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Saturday, September 24, 2016

मोदी और शाह के सपनों को क्या साकार कर रही प्रदेश भाजपा

अवधेश पुरोहित @ Toc News

भोपाल । एक ओर जहाँ भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस देश और प्रदेश को कांग्रेस मुक्त करने में सक्रिय हैं तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश भाजपा के कर्ताधर्ता मध्यप्रदेश को कांग्रेस मुक्त नहीं बल्कि कांग्रेस युक्त बनाने में लगे हुए हैं, यही वजह है कि प्रदेश में आयेदिन कांग्रेसी नेताओं के भाजपा में शामिल होने की खबरें सुर्खियों में बनी रहती हैं, 

तो जब-जब भी प्रदेश में चाहे लोकसभा हो या विधानसभा के उपचुनाव हुए हैं उनमें अधिकांश उम्मीदवार प्रदेश के भाजपा के रणनीतिकारों ने भाजपा के देवतुल्य नेताओं और कार्यकर्ताओं को उम्मीदवार बनाकर नहीं बनाकर आयातित नेता को उम्मीदवार बनाने की भरसक कोशिश की, यही रणनीति इन दिनों शहडोल संसदीय क्षेत्र के होने वाले उपचुनाव के लिये अपनाई जा रही है और इस चुनाव के लिये जहाँ राज्य के पूर्व संगठन मंत्री अरविंद मेनन की इच्छाअनुसार जयसिंह नगर की विधायक प्रमिला सिंह के पति अमरपाल सिंह को शहडोल संसदीय क्षेत्र में होने वाले उपचुनाव के समर में उतारने की तैयारी कर रहे हैं।

इससे यह साफ जाहिर होता है कि भाजपा के पास शहडोल संसदीय क्षेत्र में ऐसा कोई नेता नहीं है जो कांग्रेस के उम्मीदवार से टक्कर ले सके। तभी तो भाजपा पहले तो जिस कांग्रेस पार्टी से उसे इस चुनावी समर में मुकाबला करना है उसमें संध लगाकर उसमें उम्मीदवार खोजने के फेर में लगे रहे इस मुहिम में जब वह असफल साबित हुए तो अरविंद मेनन की पसंद इसी संसदीय क्षेत्र की विधानसभा जयसिंह नगर की विधायक प्रमिला सिंह के पति अमरपाल सिंह जो कि अपर कलेक्टर के रूप में राज्य की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत हैं, उन्हें इस चुनावी समर में उतारने की तैयारी करने में लगी हुई है,

हालांकि अमरपाल सिंह अपने कार्यकाल के दौरान शहडोल संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले जिलों में लम्बे समय तक पदस्थ रहे, इस दौरान उनके कारनामों की भी लोग चटकारे लेकर करते दिखाई दे रहे हैं। इससे पूर्व भी भाजपा के प्रदेश रणनीतिकारों की हर चुनाव में आयातित उम्मीदवार उतारने की रणनीति हमेशा बनती बिगड़ती रही, प्रदेश भाजपा के रणनीतिकारों की इस तरह की नीति के चलते भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं और यह नेता यह कहने से नहीं चूक रहे कि जहां एक ओर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश और प्रदेश को कांग्रेसमुक्त बनाने की दिशा में कदम उठा रहे हैं तो हमारे प्रदेश की भाजपा के रणनीतिकार प्रदेश को कांग्रेस युक्त बनाने में लगे हुए हैं पता नहीं उनकी यह क्या नीति है,

लेकिन यह जरूर है कि इस नीति के चलते क्षणिक लाभ तो पार्टी को मिलेगा, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम बहुत ही घातक होंगे, इन नेताओं के अनुसार यदि जिस तरह से प्रदेश में भाजपा की छवि दिनोंदिन गिरती जा रही है और यह माहौल बराबर चलता रहा तो भगवान न करे कि हमारे नेताओं की मिशन-२०१८ की नीति असफल साबित हो और प्रदेश में भाजपा को सत्ता गंवानी पड़े, तब यही सत्ता के दलाल कहे जाने वाले आयातित उम्मीदवार डूबते जहाज की तरह इनके बारे में यह खबरें समाचार पत्र की सुर्खियां होंगी कि फलां नेता ने अपने हजारों कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा को त्यागा, हालांकि इस तरह के समाचारों की सुर्खियां राज्य में ही नहीं बल्कि देश में जब-जब सत्ता पलटती है तो अक्सर बनी रहती हैं,

शायद हमारे रणनीतिकार इसी तरह की सुर्खियों को जन्म देेने में लगें हुए हैं लेकिन इसके परिणाम भाजपा को भुगतने होंगे और तब न तो इन सत्ता के दलालों और मान-मनौव्वल कर क्षणिक लाभ के लिये आयातित यह फौज प्रदेश भाजपा में तैयार की जा रही है उससे आज पार्टी के देवदुर्लभ नेता और कार्यकर्ता तो असंतुष्ट हैं ही और जब सरकार चली जाएगी यदि भगवान करे कि प्रदेश में भाजपा की सरकार प्रदेश का लोकतंत्र का राजा पलट कर रख दे तब न तो प्रदेश भाजपा सरकार के पास उनके अपने वह देव दुर्लभ नेता ही बचेंगे और ना कायकर्ता क्योंकि वह हमारे प्रदेश के रणनीतिकारों की चाहत बने सत्ता के उन दलालों को महत्व देने के कारण आज रुष्ट हैं ।

तब पटवा सरकार गिर जाने के बाद जो परिस्थितियां इस प्रदेश में निर्मित हुई थी और १९९८ में आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तब के प्रदेश संगठन मंत्री के रूप में इस प्रदेश में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे थे तब इस प्रदेश में पटवा सरकार के शासनकाल के दौरान कार्यकताओं से की गई बदसलूकी का अंजाम प्रदेश में भाजपा के पक्ष में माहौल होने के बावजूद भाजपा सत्ता में कायम नहीं हो सकती थी, २००३ में सत्ता में काबिज होने के पूर्व सु्रश्री उमा भारती को सबसे पहले जो काम करना पड़ा वह हमारी पार्टी के वर्षों से रुष्ट देव दुर्लभ कार्यर्काओं को मनाने का दौर उमा भारती को महीनों तक करना पड़ा तब कहीं जाकर २००३ में भाजपा को सतत हासिल हो सकी और अब प्रदेश में पुन: वही पटवा सरकार के कार्यकाल की तरह देव दुर्लभ नेताओं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का दौर जारी है पता नहीं हमारे रणनीतिकारों की यह नीति इस प्रदेश की भाजपा को कहां लेजाकर छोड़ेगी यह तो आने वाला भविष्य बताएगा।

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