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Wednesday, July 8, 2015

शिवराज की राहत अदालत की आफत

 समाचार विश्लेषण : राजेश सिरोठिया

भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सीबीआई जांच की पेशकश करके ने भले ही फौरी राहत पा ली हो लेकिन देश की दो बड़ी अदालतों के सामने बड़ी आफत खड़ी हो गई है। सतही तौर पर सीबीआई जांच की बात जितनी आसान लगती है उतनी है नहीं। व्यापमं के इस मामले में इतने कानूनी पेंच हैं कि उनका कोई तार्किक समाध्ाान खोजने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को कड़ी मशक्कत करना होगी। कांग्रेस अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई की जांच की मांग करके शिवराज के साथ नरेंद्र मोदी को भी घेरने की रणनीति पर काम कर रही है।

 शिवराज के सीबीआई जांच के कदम पर उनके आलोचक अभी भी नुक्ताचीनी में लगे हैं। लोग कह रहे हैं कि हाईकोर्ट से मांग क्यों की? सीध्ो भारत सरकार से जांच का आग्रह क्यों नहीं किया । यह फैसला तो बहुत देर के किया। बड़ी देर कर दी मेहरबां आते आते। तो कोई यह भी कह रहा है कि देर आय दुरूस्त आए। सच तो यह है कि भले ही देर से फैसला किया लेकिन समय रहते फैसला कर लिया। इसमें शिवराज की राजनीतिक समझ और सूझबूझ के दीदार हो रहे हैं। यदि वो अब यह फैसला नहीं करते और 9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला अपने तईं करता तो शिवराज पर जांच कबूल करने के साथ ही पद छोड़ने का दवाब भी बन जाता। मौजूदा कानूनी हालात के बीच शिवराज सीध्ो केंद्र को पत्र लिखते तो भी सीबीआई बगैर अदालत से मशविरा करे कोई फैसला नहीं कर सकती थी। बहरहाल अब सवाल यही है कि आगे क्या? दायर याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष क्या विकल्प हैं? राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की जो गेंद हाईकोर्ट के पाले में डाली है उस पर वह क्या कर सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के विकल्प
पहला- सुप्रीम कोर्ट ने मप्र की एसटीएफ को पहले ही 15 जुलाई तक की मोहलत इस काम के लिए दी है कि वह हाईकोर्ट की निगरानी में मामले से जुड़ी कार्रवाई पूरी करते हुए सारे चालान पेश कर दे। मौजूदा हाल में एसटीएफ ने 75 फीसदी मामलों में जांच पूरी करके चालान पेश कर दिए हैं। 25 फीसदी काम बाकी है। यानि जिन मामलों में चालान पेश हैं उनको सेशन ट्रायल में भेजा जा सकता है। यानि सुप्रीम कोर्ट  कोई भी फैसला करने के पहले यह देखना  चाहेगी कि 15 जुलाई तक एसटीएफ ने क्या किया।
दूसरा- सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल रामनरेश यादव को हटाने वाली याचिका को छोड़कर बाकी याचिकाओं को मप्र हाईकोर्ट को यह कहकर भेज सकती है कि राज्य सरकार ने चूंकि उससे सीबीआई जांच की पेशकश की है, इसलिए वह समग्रता से इस पर विचार करके एक साथ कोई फैसला करे।
तीसरा- सुप्रीम कोर्ट खुद सीबीआई जांच का निर्देश देने में सक्षम है। लेकिन उसके समक्ष यह सवाल जरूर रहेगा कि अब तक की जो जांच हुई उसका क्या करें? क्या उसे शून्य घोषित करके सीबीआई को नए सिरे से जांच करने को कहेगी?
चौथा- यदि सुप्रीम कोर्ट सीबीआई जांच का फैसला करती है तो क्या वो यह फैसला करेगी कि खुद निगरानी करे?

हाईकोर्ट के विकल्प
पहला- सीबीआई जांच की राज्य सरकार की मांग को वह यह कहकर खारिज कर सकती है कि अपनी निगरानी में हो रही एसटीएफ की जांच से वह संतुष्ट हैं। हां  व्यापमं से जुड़े जिन मौतों को संदिग्ध्ा बताया जा रहा है उनकी सीबीआई जांच के लिए वह आदेश दे ।
दूसरा- यदि पूरे व्यापमं मामले की सीबीआई जांच का फैसला हाईकोर्ट करता है तो उसे एसटीएफ द्वारा अब तक हुई जांच के बारे में भी फैसला करना होगा कि इसका क्या किया जाए? एसटीएफ भारी भरकम अमले के साथ जिस जांच को दो साल में भी पूरा नहीं कर सकी है उसको पूरा करने में सीबीआई  कितना वक्त लगेगा?
तीसरा - यदि हाईकोर्ट पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग को स्वीकार करता है तो प्रकारांतर से यह माना जाएगा कि अपनी निगरानी में जो जांच वह करा रहा था वह न्यायसंगत नहीं थी।
चौथा- हाईकोर्ट खुद जांच की निगरानी कर रहा था तो इसी आध्ाार पर मुमकिन है कि वह कोई फैसला लेने के बजाए यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ दे।

पसोपेश में आरोपी
सीबीआई जांच को लेकर व्यापमं के आरोपियों में मिली जुली बात है । जो इस घोटाले के सूत्रध्ाार है उनको तो कोई राहत मिलने से रही। लेकिन जिन लोगों को लगता है कि उन्हें एसटीएफ ने झूठा फंसाया है उनके लिए उम्मीद की किरण नजर आ रही है। नियम कानूनों को ताक में रखकर उलझाए गए ऐसे लोगों को मानसिक संत्रास से मुक्ति मिल सकती है। लेकिन सवाल यही है कि अदालत से रास्ते से जितने वक्त में वो अपने मसले सुलझा सकते थे, उन्हें सीबीआई जांच पूरी होने का इंतजार करना पड़ेगा। कांग्रेस की हालत सीबीआई जांच की पेशकश के बाद सांप छछूंदर वाली हो गई है। इसलिए वह अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी की बात कहकर केंद्र को लपेटने की कोशिश करेंगे।

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