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Monday, March 14, 2016

आबकारी- पुलिस के अफसर और डिस्टलर्स डकार जाते हैं सालाना 2000 करोड़ रूपए

शराब ठेकों में असफल रही सरकार, शराब निर्माताओं को दे सकती हैं दुकान

वजहः मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का दृढ़ संकल्प
मध्यप्रदेश पुलिस और आबकारी विभाग के अफसर शराब निर्माताओं के साथ मिलकर सरकार के हर साल दो हजार करोड़ रूपए डकार जाते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का वह दृढ़ संकल्प हैं जो हर पग पर यह कहते हुए कि मध्यप्रदेश में नई शराब दुकान नहीं खोली जाएगी।
हालात इसके उलट हैं सी.एम शिवराज के सपने को कुठाराघात पहुँचाते हुए गॉव-गॉव, डगर-डगर अवैध शराब बेची जा रही हैं। जिसमें बड़ी भूमिका आबकारी विभाग मध्यप्रदेश पुलिस और शराब निर्माताओं के साथ साथ शराब ठेकेदारों की भी हैं। हॉलाकि शराब ठेकेदार तो राजस्व चुका ही देता हैं लेकिन नियम तोड़ने से बाज नहीं आता।
मौजूदा परिस्थितियों में मध्यप्रदेश में देशी शराब की 2634 और विदेशी शराब की 1060 दुकानें घोषित तौर पर संचालित की जा रही हैं। अगर क्षेत्रफल अनुसार देंखे तो भौगोलिक आधार पर लगभग 83 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक शराब की दुकान हैं, वहीं जनसंख्या के मान से लगभग 19 हजार लोगों पर एक शराब की दुकान हैं। आबकारी विभाग के सूत्रों के अनुसार तमिलनाडू जैसे राज्य में 17 हजार दुकानें, महाराष्ट्र में लगभग 6 हजार और पंजाब में 5000 दुकानें हैं। इस मान से मध्यप्रदेश की गिनती 8 वें या दसवें राज्य के आसपास होती हैं। जिसके कारण शराब ठेकेदार छोटे-छोटे गॉवों में एजेंट बनाकर शराब बेचने पर मजबूर रहते हैं। इसी की आड़ में मध्यप्रदेश के शराब निर्माता जिनका इन दिनों शराब के सरकारी गोदामों पर भी कब्जा हैं हर जगह शराब की अवैध खपत के लिए पैरेलल एेजेन्ट खड़े कर दिए हैं। शराब निर्माता सीधे शराब नहीं बेच सकता हैं और शराब ठेकेदार भी एेजेन्ट नहीं बना सकते हैं। जिसकी आड़ में पुलिस और आबकारी विभाग के अफसर अलग-अलग स्तर पर मोटी रकम वसूलते हैं।
सूत्रों के अनुसार मध्यप्रदेश की सीमा से सटे गुजरात में शराब को अवैधानिक तरीके से भेजने के लिए इंदौर और उज्जैन संभाग के पुलिस एवं आबकारी विभाग के आला अफसरों से लेकर अदने से कर्मचारी तक लगभग दो करोड़ रूपए प्रतिमाह रिश्वत बतौर दे दी जाती हैं। सूत्रों के अनुसार हर दिन लगभग बीस ट्रक शराब अवैध तरीके से गुजरात भेजी जाती हैं। जिन पर मध्यप्रदेश सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले होलोग्राम लगाए जाते हैं। ये होलोग्राम भी फर्जी तरीके से शराब निर्माताओं को उपलब्ध कराए जाते हैं।
इन्हीं हालातों को देखते हुए शराब ठेकेदारों ने इस साल शराब कारोबार से तौबा करने का मन बना चुका हैं। सरकार इस दफा तीसरी बार शराब दुकानों की नीलामी करने जा रही हैं। दो बार में मात्र पच्चीस प्रतिशत शराब दुकाने ही नीलामी कर पाई हैं।
अगर सरकार को इसमें भी सफलता नहीं मिली तो संभवतः सरकार कॉर्पोरेशन बनाकर या किसी सरकारी कॉर्पोरेशन के माध्यम से शराब बेचने का काम शुरू कर सकती हैं। सरकार के इस कदम को शराब ठेकेदार ब्लैकमेलिंग करार दे रहे हैं।सूत्रों से यह भी जानकारी मिली हैं कि सरकार के एक वरिष्ठ आई ए एस अधिकारी और उच्च राजनैतिक पदस्थ के बीच मध्यप्रदेश का शराब ठेका शराब निर्माताओं को भी सौंपे जाने पर सहमति बनी हैं।
जब इसको लेकर आबकारी आयुक्त राकेश श्रीवास्तव से चर्चा की तो उन्होंने पच्चीस प्रतिशत दुकाने ही नीलाम होने की पुष्टि करते हुए विस्तृत चर्चा बाद में करने का आश्वासन दिया।
वही शराब कारोबारी शराब ठेकों से रूचि हटने का कारण आबकारी-पुलिस और डिस्टलर्स पर डालते हुए, वैश्विक मंदी, प्राकृतिक आपदा को भी बता रहे हैं।
खबरनेशन स्रोत

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