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Sunday, February 21, 2016

दो दिन से भूखे प्यासे प्रभात पटट्न वनपरिक्षेत्र में वर्षा के पूर्व पौधारोपण के लक्ष्य की पूर्ति के लिए गडढ़ो की खुदाई करने आए मजदूरो का वनपरिक्षेत्र में भुगतान को लेकर जबददस्त हंगामा

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बैतूल, (रामकिशोर पंवार): दो दिन भुख प्यास से व्याकुल मजदूरो ने उनके द्वारा किए गए कार्यो के एडंवास भुगतान की मांग को लेकर बीती शाम जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर दक्षिण वन मंडल के मुलताई वन परिक्षेत्र कार्यालय में जबरदस्त हंगामा खड़ा कर दिया। अध नंगे छोटे - छोटे एवं दुध मुँहे बच्चों को लेकर आई महिला एवं पुरूषो ने प्रभाट पटट्न सर्किल के  डिप्टी रेंजर श्री बोडख़े के द्वारा एक बिचौलिए के माध्यम से सरकारी लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रभात पटट्न के आसपास की बीटो में बड़े पैमाने पर 30330 साइज के पांच रूपये प्रति गडढ़े की मजदूरी दर पर खुदवायें गडढ़ो की तय की गई सप्ताहिक मजदूरी के एडंवास रूपयो की मांग को लेकर अपना डेरा डाल रखा है।

बीते 14 वर्षो से मध्यप्रदेश शासन के वन विभाग में पौधारोपण के लिए निर्धारित गडढ़ो की खुदाई का काम कर रहे मध्यप्रदेश के रीवा संभाग के कटनी एवं सीधी जिले की घुमन्तु जनजाति के लोगो ने बताया कि प्रभात पटट्न के पूर्व में दक्षिण वन मंडल के आमला वन परक्षिेत्र में18 हजार खोदे गए गए चुके है। इस समय पटट्न सर्किल में 11 हजार गडढ़ो की खुदाई कर चुके मजदूरो को खाने - पीने की सामग्री की खरीदी के लिए रूपये - पैसे नहीं बचे है। उनकी स्थिति यह है कि मात्र 25 लोगो में से 16 रूपये के पास बैंक के खाते है शेष अन्य लोगो ने अपने परिवार के सदस्यों के बैंक खाते दे रखे है जिसमें मजदूरी भुगतान इपेमेंट के माध्यम से किया जा सके। काम करने से पहले इन सभी मजदूरो ने डिप्टी रेंजर से यह तय कर लिया था कि उन्हे प्रति सप्ताह 10 हजार रूपये एडंवास राशी देनी होगी जो उनके जीवन यापन के लिए जरूरी है।

सब कुछ तय होने के बाद ही काम पर गए मजदूरो को जब एडवांस राशी नहीं मिली तो उनका हंगामा खड़ा कर देना स्वभाविक था। मध्यप्रदेश के सीधी एवं कटनी जिले से पिछले चौदह वर्षो से घुम - घुम कर जंगलो में गडढ़ो की खुदाई का काम करने बैतूल पहुंची घुमन्तु जनजाति की महिला एवं पुरूषो तथा उनके संग काम करने आए नाबालिग बच्चों ने दो वक्त की रोटी के लिए पैसे की मांग को हंगामा करने के पीछे की पीड़ा भी व्यक्त की। इन महिलाओं का आरोप था कि विभाग के लोग काम करवा लेते है लेकिन उनकी मजदूरी नहीं देते है।

उनका पिछले साल का पूर्व स्थान पर किए गए कार्यो का 2 लाख 40 हजार रूपये का भुगतान मिलना बाकी है। समय पर भुगतान न होने के कई कारण सामने आए। जहां एक ओर वनविभाग ने इपमेंट से भुगतान होने की बात कहीं वहीं दुसरी ओर फिल्ड पर इन मजदूरो से काम करवाने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने सीधे तौर पर कहा कि काम करने वाले मजदूरो के पास बैंक खाते नम्बर नहीं है जिसकी वजह से उनके खातों में इपेमेंट नहीं हो पा रहा है। सबसे आश्चर्य जनक यह बात सामने आई कि कई लोगो ने अपने रिश्तेदारो के बैंक खाते नम्बर दे दिए जिन्होने बैतूल देखा तक नहीं है।

वनविभाग के अधिकारियों ने बिना किसी पहचान एवं उनके पास बैंक खातो के अभाव में खाना बदोश धुमुन्तु जनजाति एवं अनसूचित जाति के लोगो को काम पर कैसे रख लिया। बताया जाता है कि काम करने वाले बालिग एवं नाबालिग मजदूरो की संख्या दो दर्जन से अधिक है तथा उन्हे लाना वाला पेशेवर बिचौलियां है जो उनके खातों में भुगतान डलवाने के लिए अपने रिश्तेदारो के खाते नम्बर दे चुका है। अब समस्या सामने है कि लगभग दो से ढाई लाख रूपये का बैतूल जिले के विभिन्न परिक्षेत्रो में गडढ़ो की खुदाई का काम कर चुके इन मजदूरो के क्या कलैक्टर रेट पर मजदूरी दी जा रही है या फिर बिचौलिए द्वारा उनसे ठेके पर काम करवाया जा रहा है।

आमला वन परिक्षेत्र अधिकारी श्री अहिरवार इस बात को स्वीकार कर चुके है उन्होने इन मजूदरो से पूर्व में भी गडढ़ो की खुदाई का काम करवाया है। वे इन लोगो को लाने वाले बिचौलिए को जानते है तथा उनसे उनका सबंध है। श्री अहिरवार कहते है कि वनविभाग की ओर से अकसर बजट समाप्त होने तथा वर्षा ऋतु के आगमन के पूर्व ही बड़े पैमाने पर वन परिक्षेत्रो में गडढ़ो की खुदाई का काम करवाया जाता है। बैतूल जिले में लोगो इनके अनुपात में गडढ़ो की खुदाई नहीं कर पाते है इसलिए इनसे ही काम करवाना कई बार वनविभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों की मजबूरी बन जाता है।

श्री अहिरवार को उक्त सभी मजदूर अच्छी तरह से जानते है क्योकि वे उनसे महाकौशल के नरसिंहपुर जिले में अपनी पदस्थापना के दौरान वहां पर भी काम करवा चुके है। बीते वर्षो में उनके कहे शब्दो के अनुसार वे चालिस - पचास लाख का काम कर चुके है लेकिन उनकी दशा एवं दिशा देख कर ऐसा नहीं लगता है कि उनके पास कुछ बचा होगा क्योकि मात्र एक सप्ताह में 25 मजदूरो एवं उन पर आश्रित परिवार के सदस्यों के दस हजार रूपये एडंवास न मिलने के कारण पिछले दो दिन से वे भुख एवं प्यास से तड़प रहे है।

महिलाओं के द्वारा हंगामा खड़ा कर देने के बाद अब वनपरिक्षेत्राधिकारी कहते है कि दुध मुँह बच्चों तथा स्कूल आगंनवाड़ी जाने वाले छोटे - बच्चों की माताओं को वे काम पर नहीं रखेगें तथा उनको वापस बैंरग उनके गांवो को भिजवाया जाएगा लेकिन इन महिलाओं का कहना था कि उनके रूपयें लिए बिना वे यहां से जाने वाली नहीं है। कितनी शर्मसार कर देने वाली बात है कि बैतूल जिले से हजारो की संख्या में आदिवासी परिवार रोजगार की तलाश में पड़ौसी जिलो में हर वर्ष पलायन कर रहे है वहीं  दुसरी ओर हजारो किमी दूर से आए लोगो को वन विभाग में रोजगार दिया जा रहा है।

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