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Saturday, October 29, 2016

न्‍यायाधीशों की नियुक्ती पर नींद में सरकार, चिंतिति सुप्रीम कोर्ट



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उच्‍चतम न्‍यायालय के लिए चित्र परिणाम
नई दिल्लीः उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि न्‍यायाधीशों की नियुक्ति के काम में गतिरोध नहीं आना चाहिए। एक खुली सुनवाई में प्रधान न्‍यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्‍यक्षता वाली तीन न्‍यायाधीशों की पीठ ने आरोप लगाया कि सरकार न्‍यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने की कोशिश कर रही है। 

शुक्रवार को सरकार पर जोरदार हमला करते हुए न्यायालय ने कहा कि सरकार कॉलेजियम द्वारा काफी पहले सिफारिश किए जाने के बावजूद उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं करके न्यायपालिका को ठप नहीं कर सकती। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अदालतों को बंद कर सकती है और न्याय की प्रक्रिया बंद कर सकती है।   

प्रधान न्‍यायाधीश ने कहा कि संविधान पीठ ने नौ महीने पहले राष्‍ट्रीय न्‍यायिक नियुक्ति आयोग कानून को खारिज कर दिया था और सरकार से कहा था कि वह न्‍यायिक नियुक्तियों के लिए एक नया कार्यविधि ज्ञापन तैयार करे। लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। प्रधान न्यायाधीश तीर्थ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने खचाखच भरे अदालत कक्ष में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से तल्ख लहजे में कहा, ‘आप पूरे संस्थान के काम को पूरी तरह ठप नहीं कर सकते। 

अगर आपको किसी नाम से समस्या है तो कृपया इसे वापस भेजें और हमसे पुनर्विचार करने को कहें।’ उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में विलंब पर व्यथा जाहिर करते हुए पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का उदाहरण दिया जहां न्यायाधीशों के अभाव में अदालती कमरों वाले एक तल में ताला लगा है।  इस पीठ में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी शामिल हैं।  

पीठ ने कहा, ‘आप अब अदालत कक्षों को भी बंद कर सकते हैं और न्याय बंद कर सकते हैं।’ पीठ ने शुरुआत में पीएमओ और विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिवों को फाइल के साथ तलब करने की धमकी दी। पीठ तब नाराज हो गई जब रोहतगी ने शुरुआत में ही ‘मेमोरेंडम आफ प्रोसीजर’ (एमओपी) को अंतिम रूप नहीं दिये जाने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इसकी वजह से नियुक्ति प्रक्रिया में बाधा आ रही है.  एमओपी को अंतिम रूप देने का न्यायपालिका में नियुक्ति प्रक्रिया के साथ कोई लेना देना नहीं है। आपने कहा था कि पुराने एमओपी के अनुसार नियुक्ति की जा सकती है।’ 

पीठ ने कहा कि कॉलेजियम ने जिन 77 नामों की सिफारिश की है, उसमें से अब तक 18 नामों को मंजूरी दी गई है। पीठ ने कहा, ‘कुछ भी नहीं हो रहा है। नौ महीनों से कॉलेजियम ने जो आपको नाम दिए हैं, वो आपके पास पड़े हुए हैं। आप नामों को दबाकर बैठे हुए हैं। आप किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं। व्यवस्था में कुछ बदलाव की। व्यवस्था में कुछ क्रांति की।’ पीठ ने कहा कि केंद्र नियुक्तियों को नहीं रोक सकता है। पीठ ने कहा कि कार्यपालिका की निष्क्रियता संस्था को नष्ट कर रही है।  पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उदाहरण का उल्लेख किया और कहा कि कॉलेजियम ने न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए 18 नामों की सिफारिश की थी और सरकार ने आठ को चुना और अब सिर्फ दो को नियुक्त करना चाहती है।  

उधर, आलोचना झेल रही सरकार ने शुक्रवार रात कहा कि न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने के लिए वह तमाम कोशिश कर रही है, वहीं उसने जोर देकर कहा कि पूर्व के यूपीए शासन की तुलना में एनडीए शासन के दौरान उच्च न्यायालयों में रिक्तियों में असमान्य वृद्धि नहीं हुई.  सूत्रों ने कहा कि पिछले दो साल के दौरान उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की औसत वाषिर्क दर में गिरावट नहीं आयी है, 

हालांकि एनजेएसी मुद्दे की सुनवाई के दौरान अप्रैल-दिसंबर 2015 के दौरान नई नियुक्तियां नहीं हुई.  रिक्तियां नहीं भरे जाने को लेकर प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर के कड़े बयान के मद्देनजर एक सूत्र ने कहा, ‘भारत सरकार न्यायपालिका और उसकी स्वतंत्रता का पूरा सम्मान करती है.’ सूत्र ने कहा कि सरकार न्यायिक अदालतों में बढ़ते लंबित मामलों को लेकर चिंतित है और सरकार यह देखने के लिए पूरा प्रयास कर रही कि रिक्त पद भरे जाएं.

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