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Saturday, September 19, 2015

स्मार्ट गांव योजना (श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण मिशन)

 Sep 19, 2015

स्मार्ट सिटी के बाद केंद्र सरकार ने अब स्मार्ट गांव बनाने की योजना के तहत श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण मिशन को मंजूरी दी है। इस मिशन के तहत अगले तीन सालों के भीतर देश के गांवों के 300 क्लस्टरों को विकसित किया जाएगा, जिस पर कुल 52 हजार करोड़ रुपये सरकार खर्च करेगी। इसके लिए चालू वित्त वर्ष में 5142.08 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

प्रमुख बिंदु

इस मिशन का उद्देश्य गाँवों को स्मार्ट गांव में बदलना, स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना, महानगरों की ओर पलायन रोकना और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति देना है।

इस मिशन का लक्ष्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की विकास क्षमताओं का उपयोग करना है। इससे पूरे क्षेत्र में विकास को गति मिलेगी।

इस योजना के तहत राज्य सरकारें ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वयन के लिए तैयार रूपरेखा के अनुरूप क्लस्टरों की पहचान करेगी।

ग्रामीणों को बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा के साथ बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं भी मिलेंगी

इस मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए कौशल विकास के विशेष व्यवस्था होगी।

पहले चरण में गांवों के 100 क्लस्टर (समूह) लिए जाएंगे।

प्रत्येक क्लस्टर में 25 से 50 गांवों को शामिल किया जा सकता है।

निर्धारित मानक के हिसाब से मैदानी क्षेत्रों के क्लस्टर में 50 हजार की आबादी और पहाड़ी और समुद्र तटीय क्षेत्रों में 15 हजार की आबादी को शामिल किया जाएगा।

पहले चरण में सभी राज्यों में कम से कम एक क्लस्टर होगा।

बड़े राज्यों में आबादी के अनुसार क्लस्टर बनाए जाएंगे।

इन क्लस्टरों से आर्थिक गतिविधियों, कौशल विकास, स्थानीय उद्यमिता के साथ ही कई सुविधाएं मिलेंगी ताकि स्मार्ट गांवों का एक क्लस्टर बन सके।

देशभर में ग्रामीण-शहरी अंतर मिटाने को 2019-20 तक 300 ग्रामीण क्लस्टर बनाए जाएंगे।

एक क्लस्टर की आबादी 25-50 हजार लोगों तक की होगी।

इस मिशन में पंचायत स्तर की योजनाओं का धन का उपयोग किया जाएगा।

राज्य सरकार निर्धारित मानक के आधार पर क्लस्टर में शामिल होने वाले गांवों की सूची तैयार करेगी।

पुरानी योजना ‘पुरा' (PURA-Provision of Urban Amenities to Rural Areas) में 13 समूहों में काम शुरू किया गया था, जिनमें से केवल चार में कुछ काम हुआ, शेष में काम शुरू नहीं हो सका। पुरानी योजना में केवल स्वयंसेवी संस्थाओं और निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी थी, लेकिन एक जांच रिपोर्ट के बाद इसमें केंद्र व राज्य सरकारों की हिस्सेदारी को आवश्यक किया गया है।

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