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Wednesday, August 31, 2016

किसका दोष और जिम्मेदार कौन?

संजय सक्सेना
यह सही है कि हर काम सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, लेकिन जब अरबों रुपए सरकार किसी सुविधा पर खर्च  कर रही हो, और फिर भी हर दूसरी जगह लोगों को उसी सुविधा से वंचित रहना पड़े, जान पर बन आए, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? यह सवाल बार-बार मस्तिष्क में कौंध रहा है। न तो समाज आगे आ पा रहा और सरकार आदेश, निर्देश, जांच और कार्रवाई के जाल में उलझ कर रह गई है।
भिंड में एंबुलेंस नहीं मिलने पर जिला अस्पताल आने के लिए परिजन प्रसूता को लेकर ऑटो से रवाना हुए। अस्पताल के रास्ते में ऑटो में प्रसव हो गया। प्रसूता और नवजात को जिला अस्पताल लाया गया। महिला के पति ने आरोप लगाया कि उसने एंबुलेंस के लिए कई बार फोन किया, लेकिन फोन उठा नहीं तब मजबूरी में ऑटो किराए पर कर प्रसूता को लेकर आए। इस मामले में हद तो तब हो गई, जब अस्पताल परिसर में मैटरनिटी स्टाफ ने ऑटो के बाहर ही नवजात का नाल काटा।

मीडिया के सजग होने और सोशल मीडिया का गांव-गांव तक प्रसार होने का ही परिणाम है कि अब कहीं कुछ भी नहीं छिपा सकते। रोजाना कोई न कोई ऐसी खबर आ रही है, जो दिल को दहला देती है। कानून व्यवस्था की बदहाली तो अपनी जगह है, कहीं रास्ते में प्रसव हो रहा है, तो कहीं अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल पा रही है। मध्यप्रदेश में अरबों रुपए स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर खर्च किए जा चुके हैं, और भी किए जा रहे हैं। ढेर सारे विज्ञापनों के माध्यम से प्रचार किया जा रहा है कि सरकार हर  गांव तक पहुंच गई है। किसी भी गांव में प्रसूता हो, जननी एक्सप्रेस उसे अस्पताल पहुंचाएगी। अस्पताल में प्रसव के लिए पहुंचाने का खर्च भी सरकार उठाएगी। लेकिन मध्यप्रदेश में जननी एक्सप्रेस सुविधा हो या सरकारी अस्पतालों की एंबुलेंस, सेवा  बहुत ही खराब स्थिति में है।

जननी एक्सप्रेस  को लेकर तो यह बताया जा रहा है कि यह सेवा ठेके पर चल रही है और ठेकेदार को समय पर पैसा नहीं चुकाया जा रहा है। यह खामी सरकार की हुई, लेकिन होता यह है कि किसी छोटे कर्मचारी पर कार्रवाई कर इतिश्री कर ली जाती है। जबकि होना यह चाहिए कि जिला स्वास्थ्य अधिकारी तक को कारण बताओ नोटिस मिलना चाहिए। ऊपर सख्ती नहीं होगी, तो नीचे भी सुधार नहीं होगा। अस्पतालों में लापरवाही की यह अकेली खबर नहीं है, रोज आ रही हैं, संख्या बढ़ रही है। इसलिए, क्योंकि गाज किसी छोटे कर्मचारी पर गिर कर रह जाती है।

और जहां तक हमारे समाज की बात है, तो समाज का दिल भी अब ऐसी घटनाओं से नहीं पसीज रहा है। सड़क पर प्रसव होता है, तो होता रहे। कोई तड़प रहा हो, तड़पता रहे, दम तोड़ दे। मौत के बाद अकेला व्यक्ति शव को ढोता रहे। आदि..इत्यादि..। हम खुद असंवेदनशील हो गए हैं, और सरकार तो वैसे भी गूंगी, बहरी और अंधी हुआ करती हैं।

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