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Monday, August 24, 2015

जैन समाज के बंद को सोनकच्छ के व्यापारी दे रहे भरपूर समर्थन

व्यापारियो ने नही खोले अपने प्रतिष्ठान।

12 बजे पुष्पगिरी तीर्थ के प्रणेता आचर्य श्री 1008 पुष्पदंत सागरजी महारज धर्म सभा को संबोधित करेगे।पश्चात एसडीएम अंजलि जोसेफ को एक ञापन पत्र जैन समाज द्वारा सौपा जायेगा।ञात रहे की  हाइकोर्ट द्वारा संथारा/संवलेखना को आत्महत्या करार दिया गया है हाइकोर्ट के इस फैसले से समाज आक्रोशित व दुखी है विरोध स्वरुप जैन समाज ने देशभर में समाजजानो द्वाराअपने प्रतिष्ठान बंद कर कोर्ट से फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह कर रहा है। आचर्य श्री द्वारा बताया गया की संथारा/संवलेखना आत्महत्या नही आत्मकल्याण है।
क्या है संथारा/संवलेखना
जैन समाज में यह पुरानी प्रथाहै कि जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो खुद को कमरे में बंद कर खाना-पीना त्याग देता है। जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को संथारा कहा जाता है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है।
जबरदस्ती बंद नहीं किया जाता अन्न--
ऐसा नहीं है कि संथारा लेने वाले व्यक्ति का भोजन जबरन बंद करा दिया जाता हो। जैन-ग्रंथों के अनुसार, इसमें व्यक्ति को नियम के अनुसार भोजन दिया जाता है। जो अन्न बंद करने की बात कही जाती है, वह मात्र उसी स्थिति के लिए होती है, जब अन्न का पाचन असंभव हो जाए।
संथारा एक धार्मिक प्रक्रिया है, न कि आत्महत्या जैन धर्म एक प्राचीन धर्म हैं इस धर्म मैं भगवान महावीर ने जियो और जीने दो का सन्देश दिया हैं जैन धर्म मैं एक छोटे से जीव की हत्या भी पाप मानी गयी हैं , तो आत्महत्या जैसा कृत्य तो महा पाप कहलाता हैं। किसी भी धर्म मैं आत्महत्या करना पाप माना गया हैं।
आम जैन श्रावक संथारा तभी लेता हैं जब डॉक्टर परिजनों को बोल देता है की अब सब उपरवाले के हाथ मैं हैं तभी यह धार्मिक प्रक्रिया अपनाई जाती हैं इस प्रक्रिया मैं परिजनों की सहमती और जो संथारा लेता ह उसकी सहमती हो तभी यह विधि ली जाती हैं। यह विधि छोटा बालक या स्वस्थ व्यक्ति नहीं ले सकता हैं इस विधि मैं क्रोध और आत्महत्या के भाव नहीं पनपते हैं। यह जैन धर्म की भावना हैं इस विधि द्वारा आत्मा का कल्याण होता हैं। तो फिर यह आत्महत्या कैसे हुई।

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