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Monday, January 18, 2016

प्रदेश पर ३२ हजार से एक लाख ७१ हजार करोड़ का हुआ कर्जा

अवधेश पुरोहित @ टी ओ सी न्यूज
भोपाल। जब प्रदेश में कथित कुशासन के मुखिया दिग्विजय सिंह को हटाकर भारतीय जनता पार्टी की सरकार प्रदेश की सत्ता पर जब काबिज हुई थी तो उस समय प्रदेश पर लगभग ३२ हजार करोड़ का कर्जा था लेकिन २००३ से लेकर आज तक  तक प्रदेश पर एक लाख ७१ हजार करोड़ का कर्जा हो गया है। मजे की बात यह है कि विकास के नाम पर यह सरकार कर्ज लो और घी पियो की नीति अपनाते हुए भाजपा सरकार के सत्ता के मुखियाओं द्वारा अपनी छवि चमकाने के लिये इसी दौरान कथित ब्यूटी पार्लरों के संचालकों को करोड़ों रुपये की राशि खर्च की लेकिन न तो इस दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि सुधर सकी और न ही इतना भारी भरकम कर्ज लेने के बाद राज्य की हालत ठीक हो सकी, कर्ज लेकर घी पीने की नीति को अपनाते हुए, यह दावा जरूर किया जाता है कि प्रदेश बीमारू राज्य से निकलकर बाहर हो गया है लेकिन कर्ज लेकर विकास की नीति अपनाने के परिणाम क्या होंगे यह तो भविष्य बताएगा।

सरकार के द्वारा इस तरह के धड़ाधड़ कर्ज लेने के एवज में जहां राज्य की परसम्पत्तियों को गिरवी और बेचे जाने की स्थिति बनी है, यदि यही हालत रही तो शायद ही प्रदेश की कोई परसम्पत्ति बचे जिस पर सरकार कर्ज लेने से नहीं चूके। लेकिन मजे की बात यह है कि इस तरह के कर्ज लेने के बावजूद भी आज यह सरकार स्थायी कर्मचारियों के अलावा अस्थाई कर्मचारियों की वेतन समय पर नहीं दे पा रही है और राज्य के सारे विकास कार्य भी इन दिनों पूरे प्रदेश में बंद पड़े हैं और अधिकांश काम जो भी हो रहे हैं, वे या तो प्रायवेट पार्टनरशिप में या फिर बीओटी योजना के अंतर्गत राज्य में जितनी भी सड़कें बनी हैं उनमें अधिकांश सड़कें बीओटी योजन के अंतर्गत ही बनाई गई और उन पर चलने वाले वाहन मालिकों को अपनी जेबें ढीली करनी पड़ रही हैं, इतने भारी भरकम कर्ज से लदे इस राज्य की संविधान में प्रदत्त स्वास्थ्य, शिक्षा और पानी जैसी मूलभूत व्यवस्थाएं भी लडख़ड़ा रही हैं।

 स्वास्थ्य की तो यह स्थिति है कि प्रदेश के २७ जिलों के सरकारी अस्पताल एक एनजीओ के हाथों में यह कर्जदार सरकार सौंपने जा रही है। यदि यही स्थिति रही तो राज्य की हर व्यवस्था निजी हाथों में होगी, इसी क्रम में शिक्षा की भी धीरे-धीरे यही स्थिति बनती जा रही है कि सरकारी कम निजी शिक्षण संस्थाएं ज्यादा नजर आ रही हैं, मजे की बात यह है कि जब यही भाजपा के नेता विपक्ष में हुआ करते थे तो इसी तरह के कर्ज और वित्तीय प्रबंधन को लेकर दिग्विजय सिंह सरकार पर श्वेत पत्र जारी करने का दबाव बनाया करते थे और सड़क से लेकर सदन तक हंगामा करने में नहीं चूका करते थे, आज तब इस प्रदेश पर भारी भरकम कर्ज है तो प्रदेश के वित्त मंत्री रोज नये-नये बयान देकर यह समझाने के प्रयास कर रहे हैं कि हम कर्ज लेकर भी बेहतर हैं, सरकार द्वारा लिये जा रहे इस तरह के धड़ाधड़ कर्ज से जहां प्रदेश का हर नागरिक करीब साढ़े चार हजार से भी ज्यादा का कर्जदार है, लेकिन सरकार अभी भी कर्ज लेने से नहीं चूक रही है। एक साल के भीतर ही मध्यप्रदेश सरकार पर लगभग ३५ हजार करोड़ का कर्ज बढ़ गया है। यानी कर्ज लेने की रफ्तार ही इतनी तेज है कि उसे विकास कार्यों से लेकर कर्मचारियों के वेतन-भत्ते तक बांटने के लिए भी बाजार से ऋण उठाना पड़ रहा है। ३१ मार्च २०१४ की स्थिति में मप्र पर जहां एक लाख ३५ हजार ७९० करोड़ का कर्ज था, वहीं ३१ मार्च २०१५ की स्थिति में यह बढ़कर एक लाख ५३ हजार ५९५ करोड़ तक पहुंच गया और बीते साल बाजार से जहां सरकार ने लगभग ११ हजार ५०० करोड़ का कर्ज उठाया। इसके विपरीत केंद्र से उतना सहायता अनु दान मिला और न ही कर्ज राशि। वर्ष २००३ में जब भाजपा की सरकार बनी थी, तब मप्र पर लगभग ३२ हजार करोड़ का कर्ज था और आज यह बढ़कर पांच गुना से ज्यादा हो गया है। सीएजी के आंकड़े बताते हैं कि मप्र पर एक लाख ७१ हजार ५९५ करोड़ का कर्ज चढ़ गया है। इसमें भी सरकार की आर्थिक नीतियां तथा लापरवाही भी सामने आ रही है, जहां अनाप-शनाप खर्चों पर अंकुश लगाने में मैंनेजमेंट पूरी तरह फेल हो गया है। इसके अलावा जिन मदों से सरकार को टैक्स के रूप में अर्निंग होती है, वह भी कमजोर होती जा रही है। खासकर सेल्स टैक्स, कामर्शियल टैक्स, आबकारी, खनिज तथा परिवहन और प्रवेश कर से मिलने वाली राशि में भी कमी आई है। अब देखना यह है कि सरकार की यह कर्ज लेकर घी पीने की नीति आगे क्या रंग लाएगी और इस प्रदेश की जनता पर अपनी छवि और पार्टी की साख जमाने के लिए और कितना कर्ज लिया जाएगा यह तो भविष्य बताएगा। 

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