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Friday, September 30, 2016

शराब पीती हुई लड़कियों की फ़ोटोज़ ही क्यों वायरल होती हैं, लड़कों की क्यों नहीं होतीं?


"शराबी लड़कियों की फोटोज़ वायरल, यूज़र्स ने कहा खतरे में इंडियन कल्चर"
इस शीर्षक के साथ एक प्रतिष्ठित अख़बार की वेबसाइट पर एक खबर छापी गयी है. अन्दर हैं शराब पीती कुछ भारतीय लड़कियों की तस्वीरें. ये हैं वो तस्वीरें:



अब ये तस्वीरें देखें, इन तस्वीरों में कुछ लड़के भारतीय कल्चर को बचा रहे हैं.



इन लड़कियों की तस्वीरों में और लड़कों की तस्वीरों में ज़्यादा अंतर नहीं है. आम भाषा में कहें तो दोनों ही 'चिल' करते हुए नज़र आ रहे हैं, दारु पी रहे हैं. पर पता नहीं क्यों दारु पीते हुए लड़कों की तस्वीरें कभी वायरल नहीं होतीं, न ही उन पर संस्कृति को तबाह करने के कोई इल्ज़ाम लगते हैं.

हमारे देश में 18 साल से ज़्यादा की उम्र के लोगों का दारु पीना कानूनन गुनाह नहीं है. कई लोग, लड़के भी और लड़कियां भी अपनी मर्ज़ी से शराब का सेवन करते हैं. ये उनकी निजी चॉइस होती है कि वो शराब पीना चाहते हैं या नहीं.
शराब का अधिक सेवन करना स्वास्थ्य पर असर डालता है, इस बात में कोई दोराय नहीं है, पर अगर ये गलत है, तो दोनों के लिए बराबर गलत है. हमारे देश में लड़कों का दारू पीना तो आम बात समझी जाती है, कहा जाता है कि "लड़के होते ही ऐसे हैं". लड़कों की बात हो तो शराब बस वो चीज़ है, जो स्वास्थ्य ख़राब कर सकती है. पर लड़कियां पी लें, तो बवाल हो जाता है. लड़कियों के लिए ये सिर्फ स्वास्थ्य ख़राब करने वाली चीज़ नहीं समझी जाती. संस्कृति के 'रक्षकों' की मानें तो ये उनके चरित्र, एक पार्टनर के तौर पर इनकी लॉयल्टी आदि पर भी असर डालती है. शराब पीने वाली लड़कियां 'गन्दी लड़कियां' होती हैं, चरित्रहीन भी.

हम दारु पीने को सही नहीं ठहरा रहे, बस आपका ध्यान इस दोहरी मानसिकता की ओर ले जाना चाह रहे हैं.दरअसल, संस्कृति, कल्चर, सभ्यता, परंपरा सभी को बचाने की ज़िम्मेदारी केवल महिलाओं की ही समझी जाती है. जब लड़के दारु पी कर रेप जैसे अपराधों को अंजाम देते हैं, हमारा कल्चर खतरे में नहीं पड़ता, जब वो शराब के नशे में सोते हुए लोगों पर गाड़ी चढ़ा देते हैं, तब किसी को आपत्ति नहीं होती, जब दारु पी के नालों में पड़े मिलते हैं, तब भी कल्चर खतरे में नहीं पड़ता. कल्चर खतरे में तब ही क्यों पड़ता है, जब एक एडल्ट लड़की अपनी मर्ज़ी से पी रही हो?

इस अजीब बात के पीछे भी वो ही पितृसत्तात्मक सोच है, जो किसी न किसी तरह लड़की को 'लड़की की तरह' रहना सिखाना चाहती है. 'पिंक' फिल्म में भी ये सवाल उठाये गए, लड़कियों के अधिकारों को लेकर बहस भी छिड़ी, पर जब ऐसी तस्वीरें सामने आयीं, तो वही नज़रिया दिखाई दिया, जो लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग नियमों को मानता है.

असल में अब तक ये चलता आ रहा था कि मर्द शराब पीते थे और घर आकर अपनी बीवियों को मारते थे. जब ऐसा होता था तब भी किसी को याद नहीं आया कि हमारे कल्चर में तो औरत को देवी माना जाता है और उसपे नशे में हाथ उठाना भी कल्चर का अपमान ही है. औरतों का काम शराब के नशे के परिणाम झेलना रहा है, खुद शराब पीना नहीं. तभी जब आज कुछ औरतें शराब पीने लगीं तो लोगों को कल्चर याद आ गया.
दारु पीने से महिलाएं सशक्त हो जाएंगी ऐसा नहीं है, लेकिन जब तक हमारी सोच में लड़कों और लड़कियों के लिए समानता नहीं आ जाती, तब तक कभी भी लड़कियों को समाज में समान दर्जा नहीं मिल सकेगा.

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