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Thursday, July 28, 2016

जमीनी हकीकत से कोसो दूर हैं जनसंपर्क महकमा

जमीनी हकीकत से कोसो दूर हैं मध्यप्रदेश का जनसम्पर्क विभाग देखिए आगे-आगे होता है क्या... जनसंपर्क महकमा याने ???????
Toc News 
गरीब की भोपाल। प्रदेश का जनसंपर्क महकमा कभी मुख्यमंत्रियों के आंख, कान और नाक हुआ करता था। मगर इस आंख के तारे जैसे विभाग की हालत खराब है। यह कई बरस से गरीब की ..... की तरह हो गया है जिसके सब मजे ले रहे हैं। हंसी ठिठोली भी उसके साथ और सरकार की बदनामी का ठीकरा भी उसी के माथे। तभी तो सीएम-मंत्री की छवि सुधार का काम बाहरी लोग कर रहे हैं। हद है यह.. जनसंपर्क विभाग का जलवा ऐसा भी था कि आज के पत्रकारों और अफसरों को उस पर यकीन करना मुश्किल होगा। 

मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह हुआ करते थे। जो खुद कम बोलते थे उनकी आंखों और अंदाज से ही नौकरशाही समझ लेती थी कि करना क्या है। एक किस्सा है अविभाजित मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ का। वहां अफसरों की मीटिंग में अर्जुन सिंह और जनसंपर्क प्रमुख सुदीप बैनर्जी उनके साथ थे। बारिश में आदिवासियों को कैरोसिन की जरूरत ज्यादा होती थी, तब राशन दुकान से मिलने वाले घासलेट की तंगी भी रहती थी सो यह बाजार में कम तो था ही मंहगा भी मिलता था। बैठक में उस समय के जिला जनसंपर्क अधिकारी ने एक पर्ची में लिखा कि घासलेट के दाम कम कर दिए जाएं तो आदिवासियों को इससे राहत मिलेगी। चपरासी को इशारे से बुलाकर यह पर्ची उस अधिकारी ने अपने साहब (याने बैनर्जी) को देने का कहा। चूंकि अर्जुन सिंह और बैनर्जी अगल-बगल ही बैठे थे इसलिए पर्ची साहब याने अर्जुन सिंह को दे दी गई। 

पहले सरकार में साहब का मतलब अर्जुन सिंह ही माना जाता था। यह देख जनसंपर्क अधिकारी सख्ते में आ गया। उन्होंने मुख्यमंत्री की तरफ कातर भाव से माफी के अंदाज में देखा। इसके बाद अर्जुन सिंह ने अपने संबोधन के दौरान ही चौकाने वाली घोषणा कर दी, कि सरकार घासलेट के दाम में कटौती करती है। यह महत्व था जनसंपर्क अधिकारी का सीएम की नजर में। इसके अलावा जनसंपर्क संचालक या आयुक्त कोई बात सीएम या किसी मंत्री से संकेत में भी कह दे तो न चाहने पर भी उसपर गंभीरता से अमल होता था। क्योंकि यह माना जाता था कि जनसंपर्क से जो बात आ रही है वह सरकार व प्रशासन को लेकर जनता व समाज की जमीनी हकीकत है। तब जनसंपर्क कुछ लोगों के हित साधने के लिए किसी एजेंडे पर काम नहीं करता था। 

सरकार की छवि चमकाने का काम करता था, जिसमें मुख्यमंत्री के साथ मंत्रिगण भी शामिल होते थे। जनसंपर्क प्रमुख जो कि अपने जिला अधिकारियों से मंत्री व प्रशासन की ग्राउंड रिपोर्ट जब सीएम को देते थे उसके आधार पर अधिकारियों की पोस्टिंग व मंत्रियों के विभाग तक कई दफा तय होते थे। चुनाव के समय भी जनसंपर्क की जिला व कस्बों की रिपोर्ट जिसमें नेताओं के समीकरण, चुनावी गणित,दावेदारों की छवि और सेबोटेज पर आई रिपोर्ट को गंभीरता से लिया जाता था। तब के सत्यानन्द मिश्र, एल.के. जोशी, सुदीप बैनर्जी, ओ.पी. रावत जैसे जनसंपर्क प्रमुख के नामों की आज भी चर्चा होती है जिन्होंने विभाग की वर्किंग 24 घंटे मीडिया की तर्ज पर रखी थी। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सचिन तेंदुलकर कहे जाने वाले नरोत्तम मिश्रा के पास जनसंपर्क विभाग है। उन्हें मिला है सबकी भौजाई बने इस महकमे की पुन: प्राण प्रतिष्ठा का जिम्मा। और वे हैं कि अभी तक विभाग ही नहीं समझ पाये,,,,, प्रिन्ट मीडिया को तीन माह से जारी होने वाले एक भई विग्यापन नहीं जारी हो पाये,ओम्म्म्म् शॉति ओम, बेव साइट्स को प्रति माह जारी होने वाले एक भी विग्यापन तीन महीने से फाइल पहले, पहले वाले और अब नरोत्म मिश्रा के पास लम्बित है, लगता है तूफान से पहले की शॉति है,,,,, लगता है मंहगा घासलेट अपना असर दिखायेगा,,,

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