कर चुके हैं। नाबार्ड, सहकारिता विभाग और अपेक्स बैंक स्तर पर संयुक्त बैठक करके बैंकवार स्थितियों का आकलन किया गया है। ऋण माफी के नाम पर डकारे करोड़ों रूपये एक दर्जन जिलों में हुए करोड़ों के घोटाले का मामला भी ईओडब्ल्यू की फाइलों में दम तोड़ रहा है। एक हजार करोड़ के ऋण माफी घोटालों में होशंगाबाद, हरदा, सीहोर, रायसेन, विदिशा, राजगढ़, बैतूल, नरसिंहपुर, जबलपुर, पन्ना, टीकमगढ़, शाजापुर जिले शामिल हैं, जिसमें सहकारी बैंक व समितियां शामिल हैं, 

जिसकी जांच ईओडब्ल्यू कर रहा है। इसमें 38 जिलों में बैंक अध्यक्ष व महाप्रबंधक 85 करोड़ के घोटाले में शामिल पाए गए हैं। अकेले हरदा जिले में 75 करोड़ का घोटाला हुआ है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने 2008 में किसानों की कर्ज माफी व राहत योजना के तहत करीब 1100 करोड़ रुपये की राशि मप्र को नाबार्ड से आवंटित की थी। इतना बड़ा मामला उजागर होने पर ईओडब्ल्यू ने 27 नवंबर 2011 को अपराध 38-11, धार 120 बी, 470 और 405 धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज करें। 38 जिलों में पांच-पांच सौ करोड़ के घोटाले की जानकारी उजागर हुई। पिछले वर्ष 2011-12 में कर्ज माफी घोटाले का मामला उठा था, जिसमें सहकारिता मंत्री ने भी माना था कि 100 करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी हुई है। नाबार्ड ने ऋण देते समय शर्त रखी थी कि ऋण माफी योजना लागू करने से पहले जिला सहकारी बैंक प्राथमिक सहकारी समितियों की आडिट कराया जाए। टीकमगढ़, भिंड, हरदा, होशंगाबाद जिले में कराई जांच में पता चला कि जिला बैंकों ने आडिट किए बगैर ही समिति प्रबंधकों की रिपोर्ट पर मोहर लगा दी। जिला बैंकों से छूट मिलने पर समिति प्रबंधकों ने मनमर्जी से कर्ज माफ कर लूट खसोट की। 

अधिकारी घोटालों पर डाल देते हैं पर्दा अपैक्स बैंक में घोटाले जब-तब उजागर होते रहते हैं। अब सहकारी बैंकों के घोटाले सामने आ रहे हैं। अभी हाल ही में बुंदेलखंड इलाके के सहकारी बैंकों तीन करोड़ का घोटाला सामने आया है। सहकारी बैंक के अधिकारी उस पर पर्दा डाल रहे हैं। बुंदेलखंड के पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ के जिला केंद्रीय सहकारी बैंक तो 3 करोड़ के घोटाले में फंसे ही हैं। 

अब छतरपुर जिला सहकारी बैंक की राजनगर कस्बे की ब्रांच से तीन करोड़ का घोटाला उजागर हुआ है। इसमें सहकारी पंजीयक ने 10 अप्रैल को ब्रांच मैंनेजर के खिलाफ एनआईआर दर्ज कराने के निर्देश संयुक्त पंजीयक को दिए हैं। प्रदेश में चल रही किसान क्रेडिट कार्ड योजना के क्या हाल हैं यह छतरपुर के सहकारी बैंक की राजनगर की ब्रांच में हुई करतूत से सामने आया है। ब्रांच मैंनेजर लक्ष्मी पटेल ने 183 किसानों को क्रेडिट कार्ड पर कर्ज देकर तीन करोड़ रूपए का घोटाला किया। प्रावधान है कि यह कर्ज प्राथमिक समितियों के माध्यम से दिया जाए और बैंक मुख्यालय से अनुमति ली जाए पर ऐसा नहीं हुआ। ब्रांच मैंनेजर ने न तो बैंक से अनुमति ली और न ही समितियों के माध्यम से किसानों को कर्ज दिया। सीधे ब्रांच से ही बांट दिया। 

सब्सिडी हड़प कर ली गई। इतना ही नहीं घोटाले की तीन करोड़ की रकम से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी करवा ली। राजनगर ब्रांच से मछली पालन के करीब पांच लाख रूपए का कर्ज दिया गया। जिन गांव के किसानों को कर्ज दिया गया वहां तालाब ही नहीं है। इसमें सब्सिडी हड़प ली गई। रिकार्ड तोड़ गया सीधी सहकारी बैंक घोटाला प्रदेश के तमाम जिलों में संचालित सहकारी बैंकों में हुए घोटालों के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए सीधी का सहकारी बैंक घोटाला अब प्रदेश में नंबर 1 पर आ गया है। इस एक बैंक से 1100 ट्रेक्टर फाइनेंस दिखा दिए गए, जबकि इतने तो पूरे प्रदेश में फाइनेंस नहीं हुए। इतना ही नहीं 167 कर्मचारियों की फर्जी भर्ती कर दी गई। इतना ही नहीं जीप व हाउसिंग फाइनेंस, पदोन्नित, शाखा भवनों के निर्माण में अनियमितता जैसे कई और मामले सामने आए हैं। अपेक्स बैंक स्तर की प्रारंभिक जांच में आरोप पहली नजर में प्रमाणित पाए गए और बैंक के तत्कालीन सीईओ आरकेएस चौहान निलंबित कर दिए गए, अब विस्तृत जांच हो रही है। सूत्रों के मुताबिक बीते तीन साल में सीधी जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक ने ताबड़तोड़ फाइनेंस किया। 

सहकारी क्षेत्र में सामान्यत: शार्ट टर्म फाइनेंस होता है, पर बैंक ने ट्रैक्टर, जीप और हाउसिंग फाइनेंस धड़ल्ले से किया। बैंक की जांच में पता चला कि कई ट्रैक्टरों के रजिस्ट्रेशन नंबर तक नहीं है। जिन हितग्राहियों के नाम ये फाइनेंस हुए उनमें से कुछ का अता-पता तक नहीं है। शार्ट टर्म फाइनेंस का पैसा इसमें लगा दिया गया। अब बैंक की हालत ये है कि अमानतदार पैसा वापस मांग रहे हैं और बैंक के पास देने को रकम नहीं है। वसूली भी यहां बेहद कम हो रही है। यही नहीं अपेक्स बैंक की प्रारंभिक जांच में 167 कर्मचारियों की नियुक्ति बाउचर पेमेंट पर करने की बात सामने आई है। इन लोगों को अलग-अलग शाखाओं में पदस्थ किया गया था। नियुक्ति के लिए शासन या अपेक्स बैंक से इजाजत तक नहीं ली गई। पदोन्नित में भी मनमर्जी चलाई गई। 

सात शाखाएं बिना अपेक्स बैंक की परमिशन खोल दी गईं। मामले की गंभीरता को देखते हुए सहकारिता मंत्री गोपाल भार्गव ने अपेक्स बैंक प्रबंधन को विस्तृत जांच कराने के निर्देश दिए हैं। वहीं, बैंक ने सहकारिता विभाग को प्रस्ताव दिया है कि सीधी बैंक का बीते चार साल का विशेष ऑडिट कराया जाए, ताकि अन्य गड़बडिय़ों के बारे में भी पता लग सके। अपेक्स बैंक के प्रबंध संचालक प्रदीप नीखरा ने बताया कि शिकायत प्राप्त हुई थी, जिसके आधार पर जांच कराई गई। इसमें प्रथम दृृष्टया अनयिमितताएं सामने आई हैं। तत्कालीन सीईओ को निलंबित कर दिया है। मामले की जांच बैंक स्तर पर कराई जा रही है। मंदसौर में बांट दिया गया 12 करोड़ का फर्जी ऋण प्रदेश भर के जिला सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली को लेकर मुख्यमंत्री ने भोपाल में चिंता जाहिर कर सुधारने की ताकीद की है। सीएम की चिंता सही भी है अकेले मंदसौर के जिला सहकारी बैंक ने ही पिछले कुछ वर्षों में 12 करोड़ का फर्जी ऋण बांट दिया है, वहीं बैंक कर्मचारियों व सोसायटियों ने ही 1.25 करोड़ का गबन कर दिया।

 बैंक में बैठे अध्यक्ष ने पात्रता नहीं होने पर भी बैंक से ही परिजनों के नाम पर कर्जा ले लिया। बीते तीन सालों में बैंक अध्यक्ष व अधिकारियों की जुगलबंदी का नतीजा कहो या जिम्मेदारों की लापरवाही नीमच, जीरन व सावन के वेयर हाउस की फर्जी पर्चियों के आधार पर लगभग 12 करोड़ रुपए के ऋण दे दिए गए। जबकि वेयर हाउस में माल रखा ही नहीं गया था। सबसे बड़ी बात यह रही कि यह ऋण जिन शाखाओं से जारी हुआ उन्हें इस तरह के ऋण देने की पात्रता भी नहीं थी। इसके बाद भी मंदसौर मुख्यालय पर बैठे जनप्रतिनिधि और अधिकारी इन लोगों को प्रश्रय देते रहे। अब स्थिति यह हो रही है वसूली करने जा रहे बैंक अधिकारियों को न तो वेयर हाउस मालिक मिल रहे हैं और न ही फर्जी पर्चियों पर ऋण लेने वाले।

 हाल ही में नाबार्ड के दल द्वारा की गई जांच में यह भी उजागर हुआ है कि तत्कालीन अध्यक्ष राजेंद्र सुराना ने भी बैंक की दलौदा शाखा से अपने परिजनों के नाम व उनके वेयर हाउस में रखे सामान की पर्ची पर लगभग 2 करोड़ रुपए तक के ऋण प्राप्त कर लिए थे। हालांकि बवाल उठने के बाद सभी राशि ब्याज सहित जमा भी कर दी गई। पर लंबे समय तक बैंक की राशि का इस्तेमाल किया गया जबकि सहकारिता के नियमों में पदाधिकारियों या उनके परिजनों द्वारा इस तरह कर्ज नहीं लिया जा सकता है। इस मामले में सरकार ने जांच ठंडे बस्ते में डाल दी थी। बाद में हाईकोर्ट के निर्देश पर संयुक्त पंजीयक सहकारिता उज्जैन वीपी मारन ने भी जांच की थी। पर मामला दबा दिया गया। रीवा में 16 करोड़ का घोटाला सहकारी बैंकों में लगातार घोटाले सामने आ रहे हैं। 

हाल ही में रीवा बैंक में भी करीब 16 करोड़ का घोटाला पकड़ा गया है। इस मामले में अभी जांच भी चल रही है। इसके अलावा रायसेन, होशंगाबाद, टीकमगढ़, छतरपुर सहित लगभग सभी बैंकों में घपले हुए हैं और अफसरों और जनप्रतिनिधियों ने मिलकर बैंक को करोड़ों रुपए की चपत लगाई है। इसी तरह हाल ही में हरदा के को-ऑपरेटिव बैंक में 2.77 करोड़ का घोटाला सामने आया था। इस मामले में आरोपी जेल में है। उधर,सिंगरौली जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित बैढऩ में लोन प्रक्रिया में करोड़ों का घोटाला हुआ है। गरीब जनता कलेक्टर से जांच की मांग कर रही है। घोटाले की निष्पक्ष जांच की जाए तो बड़ी मछलियां जाल में फंसेंगी। नीमच जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की तीन शाखाओं में किसानों का फर्जी माल वेयरहाउस में संग्रहित बताकर 9 करोड़ का घोटाला किया गया है। 

गौरतलब है कि नीमच सिटी बैंक शाखा में पोरवाल एग्रो फेसेलिटी वेयरहाउस के मयंक पोरवाल ने प्रबंधन से मिलीभगत कर 3.39 करोड़ रुपए का फर्जी ऋण हथिया लिया था। इसके लिए 34 किसानों की रसीदें प्रस्तुत कर माल वेयरहाउस में संग्रहित होना बताया था। बाद में ऋण जमा भी नहीं कराया गया। घोटाले में शामिल नीमच सिटी और सावन बैंक शाखा के मामले में तत्कालीन प्रबंधकों मंगलसिंह मोर्य और सुमित ओझा को गिरफ्तार किया जा चुका है। जबकि मुख्य आरोपी पुलिस गिरफ्त से बाहर है। हाल ही में पुलिस ने घोटाले में शामिल युसूफ मोहम्मद, हरिवल्लभ पाटीदार, देवीलाल किलोरिया को गिरफ्तार किया है। 

आरोपियों को न्यायालय ने जेल भेज दिया है। इन लोगों के नाम पर वेयरहाउस में धनिए का भंडारण बताया गया था। घोटाला होता रहा, अफसरों को नहीं लगी भनक हरदा, सीधी और रीवा के सहकारी बैंकों में करोड़ों के घोटाले होने के बाद भी सहकारिता विभाग के अफसरों की जिम्मेदारी अब तक तय नहीं की गई है। विभाग अफसरों पर कार्रवाई करने के लिए जांच रिपोर्टों का इंतजार कर रहा है। जबकि, घोटालों की पुष्टि अपेक्स बैंक की जांचों में हो चुकी है। इसी आधार पर तीनों जगह एफआईआर कराई गई हैं। सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने बताया कि शासन के प्रतिनिधि के तौर पर सहकारिता विभाग के अफसरों पर बैंक की गतिविधियों पर नजर रखने, मुख्यालय को सूचना देने के साथ पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी होती है। होशंगाबाद बैंक की हरदा ब्रांच में नियमों के विपरीत करोड़ों रुपए रखे जाते रहे पर उप या संयुक्त पंजीयक को पता नहीं लगा। 

सहकारिता मंत्री गोपाल भार्गव ने बताया कि बैंकों में आए दिन उजागर हो रहे घोटालों के मद्देनजर ही कलेक्टरों को प्रशासक बनाने का फैसला किया है। पांच बैंकों की जिम्मेदारी इन्हें सौंपकर कार्रवाई के लिए फ्री-हैण्ड भी दे दिया है। साथ ही ये हिदायत भी दी है कि जांच में किसी भी स्तर का अधिकारी दोषी पाया जाता है तो सीधे एफआईआर कराई जाए। 12 रिमांइडर, फिर भी रिकॉर्ड गायब ग्वालियर जिला सहकारी बैंक में हुई 30 करोड़ रूपए से अधिक की आर्थिक अनियमितताओं के खिलाफ जांच कर रही ईओडब्ल्यू शाखा को अभी तक मूल रिकॉर्ड नहीं मिला है। जबकि ईओडब्ल्यू ने 2013-14 में लगातार 12 से अधिक पत्र भेजे थे, इन पत्रों में फर्जी ऋण प्रकरणों की सूची भी लगाई थी, ताकि मूल रिकॉर्ड मिलने में आसानी रहे। 

हाईकोर्ट के आदेश पर हुई इस कार्यवाही के अंतर्गत पत्रों की प्रति डीआर, जेआर, एमडी अपैक्स बैंक और सहकारिता विभाग के आयुक्त को भेजी गई थी। वर्तमान में बैंक प्रशासक भी इस प्रकरण से संबंधित फाइलें ईओडब्ल्यू को नहीं सौंप रहे। अपराध क्रमांक 1-10 में अपना घर, ड्रिप ऋण योजना, उपभोक्ता ऋण सहित धारा 37 का उल्लंघन कर बैंक को 20 लाख रूपए की सीधी हानि पहुंचाने का उल्लेख हैं, इसके अलावा आईआरडीपी ऋण वितरण नियुक्ति पदोन्नतियों में अवैधानिक प्रक्रिया सहित अन्य कार्यों से सहकारी बैंक को करीब 30 करोड़ की चपत लगी थी।

 कलेक्टर ने लिया चार्ज, घोटालों की होगी जांच उधर, जिला सहकारी बैंक भिंड का बोर्ड भंग होने के बाद कलेक्टर मधुकर आग्नेय ने 2 अप्रैल को चार्ज ले लिया है। इस दौरान उन्होंने बैंक की फाइलों को भी खंगाला। ज्वाइंट रजिस्ट्रार अभय खरे ने स्पष्ट किया कि भोपाल के अफसरों ने बैंक के रिकार्डों की जांच की है, उसके तहत पूर्व चेयरमैन के खिलाफ मामला भी दर्ज हो सकता है। साथ ही घोटाले और नियुक्तियों की फाइलों को भी खंगाला जाएगा। इस संबंध में दिशा निर्देश भी जारी कर दिए है। प्रदेश सरकार ने सहकारिता के चुनाव से पहले जिला सहकारी बैंक का बोर्ड भंग कर चेयरमैन श्यामसुंदर सिंह जादौन को पद से हटा दिया है। भाजपा संगठन की माने तो श्यामसुंदर सिंह जादौन प्रदेश नेतृत्व द्वारा कराए जा रहे चुनाव को लेकर खफा थे।

 साथ ही भाजपा ने अगले चेयरमैन के तौर पर मेहगांव के भाजपा के वरिष्ठ नेता केपी सिंह के नाम का मेेंडेड जारी कर दिया था। इसके खिलाफ श्यामसुंदर सिंह जादौन ने बयान देकर कहा था कि सरकार ने गलत तरीके से भिंड जिले में मेंडेड जारी किया है। प्रदेश के अन्य जिलों में मेंडेड जारी नहीं हुआ है। बैंक में कलेक्टर के चार्ज लेने के बाद हड़कंप मच गया। सहकारी बैंकों में हवाला कारोबार भी छत्तीसगढ़ में सहकारी बैंकों के माध्यम से हवाला कारोबार का खुलासा होने के बाद अब मप्र के सहकारी बैंक भी जांच के घेरे में आ गए हैं। दरअसल, इनकम टैक्स विभाग ने पाया कि रायपुर जिला सहकारी बैंक के तीन शाखाओं सीओडी ब्रांच (लाल गंगा शॉपिंग माल के सामने वाला)में 6 खाते, दूसरा न्यू मंडी ब्रांच 5 खाते और रामसागर पारा ब्रांच 10 खाते यानी 21 खाते खोले गए, जिनमें करीब 500 करोड़ का लेन देन हुआ। इन सारे खातों में लेन देन 20 जुलाई 2007 से लेकर 2011 मई तक हुए। 

इनमें आरबीआई की गाइड लाइन नो योर क्सटमर (केवाईसी) का पालन नहीं हुआ। पेन कार्ड की इंट्री नहीं थी। इन चीजों की शिकायत जब आरबीआई के पास पहुंची तो फिर जांच हुई और शिकायतों को सही पाया गया। खातेदारों के बारे में मालूम करने पर पते फर्जी निकले, लेकिन पैसे का ट्रांजेक्शन पर रोक नहीं लगी। इसके बाद 20 जनवरी 2015 में आरबीआई ने रजिस्टार ऑफ कॉपरेटिव सोसाइटी को आरबीआई ने खत लिखा और सहकारी बैंक के मुख्य अधिकारी डीआर देवांगन, एसके वर्मा सीईओ अनूप अग्रवाल और पूर्व सीईओ एके श्रीवास्तव पर कार्रवाई करने के लिए कहा था जिस पर आखिरकर कलेक्टर के आदेश पर कार्रवाई हुई। अब इसी आधार पर मप्र के बैंकों की भी जांच-पड़ताल हो रही है। दरअसल, दोनों राज्यों का सिस्टम एक समान है। लोग आसानी से सहकारी बैंकों में अपने खाते खोल लेते हैं और फिर लेनदेन करने लगते हैं। राष्ट्रीय या मल्टीनेशनल बैंक की तरह सहकारी बैंकों पर जांच पड़ताल नहीं होती और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की नजर भी सहकारी बैंकों पर कम ही रहती है।

 आरबीआई को चाहिए कि वो मप्र के सहकारी बैंकों की छानबीन करे। बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं कि एक बड़ा हवाला कारोबार का खुलासा हो। 115 करोड़ के घोटाला ठंडे बस्ते में प्रदेश के सहकारी बैंकों में लगातार घपले-घोटाले सामने आते रहते हैं, लेकिन आज तक जिम्मेदारों पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है। 2010 में प्रदेश के 36 जिलों में कर्ज माफी के नाम पर 115 करोड़ की हेराफेरी का मामला सामने आया था। राज्य की सहकारी बैंकों व प्राथमिक सहकारी समितियों ने धडल्ले से अपात्रों से मिलीभगत करके यह घपला किया था।

 इस घपले में जिला सहकारी बैंकों के 299 अधिकारी, 395 कर्मचारी एवं प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी दोषी पाए गए हैं किन्तु राज्य सरकार ने केवल 10 कर्मचारियों को ही सेवा से पृथक करने की कार्यवाही की। इस मामले को लेकर कांग्रेस ने 2011 में सीबीआई जांच कराने की मांग करती रही तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी शिकायत की थी, लेकिन घपलेबाजों का बालबांका नहीं हो सका। 

उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने मप्र के गरीब एवं बैंकों का कर्ज न पटा सकने वाले किसानों के ऋण माफ करने एवं उन्हें ऋण चुकाने में राहत देने की योजना के तहत राज्य सरकार को 914 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई थी। इस राशि से जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को उन किसानों के ऋण पूरी तरह माफ करने थे जिनके पास 5 एकड़ से कम भूमि है तथा वे 1997 से 2007 के बीच अपना कर्ज अदा नहीं कर सके हैं, इसके अलावा पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले ऐसे किसानों के लिए भी केन्द्र सरकार ने ऋण राहत योजना प्रारंभ की थी जो पिछले दस वर्षों तक बैंकों का ऋण नहीं चुका सके थे। 

जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार किसानों की ऋण माफी एवं ऋण राहत करना थी। ऋण राहत योजना में 5 एकड़ से बड़े किसानों को एकमुश्त राशि जमा करने पर 25 प्रतिशत ऋण से मुक्ति देने की योजना थी। लेकिन यह जानते हुए कि सहकारी बैंकों में बैठे नेता और दलाल घपले से बाज नहीं आएंगे, राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि सभी जिलों सहकारी बैंकों को भेज दी।

 सहकारी बैंको ने भी बेहद लापरवाही का परिचय दिया और ऋण राहत एवं ऋण माफी के प्रकरण प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से तैयार कराए। इन समितियों में स्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं होती। जिला सहकारी बैंकों के कर्मचारियों, अधिकारियों एवं समितियों ने सदस्यों ने मनमाने ढंग से किसानों का ले देकर कर्ज माफ कर दिया। केन्द्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि केवल कृषि ऋण ही माफ किया जाएगा, लेकिन बैंकों एवं सहकारी समितियों ने मकान, मोटर सायकिल, चार पहिया वाहनों के ऋण भी माफ कर दिए। 

मप्र विधानसभा में कांग्रेस के विधायक डा. गोविन्द सिंह ने 28 जुलाई 2009 को यह मामला विधानसभा में उठाया। इसके बाद 23 जुलाई 2009 को विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर ध्यानाकर्षण सूचना के तहत सरकार का ध्यान इस घपले की ओर आकर्षित किया। तब सहकरिता मंत्री ने घपले को स्वीकार करते हुए 31 दिसम्बर तक इसकी जांच कराने एवं दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का भरोसा दिलाया था।

 लेकिन इस घपले की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है। 10 मार्च 2010 को कांग्रेस के डा. गोविन्द सिंह ने जब प्रश्र के माध्यम से फिर से इस मामले को विधानसभा में उठाया तो सहकारिता मंत्री बिसेन ने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होंने सदन में स्वीकार किया कि इस योजना में अभी तक की जांच में 114.81 करोड़ की अनियमितता हो चुकी है। उसके बाद कांग्रेस ने इस मुददे को लेकर कई बार हंगामा किया लेकिन परिणाम सिफर रहा। कांग्रेस का आरोप है कि केन्द्र की कर्ज माफी योजना के जरिए किसानों को मिलने वाली 200 करोड़ की राहत का किसानों के नाम पर अपहरण कर लिया गया और इसकी भनक किसानों को लगी भी नहीं और प्रदेश के नेता और अफसर तो किसानों के कर्ज से मालामाल हो रहे हैं। यूपीए सरकार ने जब कर्ज माफी का ऐलान किया तो हरदा जिले के बघवार गांव में रहने वाले किसान गरीबदास को लगा पैसा ना सही कर्जे से मुक्ति ही सही कुछ तो फायदा होगा। 

आठ एकड़ जमीन के मालिक गरीबदास को सहकारी बैंक के पचास हजार रुपए चुकाने थे। कर्जा जस का तस है। ये अलग बात है कि कर्जा माफी की लिस्ट में गरीबदास के नाम से 32,090 रुपए माफ हो चुके हैं। किसानों के कर्ज माफी की लिस्ट की तरह बैंक के गोलमाल की लिस्ट भी लंबी है। कमल सिंह पांच एकड़ के किसान हैं। नियम कायदे से इनका पूरा कर्जा माफ होना था। बेचारे दो साल में पच्चीस हजार रुपए बैंक में जमा कर चुके हैं। इनके नाम पर भी लिस्ट में 22,162 रुपए की माफ हुई। लेकिन फायदा कमल को नहीं मिला। दिलावर खान की कहानी चौंकाने वाली है। इनके वालिद का नाम नेक आलम है लेकिन लिस्ट में दिलावर का धर्म ही बदल गया। इनकी वल्दियत में रामसिंह का नाम लिखा है। 

जबकि दिलावर रामसिंह नाम का कोई शख्स हरदा जिले की टिमरनी तहसील के करताना गांव में रहता ही नहीं। इस नाम पर लिस्ट में 11,400 रुपए माफ कर दिए गए। कर्ज माफी के इस अपहरण से जुड़े दस्तावेज साबित करते हैं कि होशंगाबाद और हरदा जिलों में ही 13 करोड़ से ज्यादा के फर्जी कर्ज माफी क्लेम बनाए गए हैं। जब दो जिलों का ये हाल है तो अन्य जिलों में क्या हुआ होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं। गोंदा गांव में रहने वाले रामनारायण के तीन खाते हैं। इन खातों में दो लाख से ज्यादा की कर्ज माफी हो गई। लेकिन हरदा जिले के इस गरीब किसान को कर्ज माफी की भनक तक नहीं लगी। गोंदा गांव के ही रेवाराम ने साठ हजार रुपए बैंक का कर्ज चुकाने के लिए जमा किए। इसके बाद भी इनके दो खातों पर डेढ़ लाख रुपए का कर्ज माफ हो गया। बगैर पढ़े-लिखे किसान सहकारी बैंकों के गोलमाल में फंसकर रह गए। ज्यादातर मामलों में बैंकों ने ऐसे कर्जे भी माफ कर दिए जो खेती के लिए नहीं लिए गए थे। कई जगह तो खेती की आड़ में मोटर साइकिल, जीप और घरों के कर्ज माफ हो गए। सरकार ने विधानसभा में भी माना है कि 36 जिलों में हेराफेरी हुई। सींधी और सिंगरौली जिलों में तो बैंक के रिकॉर्ड ही गायब हो गए। भिंड जिले में गोलमाल के ही रिकॉर्ड मिले। जाहिर है कि सहकारी बैंक के मैनेजरों की जानकारी के बगैर ये हेराफेरी नामुमकिन है। 

कैसे होती है करोड़ों की हेराफेरी आखिर को-ऑपरेटिव बैंक करोड़ों की हेराफेरी करते कैसे हैं। इसकी पड़ताल करने पर पता चला है कि किसानों को उनके खाते की न तो पासबुक दी जाती है, ना ही कर्जे के हिसाब-किताब के लिए ऋण पुस्तिका। नतीजा ये कि किसानों को न तो कर्ज का पता चलता है न कर्ज माफ का। लिस्ट में कई ऐसे फर्जी नाम भी हैं जिनका असल में कोई वजूद ही नहीं। गोंदा गांव में कर्ज माफी घोटाले की कहानी किसी का भी होश उड़ाने के लिए काफी है। हरदा जिले के इस गांव के किसानों को खबर ही नहीं लगी कि केन्द्र सरकार ने उनका कर्ज माफ किया। लिस्ट में तमाम नाम ऐसे हैं जो इस गांव में ढूंढ़े से भी नहीं मिले। 

लेकिन इनके नाम पर लिया कर्ज माफ हो चुका है। हरिओम वल्द रामदास....माफ हुए....9707 रुपए मंगलसिंह वल्द गुलाबसिंह....माफ हुए....5863 रुपए विजय सिंह वल्द सूरत सिंह....माफ हुए...11017 रुपए चमनसिंह वल्द गजराज सिंह....माफ हुए...37208 रुपए देवीसिंह वल्द कल्लू सिंह....माफ हुए.....61687 रुपए मंगल सिंह वल्द रामाधऱ....माफ हुए....57147 रुपए अधार वल्द पूनाजी....माफ हुए....86593 रुपए जगदीश वल्द बहादुर...माफ हुए...81051 रुपए गोंदा के पड़ोस में सडोरा नाम का एक गांव ऐसा भी है जहां को ऑपरेटिव बैंक के एक भी खातेदार के पास पासबुक नहीं। गांव वाले बार-बार पासबुक मांगते हैं तो हर बार जवाब मिलता है बन रही हैं। जगदीश प्रसाद के खाते से कब 27,000 रुपए का लोन हो गया उसे पता ही नहीं चला। ना तो उसने कहीं दस्तखत किए ना ही कहीं अंगूठा लगाया। मगर जब नोटिस आया तो आंखें खुली रह गईं। गांव के ही किसान कमलकिशोर को भी एक अदद पासबुक की दरकार है जो अब तक नहीं मिली।

No comments:

Post a Comment